इसाई धर्म क्या है?
ईसाई धर्म के अनुयायी विश्व में सर्वाधिक हैं और भारत में इसका स्थान तीसरा है। 1991 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या का 2.32 प्रतिशत भाग ईसाई धर्म के अनुयायियों का है। अनुमान है कि विश्व में लगभग आठ अरब लोग ईसाई धर्म के अनुयायी हैं। इस दृष्टि से विश्व का हर तीसरा व्यक्ति ईसाई है। दुनिया के सभी भागों में ईसाई धर्म के मानने वाले हैं, किन्तु यूरोप, अमरीका और आस्ट्रेलिया में इनकी संख्या सर्वाधिक है।
ईसाई धर्म का जन्म लगभग दो हजार वर्ष पूर्व पैलेस्टाइन में हुआ था। इस धर्म के संस्थापक ईसा मसीह थे। इसाई धर्म का सम्पूर्ण उल्लेख हमें बाइबिल में मिलता है। बाइबिल के भी दो भाग हैं—पुरानी बाइबील (ओल्ड टेस्टामेण्ट) तथा नयी बाइबिल (न्यू टेस्टामेण्ट)। पुरानी बाइबिल यहूदी धर्म के पैगाम्बर हजरत दाऊद तथा हजरत मूसा द्वारा लिखी गयी है और नयी बाइबिल में ईसा के उपदेश हैं। यहूदी लोग पुरानी बाइबिल में विश्वास करते हैं, जबकि ईसाई नयी बाइबिल में।
वर्तमान में ईसाई धर्म प्रमुखतः दो भागों में बंटा हुआ है- कैथोलिक एवं प्रोटेस्टेण्ट फिर भी दोनों की आत्मा एक ही है। ईसाई धर्म अपने अनुयायियों को दस आदेशों (Ten Commandments) का पालन करने का निर्देश देता है। ईसाई धर्म हिंसात्मक यज्ञों का विरोधी है। यह दया, प्रेम, समानता एवं भाईचारे के सिद्धान्तों में विश्वास करता है। ईसा ईश्वर की दिव्य शक्ति में विश्वास करने, एकनिष्ठ बने रहने, सबके प्रति दया करने, कष्ट में सहयोग देने एवं मुस्कराते रहने तथा नेक व ईमानदार बनने का उपदेश देते हैं। ईसाई धर्म संन्यास में विश्वास करता है। ईसा कहते हैं, “जिसे अमृत्व की प्राप्ति करनी हो बाल-बच्चे छोड़कर मेरा भक्त होना चाहिए।” ईसाई धर्म यह मानता है कि ईश्वर मानव कल्याण के लिए समय-समय पर पृथ्वी पर आता रहता है। ईसाई धर्म के उपदेश बाइबिल तथा ईश्वर तथा ईश्वर एवं उसकी दिव्य शक्ति में आस्था रखने पर जोर देता है।
ईसा मसीह और उनके सन्देश (Christ and His Message)
ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह थे। उनका जन्म फिलिस्तीन में येरुशलम के निकट एक गांव में हुआ था। इनकी माता का नाम मेरी और पिता का नाम जोसेफ था जो सुधार का काम करते थे। ईसा जन्म से यहूदी धर्म को मानने वाले थे। ईसा के जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है अतः कई व्यक्ति इन्हें एक काल्पनिक व्यक्ति ही मानते हैं। ईसा ने किसी पाठशाला में शिक्षा ग्रहण नहीं की थी और न ही इनका कोई शिक्षक था। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि ईसा कुंवारी मां के पुत्र हैं और मरियम ने उन्हें ईश्वरीय शक्ति से जन्म दिया। था।
ईसा जब 12 वर्ष के थे यहूदियों के त्यौहार ‘पसोवर’ में गए। वहां उन्होंने मेमने कटते देखे जिससे उन्हें गहरा आघात लगा। इस घटना के बाद वे यहूदी नेताओं की बैठक में गए, वहां भी उन्होंने निरर्थक वार्तालाप होते देखा। इन घटनाओं ने ईसा को यहूदी धर्म परिष्कृत करने पर विवश कर दिया। जब वे ध्यान मग्न होकर चिन्तन कर रहे थे, ईश्वर उनके पास आए और कहा, “ज्ञानी व चतुर व्यक्ति मुझे खो चुके हैं, सामान्य जनता मुझे चाहती है पर खोज नहीं पा रही, तुम्हारा कर्तव्य है लोगों के पास जाओ और उनसे मेरा परिचय कराओ।’
30 वर्ष की आयु में जॉन ने उसका बपतिस्मा संस्कार किया और इसके बाद ही वे ‘जीसस क्राइस्ट’ (ईसामसीह) कहलाते लगे। ईसा के समय समाज में अनेक कुरीतियां और अन्धविश्वास प्रचलित थे। उन्होंने निराशा और दरिद्रता के वातावरण से लोगों को मुक्त करने का फैसला किया और प्राचीन यहूदी धर्म के स्थान पर नया धर्म दिया। ईसा ने रोगियों की सेवा की और कई चमत्कार दिखाये। ईसा ने अपने लोगों को कई सन्देश दिये। उन्होंने कहा ईश्वर मनुष्यों का पिता है और वह पिता की तरह ही स्नेह व प्यार देता है। मनुष्यों की गलतियों पर उन्हें दण्ड नहीं देता, वरन् क्षमा कर देता है। ईस्वर का सम्पूर्ण अस्तित्व मानव के विकास और कल्याण के लिए है। ईश्वर पिता से अधिक चाहने वाला और मां से अधिक समर्पित है। उन्होंने कहा-
(1) ईश्वर पिता के समान है, वह मनुष्यों से दूर नहीं, वरन् उनके पास है।
(2) प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह ईश्वर के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करे।
(3) ईश्वर जीवन का सर्वाधिक गहन और अन्तिम अर्थ है।
(4) ईश्वर के प्रति कर्तव्यों का अर्थ है सेवा को जीवन के महानतम लक्ष्य और व्यवसाय के रूप में स्वीकार करना।
ईसाई धर्म की मौलिक विशेषताएं (Basic Characteristics of christianity)
ईसाई धर्म की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं-
(1) एकेश्वरवाद- इस्लम की तरह ईसाई धर्म एकेश्वरवाद में विश्वास करता है। ईश्वर मनुष्यों के कष्टों को दूर करने के लिए अपने पैगम्बर भेजता है या वह स्वयं अपने पुत्रों के माध्यम से इस जगत में आता है। ईश्वर दिव्य शक्ति से परिपूर्ण एक अलौकिक शक्ति है। वह पिता के समान सभी मनुष्यों को पालन-पोषण करता है, उन पर दया करता है और उनके हृदयों को शुद्ध करता है।
(2) ईसा मसीह में विश्वास – ईसाई धर्म मसीह में विश्वास करने पर जोर देता है। ईसा को ईश्वर की क्रियात्मक शक्ति माना जाता है। ईसा ईश्वर के पुत्र एवं दूत हैं जो मानव कल्याण के लिए ईश्वर द्वारा पृथ्वी पर भेजे गये।
(3) आत्मा की पवित्रता- ईसाई धर्म में विश्वास करात है। यह आत्मा ईश्वर का ही रूप एवं शक्ति है। बपतिस्मा नामक संस्कार द्वारा व्यक्ति को पवित्र किया जाता है, उसे पवित्र आत्मा के निकट लाया जाता है। ईसाई धर्म ‘त्रियकवाद’ (Trinity) में विश्वास करता है जिसका अर्थ है ईश्वर, ईसा तथा पवित्र आत्मा पृथक्-पृथक् न होकर एक ही हैं, केवल उनके रूप भिन्न हैं।
(4) चर्च की सत्ता- ईसाई धर्म में चर्च महत्त्वपूर्ण पक्ष । चर्च के माध्यम से ही ईश्वर तक पहुंचा जा सकात है। चर्च ईसा का शरीर है जिसमें पवित्र आत्मा निवास करती है। चर्च में ही ईसाइयों के धार्मिक अनुष्ठान सम्पन्न होते हैं। प्रत्येक ईसाई के लिए चर्च की सदस्यता अनिवार्य है।
(5) धार्मिक अनुष्ठान– ईसाई धर्म में प्रमुख पांच अनुष्ठान– बपतिस्मा, पुष्टिकरण, आत्म निवेदन, पवित्र संचार एवं विवाह आदि माने गये हैं। (6) मूर्ति-पूजा का विरोधी— ईसाई धर्म मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता। वह अलौकिक एवं निराकार ईश्वर में विश्वास करता है। इसलिए ईसाइयों में हिन्दुओं की तरह मूर्ति पूजा नहीं पायी जाती है। इस अर्थ में वह इस्लाम धर्म के नजदीक है।
(7) समानता का भ्रातृत्व — ईसाई धर्म की इस्लाम की तरह समानता एवं इ चारे के सिद्धान्त पर आधारित है। ईसाई धर्म को मानने वाले सभी समान एवं परस्पर भाई हैं, उनमें किसी प्रकार का ऊंच-नीच का भेद नहीं है। यह मानवतावाद में विश्वास करता है और मानव-मात्र की भलाई, कल्याण एवं सेवा पर जोर देता है। ईसा कहते हैं सभी मनुष्य ही परम पिता परमेश्वर की सन्तान हैं, सभी आपस में भाई-भाई हैं तथा समान हैं। दीन-दुखियों की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है।
ईसाई धर्म में प्रमुखतः दो सम्प्रदाय पाये जाते हैं— रोमन कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेन्ट
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