सामाजिक अध्ययन पाठ्यपुस्तक की आवश्यकता
सामाजिक अध्ययन पाठ्यपुस्तक की आवश्यकता निम्न है-
(i) छात्रों का मानसिक स्तर इतना ऊचाँ नही होता कि वे विद्यालय में पढ़ाई गई विषयवस्तु को एक बार में ही आत्मसात् कर सके। इन्ही विषय वस्तु को पुनः पढ़ना पड़ता है और फिर कभी विषय वस्तु को दोहराना पड़ता है। इन सब कार्यो के लिये पाठ्य पुस्तक की आवश्यकता पड़ती है।
(ii) शिक्षक तथा छात्रों दोनो का ही ज्ञान क्रमशः अव्यवस्थित एंव अपर्याप्त होता है शिक्षको को ज्ञान को व्यवस्थित करने की आवश्यकता पड़ती है और छात्रों के ज्ञान को वर्णित करने की आवश्यकता पड़ती है पाठ्यपुस्तक इन दोनों ही व्यक्तियों के इन दोनो ही कार्यों में सहायता करती है।
(iii) पाठ्यपुस्तक छात्रों की विषयवस्तु को संकलित करने में सहायता करती है दूसरे शब्दों में पाठ्यपुस्तक एक ऐसी सहायक सामग्री है जो छात्रों के सम्मुख अत्यन्त व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करती है।
(iv) माध्यमिक शिक्षा आयोग ने भी पाठ्यपुस्तक के महत्व एंव आवश्यकता को स्वीकार किया है।
(v) परीक्षा के समय छात्रों की बड़ी सहायता करती है।
(vi) भारत एक निर्धन देश है यहाँ के अधिकांश विद्यालयों की आर्थिक दशा खराब है उनके पुस्तकालय इस स्थिति में नही है कि वे एक ही विषय पर अनेक पुस्तके लिख सके। इसलिए विद्यालयों के लिये यही हितकार है कि वे अपने पुस्तकालय में पाठ पुस्तक रखे।
(vii) पाठ्यपुस्तक विषय वस्तु को अत्यन्त तार्किक ढंग से प्रस्तुत करती है जिससे विषयवस्तु सरल तथा सुगम हो जाती है।
(viii) पाठ्यपुस्तक शिक्षण के अनेक दोषो को दूर करती है कक्षा, शिक्षण प्रणाली के अन्तर्गत प्रत्येक छात्र पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान नही दिया जा सकता है। पाठ्यपुस्तकों की सहायता से छात्र व्यक्तिगत रूचि के अनुसार अध्ययन कर सकते है।
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