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पाठ्यक्रम विकास की तकनीकी प्रगति | Technological Advancement of Curriculum Development in Hindi

पाठ्यक्रम विकास की तकनीकी प्रगति
पाठ्यक्रम विकास की तकनीकी प्रगति

पाठ्यक्रम विकास की तकनीकी प्रगति (Technological Advancement of Curriculum Development)

विज्ञान आज सभ्यता एवं प्रगति का पर्याय बन चुका है। तकनीकी के विकास ने आर्थिक एवं सामाजिक संरचना में अभूतपूर्व परिवर्तन ला दिया है तथा क्रान्तिकारी वैज्ञानिक विचारों ने लोगों के जीवन दर्शन को भी प्रभावित किया है। विज्ञान और तकनीकी का ज्ञान अब इतना महत्त्वपूर्ण माना जाने लगा है कि लोग अपनी दिन-प्रतिदिन की समस्याओं का वैज्ञानिक हल चाहने लगे हैं। अतः किसी भी देश को अपने समग्र विकास के लिए आज अधिक-से-अधिक तकनीकी विशेषज्ञों की आवश्यकता अनुभव होने लगी है।

विज्ञान एवं तकनीकी के विकास ने मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र एवं क्रिया-कलापों को प्रभावित किया है। उदाहरणार्थ- कृषि, उद्योग, चिकित्सा, संचार, परिवहन, दैनिक सामान्य जीवन आदि की वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान से सम्भव है। राष्ट्रीय सुरक्षा तथा निःशस्त्रीकरण की समस्या का हल भी विज्ञान एवं तकनीकी का ज्ञान ही प्रदान कर सकता है। वर्तमान आर्थिक विकास का तो मूल ही विज्ञान एवं तकनीकी है। विज्ञान के द्वारा न केवल भौतिक प्रगति हो रही है, बल्कि इससे अभौतिक प्रगति अर्थात् व्यक्ति के सोचने का ढंग एवं दृष्टिकोण में भी परिवर्तन हो रहा है। अतः आज व्यक्ति एवं समाज के लिए विज्ञान एंव तकनीकी के ज्ञान एवं उनकी प्रक्रियाओं की सही समझ होना बहुत ही आवश्यक है। विकासशील समाज के लिए तो इसका और अधिक महत्त्व है।

विश्व के अनेक विकासशील देशों की तरह भारत में भी विज्ञान पर अधिक-से-अधिक ध्यान दिया जा रहा है। विज्ञान एवं तकनीकी के इस युग में विज्ञान शिक्षा केवल प्रगति के लिए ही नहीं बल्कि मानव अस्तित्व की रक्षा के लिए अनिवार्य हो गई है। भारत सरकार द्वारा नियुक्त लगभग सभी शिक्षा आयोगों ने विज्ञान एवं तकनीकी के महत्त्व पर प्रकाश डाला है। कोठारी आयोग के अनुसार, हमने शिक्षा की पुनर्संरचना के लिए इस प्रतिवेदन में जिनसे बुनियादी उपागम एवं दर्शन को अपनाया है, वह इस धारणा पर आधारित है कि देश की प्रगति, कल्याण एवं सुरक्षा शिक्षा के विस्तार एवं गुणात्मक विकास तथा विज्ञान एवं तकनीकी के अनुसन्धान पर निर्भर है। परिणामस्वरूप आज भारत में शिक्षा के विस्तार के साथ-साथ विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा का भी व्यापक विस्तार हुआ है। इसके द्वारा प्रशिक्षित विज्ञान एवं तकनीशियन मानव शक्ति में भी वृद्धि हुई है।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय इन्जीनियरिंग, कृषि एवं चिकित्सा शिक्षा संख्यात्मक एवं गुणात्मक दोनों दृष्टि से बहुत बिछड़ी हुई थी। आज प्रत्येक जिले में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आई. टी. आई.) पॉलीटेक्निक तथा उच्चस्तर पर रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज एवं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई. आई. टी.) की स्थापना से इन्जीनियरिंग शिक्षा का एक व्यवस्थित जाल-सा फैल गया है। इसके साथ ही आज भारत में कृषि शिक्षा हेतु लगभग 20 विश्वविद्यालय एवं 100 से अधिक कॉलेज हैं। भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् एवं कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा कृषि क्षेत्र में किए गए अनुसन्धानों परिषद् एवं कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा कृषि क्षेत्र में किए गए अनुसन्धानों के परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि, हरित क्रान्ति, खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता, दुग्ध उत्पादन में वृद्धि आदि लक्ष्यों को प्राप्त करने में बहुत अधिक सफलता मिली है।

चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में जहाँ पर 1947 में मात्र 15 मेडिकल कॉलेज थे, वहीं आज देश में इनकी संख्या 100 से अधिक हो गई है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली तथा स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसन्धान के कई और संस्थान आज विश्व स्तर के माने जा रहे हैं। औषधि अनुसन्धान संस्थानों एवं औषधि निर्माता कारखानों की उपलब्धियाँ तो बेजोड़ हैं, जिन्होंने सभी तरह की दवाओं से बाजार को भर दिया है। परिणामस्वरूप मनुष्य की औसत आयु में बढ़ोत्तरी हुई हैं तथा अनेक असाध्य बीमारियों पर नियन्त्रण हो सका है। इस प्रकार विज्ञान एवं तकनीकी के विज्ञस में शिक्षा ने अभूतपूर्व योगदान किया है।

अनेक उपलब्धियों के बाद भी भारतीय समाज की आवश्यकताओं को अभी तक विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा शत-प्रतिशत पूरी नहीं कर सकी है। इसमें जो कमियाँ रह गई हैं तथा इसके मार्ग में जो प्रमुख बाधाएँ हैं, वे निम्न प्रकार हैं-

(1) तकनीकी शिक्षा को आधार प्रदान करने के लिए अनिवार्य सामान्य शिक्षा में गुणात्मक सुधार की आवश्यकता।

(2) तकनीकी शिक्षा द्वारा वांछनीय प्रवृत्तियों का विकास न होना तथा सरकारी नौकरी की अधिक लालसा ।

(3) नियोजन एवं योजनाबद्ध कार्यक्रम का अभाव।

(4) बेरोजगारी की समस्या ।

(5) आधुनिकीकरण के कारण नवीन समस्याओं का उदय।

(6) अनुसन्धान के अपर्याप्त संसाधन ।

(7) विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के आधुनिकीकरण की समस्या ।

(8) तकनीकी शिक्षा तथा उद्योगों में सहयोग का अभाव।

(9) तकनीकी शिक्षा में व्यावसायिक प्रशिक्षण का अभाव ।

(10) शिक्षा का माध्यम

(11) अनुपयुक्त पाठ्यक्रम ।

(12) भारत में अपार मानव शक्ति का समुचित उपयोग न हो पाना।

(13) छोटे तथा मध्यम स्तर पर तकनीशियनों का अभाव।

(14) माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा की समस्या ।

(15) विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के लिए कुशल अध्यापकों का अभाव।

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