कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन का अर्थ
कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन जैसा कि नाम से ही विदित होता है एक ऐसे अनुदेश की और संकेत करता है, जिसे कम्प्यूटर मशीनरी की मदद से सम्पादित किया जाता है। अनुदेशन प्रक्रिया को स्वः-अनुदेशित तथा वैयक्तिक बनाने में इस प्रकार के अनुदेशन को शिक्षण मशीन द्वारा संचालित अनुदेशन से एक कदम आगे तथा अभिक्रमित पाठ्य पुस्तकों द्वारा प्रदत्त अनुदेशन से दो अधिगम आगे का नवाचार माना जा सकता है।
हिलगार्ड एंव बाउर के अनुसार, “कम्प्यूटर सहायता अनुदेशन का क्षेत्र अब इतना विस्तृत हो गया है कि अब इन्हें मात्र स्किनर द्वारा प्रतिपादित अभिक्रमित अधिगम तथा शिक्षण मशीन के अनुप्रयोग के रूप में नहीं समझा जा सकता है।”
“(Computer assisted instruction has now taken as see many dimensions hat it can no longer be considered as simple derivature of the teaching machine or the kind of programmed learning that skenner introduced.)
कम्प्यूटर सहायता अनुदेशन की विशेषताएँ
(i) श्रृखंलीय अवथा शाखीय- यह कार्यक्रम निम्नतम स्तर पर श्रृंखलीय अथवा शाखीय होता है जो उच्चतर स्तर पर अन्य माध्यम अथवा अधिक जटिल कार्य की शाखाओं में परिवर्तित हो जाता है।
(ii) विविधता- कम्प्यूटर सहायता अनुदेशन कम्प्यूटर के कार्यक्रम के अनुसार बदलता रहता है, क्योंकि कम्प्यूटर शिक्षार्थी के अनुसार नये कार्यक्रम का चुनाव करता है।
(iii) बड़ा या छोटा- कम्प्यूटर के साथ इलेक्ट्रॉनिक-टाईपराइटर या अन्य कोई सम्प्रेषण उपकरण लगाया जाता है।
(iv) कार्यक्रम की कीमत- कार्यक्रम की कीमत भी बहुत अधिक होती है। क्योंकि इसमें टेप तैयार करनी होती है और उसमें बहुत सूचना भरनी होती है। इस पर बहुत खर्च आता है।
कम्प्यूटर आधारित अनुदेशन की विधियाँ
(1) कम्प्यूटर प्रबन्धित अनुदेशन:- इस प्रकार का अनुदेशन विद्यार्थी के ज्ञान के वर्तमान स्तर की जाँच में सहायता करता है। ये विद्यार्थी की अधिगम सम्बन्धी कमजोरियो को भी दर्शाता है।
(2) कम्प्यूटर आधारित अनुदेशनात्मक अनुरूपेण:- कम्प्यूटर आधारित अनुदेशनात्मक अनुरूपेण कम्प्यूटर प्रयोग की सशक्त विधि है। यह वास्तविक जीवन की यथार्थ स्थितियों को प्रस्तुत करती है। ये अनुरूपेण स्थाई भी हो सकते है और गतिशील भी। विद्यार्थियों की पृष्ठपोषक क्रियाओं एंव अनुक्रियाओं के फलस्वरूप इनकी स्थितियों में परिवर्तन भी हो सकता है।
कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन के लाभ/गुण
(1) तत्कालीन पृष्ठ पोषण:- अन्तर्क्रिया टर्मीनलो द्वारा प्रस्तुत किया गया। तत्कालीन पृष्ठ पोषण विद्यार्थियों को परस्पर अन्तर्क्रिया करने तथा प्रयत्न करते रहने में व्यस्त रखता है।
(2) अन्तर्सक्रिया रेखाचित्र:- अन्तर्सक्रिया रेखाचित्रों से सचित्र नमूनों की रचना सम्भव हो सकती है।
( 3 ) रेखाचित्र सुविधा:- कम्प्यूटर में रेखा-चित्र प्रस्तुत करने की सुविधा होती है। यह उपक्रम को बढ़ाने का सशक्त साधन है।
( 4 ) धैर्यशील:- कम्प्यूटर उत्तर धीरता से प्रतीक्षा करता है और गलत उत्तर पर इसे कोई परेशानी नही होती है।
(5) सक्रिय सहभागिता:- कमजोर विद्यार्थी भी इसमें सक्रिय रूप से भाग लेते है। ऐसे विद्यार्थी भाषण- विधि द्वारा किये गये शिक्षण में निष्क्रिय हो जाते है।
( 6 ) कोर्स की संवृद्धि:- इस नई विधि से विविधता के समावेश द्वारा कोर्स को संवृद्धि बनवाया जा सकता है।
( 7 ) सही तथ्य:- कम्प्यूटर में विपुल तथ्यों का सही प्रयोग किया जा सकता है और वह भी बिना श्रम के
कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन की सीमा/दोष
(i) देखभाल की समस्या:- इसमें अधिगम प्रणाली को प्रभावशाली ढंग से सीखाने की समस्या खड़ी हो जाती है।
(ii) बहुत महँगा:- कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन बहुत महंगा है। हमारे कई विश्वविद्यालय तथा शिक्षा संस्थान अभी कई वर्षो तक कम्प्यूटर नहीं खरीद सकते। कम्प्यूटर की मरम्मत के कारण भी कई प्रकार की समस्यायें खड़ी हो जाती है।
(iii) भावात्मक वातावरण का अभाव:- इस पर सबसे बड़ा दोष यह लगाया जाता है कि अध्यापक अपने व्यवहार तथा विद्यार्थियों के साथ अन्तर्क्रिया से कक्षा में स्नेहात्मक एंव भावात्मक वातावरण का निर्माण करता है।
(iv) अधिगम:- प्रणाली की व्यवस्था में कठिनाई व्यक्तिगत अधिगम प्रक्रिया के लिए वास्तविक रूप से उपयोगी अधिगम प्रणाली की व्यवस्था करना बहुत कठिन है।
(v) समस्याओं का समाधान नही:- कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन अपने आप में मनोविज्ञान एंव शैक्षिक समस्याओं का समाधान नहीं करता है। यह केवल इतना बताता है कि समस्या का समाधान हुआ है या नही।
(vi) मानवीय गुण का अभाव:- कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन में मानवीय गुण का अभाव है। यह नई तकनीकी मनुष्य को यान्त्रिक बना देगी।
(vii) भावात्मक उद्धेश्यों की पूर्ति नही:- कम्प्यूटर अनुदेशन का प्रयोग केवल ज्ञानात्मक एवं मनो-क्रियात्मक उद्देश्यों के लिए ही किया जा सकता है, इससे भावात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति नही हो सकती।
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