भारतीय समाज विज्ञान दर्शन
‘समाज विज्ञान’ में ‘समाज’ शब्द का इस्तेमाल ‘विज्ञान’ के मूल स्वभाव को द्योतित करने के लिए किया जाता है इसका अर्थ यह है कि विज्ञान का प्रकृति, मनुष्य, समाज के बारे में वस्तुनिष्ठ ज्ञान स्वभावत: सामाजिक (Social) है क्योंकि इस ज्ञान की खोज सामुहिक श्रम से होती है और जो सामुहिक श्रम से उपजता है वह सामजिक होता है। मूलतः प्रकृति, मनुष्य, समाज का विज्ञान अविभाज्य और सीमाहीन है। भारतीय सामाज विज्ञान इसी दर्शन को भारत के संदर्भ में यथार्थ करने का प्रयास करता है। इस प्रकार का विज्ञान भारतीय लोगों की आर्थिक, सामजिक, सांस्कृतिक एंवम् पारस्परिक जीवन को अच्छा करने में महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है। ऐसा होने पर ‘Brain-Drain’ को रोका जा सकता है और भारत पुनः दुनिया में विज्ञान अपना उच्च स्थान हासिल कर सकता है
Important Links
- अध्यापक का स्वयं मूल्यांकन किस प्रकार किया जाना चाहिए, प्रारूप दीजिये।
- सामाजिक विज्ञान के अध्यापक को अपने कर्त्तव्यों का पालन भी अवश्य करना चाहिए। स्पष्ट कीजिये।
- सामाजिक अध्ययन विषय के शिक्षक में व्यक्तित्व से सम्बन्धित गुण
- शिक्षक की प्रतिबद्धता के क्षेत्र कौन से है
- सामाजिक विज्ञान शिक्षण में सहायक सामग्री का अर्थ एंव इसकी आवश्यकता एंव महत्व
- मानचित्र का अर्थ | मानचित्र के उपयोग
- चार्ट का अर्थ | चार्ट के प्रकार | चार्टो का प्रभावपूर्ण उपयोग
- ग्राफ का अर्थ | ग्राफ के प्रकार | ग्राफ की शैक्षिक उपयोगिता
- पाठ्यचर्या का अर्थ और परिभाषा
- फिल्म खण्डों के शैक्षिक मूल्य
- मापन और मूल्यांकन में अंतर
- मापन का महत्व
- मापन की विशेषताएँ
- व्यक्तित्व का अर्थ एवं स्वरूप | व्यक्तित्व की मुख्य विशेषताएं
- व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक
- व्यक्तित्व क्या है? | व्यक्तित्व के शीलगुण सिद्धान्त
- व्यक्तिगत विभिन्नता का अर्थ और स्वरूप
- व्यक्तिगत विभिन्नता अर्थ और प्रकृति
- व्यक्तिगत विभिन्नता का क्षेत्र और प्रकार
Disclaimer
Disclaimer:Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com