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पाठ्यक्रम के विकास के लिए सुझाव | Suggestions for Curriculum Development in Hindi

पाठ्यक्रम के विकास के लिए सुझाव
पाठ्यक्रम के विकास के लिए सुझाव

पाठ्यक्रम के विकास के लिए सुझाव (Suggestions for Curriculum Development)

पाठ्यक्रम के विकास के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं-

(1) पुस्तकें एवं पुस्तकालय (Books and Libraries) – (i) लोगों के लिए कम कीमतों पर पुस्तकें उपलब्ध करवाई जाएँगी। पुस्तकों की गुणवत्ता को सुधारने, अध्ययन की आदत को बढ़ावा देने एवं सृजनात्मक कार्य को प्रोत्साहित करने के लिए प्रयत्न किए जायेंगे।

(ii) सभी शैक्षिक संस्थानों में पुस्तकालयों की सुविधा उपलब्ध करवाई जाएगी। वर्तमान पुस्तकालयों में सुधार किया जाएगा। पुस्तकालय अध्यक्षों की स्थिति को भी सुधारा जाएगा।

(2) मूल्य शिक्षा (Value Education) – (i) सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों को विकसित करने के लिए शिक्षा को बलशाली औजार के रूप में प्रयोग में लाया जाएगा।

(ii) शिक्षा को हमारे सांस्कृतिक बहुत समाज में सार्वभौमिक एवं स्थायी मूल्यों को पोषित करना चाहिए।

(iii) इसे मूल्य शिक्षा पर मुख्य रूप से बल देना चाहिए।

(3) भाषाएँ (Languages)- भाषाओं को अधिक विस्तृत रूप से विकसित करने के लिए नीति अधिक शक्तिशाली एवं उद्देश्यपूर्ण ढंग से लागू की जाएगी।

(4) जन संचार साधन और शिक्षा तकनीक (Media and Education Technology)- (i) आधुनिक शैक्षिक तकनीक को सबसे अधिक दूरस्थ क्षेत्रों एवं सबसे अधिक वंचित लोगों तक पहुँचाना चाहिए।

(ii) शैक्षिक तकनीक का प्रयोग उपयोगी जानकारी का फैलाव करने, अध्यापकों को प्रशिक्षण एवं पुनः प्रशिक्षण देने, गुणवत्ता में सुधार लाने, कला एवं संस्कृति के लिए जागरूकता को तीव्र करना, स्थायी मूल्यों को विकसित करना आदि के लिए किया जाएगा।

(iii) सम्बन्धित शैक्षिक कार्यक्रम तकनीक का एक महत्त्वपूर्ण घटक बनेंगे।

(iv) उच्च गुणवत्ता एवं उपयोगिता से युक्त बच्चों की फिल्मों बनाई जाएँगी क्योंकि ऐसे साधनों का बच्चों के दिमाग पर बहुत अधिक प्रभाव होता है।

(5) सांस्कृतिक दृष्टिकोण (The Cultural perspective) (i) शिक्षा परिवर्तन उन्मुखी तकनीकों और देश की सांस्कृतिक परम्परा की निरन्तरता में श्रेष्ठ सम्मिश्रण ला सकती है और उसे अवश्य लाना चाहिए।

(ii) सांस्कृतिक विषय वस्तु अधिकतम मात्रा में लाकर शिक्षा के पाठ्यक्रम एवं प्रक्रिया को समृद्ध किया जाएगा। बच्चे को सौन्दर्य, एकरूपता एवं शिष्टता के प्रति संवेदनशीलता विकसित करने योग्य बनाया जाएगा।

(6) युवा वर्ग की भूमिका (The Role of youth)- विद्यार्थियों से राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) एवं नेशनल कैडट कार्पस (NCC) आदि में भाग लेने की आज्ञा की जाएगी।

(7) खेल एवं शारीरिक शिक्षा (Sports and Physical Education) – (i) खेलों एवं शारीरिक शिक्षा के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रव्यापी सहायक भाग शैक्षिक भवन के अन्तर्गत इसके लिए बनाए जाएँगे।

(ii) सहायक अंग स्कूल सुधार कार्यक्रम के भाग के रूप में खेल के मैदानों, उपकरणों, प्रशिक्षण दाताओं एवं शारीरिक शिक्षा अध्यापकों को शामिल करेंगे।

(8) विज्ञान शिक्षा (Science Education)- (i) बच्चे में कुछ निश्चित योग्यता और मूल्यों को विकसित करने के लिए विज्ञान शिक्षा को सुदृढ़ किया जाएगा।

(ii) विज्ञान शिक्षा कार्यक्रम सीखने वालों की समस्या समाधान एवं निर्णय लेने के कौशलों को प्राप्त करने योग्य बनाने के लिए बनाया जाएगा।

(9) गणित शिक्षण (Mathematics teaching)- (i) गणित बच्चे को सोचने, तर्क करने, विश्लेषण करने एवं तर्कपूर्ण ढंग से स्पष्टीकरण करने के लिए प्रशिक्षण देने के लिए पढ़ाया जाता है।

(ii) स्कूलों में कम्प्यूटरों के प्रयोग से, गणित शिक्षा को आधुनिक तकनीकी विधियों के अनुसार ढालने के लिए उपयुक्त तरीके से पुनः डिजाइन दिया जाएगा।

(10) शिक्षा और पर्यावरण (Education and Environment)- पर्यावरण जागरूकता समाज के सभी वर्गों एवं सभी आयु वर्गों के लिए महत्त्वपूर्ण है इसे सम्पूर्ण शैक्षिक प्रक्रिया में भली प्रकार एकीकृत किया जाना चाहिए।

(11) कार्य अनुभव (Work Experience) – कार्य अनुभव शिक्षा की सभी अवस्थाओं में  एक अनिवार्य घटक का कार्य करता है इसे अच्छी प्रकार से ढाँचे में ढाले गए और क्रमबद्ध कार्यक्रमों द्वारा प्रदान किया जाना चाहिए।

(12) अध्यापक (The teacher)- (i) सरकार और समुदाय की अध्यापकों को उत्पादकतापूर्ण और सृजनात्मक क्षेत्रों में सहायता एवं प्रेरणा देनी चाहिए। अध्यापकों को अनुसन्धान करने, संचार में उपयुक्त तरीकों को लागू करने एवं समुदाय की जागरूकता से सम्बन्धित गतिविधियों को करने की स्वतन्त्रता चाहिए।

 (ii) मेरिट को सुनिश्चित बनाने के लिए अध्यापकों में तरीके का पुनर्गठन किया जाएगा। (ii) सभी स्तरों पर अध्यापकों को दिए जाने वाला वेतन और भत्ते उनकी शैक्षिक

योग्यताओं, पेशे सम्बन्धी उत्तरदायित्वों और समाज में वादित स्थिति के अनुसार होंगे।

(iv) अध्यापकों के राष्ट्रीय स्तरीय संगठन (एसोसिएशन) अध्यापकों के लिए व्यावसायिक नीति परक कोड तैयार कर सकते हैं एवं इसका निरीक्षण भी कर सकते हैं।

(13) मूल्यांकन प्रक्रिया और परीक्षा सुधार (Evaluation process and examination reforms)- (i) परीक्षाएँ शिक्षा में गुणवत्ता सम्बन्धी सुधार लाने के लिए ली जानी चाहिए।

(ii) परीक्षाएँ प्रणाली को फिर से ढालने का उद्देश्य होगा ताकि मूल्यांकन को ऐसी विधि को सुनिश्चित बनाया जा सके जो वैध एवं वैश्वसनीय हो। इसका अर्थ होगा-

(a) विषय वस्तु एवं अवसर के अतिरिक्त तत्त्व का उन्मूलन करना ।

(b) रटने की प्रवृत्ति पर से बल हटाना।

(c) निरन्तर एवं गहन मूल्यांकन जो शिक्षा के शैक्षिक एवं गैर शिक्षक पहलुओं को संयुक्त करे एवं निर्देशन अवधि के सम्पूर्ण चक्र पर फैला हुआ हो।

(d) अध्यापकों, विद्यार्थियों एवं अभिभावकों द्वारा मूल्यांकन प्रक्रिया का प्रभावपूर्ण प्रयोग।

(e) परीक्षाओं में संचालन में सुधार।

(f) निर्देशन सामग्री एवं तरीके में सहगामी परिवर्तनों को लाना।

(g) चरणबद्ध तरीके से सैकेण्डरी अवस्था की (सेमेस्टर प्रणाली को लागू करना।

(h) अंकों के स्थान पर ग्रेड का प्रयोग करना।

उपर्युक्त लक्ष्य बाह्य परीक्षाओं एवं शैक्षिक संस्थाओं के भीतर होने वाले मूल्यांकन दोनों के लिए युक्ति युक्त है यह बाह्य परीक्षाओं की प्रमुखता को घटा देगा।

(14) जिला एवं स्थानीय स्तर (District and local level) (i) शिक्षा के जिला बोर्ड का शिक्षा का हायर सैकेण्डरी स्तर तक प्रबन्ध करने के लिए स्थापित किया जाएगा। राज्य सरकारें इस पहलू की ओर पूरी संभावित शीघ्रता से ध्यान देंगी।

(ii) एक शैक्षिक संस्थान के मुखिया बहुत महत्त्वपूर्ण सौंपी जानी चाहिए। मुखिया का चयन और प्रशिक्षण विशेष रूप से किया जाएगा। स्कूल कम्प्लेक्स को लचीले नमूने के अनुसार बढ़ाया जाएगा ताकि यह संस्थानों के नेटवर्क के रूप में कार्य कर सके।

(iii) सभी समुदायों को उपयुक्त संस्थानों के माध्यम से स्कूल सुधार कार्यक्रमों में एक मुख्य भूमिका सौंपी जाएगी।

(15) राज्य स्तर (State level)- (i) शिक्षा के केन्द्रीय परामर्श बोर्ड की तर्ज पर राज्य, सरकारें शिक्षा के राज्य परामर्श बोड़ों की स्थापना कर सकती है।

(ii) शैक्षिक नियोजकों, प्रशासकों एवं संस्थानों के मुखिया के प्रशिक्षण के लिए विशेष ध्यान दिया जाएगा।

(16) राष्ट्रीय स्तर (National level)- शैक्षिक विकास का पुनर्वलोकन करने, प्रणाली एवं मॉनीटरिंग को लागू करने में सुधार लाने के लिए वांछित परिवर्तनों को निर्धारित करने के लिए शिक्षा का केन्द्रीय एडवाइसरी बोर्ड केन्द्रीय भूमिका निभाएगा। व्यवसाय से सम्बन्धित व्यक्तियों की भागीदारी द्वारा केन्द्र एवं राज्यों में शिक्षा विभागों को सुदृढ़ बनाया जाएगा।

(17) भारतीय शिक्षा सेवा (Indian education service)- शिक्षा में एक उपयुक्त प्रबन्ध ढाँचा भारतीय शिक्षा सेवा को ऑल इण्डिया सेवा के रूप में स्थिर रूप से स्थापित करेगा।

(18) शिक्षा का प्रबन्धन (The management of education)- शिक्षा के नियोजन एवं प्रबन्धन की प्रणाली का कायाकल्प उच्च प्राथमिकता को प्राप्त करेगा। मार्गदर्शन विचार इस प्रकार होंगे- (i) शिक्षा के नियोजन एवं प्रबन्धन परिदृश्य को लम्बी अवधि के लिए विकसित करना और देश के विकास एवं मानव शक्ति की जरूरतों के साथ इसका एकीकरण करना।

(ii) शैक्षिक संस्थानों में विकेन्द्रीकरण और प्रजातन्त्र की भावना का सृजन करना।

(iii) लोगों की भागीदारी जिसमें गैर-सरकारी एजेन्सियों का समागम एवं स्वैच्छिक प्रयत्न भी शामिल हो, को प्राथमिकता देना।

(iv) शिक्षा के नियोजन एवं प्रबन्धन में अधिक स्त्रियों को शामिल करना।

(v) दिए गए उद्देश्यों एवं मानदण्डों के सम्बन्ध में जवाबदेही के सिद्धान्त की स्थापना करना।

(19) अध्यापक शिक्षा ( Teacher education ) – (i) सेवा पूर्ण एवं सेवाकालीन दोनों समय की अध्यापक शिक्षा प्रणाली का कायाकल्प किया जाना चाहिए।

(ii) अध्यापक शिक्षा के नए कार्यक्रम शिक्षा निरन्तरता पर बल देंगे।

(iii) शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए संस्थान (DIET) ऐलीमेण्टरी स्कूल अध्यापकों के लिए पूर्व-सेवा एवं सेवाकालीन कोर्सों का संगठन करने के लिए स्थापित किए जाएँगे। चुने गए सैकेण्डरी अध्यापक प्रशिक्षण कॉलेजों पर दर्जा शैक्षणिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण की स्टेट कौंसिल के कार्य को पूरा करने के लिए ऊँचा उठाया जाएगा।

(20) पुनर्निरीक्षण (Review)- नई नीति की विविध राशियों के लागू होने का हर पाँचवें के वर्ष पुनर्निरीक्षण होना चाहिए। थोड़े-थोड़े अन्तराल पर लागू किए जाने की प्रगति एवं समय-समय पर उभरने वाले समझाने को सुनिश्चित बनाने के लिए मूल्यांकन भी किए जायेंगे।

(21) स्वयं सेवी ऐजेन्सियाँ और अनुदान प्राप्त संस्थान (Voluntary agencies and aided institutions)- उपयुक्त प्रबन्धन एवं वित्तीय सहयोग प्रदान करते हुए सामाजिक गतिशील समूहों को शामिल करते हुए गैर-सरकारी एवं स्वयंसेवी प्रयत्न को प्रोत्साहित किया जाएगा। साथ-ही-साथ शिक्षा का वाणिज्योकरण करने के लिए खोले जाने वाले संस्थानों को रोकने के लिए कदम उठाए जायेंगे।

(22) संसाधन एवं पुनर्निरीक्षण (Resources and review)- (i) 1964-66 के शिक्षा आयोग, 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं शिक्षा से क्रियात्मक रूप से सम्बन्धित अन्य सभी नै अनुरोधपूर्वक कहा कि समानाधिकारों के लक्ष्य और भारतीय समाज के व्यावहारिक विकास उन्मुखी उद्देश्य केवल काम की प्रकृति एवं परिणाम के बराबर के निवेश शिक्षा के क्षेत्र में करके ही पूरे किए जा सकते हैं।

(ii) जहाँ तक सम्भव हो संसाधनों को दानराशि को गतिशील बनाकर, लाभ कमाने वाले समुदायों को स्कूल की इमारतों में रख रखाव के लिए कहकर और शिक्षा के उच्च स्तरों पर फीस बढ़ाकर कुछ उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की पूर्ति करके एवं सुविधाओं के दक्षतापूर्ण प्रयोग द्वारा कुछ बचत करते हुए बढ़ाया जायेगा।

(iii) शिक्षा को राष्ट्रीय विकास और अति जीवन के लिए निवेश का प्रामाणिक क्षेत्र समझा जाएगा। शिक्षा की राष्ट्रीय नीति 1968 ने बताया है कि शिक्षा के लिए निवेश को धीरे-धीरे बढ़ाया जाएगा ताकि यह जितनी जल्दी सम्भव हो सके उतनी जल्दी राष्ट्रीय आय के 6% खर्च के स्तर पर पहुँच जाए।

(23) भविष्य (The future)- भारत में भविष्य में शिक्षा की आकृति इतनी जटिल है कि उसके बारे में संक्षिप्त कल्पना करना असम्भव-सा है फिर भी अपनी परम्परा को ध्यान में रखते हुए जो बौद्धिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धि को हमेशा उच्च लाभ देती है हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सफलता के कदम छूने के लिए विवश हैं।

मुख्य कार्य पिरामिड के आधार को सुदृढ़ करना है जो शताब्दी के अन्त तक दस खरब लोगों के निकट आ सकता है। यह सुनिश्चित करना भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है कि पिरामिड की चोटी पर पहुँचते हुए लोग संसार के सर्वश्रेष्ठ लोगों में से हो। हमारे सांस्कृतिक व्यक्तियों ने भूतकाल में दोनों किनारों का अच्छी प्रकार से ध्यान रखा तिरछा किनारा विदेशी शासन और प्रभाव के साथ तालमेल में था। अब शिक्षा को बहुमुखी भूमिका निभाते हुए मानव संसाधन विकास के क्षेत्र में राष्ट्रव्यापी प्रयत्न को तीव्र करना सम्भव होना चाहिए।

ठीक जिस प्रकार से 1968 की नीति ने 1964-66 के शिक्षा आयोग की रिपोर्ट का अनुकरण किया उसी प्रकार अपनी पूर्ववर्ती नीति की तरह शिक्षा को राष्ट्रीय नीति 1986 (NPE), कम-से-कम आने वाले दो दशक तक शैक्षणिक पर अपनी प्रभुता बनाए रखेगी और भारतीय राष्ट्र को इक्कीसवीं सदी के स्वप्न लोक में प्रवेश करवाती रहेगी। नीति निर्माताओं ने इसमें गुणवत्ता सम्बन्धी सुधार, शिक्षा के आधुनिकीकरण, विविध स्तरों पर योजना बनाने, माइक्रो एवं मेक्रो स्तरों पर प्रगति एवं मूल्यांकन की मॉनीटरिंग करने एवं भारतीय शिक्षा में असन्तुलनों का उन्मूलन करने के लिए पर्याप्त सम्भावना बनाई है बहुत सी खोजें एवं स्लोगन भी दिए गए हैं। शिक्षा को सम्पूर्ण राष्ट्रीय प्रगति के लिए अनिवार्य एवं प्रमाणिक सवारी के रूप में देखा गया है नीति को संसद में लोगों के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा स्वीकृति प्राप्त हुई है शिक्षा के शुरुवाती बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक विकसित करने के लिए एक बहुत गहन प्रयत्न की सिफारिश की गई है लेकिन नीति इतने बड़े आकर के इस कार्य के लिए धन का प्रावधान हमेशा सबसे कमजोर कड़ी रहा है और शिक्षा के काया कल्प करने की पवित्र इच्छाएँ होने पर व्यक्ति को एक अच्छे व्यक्ति के रूप में भले ही एक अध्यापक हो डॉक्टर हो अथवा प्रशासक हो विकास के लिए अधिक सुझाव नहीं दिए गए हैं। नीति से भिन्न बल और तत्त्व भी नीति को सत्यतापूर्ण ढंग से करने के लिए प्रति क्रियात्मक प्रभाव छोड़ेंगे जब तक सरकारों की तरफ से एक लागू सुदृढ़ राजनैतिक संकल्प नहीं होता, अध्यापकों एवं समुदायों की तरफ से स्वीकृति एवं समझौते का वातावरण तैयार नहीं होता तब तक नीति अपने लक्ष्यों एवं उद्देश्यों में प्रभावहीन रहेगी एवं शिक्षा के इतिहास में एक पवित्र इच्छा अथवा एक राजनैतिक प्रचार और किसी विशेष प्रकार के अवरोध के रूप में झुक जाएगा।

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