पिछड़े बालक का अर्थ एवं विशेषताएं (Meaning and characteristics of backward children)
पिछड़े बालक से तात्पर्य सामान्यतः वैसे बालक से होता है जो बुद्धि, शिक्षा आदि में अपने समकक्षियों से काफी पीछे रह जाते हैं। कुछ लोग बालकों के पिछड़ेपन को मानसिक मंदता कहते हैं तथा शैक्षिक उपलब्धि के आधार पर पिछड़ेपन को शैक्षिक मंदता कहा जाता है। बर्टर ने पिछड़े बालक को परिभाषित करते हुए कहा है, “पिछड़ा बालक वह है जो अपने स्कूल जीवन के बीच (लगभग साढ़े दस साल में) अपनी आयु के समकक्ष से नीचे की कक्षा का कार्य करने में असमर्थ हो। पिछड़े बालक की पहचान उसकी कुछ स्पष्ट विशेषताओं के आधार पर की जाती है जो निम्नांकित है-
1. पिछड़े बालक की मानसिक आयु अपने समकक्षियों से कम होती है।
2. पिछड़े बालक की शैक्षिक आयु भी अपने समकक्षियों से कम होती है।
3. ऐसे बालकों की शैक्षिक उपलिब्ध सामान्य या औसत से कम होती हैं।
बालकों के पिछड़ेपन के कारण (Causes of backwardness among children)
बालकों के पिछड़ेपन के कई कारणों को शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने उजागर किया है जिनमें निम्नांकित प्रमुख हैं –
1. बौद्धिक क्षमता की कमी (Lack of Intellectual ability) – बर्ट द्वारा किए गए अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया है कि बालकों के पिछड़ेपन का सबसे महत्वपूर्ण कारण उम्र के अनुसार बौद्धिक क्षमता का कम या बिल्कुल न होना होता है। बौद्धिक क्षमता के अभाव में वे सामान्य या औसत बुद्धि के बालकों के लिए बनाएं गये पाठ्यक्रम को समझ नहीं पाते हैं और परिणामस्वरूप पिछड़े जाते हैं।
2. वातावरण का प्रभाव ( Effect of environment)- छात्रों के पिछड़ेपन में वातावरण का भी प्रभाव काफी पड़ता है। बर्ट के अध्ययन के अनुसार यदि बालक का घरेलू वातावरण तथा स्कूली वातावरण शिक्षा की दृष्टि से उत्साहवर्धक नहीं होता है तो इसमें बालकों की शैक्षिक आयु वास्तविक आयु के अनुकूल नहीं बढ़ पाती है और बालक शैक्षिक रूप से पिछड़ जाते हैं।
3. शारीरिक दोष ( Physical defects ) – शारीरिक दोष के कारण भी बालक शैक्षिक रूप से पिछड़ जाते हैं। अंधे, बहरे, गूंगे बालकों में पिछड़ेपन का मूल कारण उनकी शारीरिक विकलांगता ही होती है। अपने शारीरिक दोष के कारण ऐसे बालकों की अभिरूचि शिक्षा में कम होने लगती है। बर्ट के अध्ययन के अनुसार करीब 9 प्रतिशत बालकों के पिछड़ेपन का कारण यही शारीरिक दोष है।
4. स्वभाव सम्बन्धी दोष ( Temperamental Defects) – बर्ट ने अपने अध्ययन में पाया है कि कुछ बालक स्वभाव सम्बन्धी दोष के कारण अपने साथियों से पिछड़ जाते हैं। ऐसे बालक तुनुकमिजाजी, आक्रामक, संवेगात्मक रूप से अस्थिर होते हैं। ऐसे गुणों के कारण उनका समयोजन कक्षा में न तो शिक्षक के साथ और न ही अपने साथियों के साथ हो पाता है जिनका परिणाम यह होता है कि वे कक्षा में पिछड़ जाते हैं। बर्ट ने अपने अध्ययन में पाया कि करीब 9 प्रतिशत पिछड़े बालकों का कारण उनका स्वभाव सम्बन्धी दोष था।
5. कर्तव्यत्यागिता ( Truancy ) – कुछ बालक ऐसे होते हैं जो कक्षा में ठीक ढंग से शिक्षक के व्याख्यान पर ध्यान नहीं देते और मौका मिलते ही कक्षा में भाग खड़े होते हैं। जब कक्षा में ये नियमित रूप से बैठते ही नहीं है। तब उन्हें पाठ्यक्रम ठीक ढंग से नहीं समझ में आता है और इससे उनकी शैक्षिक अभिरूचि दिन प्रतिदिन घटती जाती है और कक्षा में पिछड़े जाते है बर्ट के अध्ययन के अनुसार करीब 10 प्रतिशत बालक ऐसे होते हैं जिनके पिछड़ेपन का कारण स्कूल की कक्षा से अनुपस्थित होना बतलाया गया है।
पिछड़े बालक की समस्या (Problem of backward child)
शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने पिछड़े बालक की कुछ समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया है-
1. पिछड़े बालकों की सबसे बड़ी समस्या कक्षा में समायोजन से सम्बन्धित होती है। ऐसे बालक को कक्षा का पाठ्यक्रम काफी कठिन लगता है जिसे वे समझ नहीं पाते और वे अन्य समकक्षी बालकों की तुलना में पीछे रह जाते हैं।
2. ऐसे बालकों की मनोवृत्ति स्कूल एवं शिक्षकों के प्रति नकारात्मक होती है, क्योंकि उनका स्कूल में साथियों द्वारा अक्सर खिल्ली उड़ाया जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि इन बालकों में संवेगात्मक समस्याएं अधिक गम्भीर होती हैं।
3. ऐसे बालकों को पढ़ने लिखने व सीखने की प्रेरणा बहुत कम होती है क्योंकि इनकी – घरेलू एवं व्यक्तिगत अनुभूतियाँ इतनी तीखी एवं कुंठापूर्ण होती हैं कि उनके ऐसे अभिप्रेरणों को वे बिल्कुल ही समाप्त कर देते हैं।
4. ऐसे बालकों को चूंकि लगातार असफलता ही असफलता मिलती है अतः इनमें आत्मविश्वास मनोबल एवं आत्मनिर्भरता जैसा कोई गुण नहीं विकसित कर पाता है। परिणामतः ऐसे बालकों को सीखने की कोई अभिरूचि नहीं रह जाती है।
5. ऐसे बालक अधिक चिन्तित एवं तनावग्रस्त रहते हैं क्योंकि वे अनुभव करने लगते हैं कि उनकी शैक्षिक उपलब्धियाँ काफी पीछे पड़ रहीं हैं। उनके
इस तरह हम देखते है कि पिछड़े बालक की कई समस्याएं है जो मूलतः समायोजन तथा शिक्षा से सम्बन्धित हैं।
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