व्यक्तित्व का अर्थ एवं स्वरूप
प्रत्येक व्यक्ति का एक व्यक्तित्व होता है। व्यक्तित्व अद्वितीय होता है। व्यक्तियों में उसके अन्तर विस्तृत होते हैं। इसलिए कभी भी दो व्यक्तियों का व्यक्तित्व एक समान नहीं होता है। व्यक्तित्व जटिल होता है। इस जटिलता के सम्बन्ध में व्यक्तित्व के एक अत्यधिक योग्य अध्ययनकर्ता गार्डनर मर्फी का कहना है “मैं विश्वास करता हूँ कि मनुष्य के सम्बन्ध में बहुत अधिक नहीं ज्ञात है जिससे की दूसरे लोग अथवा वह व्यक्ति अपने आपको जानता है”। इस प्रकार मर्फी हमें व्यक्ति और उसके व्यक्तित्व के संबंध में जानने के लिए अन्वेषक बनाने के लिए विवश कर देता है।
व्यक्तित्व शब्द (वि) उपसर्ग, अज्ज धातु और तथ ‘त्व’ प्रत्ययों के योग से हुआ है। इसका अर्थ है “जिसकी पृथक सत्ता हो और जिसमें व्यक्त होने की क्रिया या भाव निहित हो।” व्यक्तित्व के लिए अंग्रेजी में “पर्सनालिटी” शब्द है जिसकी व्युत्पत्ति “परसोना” से मानी गयी है।
परसोना का अर्थ है “मुखौटा”। यूनानी नाटकों में इस शब्द की महत्ता थी। लैटिन भाषा के शब्द से भी पर्सनालिटी की व्युत्पत्ति मानी गयी है, जिसका तात्पर्य ध्वनि करने के सदृश से है। सामान्य रूप से व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग व्यक्ति के शारीरिक स्वरूप, बोलचाल के ढंग या
उसके द्वारा प्रभावित करने के तरीके के लिए किया जाता है। कुछ लोग यह मानते है कि व्यक्तित्व ऐसा है जिसे लेकर व्यक्ति पैदा होता है जो बातावरण से अप्रभावित होता है तथा जिसका कुछ प्रभाव उसके सभी कार्यों पर पड़ता है। दूसरे व्यक्ति जैसा है उसे ही व्यक्तित्व कहते हैं तथा व्यक्ति व व्यक्तित्व को अंर्तसम्बन्धित मानते हैं। कुछ अन्य लोग परिस्थिति विशेष में व्यक्तित्व को व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले व्यवहार के रूप में देखते हैं, जो परिस्थिति के अनुसार बदलता है। अब तक मनोवैज्ञानिक व्यक्तित्व की अवधारण पर एकमत नहीं हो सके और उनके विचार क्रम जारी हैं। ‘व्यक्तित्व’ शब्द एक सामान्य विचार का द्योतक है। किसी विशेष शक्ति या किसी विशेष चीज का नहीं। विद्वानों ने व्यक्तित्व के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए जितनी परिभाषाएं दी है-
उन्हें मुख्यतया चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
1. संग्राही परिभाषाएं, 2. समाकलनात्मक परिभाषाएं, 3. सोपानित परिभाषाएं, 4. समायोजन पर आधारित परिभाषाएं।
1. संग्राही परिभाषाएं- जो परिभाषाएं व्यक्ति के विभिन्न लक्षणों, गुणों अनुक्रियाओं, प्रक्रियाओं एवं जैविक गुणों आदि के समूह पर बल देती हैं, उन्हें इस वर्ग के अन्तर्गत रखते हैं। कुछ मुख्य परिभाषाएं इस प्रकार हैं-
(क) मार्टन प्रिन्स – व्यक्तित्व व्यक्ति के समस्त जैविक जन्मजात विन्यासों, आवेगों, क्षुधाओं, मूलप्रवृत्तियों तथा अनुभवों द्वारा अर्जित विश्वासों एवं प्रवृत्तियों का समूह हैं।
(ख) विग और हंट- व्यक्तित्व व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार प्रतिमान और इसकी विशेषताओं के योग का उल्लेख करता है।
(ग) वुडवर्थ – व्यक्ति के व्यवहार के समस्त गुणों को व्यक्तित्व कहते हैं।
2. समकलनात्मक – इस वर्ग में आने वाली परिभाषाएं व्यक्तित्व के केवल विभिन्न प्रवृत्तियों, गुणों का योग नहीं है। बल्कि जब से एकत्र किये जाते हैं तब से उसमें एक प्रकार का समाकलन या संगठन पाया जाता है। कुछ उल्लेखनीय परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-
(क) वारेन तथा कारमाइकेल- व्यक्ति के विकास को किसी अवस्था पर उसके सम्पूर्ण संगठन को व्यक्तित्व कहते है।
(ख) गिल्फोर्ड- व्यक्तित्व व्यक्ति के गुणों का संगठनात्मक प्रतिरूप है।
(ग) मैकर्डी – व्यक्तित्व प्रतिदर्शी वह “समाकलन” है जो जीवन के व्यवहार में एक विशेष प्रकार की प्रवृत्ति उत्पन्न करता है।
3. सोपानित परिभाषाएं- कुछ मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व की व्याख्या सोपानों के अन्तर्गत की है। जेम्स के अनुसार व्यक्तित्व के चार सोपान या क्रम होते हैं. 1. भौतिक, 2. सामाजिक, 3. आध्यात्मिक 4. शुद्ध अहं
भौतिक के अन्तर्गत व्यक्ति के शरीर की रचना तथा आनुवंशिकता से प्राप्त विशेषताएं सम्मिलित हैं जो उसके भौतिक व्यक्तित्व की परिचायक है।
सामाजिक सोपान से व्यक्ति के सामाजिक व्यक्तित्व का बोध होता है। वह व्यक्तित्व सामाजिक सम्बन्धों के बीच विकसित होता है।
आध्यात्मिक सोपान से सम्बन्धित का आध्यात्मिक व्यक्तित्व – उस समय विकसित होता है जब व्यक्ति की रूचि आध्यात्मिक विचारों से उत्पन्न होती है।
शुद्ध अहं के सोपान इस सोपान पर व्यक्ति अपने आत्मस्वरूप का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेता है और सभी वस्तुओं में अपनी आत्मा का दर्शन करता है।
4. समायोजना पर आधारित परिभाषाएं – व्यक्तित्व की जिन परिभाषाओं में समायोजन पर सर्वाधिक बल दिया गया है इन्हें इस वर्ग के अन्तर्गत सम्मिलित करते हैं। कुछ अति मुख्य परिभाषाएं इस प्रकार हैं-
(क) केम्फ – व्यक्तित्व समायोजन की “वह आध्यात्मिक विधि है जो कि जीव अपने अंहकेन्द्रित अन्तर्नादों तथा पर्यावरण की आवश्यकताओं के मध्य विकसित करता है।
(ख) डेशील- व्यक्तित्व व्यक्ति के व्यवहारों का एक संकलन है जो उसके सामाजिक – समायोजन में अभिव्यक्त होता है।
(ग) आलपोर्ट – व्यक्तित्व व्यक्ति की उन मनोशारीरिक पद्धतियों का वह आंतरिक गत्यात्मक संगठन है जो कि पर्यावरण में उसके अनन्य समायोजन को निर्धारित करता है।
1. “Personality is the total quality of an individual behaviour.” – Woodworth
2. “Personality is the entire organisation of a human being at any stage of his development.” Warren and Carmichal
3. “Personality is an integrated pattern of traits.” Guilford.
उपर्युक्त सभी परिभाषाओं के आधार पर व्यक्तित्व का स्वरूप निम्नलिखित चार बातों की ओर संकेत करता है।
1. वंशानुक्रमण तथा पर्यावरण से प्राप्त शारीरिक तथा मानसिक गुण,
2. पर्यावरण के प्रति समायोजन का गुण,
3. गत्यात्मक तथा परिवर्तनशीलता,
4. समग्रता।
प्राचीनकाल में चित्तप्रकृति या स्वभाव में घनिष्ठ सम्बन्ध था। स्टैगनर के मतानुसार चित्तप्रकृति का सम्बन्ध व्यक्ति के संगात्मक पक्ष से होता है। स्पष्ट है कि व्यक्ति के व्यक्तित्व का वर्णन करते समय उसकी चित्तप्रकृति का भी ध्यान रखना चाहिए।
व्यक्तित्व की विशेषताएं
व्यक्तित्व के सम्बन्ध में अब तक जो विचार प्रकट किए गए हैं, उनका विश्लेषण करने पर व्यक्तित्व की सामान्य विशेषताओं का ज्ञान प्राप्त होता है। वे विशेषताएं इस प्रकार हैं-
1. स्व-चेतना – स्व की चेतना या आत्मचेतना व्यक्तित्व की सर्वप्रमुख विशेषता है। गार्डनर मर्फी ने लिखा है “व्यक्ति अपने को जिस रूप में जानता है वही उसका स्व है” जन्म के साथ शिशु को स्व की चेतना नहीं होती। विकास के साथ ही आत्मचेतना का विकास होता है। आत्मचेतना के कारण ही मानव को सभी जीवधारियों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होता है। भारतीय विचार परम्परा स्व को आत्माप के रूप में मानती है। स्व का बोध ही आत्मा का बोध है स्व की चेतना में तीन घटक अनिवार्य रूप से विद्यमान होते हैं –
1. स्मरण शक्ति 2. अनुभवों की पृष्ठभूमि, 3. भाषा का विकास।
2. सामाजिकता- सामाजिकता व्यक्तित्व की तीसरी विशेषता है। व्यक्तित्व यदि सुसमायोजित नहीं है, तो व्यर्थ है। विभिन्न परिस्थितियों के बीच क्रिया व व्यवहार में परिवर्तन करके स्वयं को समायोजित कर लेना श्रेष्ठ व्यक्तित्व का ही लक्षण है। समायोजनशीलता विशेषता के कारण व्यक्ति आन्तरिक द्वन्द से मुक्त हो है। अपनी बुद्धि का प्रयोग कुशलता पूर्वक करता है, वास्तविकता को सही ढंग से समझता है, उत्तरदायित्व की भावना का पोषण करता है, आत्मसंयमी हो जाता है।
3. निर्देशित लक्ष्य प्राप्ति – अच्छे व्यक्तित्व की चौथी विशेषता है – निर्देशित लक्ष्य की प्राप्ति। सफलता व्यक्तित्व का लक्ष्य है। ध्येयनिष्ठ और कठिनाइयों के बाद भी उसे प्राप्त कर लेना अमरत्व का पथ है। ध्येयनिष्ठ व्यक्तित्व वाले अपने कर्म और चरित्र में सदैव ही सतत् प्रगति करते हैं। इसी आधार पर उसका व्यक्तित्व जीवित रहता है, मरता नहीं।
4. दृढ़ इच्छा शक्ति – दृढ़ इच्छा शक्ति व्यक्तित्व की पांचवीं विशेषता है। इस शक्ति के कारण ही व्यक्ति में दृढ़ता उत्पन्न होती है। जिसके पास दृढ़ संकल्प है, वह कठिनाइयों को आश्चर्यजनक रूप से जीत लेता है। सुनिश्चित सिद्धान्तों के प्रति अविचलित मान्यता रखना ही समस्त संकल्पों की आत्मा है। वह व्यक्तित्व आसानी से विघटित हो जाता है जिसमें दृढ़ इच्छा शक्ति का लेशमात्र भी अभाव है।
5. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य- अच्छा स्वास्थ्य अच्छे व्यक्तित्व की छठी विशेषता है। रूचिकर वेशभूषा से युक्त सुगठित और निरोग शरीर पहली भेट में ही अपना प्रभाव डालता है। स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का होना भी अनिवार्य है। इन दोनों का सम्मिलित प्रभाव सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों पर पड़ता है।
6. एकता और समाकलन – व्यक्तित्व की सातवीं विशेषता है एकता और समाकलन। व्यक्तित्व की पूर्णता उसकी एकता एवं समाकलन में निहित है। व्यक्तित्व के शारीरिक, मानसिक नैतिक, सामाजिक और संवेगात्मक आदि तत्वों में एकता का होना भी अनिवार्य है।
प्रो0 आलपोर्ट ने व्यक्तित्व के समाकलन के लिए आवश्यक माना है कि “व्यक्ति को अपने जीवन के उद्देश्यों का ज्ञान होना उद्देश्यों की प्राप्ति से अधिक आवश्यक है’ ‘भाटिया’ ने लिखा है “व्यक्तित्व मान की सब शक्तियों और गुणों का संगठन और समाकलन हैं।
7. विकास की निरन्तरता- विकास की निरन्तरता व्यक्तित्व की आठवीं और अन्तिम विशेषता है। व्यक्तित्व का विकास जीवनपर्यन्त चलता रहता है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्तित्व का स्वरूप बदलता रहता है। गैरिसन एवं के अन्यों के अनुसार “व्यक्तित्व निरन्तर निर्माण की प्रक्रिया में रहता है।
- व्यक्तिगत विभिन्नता का अर्थ और स्वरूप
- व्यक्तिगत विभिन्नता अर्थ और प्रकृति
- व्यक्तिगत विभिन्नता का क्षेत्र और प्रकार
Important Links
- परिवार का अर्थ एवं परिभाषा | परिवार के प्रकार | परिवार के कार्य
- संयुक्त परिवार का अर्थ, परिभाषा विशेषताएं एवं संयुक्त परिवार में आधुनिक परिवर्तन
- परिवार की विशेषताएँ | Characteristics of Family in Hindi
- परिवार में आधुनिक परिवर्तन | Modern Changes in Family in Hindi
- परिवार की उत्पत्ति का उद्विकासीय सिद्धान्त
- जीववाद अथवा आत्मावाद | Animism in Hindi
- हिन्दू धर्म की प्रकृति | हिन्दू धर्म की प्रमुख मान्यताएँ | हिन्दू धर्म स्वरूप
- भारतीय समाज पर हिन्दू धर्म का प्रभाव | Impact of Hindusim on Indian Society in Hindi
- धार्मिक बहुलवाद | Religious Plyralism in Hindi
- जादू और विज्ञान में संबंध | जादू और विज्ञान में समानताएँ
- जादू की परिभाषा | जादू के प्रकार | Magic in Hindi