पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम में अंतर (Difference between Curriculum and Syllabus)
पाठ्यक्रम एवं पाठ्यचर्या (पाठ्य विवरण) में अन्तर को हम निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं-
(1) पाठ्यक्रम के अन्तर्गत बच्चों को विषय को समझने का अच्छा अवसर प्राप्त होता है। इसमें वे समस्त क्रियाएँ सम्मिलित की जाती हैं जो क्रियाएँ बालक के व्यवहार को प्रभावित करती हैं, जबकि अध्ययन में विद्यार्थियों के विषय को अच्छी तरह से समझने का अवसर नहीं मिलता है।
(2) यदि इसके क्षेत्र को देखा जाय तो पाठ्यक्रम का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता है, शिक्षार्थी के जीवन के लगभग प्रत्येक पक्ष से यह सम्बन्धित होता है जबकि अध्ययनक्रम का क्षेत्र संकुचित होता है जिससे केवल इस बात का ज्ञान होता है कि विभिन्न स्तरों पर बालकों को विभिन्न विषयों का कितना ज्ञान प्राप्त हुआ है।
(3) पाठ्यक्रम के अन्तर्गत विद्यालय की समस्त क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं; यथा- खेल-कूद व शारीरिक प्रशिक्षण सांस्कृतिक कार्यक्रमों व पर्वों का अयोजन, एन. सी. सी. व एकाउटिंग गाइडिंग आदि कार्यों का आयोजन आदि का समावेश होता है। इसी के कारण इसका स्वरूप व्यापक व निश्चित होता है, जबकि पाठ्यवस्तु के अन्तर्गत केवल शिक्षण विषयों के प्रकरण (Topics) ही शामिल किये जाते हैं। इस प्रकार इसका स्वरूप अत्यन्त सुनिश्चित होता है।
(4) पाठ्यक्रम का क्षेत्र व्यापक है। यह बालक के सर्वांगीण विकास का साधन है जबकि अध्ययनक्रम पाठ्यक्रम के इस लक्ष्य में उसका एक साधन मात्र ही है ।
(5) यह रटी हुई प्रक्रिया को महत्त्व नहीं देता है। पाठ्यक्रम तथ्यों को रटने की उपेक्षा करता है तथा बालक के सर्वांगीण विकास को प्राथमिकता देता है । इसके ठीक विपरीत अध्ययनक्रम में रटने (Cramming) की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करके परीक्षा में सफल होना ही मुख्य लक्ष्य माना जाता है।
(6) पाठ्यक्रम बालकों के जीवन के सभी पहलुओं; जैसे- सामाजिक-आर्थिक, नैतिक, भावनात्मक व मौखिक के विकास से सम्बन्धित है, इसकी सहायता उनके व्यवहार में उचित परिवर्तन आता है, परन्तु अध्ययनक्रम केवल बालकों के परीक्षा में उत्तीर्ण करने से सम्बन्धित होता है। इससे न तो बालकों का सर्वांगीण विकास हो पाता है और न ही उन्हें अपने व्यक्तित्व और व्यवहार में परिमार्जन एवं परिवर्तन तथा विकास का अवसर मिल पाता है।
(7) पाठ्यक्रम का रूप व्यापक होता है। इसमें लिखित, मौखिक व पुस्तकीय एवं व्यवहारित ज्ञान दिया जाता है, परन्तु अध्ययन क्रम में मौखिक, पुस्तकीय एवं सैद्धान्तिक होता है। इसका सम्बन्ध केवल मानसिक विकास से है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पाठ्यक्रम शिक्षण की विषय वस्तु का निर्धारण करता है तथा पाठ्यक्रम उसे देने के लिए प्रस्तुत विधि का निर्माण करता है।
Important Links…
- मापन और मूल्यांकन में अंतर
- मापन का महत्व
- मापन की विशेषताएँ
- व्यक्तित्व का अर्थ एवं स्वरूप | व्यक्तित्व की मुख्य विशेषताएं
- व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक
- व्यक्तित्व क्या है? | व्यक्तित्व के शीलगुण सिद्धान्त
- व्यक्तिगत विभिन्नता का अर्थ और स्वरूप
- व्यक्तिगत विभिन्नता अर्थ और प्रकृति
- व्यक्तिगत विभिन्नता का क्षेत्र और प्रकार
- परिवार का अर्थ एवं परिभाषा | परिवार के प्रकार | परिवार के कार्य
- संयुक्त परिवार का अर्थ, परिभाषा विशेषताएं एवं संयुक्त परिवार में आधुनिक परिवर्तन
- परिवार की विशेषताएँ | Characteristics of Family in Hindi
- परिवार में आधुनिक परिवर्तन | Modern Changes in Family in Hindi
- परिवार की उत्पत्ति का उद्विकासीय सिद्धान्त
- जीववाद अथवा आत्मावाद | Animism in Hindi
- हिन्दू धर्म की प्रकृति | हिन्दू धर्म की प्रमुख मान्यताएँ | हिन्दू धर्म स्वरूप
- भारतीय समाज पर हिन्दू धर्म का प्रभाव | Impact of Hindusim on Indian Society in Hindi
- धार्मिक बहुलवाद | Religious Plyralism in Hindi
- जादू और विज्ञान में संबंध | जादू और विज्ञान में समानताएँ
- जादू की परिभाषा | जादू के प्रकार | Magic in Hindi