समाजशास्‍त्र / Sociology

‘मानव’ संस्कृति निर्माता के रूप में (Man as a Creator of Culture in Hindi)

'मानव' संस्कृति निर्माता के रूप में
‘मानव’ संस्कृति निर्माता के रूप में

‘मानव’ संस्कृति निर्माता के रूप में (Man as a Creator of Culture)

मानव ही एक ऐसा प्राणी है जिसे संस्कृति का निर्माता कहा जा सकता है क्योंकि इसमें अनोखी शक्तियाँ एवं क्षमताएँ विद्यमान हैं। लेस्ली व्हाइट ने मानव की उन पाँच विशेषताओं का उल्लेख किया है जिसके कारण मानव संस्कृति का निर्माण सम्भव हुआ है। ये विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. सीधे खड़े होने की क्षमता

मानव ही एक ऐसा प्राणी है जो अपने दो पैरों के ऊपर सीधे खड़ा होकर चल सकता है अपने दोनों हाथों से अन्य कार्य करता है जबकि अन्य प्राणी ऐसा नहीं कर पाते हैं और वे चारों पैर अपने शरीर को सम्भालने में लगा देते हैं।

2. हाथों को स्वतन्त्रता पूर्वक घुमाया जाना

मानव के हाथों की संरचना ऐसी होती है कि वह अपने हाथों को चारों ओर आसानी से घुमा सकता है। अंगुलियों के साथ अंगूठे का ऐसा सामन्जस्य है जिससे वह प्रत्येक चीज पकड़ सकता है। अन्य किसी प्राणी के हाथों की संरचना ऐसी नहीं होती है। यही कारण है कि मानव अपने हाथों से अनोखे कार्य करता रहता है।

3. तीक्ष्ण दृष्टि

मानव अपनी आँखों से अवलोकन कार्य कर सकता है तथा वह किसी एक बिन्दु पर टकटकी लगाकर देख सकता है। अपने अवलोकन के आधार पर ही उसने अपने ज्ञान का विकास किया है तथा सामाजिक एवं प्राकृतिक घटनाओं को देखकर अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं।

4. प्रतीकों के निर्माण की क्षमता

मानव द्वारा संस्कृति निर्माण को सम्भव बनाने में उसके द्वारा उपयोग किये जाने वाले उपयोगों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वह भाषा एवं प्रतीकों के माध्यम से विचारों का आदान प्रदान आसानी से कर सकता है प्रतीकों को मानव ही अर्थ प्रदान कर सकता है और उसने भाषा का विकास इसी आधार पर किया है। मानव एवं पशु में यही अन्तर है मानव के पास भाषा है जबकि पशु के पास नहीं। मानव इस भाषा के द्वारा ही संस्कृति का विकास एवं संशोधन कर सकता है।

5. मेधावी मस्तिष्क

मानव की सबसे बड़ी ताकत उसके मेधावी मस्तिष्क की है। मानव अपने मस्तिष्क के कारण ही अनेकों अविष्कारों में सफल हुआ है क्योंकि ऐसा मस्तिष्क किसी अन्य प्राणी में नहीं है डार्विन, किंसले डेविस एवं लिंटन आदि कुछ प्रमुख विद्वानों का मत है कि मानव मस्तिष्क एवं पशु मस्तिष्क में केवल मात्रा का अन्तर है न कि प्रकार का । डार्विन ने तो यहाँ तक कहा है कि मानव और उच्चकोटि के स्तनधारी प्राणियों में कोई अन्तर नहीं है किन्तु उनके इस मत को स्वीकारा नहीं गया क्योंकि यदि केवल मात्रा का अन्तर होता तो पशु कभी न कभी संस्कृति का निर्माण कर सकते थे। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि मानव और पशुओं के मस्तिष्क में मात्रा एवं प्रकार दोनों का ही अन्तर है। इस अन्तर के आधार पर मानव ने संस्कृति का निर्माण किया।

  1. संस्कृति का अर्थ- भौतिक संस्कृति एवं अभौतिक संस्कृति
  2. संस्कृति की विशेषताएँ (Characteristics of Culture in Hindi)

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