कल्पना का विकास किस प्रकार किया जा सकता है?
जब कोई व्यक्ति अपने पूर्व-ज्ञान के आधार पर कोई नवीन रचना करता है अथवा अपनी जानकारी को घटा-बढ़ाकर अथवा उसको फिर से संगठित करके नवीन रूप देता है तो उसे कल्पना कहते हैं।
बच्चों में कल्पना का विकास निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है
( 1 ) भाषा ज्ञान का विकास करके- जैसे-जैसे बच्चों का भाषा ज्ञान बढ़ता जाता है, उनकी कल्पनाशक्ति बढ़ती जाती है। भाषा और कल्पना का बड़ा निकट का सम्बन्ध है। बच्चा जब किसी कहानी को सुनता है तो वह शिक्षक के शब्दों को सुनकर उनसे सम्बन्धित चीजों की कल्पना कहानी सुनने के साथ-साथ करता जाता है। जब बच्चे के शब्द ज्ञान में वृद्धि हो जाती है तो वह शब्दों के सहारे अनेक घटनाओं की कल्पना करने लगता है।
( 2 ) कहानियाँ या कथाएँ- बच्चों के कल्पना विकास में कहानियाँ या कथाएँ सहायक होती हैं। शिक्षक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जब कोई कहानी बच्चों को सुनाई जाए तो पूरे हाव-भाव के साथ। कहानी को आधी सुनाकर बच्चों से पूरी करवायें। बच्चे इस प्रकार अपनी कल्पना के माध्यम से अपने-अपने ढंग से कहानी को पूरी करेंगे।
चार या पाँच वर्ष का बालक विभिन्न प्रकार की कल्पनाएँ करता है। यह कल्पनाएँ उसके जीवन से सम्बन्धित होती हैं। जिन बालकों में कल्पना की शक्ति अधिक होती है, वे विभिन्न परिस्थितियों में अधिक देर तक प्रतीक्षा कर सकते हैं। जब बालक 5 वर्ष के होते हैं तो वे कल्पना के आधार पर किसी तथ्य का पूर्वानुमान लगा सकते हैं। वे भविष्य के विषय में सोच सकते हैं। इसी अवस्था से बालकों में रचनात्मक कल्पना का विकास आरम्भ हो जाता है। बालक डण्डे का घोड़ा बनाकर उस पर सवार हो जाते हैं।
उत्तर बाल्यावस्था में बालक विभिन्न प्रकार की कहानियाँ सुनने में अधिक रुचि लेते हैं। कभी-कभी बालक इसलिए कि पढ़ना न पड़े, काल्पनिक रोगों का सहारा लेते हैं। बालक जादू करके कल्पना का विकास करते हैं। किशोरावस्था के आरम्भ में बालक बालिकाएँ विपरित लिंग के सम्बन्ध में कल्पना करने लगते हैं। बालक-बालिकाएं भविष्य की चिन्ता करके दिवा स्वप्न देखते हैं। आयु बढ़ाने के साथ-बालक-बालिकाओं में गम्भीरता आ जाती है। अब उनका वास्तविकता से अधिक सम्बन्ध हो जाता है। अब वे कल्पना का प्रयोग रचनात्मक कार्यों में करते हैं। उनकी भाषा, बुद्धि तथा अन्य मानिसिक योग्यताएँ उनकी कल्पना को प्रभावित करती हैं।
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