सामाजिक अध्ययन विषय के शिक्षक में व्यक्तित्व से सम्बन्धित गुण
सामाजिक अध्ययन के शिक्षण को अनेक कार्य करने होते है एक ओर उसे शिक्षण कार्य करते हुए सामाजिक अध्ययन शिक्षण के उद्देश्यो को पूरा करना होता है एंव छात्र को समुचित विकास की और अग्रसर करना होता है तथा दूसरी ओर सामाजिक सम्बन्धों को विषय व्याख्याता होने के नाते उसे स्थानीय समुदाय का उचित मार्गदर्शन भी करना होता है। वह विद्यालय एंव समुदाय में सेतु का कार्य करता है। विद्यालय एंव समुदाय को एक दूसरे के निकट लाने में उसे विशेष भूमिका निभानी पड़ती है। इन सभी कार्यों को करने के लिये उसमें ऐसे गुणों का होना आवश्यक है जो उसे कुशलतापूर्वक एवं प्रभावशाली ढंग से कार्य करने में आवश्यक सिद्ध हो। इन गुणों का अध्ययन निम्न शीर्षकों में किया जा सकता है।
(1) मानवीय गुण:- एक अध्यापक के लिये अच्छा अध्यापक बनने से पहले अच्छा मानव बनना बहुत आवश्यक है उसके अन्दर ज्ञान कूट-कूट कर भरा होना चाहिए। वह कई कार्यों में काम करने वाला हो। सभी प्रकार के लोगों के साथ उसके मित्रतापूर्ण सम्बन्ध होने चाहिये। उसके अन्दर किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह नही होना चाहिए। वह सभ्य हो ताकि अपनी सभ्यता को आने वाली पीढ़ियो तक भी पहुँचा सके।
(2) शिक्षा सम्बन्धी गुण:- एक सामाजिक अध्ययन का अध्यापक काफी योग्य होना चाहिये। ऐसा इसलिये आवश्यक है कि आधुनिक युग के बच्चे तेजी से बदलते हुए युग में बड़े हो रहे है। आधुनिक युग के बच्चो को ज्ञान की आवश्यकता होती है वे अपने आस-पास के विश्व को समझना चाहते है। उन्हें सामाजिक अध्ययन से सम्बन्धित सभी विषयों के ज्ञान की आवश्यकता है। उसे परिवार, समुदाय, राज्य राष्ट्र और विश्व के बारे में ज्ञान की आवश्यकता होती है क्योंकि समाज तेजी से बदल रहा है। इसलिये समाजिक अध्ययन के अध्यापक को भी लगातार अधिगम करते रहना चाहिये। सामाजिक अध्ययन समाज से सम्बन्ध रखता है इसलिये इस विषय के अध्यापक के पास तो समाज सम्बन्धी नवीनतम ज्ञान होना चाहिये। इसके अन्दर
तो हर एक सामाजिक समस्या के बारे में अपने विचार प्रकट करने की क्षमता होनी चाहिए।
( 3 ) रचनात्मक दृष्टिकोण:- एक सामाजिक अध्ययन के अध्यापक में जीवन के प्रति रचनात्मक दृष्टिकोण होना चाहिये। यदि नये विचार उत्तम है तो उन्हें ग्रहण करने के लिये वह हमेशा तैयार रहे। उसका अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण होना चाहिये। यदि आधुनिक खोज ने उसके सामने कुछ नये तथ्य प्रस्तुत किये है तो उसे मानने में उसे झिझकना नही चाहिये उसे सेदा नये ज्ञान प्राप्त करने के लिये तत्पर रहना चाहिये।
(4) शिक्षण विधियों में निपुण:- सामाजिक अध्ययन एक ऐसा विषय नही है जिसमें केवल बच्चों को ज्ञान देना है इसमें तो बच्चो के अन्दर उचित कौशल और दृष्टिकोण भी उत्पन्न करते है। इसलिये अध्यापको को सभी विधियाँ आनी चाहिये जिससे वह छात्रों की रूचियो को जाग्रत कर सके। उन्हें खोज करने की प्रेरणा दे सके क्योंकि प्रजातन्त्र तब तक सफल नही हो सकता जब तक अध्यापक, छात्रों में आलोचनात्मक चिन्तन, आपसी अध्ययन अवसर की समानता सहयोग और तर्क को प्रस्तुत करने की आदत का अध्ययन न करे। वह कक्षा-कक्ष में ऐसी विधियों का प्रयोग करे कि कक्षा-कक्ष कठिन परिणाम का स्थान बन जाये।
(5) एक अच्छा नागरिक:- सामाजिक अध्ययन के अध्यापक का सारे समुदाय के प्रति एक विशेष उत्तरदायित्व है इसको सार्वजनिक कार्यो में ज्ञान और नेतृत्व प्रदान करना है उसे नागरिकता और कर्त्तव्यो का ज्ञान होना चाहिये और छात्रों के अन्दर भी वह अच्छी नागरिकता की भावना पैदा करने का प्रयत्न करे।
(6) सामाजिक समस्याओं का ज्ञान:- सामाजिक अध्ययन विषय में अधिकांश सामाजिक समस्याओं का विश्लेषण है इसलिये छात्रों को समाज की अधिकतम समस्याओं से अवगत कराना शिक्षक का पहला कर्त्तव्य है सामाजिक अध्ययन एक व्यवहारिक शास्त्र है इससे सिद्धान्तों को व्यवहारिक जीवन में अपनाने हेतु समाज की वास्तविकताओं से अवगत होना आवश्यक है।
(7) विनोदप्रियता तथा बुद्धि चातुर्य:- सामाजिक अध्ययन पर शुष्कता एंव नीरसता का दोष लगाया जाता है। विनोदप्रियता तथा बुद्धि चातुर्य से अध्यापक कठिन से कठिन विषय भी सुबोध एंव सरल बन सकता है।
( 8 ) धैर्य एंव आत्म संयम:- धैर्य एंव आत्म संयम वे गुण है जिनसे मैत्रीपूर्ण एंव सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार प्रस्फुटित होता है अत्यन्त उत्तेजक स्थिति में भी जो अध्यापक धैर्य और आत्म संयम नही छोड़ता वह निश्चित रूप से स्थिति पर नियन्त्रण कर लेता है।
( 9 ) मैत्रीपूर्ण एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहारः- सामाजिक अध्ययन एक व्यापक विषय है इसके कई प्रकरण रोचक एंव सरल होते है तो कई प्रकरण कठिन तथा दुर्बोध होते हैं इसके लिये विद्यार्थियों के प्रति अध्यापक का मैत्रीपूर्ण तथा सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार होना चाहिए।
( 10 ) लोकतान्त्रिक एंव व्यापक दृष्टिकोण:- विद्यार्थियों में लोकतंत्रात्मक प्रवृत्तियों एंव व्यापक दृष्टिकोण विकसित करना सामाजिक अध्ययन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है इस उद्देश्य की पूर्ति पुस्तकों तथा शिक्षण क्रियाओं से तभी सम्भव हो सकती है जब अध्यापक का अपना दृष्टिकोण लोकतन्त्रात्मक एंव व्यापक है।
(11) ईमानदारी एंव गम्भीरता:- अध्यापक के कार्यकलाप में ईमानदारी तथा गम्भीरता की झलक मिलनी चाहिये। विद्यार्थी बहुत कुछ अपने अध्यापक का अनुकरण करके सीखते है।
(12) मानसिक स्वास्थ्य:- किसी भी शिक्षक के लिये मानसिक रूप से स्वस्थ होना बहुत आवश्यक है वह शिक्षण उतना ही अच्छा होगा जितना कि उसका मानसिक स्वास्थ्य।
(13) विषय और व्यवसाय के प्रति निष्ठा:- सामाजिक अध्ययन के अध्यापक को अपने आप पर और अपने विषय पर छात्रों में निष्ठा होनी चाहिए। साथ ही प्रजातान्त्रिक आदेशो के प्रति विश्वास होना चाहिये।
(14) सम-सामयिक घटनाओं का ज्ञान:- सामाजिक अध्ययन के अध्यापक को सम-सामयिक घटनाओं से पूर्ण रूप से परिचित रहना आवश्यक है। सामाजिक जीवन पर धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक परिवर्तनों का प्रभाव पड़ता है। सामाजिक अध्ययन के अध्यापक को इन सबका पता होना चाहिये।
Important Links
- मानचित्र का अर्थ | मानचित्र के उपयोग
- चार्ट का अर्थ | चार्ट के प्रकार | चार्टो का प्रभावपूर्ण उपयोग
- ग्राफ का अर्थ | ग्राफ के प्रकार | ग्राफ की शैक्षिक उपयोगिता
- पाठ्यचर्या का अर्थ और परिभाषा
- फिल्म खण्डों के शैक्षिक मूल्य
- मापन और मूल्यांकन में अंतर
- मापन का महत्व
- मापन की विशेषताएँ
- व्यक्तित्व का अर्थ एवं स्वरूप | व्यक्तित्व की मुख्य विशेषताएं
- व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक
- व्यक्तित्व क्या है? | व्यक्तित्व के शीलगुण सिद्धान्त
- व्यक्तिगत विभिन्नता का अर्थ और स्वरूप
- व्यक्तिगत विभिन्नता अर्थ और प्रकृति
- व्यक्तिगत विभिन्नता का क्षेत्र और प्रकार