सांस्कृतिक संरूपणवाद
सांस्कृतिक संरूपणवाद सिद्धांत के प्रमुख समर्थक राल्फ लिंटन, राबर्ट रेडफील्ड तथा अ रूथ बेनेडिक्ट हैं जिन्होंने सांस्कृतिक समाकलन यानी संगठन को संरूपण के आधार पर समझाने का प्रयत्न किया है इसलिये इसे संरूपणात्मक दृष्टिकोण या संरूपणवाद कहा जाता है। लिन्टन का कहना है कि संस्कृति समाज से सीखे हुये व्यवहारों का एक संरूपण है जिसकेक कारण समाज में सामाजिक व सांस्कृतिक अनुरूपता बनी रहती है। व्यक्ति चूँकि समाज में उसी प्रकार का व्यवहार करते हैं जैसा समाज की संस्कृति से उन्हें प्राप्त होता है। इस प्रकार एक व्यवहार करने के कारण संस्कृति में एक प्रकार की अनुरूपता विकसित होती है जिससे विभिन्न सांस्कृतिक तत्व संगठित रहते हैं। संस्कृति से सीखे हुये व्यवहारों के कारण संस्कृति में विशिष्टता उत्पन्न होती है जिसके कारण एक संस्कृति को दूसरी संस्कृति से अलग किया जात सकता है।
रुथ बेनेडिक्ट का कहना है कि संस्कृति के विभिन्न खण्ड होते हैं। उन बड़े-बड़े खण्डों के भी छोटे-छोटे उपखण्ड होते हैं जो विशिष्ट जीवन शैली से संयोजित होते हैं, जो संयुक्त होकर ही एक विशिष्ट रूप या डिजाइन का निर्माण करते हैं जिसे ही संस्कृति सम्बद्ध स्थिति या स संरूपण कहा जाता है।
राबर्ट रेडफील्ड ने जीवन के ढंग प्रत्यय का प्रयोग कर सांस्कृतिक संगठन की प्रकृति को स्पष्ट किया है। इनका कथन है कि संस्कृति को समझने के लिये जीवन ढंगों का निर्माण जिस प्रकार का होगा उस समाज की संस्कृति व सांस्कृतिक संगठन का स्वरूप भी उसी प्रकार से होगा। उदाहरण के लिये, हिन्दू समाज में संस्कृति के जीवन पक्षों में अध्यात्मवाद, कर्मवाद • पवित्रता, अहिंसा इत्यादि के तत्व होने के कारण हिन्दू सांस्कृतिक संगठन की प्रकृति भी इसी प्रकार निर्मित हुयी तथा जिसके अनुरूप ही हिन्दू समाज की संस्कृति में सांस्कृतिक संगठन देखा जा सकता है।
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