सकारात्मक अभिभावकता (Positive Parenting)
बचपन और अभिभावकता इस जीवन के दो ऐसे पहलू हैं, जिनसे होकर गुजरना ही पड़ता है। इसी सफल यात्रा के लिए कुछ पहलुओं के अनुभव आधारित विचारों की प्रस्तुति की गई है। यह संभव नहीं कि अभिभावक अपने बच्चों की समस्याओं के निवारण हेतु विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करें, बल्कि कुछ व्यावहारिक, मौलिक, वैयक्तिक और तर्कसंगत तथ्यों को अपने जीवन में आत्मसात् किया जाय।
यह निर्विवाद है कि बच्चों के विकास व उत्थान के लिए अभिभावक को प्रेम और आधारभूत व्यावहारिक ज्ञान की आवश्यकता है, जिससे उनके नन्हें भविष्य को अपना व्यक्तित्व निखारने में मदद मिलती है।
अभिभावकों, छात्र-छात्राओं की समस्या, मार्गदर्शन, शिक्षकों की अहम् भूमिका तथा पारिवारिक माहौल से सम्बन्धित-शोधित अनुभव सफलता और आनंद के पट को खोलने में मदद करता है। बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए साथ ही किस अनावश्यक नियंत्रण का त्याग करें।
सकारात्मक अभिभावकता के लिए उचित समय का प्रयोग और निरंतर प्रयास नितांत आवश्यक है। माता-पिता के सुखद व सामंजस्यपूर्ण व्यवहार और आचार-विचार से बच्चों में अनोखे व्यक्तित्व का विकास होता है, जिसकी खुशबू हर पल आनंद प्रदान करती है।
यह अतिशयोक्ति नहीं है कि माता-पिता एक सुदृढ़ परिवार का निर्माण कर सकते हैं, जो उन्हें बच्चों के प्रखर व्यक्तित्व बनाने से ही प्राप्त होता है। इसके लिए बच्चों के शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, वैचारिक और सामाजिक सभी पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
हर बच्चे का व्यक्तित्व दूसरे से अलग होता है। कुछ बच्चे जन्मजात रूप से बहुत ज्यादा जिद्दी होते हैं और अपनी हर माँग पूरी करवाने के लिए वे बहुत ज्यादा शोर मचाते हैं। आनुवंशिकता बच्चे के जिद्दी व्यवहार की प्रमुख वजह है। तभी तो अपने बच्चों को ऐसी हरकतों के लिए डाँटने वाले पैरेंट्स अपने माता-पिता से अक्सर यही जुमला सुनते हैं, तुम भी ज्यादा जिद्दी थे / थी। तो इससे
किसी भी मानवीय व्यवहार की तरह जिद भी बेहद सहज प्रतिक्रिया है। अगर बच्चे की इच्छाएँ आसानी से पूरी न हों या मनचाही वस्तु हासिल करने में उसके सामने कोई बाधा आए तो उसे पाने के लिए वह अपनी तरफ से हर संभव कोशिश करता है। इसी क्रम में वह रोने-चिल्लाने या रूठकर अपनी नाराजगी दिखाने जैसी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त करता है। इस पर बहुत ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है। समय के साथ बच्चे अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करना सीख जाते हैं। हाँ, इसके लिए माता-पिता का सही मार्गदर्शन बहुत जरूरी है। बच्चों का जिद्दी व्यवहार निश्चित रूप से पैरेंट्स के धैर्य की कड़ी परीक्षा लेता है, पर उनकी ऐसी हरकतों पर ओवर रिएक्ट करने के बजाय संतुलित ढंग से उनके ऐसे व्यवहार को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए।
माता-पिता के पास अपने बच्चे के हर व्यवहार को नियंत्रित करने की पूरी शक्ति होती है। वे अपने बच्चों के लिए यह तय करते हैं कि उन्हें क्या करना है, क्या नहीं, कहाँ जाना है, कहाँ नहीं, क्या खाना है, क्या नहीं….। माता-पिता के पास ऐसी बंदिशों की लंबी लिस्ट होती है। ऐसे में जब बच्चे को हर छोटी-छोटी बात के लिए मना किया जाता है, तो उसे ऐसा महसूस होने लगता है कि उसे अपनी पसंद से जुड़ी चीजों को चुनने की आजादी नहीं है। इससे उसके मन में हताशा और गुस्से की भावना पनपने लगती है। फिर वह बड़ों से अपनी बातें मनवाने के लिए दूसरे तरीके ढूँढने की कोशिश करता है, जिसका नतीजा उसके जिद्दी व्यवहार के रूप में सामने आता है। बच्चों के जिद्दी व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए अगर उनके साथ ज्यादा सख्ती बरती जाती है तो वे सुधरने के बजाय बिगड़ने लगते हैं, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि उन्हें मनमानी करने की पूरी छूट दे दी जाए। जिद्दी बच्चों की परिवरिश के मामले में अनुशासन और लाड़ प्यार के बीच सही तालमेल बहुत जरूरी है।
बच्चों से जबरन अपनी बात मनवाने की कोशिश अक्सर नाकाम होती है। इसलिए उन्हें अनुशासित करने के लिए हमें नकारात्मक के बजाय सकारात्मक वाक्यों का इस्तेमाल करना चाहिए। बच्चों में जिद की प्रवृत्ति बढ़ने की एक प्रमुख वजह यह भी है कि जब उनके सामने अपनी पसंद से विकल्प चुनने का कोई अवसर नहीं होता है तो उनके व्यवहार में चिड़चिड़ापन बढ़ने लगता है। ज्यादा बंदिशों से उन्हें बोरियत महसूस होती है। फिर वे छोटी-छोटी बातों के लिए जिद करने लगते हैं। बच्चे पर अपना कोई एक आदेश थोपने के बजाय अगर आप उसके सामने दो-तीन मिलते-जुलते विकल्प रखकर उनमें से कोई एक चुनने को कहेंगे तो इसे यह खुद को आजाद महसूस करते हुए आपकी बात आसानी से मान लेगा।
अगर आप अपने बच्चे को ऐसी आदत से बचाना चाहते हैं तो उसकी हर बात मानने के बजाय शुरुआत से ही उसमें ना सुनने की भी आदत विकसित करें। जहाँ भी आपको टोकने की जरूरत महसूस हो उसे स्पष्ट रूप से मना करें। इसके बाद वह चाहे कितनी ही जिद क्यों न करे, पर आप अपने निर्णय में कोई बदलाव न लाएँ। इससे शुरुआत से ही उसमें ऐसी समझ विकसित होगी कि हमेशा उसकी मनमानी नहीं चलेगी। इससे बच्चे के मन में यह सीमा रेखा स्पष्ट होगी कि उसकी कौन-सी बातें मानी जा सकती हैं और किन बातों के लिए उसे जिद नहीं करनी चाहिए।
यह जरूरी नहीं है कि जिद्दी बच्चे हमेशा स्वार्थी और आत्मकेन्द्रित हों। मनोवैज्ञानिकों द्वारा किये गये अध्ययनों से यह तथ्य पूरी तरह सच साबित हो चुका है कि जिद्दी बच्चे ज्यादा मेहनती और संघर्षशील होते हैं। ऐसे बच्चे जिस कार्य को शुरू करते हैं, उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। दूसरे बच्चों की तरह इनका ध्यान इधर-उधर नहीं भटकता। नई चुनौतियाँ स्वीकारना इन्हें बहुत अच्छा लगता है। ये कामयाबी की राह में आने वाली बाधाओं से जरा भी नहीं घबराते। अगर किसी वजह से इन्हें पहले या दूसरे प्रयास में कामयाबी नहीं मिलती तो ये दोबारा नए उत्साह के साथ मेहनत में जुट जाते हैं। अगर आपका बच्चा भी जिद्दी है तो उसके लिए चिंतित होने के बजाय प्यार भरे मार्गदर्शन से उसकी जिद को सही दिशा दें, ताकि वह कामयाबी की राह में आगे बढ़ सके।
सकारात्मक सोच विकसित करने के उपाय (Measures of Develop Positive Thinking)
सकारात्मक सोच हेतु निम्न उपाय किये जा सकते हैं-
(1) यदि छोटी उम्र से ही बच्चों को अपनी बारी का इंतजार दोस्तों के साथ शेयरिंग और किसी भी प्रकार के हार को सहजता से स्वीकारना सिखाया जाए तो वे जिद्दी नहीं बनेंगे।
(2) यदि शुरू से ही बच्चे को अनुशासित करने पर ध्यान न दिया गया हो तो पाँच साल की उम्र के बाद अचानक बहुत ज्यादा सख्ती से उसका जिद्दीपन दूर करने की जल्दबाजी न करें। बच्चे पर इसका उल्टा असर पड़ेगा।
(3) स्कूल जाने वाले बच्चे के जिद्दी व्यवहार को बदलने में थोड़ा वक्त लगता है। ऐसी स्थिति में पैरेंट्स को धैर्य नहीं खोना चाहिए।
(4) बालकों को प्रत्येक छोटी-छोटी बात के लिए मना न करें, इससे उसके व्यवहार में स्थायी रूप से चिड़चिड़ापन आ जाएगा और वह ज्यादा जिद करने लगेगा।
(5) बालकों को रोने-चिल्लाने पर अपना निर्णय कभी न बदलें। इससे वह आपकी कमजोरी समझ जाएगा और अपनी बात मनवाने के लिए हर बार यही तरीका अपनाएगा।
(6) अपने बच्चे के साथ नियमित रूप से क्वॉलिटी टाइम बिताएँ। उस दौरान उसे कोई उपदेश न दें, बल्कि खुशनुमा माहौल में हल्की-फुल्की बातचीत करें।
(7) यदि वह कोई अच्छा कार्य या व्यवहार करता है तो उसकी तारीफ अवश्य करें। इससे सकारात्मक सोच विकसित होगी।
(8) यदि अनुशासन और लाड़ प्यार के बीच संतुलन रखा जाए तो बच्चों के जिद्दी व्यवहार को आसानी से सुधारा जा सकता है।
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