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बालक का बौद्धिक विकास | Intellectual Development in Child in Hindi

बालक का बौद्धिक विकास | Intellectual Development in Child in Hindi
बालक का बौद्धिक विकास

अनुक्रम (Contents)

बालक का बौद्धिक विकास

बुद्धि का विकास ( Intellectual Development) – बालक की बौद्धिक क्षमता मूल रूप से नैसर्गिक सम्पदा होती है। अन्य शारीरिक विशेषताओं की भांति बौद्धिक क्षमता का निर्धारण एवं हस्तांतरण भी गर्भाधान के समय ही हो जाता है। बौद्धिक क्रियाएं बालक के मस्तिष्क पर निर्भर होती है और इसलिए कोई बालक कितना बुद्धिमान होगा यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उसे किस प्रकार का मस्तिष्क मिला है। विशेषज्ञों का मत है कि बुद्धि का सम्बद्ध बृहद मस्तिष्क की ऊपरी सतह से होता है।

सभी प्रकार की बौद्धिक क्रियाओं का नियन्त्रण मस्तिष्क का यही भाग करता है। किन्तु जन्म के समय यह भाग पचास प्रतिशत से भी कम विकसित हुआ। जन्म के बाद बालक को स्वस्थ प्रकार के वातावरण की आवश्यकता होती है। जिससे मस्तिष्क को क्रियाओं के समुचित विकास के लिए उसे पर्याप्त उद्यीपन मिलता रहे। बालक की बुद्धि का विकास निम्नलिखित तीन बातों पर निर्भर करता है।

1. बालक के जन्म के समय किस प्रकार का मस्तिष्क प्राप्त हुआ है। आनुवंशिक दृष्टि से जिस बच्चे को स्वस्थ और सक्षम मस्तिष्क प्राप्त होता है उसके भीतर क्रियाओं की अधिक क्षमता निहित होती है।

2. सम्पूर्ण विकास काल अर्थात जन्म के बाद 16 या 18 वर्ष तक की अवस्था के बीच बालक के मस्तिष्क में कितनी वृद्धि हो पाती है। आकार में मस्तिष्क जन्म के समय पूर्णतः विकसित नहीं रहता। विकास काल में वह लगभग चार गुना विकसित हो सकने की क्षमता रखता है। किन्तु मस्तिष्क का विकास रोग, आघात तथा कुपोषण के परिणामस्वरूप कुछ सीमा तक अवरूद्ध हो सकता है।

3. बालक को विकसित क्रम में कितनी अधिक परिवेश सुविधाएं या अधिगम के अवसर उपलब्ध हुए। परिवेश में बालक को निरीक्षण करने, अभ्यास करने, समस्या हल करने तथा अन्तदृष्टि का उपयोग करने के अवसर जितने अधिक उपलब्ध हो सकेंगे, उतना मस्तिष्क उतना ही अधिक सक्रिय होगा।

मनोवैज्ञानिकों का यह अनुमान है कि बालकों की बुद्धि का विकास उसके शारीरिक और मानसिक विकास के साथ साथ होता रहता है। बुद्धि परीक्षणों द्वारा इस तथ्य पर प्रकाश पड़ता है। किन्तु समुचित बुद्धि का विकास आयु और शारीरिक बुद्धि के साथ संगत करता है। टरमन के अध्ययनों से इस तथ्य की पुष्टि होती है। जन्म के समय बच्चे के भीतर बुद्धि अल्प मात्रा में ही रहती है तथा आयु में वृद्धि के साथ उसमें भी वृद्धि होती है।

बुद्धि परीक्षा के आधार पर कहा जा सकता है कि चार पाँच वर्ष तक बुद्धि का विकास तेजी के साथ होता है। इसके बाद उसके विकास की गति कुछ शिथिल पड़ जाती है। 12 से 14 वर्ष की आयु में बुद्धि फिर तीब्र गति से बढ़ने लगता है और 14 वर्ष की अवस्था में यह अपनी चरम सीमा तक पहुँच जाती है। कुछ बालकों में 15 वर्ष तक बुद्धि कुछ न कुछ विकसित होती रहती है परन्तु यह निश्चित है कि 18 वर्ष के बाद यह किसी भी दशा में नहीं बढ़ती है और मन्द बुद्धि बालकों की अपेक्षा कुछ वर्षों बाद अपनी चरम सीमा पर पहुँचती है। अतः जिन बालकों की बुद्धि 16 या 18 वर्ष तक कुछ न कुछ विकसित होती रहती है वे निश्चित रूप से तीव्र या प्रखर बुद्धि के ही बालक होते हैं।

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के अध्ययन से स्पष्ट है कि प्रत्यक्षीकरण, शिक्षण, कल्पना, स्मृति, चिन्तन तथा तर्क की प्रक्रियाएं ही बौद्धिक क्रियाएं कही जाती हैं। बुद्धि के विकास के साथ साथ इन सभी क्रियाओं की जटिलता बढ़ती जाती है। तीव्र वृद्धि के बालकों में बुद्धि का विकास शीघ्रता से होता है। जबकि मन्द बुद्धि बालकों में इसकी गति मन्द रहती है।

A = प्रखर बुद्धि

B = सामान्य बुद्धि

C = मन्द बुद्धि

अन्त में बुद्धि विकास के सम्बन्ध में यह बात समझ लेना आवश्यक है कि बुद्धि विकास एवं ज्ञान विकास को एक वस्तु नहीं मान लेना चाहिएष्व साधारण व्यक्ति बुद्धि और ज्ञान दोनों को एक ही वस्तु समझता है परन्तु हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि बुद्धि एक जन्मजात योग्यता है जबकि ज्ञान एक अर्जित गुण। अतः ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। यह आयु के साथ जीवनपर्यन्त विकसित हो जाती है परन्तु बुद्धि का विकास 16 या 18 वर्ष में एकदम रूक जाता है। इस प्रकार 25 और 40 वर्ष के व्यक्तियों में बुद्धि के आधार पर कोई अन्तर नहीं होगा लेकिन उन दोनों के ज्ञान और अनुभव में बहुत अन्तर होगा।

बौद्धिक विकास में सिद्धान्तों की विवेचना को पूर्ण माना जा सकता है जब तक प्रसिद्ध स्विस मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे के योगदान की चर्चा न की जाये। मूलतः जीव वैज्ञानिक होने के कारण बौद्धिक विकास की व्याख्या के लिए पियाजे ने जीव विज्ञान के अनेक पदों यथा – संरचना, अनुकूलन, सन्तुलन आदि का उपयोग किया है। पियाजे बुद्धि को वातावरण के साथ जैविक अनुकूलन मानते हैं। इस अनुकूलन के दो प्रमुख प्रक्रम हैं। आत्मसात तथा समंजन आत्मसात के अर्न्तगत प्राणी अपने वातावरण में तथ्यों को आत्मसात करता है। समंजन का तात्पर्य विद्यमान मानसिक संरचना में वातावरण के नये तत्वों को आत्मसात करता है समंजन का तात्पर्य विद्यमान मानसिक संरचना के नये प्रत्यक्षीकरणों को उपयुक्त बनाने के लिए किया जाना वाला परिमार्जन है।

पियाजे द्वारा बतलाई गई बौद्धिक विकास की प्रमुख अवस्थाएं ये हैं-

1. संवेदी पेशीय अवस्था

2. प्राकसंक्रियात्मक की अवस्था

3. स्थूल संक्रिया की अवस्था

4. औपचारिक संक्रिया की अवस्था ।

पियाजे के अनुसार इनमें से प्रत्येक नयी अवस्था में मानसिक क्रियाओं के नये संगठन अविभूर्त होते है और पुराने संगठनों का स्थान ले लेते हैं। इस सन्दर्भ में यह स्मरणीय है कि पियाजे ने बौद्धिक कार्यों और बौद्धिक संरचनाओं की चर्चा की हैं और इन्हें एक दूसरे से भिन्न बतलाया है बौद्धिक कार्यों के अर्न्तगत वे सामान्य विशेषताऐं आती है जिन्हें बालक क्षमता के परिणामस्वरूप प्रदर्शित करता है जैसे सीखने, समायोजित होने और तर्क करने के कार्य बौद्धिक विकास के क्रम में उक्त कार्य सदैव सामान्य रूप से एक जैसे बने रहते है। उनमें परिवर्तन नहीं आता। बौद्धिक संरचनाएं बौद्धिक गुणों के उन संगठनों को कहा जा सकता है जो बालक की आयु के साथ साथ परिवर्तित होते रहते हैं। पियाजे की विशेष रूचि इन्हीं बौद्धिक संरचनाओं में है।

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