पाठ्यक्रम निर्माण (Construction of Curriculum)
शिक्षा व्यवस्था में पाठ्यक्रम बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। पाठ्यक्रम के निर्माण के द्वारा ही शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों को क्रमबद्ध विधियों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है एवं उसे पूर्ण किया जा सकता है। शिक्षण कार्य उद्देश्य रहित नहीं होता है क्योंकि शिक्षा का ध्येय ही पूर्व निर्धारित लक्ष्यों या उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु निश्चितं विषय-वस्तु तथा उसकी सुव्यवस्थित व्यवस्था है, जिसे पाठ्यक्रम में व्यवस्थित किया जाता है तथा पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है।
ऐसा देखा जाता है कि अध्यापकों के मन में यह धारणा प्रचलित है कि पाठ्यक्रम निर्माण में उनका योगदान नहीं पाया जाता है। शिक्षाविद् पाठ्यक्रम का निर्माण करते हैं तथा उससे निर्मित करने के बाद विद्यालयों, अध्यापकों अथवा छात्रों पर पाठ्यक्रम को थोप दिया जाता है, लेकिन विचार करने से यह तथ्य ठीक प्रतीत नहीं होता है। पाठ्यक्रम निर्माण के लिए भिन्न-भिन्न विषयों तथा क्रियाओं के लिए विभिन्न समितियों का गठन किया जाना आवश्यक है। इन सभी प्रकार की समितियों के अन्तर्गत शिक्षाविदों के साथ-साथ विषय अध्यापक एवं विशेषज्ञ सम्मिलित किये जाते हैं।
पाठ्यक्रम निर्माण का अर्थ (Meaning of Curriculum Development)
जब शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों एवं विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर विभिन्न प्रकार की क्रमबद्ध विधि द्वारा योजना बनाई जाती है करना है तो उसे पाठ्यक्रम निर्माण कहते हैं। पाठ्यक्रम निर्माण का मुख्य उद्देश्य बच्चों को जीवन के लिए जुटाना है उन्हें संगठित करना है। पाठ्यक्रम के विद्यार्थियों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, संवेगात्मक व आध्यात्मिक सभी प्रकार के विकास पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है।
पाठ्यक्रम के निर्माण में विद्यार्थी के वे सभी अनुभव सम्मिलित होते हैं जो वह अपनी कक्षा के कमरे में प्रयोगशाला में पुस्तकालय में, स्कूल में होने वाली अन्य पाठ्यान्तर क्रियाओं अथवा पाठ्य सहगामी क्रियाओं के द्वारा खेल के मैदान से एवं अपने अध्यापकों तथा सहपाठियों से विचारों के आदान-प्रदान के द्वारा ग्रहण करने में समर्थ होता है।
पाठ्यक्रम निर्माण के सोपान (Steps of Curriculum Construction)
पाठ्यक्रम हेतु प्रमुख सोपान आवश्यक है। विद्यालय किसी भी कक्षा अथवा स्तर के पाठ्यक्रम का निर्माण करने के लिए प्रायः विभिन्न व्यक्तियों की समिति का निर्माण कर दिया जाता है। प्रायः इन समितियों द्वारा विषय अध्यापकों से सम्पर्क करके उन सभी प्रकरणों तथा उपप्रकरणों की क्रमबद्ध रूप से चर्चा की जाती है जिनको उनके द्वारा पूरे वर्ष भर छात्रों को पढ़ाना होता है। विगत वर्षों में इसके दृष्टिकोण में काफी परिवर्तन हुआ है। पाठ्यक्रम (Curriculum) का विस्तृत क्षेत्र अब अच्छी प्रकार से प्रकाश में आने लगा है। विद्यार्थियों के वर्तमान समय में सर्वांगीण विकास के लिए विद्यालय तथा अध्यापक के मार्ग निर्देशन की आवश्यकता है। विद्यार्थी को प्राप्त होते हैं उन सभी का समावेश करना पाठ्यक्रम में अत्यन्त आवश्यक हो गया है। एक सन्तुलित पाठ्यक्रम के लिए आज निश्चित प्रक्रिया बनायी जाती है. व उनसे गुजरकर एक सन्तुलित पाठ्यक्रम बनाया जाता है। पाठ्यक्रम निर्माण के मुख्य सोपान निम्नलिखित हैं। इसे निम्न रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
1. उद्देश्यों का निर्माण (Furmulation of objective)- सर्वप्रथम उद्देश्य निर्धारण आवश्यक है। पाठ्यक्रम निर्माण का आरम्भ उद्देश्यों के निर्माण द्वारा किया जाता है। अतः किसी भी कक्षा अथवा स्तर के पाठ्यक्रम के निर्माण में सर्वप्रथम उस कक्षा स्तर पर विषय को पढ़ाने के प्राप्त उद्देश्यों को अंकित किया जाता है अर्थात् ये प्राप्य उद्देश्य व्याख्या करने के दृष्टिकोण से दक्षता, ज्ञान, प्रयोग, दृष्टिकोण अथवा अनुभूति से सम्बन्धित पाँच मुख्य श्रेणियों में विभक्त किया जाता है। इसके बाद इन प्राप्य उद्देश्यों को विद्यार्थियों में विषय के शिक्षण द्वारा होने वाले अपेक्षित व्यवहार परिवर्तनों के रूप अंकित किया जा सकता है। प्राप्य उद्देश्यों अथवा सम्बन्धित अपेक्षित व्यवहार परिवर्तनों का उचित रूप से लिखा जाना एक पाठ्यक्रम में अत्यन्त आवश्यक होता है। अतः पाठ्यक्रम के निर्माण के समय उद्देश्यों के निर्माण पर ध्यान केन्द्रित करना अत्यन्त आवश्यक है।
2. पाठ्यवस्तु और प्रकरणों का चुनाव एवं आयोजन (Selection and Organisation of contents and topics)- जो उद्देश्य प्राम्य होती हैं उनके निर्माण के बाद पाठ्यवस्तु और प्रकरणों के उचित प्रकार से चयन की आवश्यकता होती है। उचित चुनाव के कार्यों अथवा आयोजन में पाठ्यक्रम के सिद्धान्तों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। उचित आयोजन अथवा चुनाव के लिए निम्न सिद्धान्तों का ध्यान रखना चाहिए।
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