शिक्षण में श्रव्य-दृश्य सामग्री से आप क्या समझते है?
श्रव्य-दृश्य साम्रगी वो सामग्री या साधन है, जिसे हम आँखो से देख सकते है, कानों से उसकी ध्वनि सुन सकते है। वे प्रक्रियाएँ जिनमें दृश्य तथा श्रव्य इन्द्रियाँ सक्रिय होकर भाग लेती है, श्रव्य-दृश्य साधन या सामग्री कहलाती है।
शिक्षा का मुख्य ध्येय बालक का सर्वांगीण विकास करना होता है तथा इसे प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी की आवश्यकता, मानसिक स्तर, रूचि तथा योग्यता को आधार बनाया जाता है। शिक्षक शिक्षण सामग्री को इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि उसका स्वरूप विद्यार्थी को पूर्णत: स्पष्ट हो जायें। इसके लिए वह यह प्रयास करता है कि विद्यार्थी को प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान किए जाएँ। लेकिन इस विशाल संसार में यह संभव नही हो पाता है कि प्रत्येक वस्तु का प्रत्यक्ष ज्ञान दिया जाएँ। अत: शिक्षक कई वस्तुओं के प्रतिरूप या चित्र आदि का निर्माण कर विद्यार्थी को दिखाता है। ये प्रतिरूप ही दृश्य-श्रव्य या शिक्षण सहायक सामग्री होती है।
कोठारी आयोग ( 1964-66) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, “शिक्षण गुणवत्ता में सुधार के लिए प्रत्येक विद्यालय में शिक्षण सहायक सामग्री की आपूर्ति अनिवार्य है। यह देश में एक शैक्षणिक क्रांति ला सकता है। “
इसी प्रकार रूसो, फ्रोबेल आदि शिक्षाविदों ने भी बालक को अपने आस-पास अधिकाधिक ज्ञानेन्द्रियों का उपयोग करते हुए शिक्षण कार्य कराने पर बल दिया है। अतः वर्तमान युग में जब ज्ञान का अत्यन्त विस्तार हो रहा है तथा बाल केन्द्रित शिक्षा को मुख्य आधार तना गया है तो श्रव्य-दृश्य सामग्रियों की महत्ता और भी बढ़ जाती है। इसके बिना शिक्षक द्वारा उद्देश्यों की प्राप्ति शंकित ही रहती है।
श्रव्य-दृश्य सामग्री की परिभाषाएँ
फ्रांसिस नोल-“ये साधन ऐसी सहायक विधियाँ है जिनके द्वारा अध्यापक ज्ञानेन्द्रियों क उचित उपयोग से तथ्यों को अधिक स्पष्ट कर सकता है, विभिन्न धारणाओं को समन्वित रूप से स्थिर कर सकता है, उनकी विभिन्न रूपों से व्याख्या कर सकता है तथा उनका गुणांकन कर सकता है।”
बर्टेन- “श्रव्य-दृश्य सामग्री वे संवेदनशील उद्देश्य या चित्र है जो सीखने को प्रोत्साहित या उत्प्रेरित करते है। “
श्रव्य-दृश्य सामग्री का महत्व
(1) यह शिक्षक के मौखिक अनुदेशों को कम करें, विद्यार्थियों को ऊबने से रोकती है तथा शिक्षण में रूचि जाग्रत करती है।
(2) यह विद्यार्थियों के लिए उत्तम उत्प्रेरिक का कार्य करती है।
(3) कक्षा अन्तः क्रिया को बढ़ाने में सहायक होती है।
(4) यह समय बचाती है तथा इससे अधिगम सुदृढ़ व दीर्घकालीन होता है।
(5) यह कक्षा-कक्ष को जीवन्त बनाने में सहायक होती है।
(6) यह विषय-वस्तु की जटिलता को कम कर सरल बनाती है।
(7) यह विद्यार्थियों के मन और ध्यान को शिक्षण की ओर केन्द्रित करने का कार्य करती है।
(8) यह विद्यार्थियों को ज्ञानेन्द्रियों का सर्वाधिक प्रयोग करने के अवसर देती है।
(9) यह विद्यार्थियों को अधिकाधिक क्रिया करने को प्रेरित कर व विषय-वस्तु को स्पष्ट कर रटने पर अंकुश लगाती है तथा शिक्षक व विद्यार्थी दोनो के समय व शक्ति की बचत होती है।
(10) विद्यार्थियों की अधिक संख्या होने पर भी अनुशासन की समस्या नही रही क्योंकि छात्र का ध्यान सहायक सामग्री में ही केन्द्रित रहता है।
(11) इससे विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है।
(12) इससे शिक्षकों में आत्मविश्वास तथा शिक्षण में कुशलता आती है।
(13) इससे सूक्ष्म, व अमूर्त वस्तुओं को समझाया जा सकता है तथा विशाल वस्तु का भी प्रतिरूप बनाकर उसके प्रत्येक पक्ष को स्पष्ट किया जा सकता है।
श्रव्य-दृश्य सामग्री के चयन के सिद्धान्त (Principles for selection of Audio-Visual aids )
(i) श्रव्य-दृश्य सामग्री विद्यार्थियों की आयु, अनुभव व मानसिक स्तरानुसार होनी चाहिए।
(ii) अत्यधिक बड़ी या सूक्ष्म नही होनी चाहिए बल्कि सामान्य आकार में स्पष्ट होनी चाहिए।
(iii) विषय-वस्तु के अनुसार शिक्षण-प्रक्रिया व पाठ का अंग होना चाहिए।
(iv) वास्तविक वस्तु का विकल्प होनी चाहिए एंव वास्तविक वस्तु के अनुपात, रंग, एकरूपता आदि को प्रस्तुत करने वाली होनी चाहिए।
(v) आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने योग्य होनी चाहिए।
(vi) अत्यधिक सूचनापरक व प्रेरित करने वाली होनी चाहिए व विद्यार्थियों को आकर्षित करने वाली होनी चाहिए।
(vii) शिक्षक को स्वयं सहायक सामग्री का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए एवं उसका प्रयोग आना चाहिए, विशेषकर विज्ञान में प्रयुक्त रसायनों में रंग परिर्वतन का ज्ञान होना चाहिए व शुद्ध पदार्थों को प्रयोग लेना चाहिए।
(viii) सहायक सामग्री स्पष्ट रूप से सामान्य आकार के शब्दों में नामांकित होनी चाहिए।
(ix) विद्यार्थियों को सामग्री व विषय वस्तु का कुछ पूर्व ज्ञान होना चाहिए।
(x) उद्देश्यो को ध्यान में रखते हुए, साधनों का उपयोग करना चाहिए।
सामान्यतः हम स्वाद द्वारा एक प्रतिशत, स्पर्श द्वारा 1.5 प्रतिशत, सूंघने से 3.5 प्रतिशत, श्रवण द्वारा ग्यारह प्रतिशत वे देखने से तैय्यासी (83) प्रतिशत अधिगम करते है।
बोर्ड पर लिखते समय 45° का कोण बनाते हुए लिखना चाहिए या अचानक अपनी पीठ मोड़कर पीछे देखना चाहिए। व्यक्ति जो कुछ सुनते है, उसका लगभग 20-25% जो देखते है, का 30-35% जो देखते व सुनते है, का 50-55% तथा जो देखते, सुनते व करते है, का 90% याद रखते है।
क्र.सं. | श्रव्य-दृश्य सामग्री | ||
1. | प्रक्षेपित सामग्री (Projected Aids) |
अप्रक्षेपित सामग्री (Non-Projected Aids ) Most effective aids) |
प्रत्यक्ष अनुभव सामग्री (Direct Experience or |
2. | फिल्म पट्टिका प्रक्षेपण (Film Strip Proj.) | श्यामपट्ट या चॉक बोर्ड (Chowk Board) |
क्लोज्ड सर्किट टेलीविजन (CCTV) |
3. | स्लाइड प्रोजेक्टर |
चार्ट एंव रेखाचित्र |
|
4. | चित्र-विस्तारक (Epidiascope) |
फ्लैनल बोर्ड (Flannel Boards) |
प्रयोग ( Experiments ) |
5. | ओवर हैड प्रोजेक्टर (OHP) |
सूचना (विज्ञप्ति) बोर्ड (Bulletin Boards) |
व्यक्तिगत प्रयोग (Individual doing Exp.) |
6. | रंगीन स्लाइड (Coloured Slides) |
मॉडल (Static & Sectional) |
प्रयोजना (Projects) |
7. |
चलचित्र (Motion Picture) |
डायोरामा (Diorama) |
|
8. | लूप (Loop) |
(Three dimensional figure |
शैक्षिक यात्राएँ एवं भ्रमण |
9. |
(Coloured film Cassette) |
trips | (Excursion and field) |
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