अभिप्रेरणा के प्रकार
अभिप्रेरणा को दो भागों में विभक्त किया गया है
1. आन्तरिक अभिप्रेरणा 2. बाहा अभिप्रेरणा
1. आन्तरिक अभिप्रेरणा- आन्तरिक अभिप्रेरणा का सम्बन्ध व्यक्ति की आन्तरिक दशा से है। जब बालक स्वयं अपनी इच्छा से किसी क्रिया को करता है तब उसे आन्तरिक अभिप्रेरणा कहते है। इस प्रकार कार्य करने से उसे सुख एवं सन्तोष प्राप्त होता है। शिक्षण के सम्बन्ध में आन्तरिक अभिप्रेरणाओं का सम्बन्ध उन कारकों से है, जो कार्य पाठ्यवस्तु या छात्र में ही अन्तनिहित है। आधुनिक शैक्षिक सिद्धान्तों का आधार आन्तरिक अभिप्रेरणाऐं हैं क्योंकि वे आविष्कार, अन्वेषण, जिज्ञासा आदि पर अधिक बल देते हैं।
2. बाह्य अभिप्रेरणा- बाह्य अभिप्रेरणा में किसी भी अनुक्रिया के लिए बाहा उद्दीपन की आवश्यकता होती है। जब बालक किसी कार्य को स्वयं अपनी इच्छा से न करके दूसरों की इच्छा या बाह्य प्रभाव के कारण करता है तब उसे बाहा अभिप्रेरणा की संज्ञा दी जाती है। शिक्षण के सम्बन्ध में बाह्य अभिप्रेरणा का सम्बन्ध उन कारणों से है जिन्हें शिक्षक या अन्य लोग छात्र या कार्य पर बाहर से आरोपित करते हैं। इस प्रकार कार्य करने से उसे वांछित या निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति होती है। इस प्रकार की अभिप्रेरणा के उदाहरण प्रशंसा, निन्दा, दण्ड, पुरस्कार, प्रतिद्वन्दिता आदि हैं। बाह्य अभिप्रेरणा का सम्बन्ध निम्न प्रकार आवश्यकताओं से होता है। इस प्रकार की अभिप्रेरणा को नकारात्मक अभिप्रेरणा भी कहते हैं।
अभिप्रेरणा का शिक्षण में महत्व
बालकों को अभिप्रेरित करने के लिए आन्तरिक अभिप्रेरणा का उपयोग अच्छा समझा जाता है। इसका कारण यह है कि बाह्य अभिप्रेरणा बालक में कार्य के प्रति अरूचि भी उत्पन्न कर सकती है जिसमें वह कार्य पूर्ण करने के लिए अनुचित विधि का प्रयोग कर सकता है। प्रेसी, रॉबिन्सन तथा होरोक्स के अनुसार “अधिगम विधि के रूप में बाह्य अभिप्रेरणा आन्तरिक अभिप्रेरणा से निम्नकोटि की होती है” फिर भी आन्तरिक अभिप्रेरणा के अभाव की स्थिति में बाह्य अभिप्रेरणा का प्रयोग अपरिहार्य होती है।
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