आजीवन कौशल शिक्षा (Life Skill Education )
आजीवन शिक्षा या जीवनपर्यन्त शिक्षा आधारभूत शिक्षा है। यह वैयक्तिक प्रशिक्षण का ध्येय रखती है। क्रियात्मक, सांस्कृतिक और कलात्मक अर्थों में व्यक्ति को अवकाश प्राप्ति के अधिकार के प्रति सजग करती है तथा व्यक्ति को स्थायी ढंग से शैक्षिक साधनों की पात्रता दिलाती है, जिससे व्यक्ति की बौद्धिक, शारीरिक, सृजनात्मक सामर्थ्य प्रशस्त हो सके।
आजीवन कौशल शिक्षा का अर्थ (Meaning of Life Skill Education)
प्रौढ़ शिक्षा के अन्तर्गत सरकार ने सतत् आजीवन कौशल शिक्षा योजना के द्वारा बेरोजगारी दूर करने के प्रयास किये हैं। शिक्षा के द्वारा नवसाक्षरों, प्रौढ़ों तथा शिक्षा प्राप्तकर्ता को कोई-न-कोई कौशल प्राप्त करने या सीखने के अवसर प्रदान किये गये हैं। अनवरत शिक्षा केन्द्रों पर कौशल प्राप्त करने या सीखने के अवसर प्रदान किये गये हैं। अनवरत शिक्षा केन्द्रों पर कौशल ग्रहण करने पर मुख्य जोर दिया जाता है। ये केन्द्र मूल साक्षरता, साक्षरता जीवनोपयोगी कौशल, साक्षरता कौशल में सुधार, वैकल्पिक शिक्षा कार्यक्रमों और आजीवन व्यावसायिक कौशल की खोज तथा सामाजिक और पेशे से सम्बन्धित विकास के प्रोत्साहन के लिए क्षेत्रीय माँग के अनुसार अवसर उपलब्ध कराते हैं।
इस दृष्टि से आजीवन कौशल शिक्षा वह शिक्षा है जो वयस्कों को दी जाती है। इसमें पढ़ने-लिखने के साथ-साथ व्यवसाय या धन्धे से सम्बन्धित प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है, जैसे-ग्रामीण क्षेत्रों में सूत कातना, चटाई बुनना, वैज्ञानिक ढंग से कृषि करना, रस्सी बनाना, डेयरी का काम, रंगाई-छपाई का कार्य करना, मुर्गी पालन आदि। इसी प्रकार नगर क्षेत्रों में प्रौढ़ शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक कौशल के कुछ विशिष्ट कार्यों की शिक्षा दी जाती है; जैसे- मोमबत्ती बनाना, साबुन बनाना, मूर्तिकला, फल संरक्षण का कार्य, काष्ठ कला तथा शिल्पकला, जिल्दसाजी का कार्य, चमड़े की तरह-तरह की वस्तुएँ बनाना, घर पर सिलाई, कला हाथ से कागज बनाना, रेडियो, घड़ी, टी० वी० आदि की मरम्मत करना, दरी-कालीन बुनना आदि।
आजीवन कौशल की शिक्षा के अन्तर्गत जीवनोपयोगी व्यावसायिक शिक्षा देना एक मुख्य कार्य है। समयानुसार इसमें व्यापक परिवर्तन भी किये जाते हैं। यह पूर्ण मानवीय शिक्षा कहलाती है। यह व्यक्ति को साक्षर बनाने के साथ-साथ छोटे-मोटे व्यवसाय में भी दक्ष बनाती है। यह व्यक्ति को बताती है कि स्वयं सीखने का कला-कौशल जीवन भर काम आता है तथा व्यक्ति को धन प्राप्ति सम्बन्धित कष्ट नहीं उठाने पड़ते। इस सम्बन्ध में डॉ० मुखर्जी ने लिखा है “आजीवन कौशल शिक्षा व्यक्ति को इस योग्य बना देती है कि वह जीवनभर अपने परिवार का भरण-पोषण बड़ी शान्ति के साथ कर सकता है।”
ओमप्रकाश आर्य ने उल्लेख किया है- “जीवन कौशल शिक्षा सतत् शिक्षा का एक अंग है। यह ऐसे अवसर प्रदान करती है, जिससे प्रौढ़ अपने व्यवसाय, उत्तरदायित्व तथा विभिन्न सीमाओं में निवास करते हुए अपनी अभिरुचि तथा क्षमता के अनुसार व्यवसाय के क्रम को जारी रख सकता है।”
आजीवन कौशल शिक्षा के अन्तर्गत शालीनता, सभ्यता, परोपकारिता, ज्ञान वृद्धि, शारीरिक स्वास्थ्य, सांस्कृतिक तथा कलात्मक शिक्षा को प्राप्त करने के अवसर भी प्रदान किये जाते हैं।
जन-शिक्षण संस्थान की ओर से संचालित कौशल शिक्षा के नवीन कार्यक्रम की गतिविधियाँ इस प्रकार हैं-
1. मानसिक रूप से अल्प-विकसित बच्चों को बुनाई और वाटर कलर का प्रशिक्षण दिया जाता है।
2. भारत के कुछ जनपदों में सुतली व टाट-पट्टी बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके लिए कच्चा माल प्रशिक्षण केन्द्र खरीद कर देता है ।
3. चिकें बनाने का कार्य मूकबधिर तथा पिछड़े वर्ग के प्रौढ़ों को सिखाया जाता है। चिकों के लिए बाँस की तीलियाँ बनाई जाती हैं। ये कार्य भी प्रौढ़ स्वयं करते हैं।
सरकार द्वारा किये गये प्रयास (Efforts by the Government)
1. सरकार ने देश के 225 जिलों में कार्यात्मक साक्षरता, व्यावसायिक प्रशिक्षण, सांस्कृतिक सराहना के लिए प्रशिक्षण आदि का आयोजन कर उनका कार्यान्वयन किया है।
2. वयस्कों की आर्थिक उन्नति के लिए, उनके पर्यावरणों की आवश्यकताओं के अनुकूल हस्तशिल्पों का चयन किया जाता है।
3. निरक्षर, अर्द्ध-साक्षर एवं नवसाक्षर वयस्कों के लिए शिक्षा के साथ ही जीवन को शालीनतापूर्वक जीने की कला के विषय में प्रशिक्षण देने की योजनाएँ बनाईं तथा उनको नगरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यान्वित किया ।
4. विभिन्न वर्गों के वयस्कों की रुचियों, प्रवृत्तियों तथा मानसिक योग्यताओं का अध्ययन करके, उसी के अनुरूप शिक्षा देने की व्यवस्था की गई। वयस्कों का मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक विकास करने के लिए संयुक्त विषयों का चयन करके, उसके अनुरूप शिक्षा दी जा रही है।
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