समाज की परिभाषा
समाजशास्त्र में व्यक्तियों के समूह या संकलन को ही समाज नहीं कहा जा सकता, व्यक्तियों में पाए जाने वाले पारस्परिक संबंधों की व्यवस्था को ही समाज कहा जाता है। अन्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि समाज का निर्माण मात्र व्यक्तियों के संकलन से नहीं होता, इसके लिये उनमें पाये जाने वाले सामाजिक संबंधों का होना अनिवार्य है। मैकाइवर एवं पेज ने इस संबंध में उचित ही लिखा है कि समाज सामाजिक संबंधों का जाल है। सामाजिक संबंधों का निर्माण तभी होता है जब एक से अधिक व्यक्ति परस्पर सम्पर्क स्थापित करते हैं तथा एक-दूसरे से अन्तर्क्रिया करते हैं। जैसे परिवार के सदस्यों में स्थायी संबंध पाये जाते हैं जबकि एक डॉक्टर और मरीजों, एक दुकानदार और ग्राहकों, एक बस कन्डक्टर तथा बस में बैठे यात्रियों में अस्थायी संबंध पाये जाते हैं। समाज का निर्माण इन्हीं विविध प्रकार के असंख्य सामाजिक संबंधों के आधार पर होता है।
गिडिग्स के अनुसार “समाज स्वयं एक संघ है, संगठन है औपचारिक संबंधों का एक ऐसा योग है जिसमें सहयोग देने वाले व्यक्ति परस्पर संबंधों द्वारा जुड़े रहते है।”
पारसन्स के अनुसार “समाज को उन मानव संबंधों की पूर्ण जटिलता के रूप में – परिभाषित किया जाता है, जो साधन साध्य संबंधों के रूप में क्रियाओं के करने से उत्पन्न हुये है, चाहे ये यथार्थ हो या प्रतीकात्मक।”
लैपियर के अनुसार – “समाज मनुष्यों के एक समूह का नहीं है वरन् यह ऐसी जटिल अन्तर्क्रियाओं का प्रतिमान है जो मनुष्यों के बीच उत्पन्न होता है।”
रयूटर के अनुसार “समाज एक अमूर्त धारणा है, जोकि एक समूह के सदस्यों के बीच पाये जाने वाले पारस्परिक अर्न्तसंबंधों की जटिलता का बोध कराती है।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि समाज को भूर्त एवं अनु दोनों रूपों में परिभाषित किया है। इसीलिये जी.डी. मिशेल ने उचित ही लिखा है “समाजशास्त्री की शब्दावली में समाज शब्द एक अत्यधिक स्पष्ट एवं सामान्य शब्द है।
समाज एवं संस्कृति में संबंध
प्रत्येक समाज की अपनी एक विशिष्ट संस्कृति होती है। कई बार संस्कृति शब्द का प्रयोग इस रूप में किया जाता है कि उसे समाज से अलग करना कठिन हो जाता है। विस्तृत अर्थों में संस्कृति शब्द का प्रयोग सभी सीखी हुयी आदतों, सामाजिक समूह की सम्पूर्ण जीवन पद्धति अथवा समूह की सामाजिक विरासत के रूप में किया जाता है। इस अर्थ में संस्कृति शब्द समाज को अपने में समाहित करता है। परन्तु समाज तथा संस्कृति दो भिन्न अवधारणाये है। ये वस्तुतः सामाजिक जीवन के दो पहलू है। इन दोनों पहलुओं में भेद करना कठिन है तथा इसीलिये हम सामान्यतः सामाजिक सांस्कृतिक शब्द का प्रयोग इस वास्तविकता को व्यक्त करने के लिये करते हैं।
‘समाज’ एवं संस्कृति में इतना गहरा संबंध है कि कुछ विद्वान इन दोनों शब्दों को एक ही या एक-दूसरे का पूरक मानते हैं क्योंकि बिना समाज के संस्कृति का निर्माण नहीं हो सकता है और बिना सांस्कृतिक मूल्यों, प्रतिमानों, प्रथाओं, परम्पराओं के समाज में रहने वाले व्यक्ति समाजीकृत नहीं हो सकते। हर्षकोविट्ज संस्कृति को मानव निर्मित पर्यावरण मानते हैं। इनका कहना है कि एक समाज का निर्माण लोगों से होता है और लोग जिस प्रकार का व्यवहार करते. है वह उनकी संस्कृति है। वास्तव में हम समाज का अध्ययन उसकी संस्कृति से और संस्कृति का अध्ययन समाज में रहने वाले व्यक्तियों के रहन-सहन एवं जीवन पद्धति से कर सकते हैं।
समाज एवं संस्कृति दोनों ही समाजशास्त्र की दो भिन्न अवधारणाये हैं। एक समाज का अर्थ व्यक्तियों के ऐसे समूह से है जो एक ही संस्कृति व भौगोलिक क्षेत्र में सम्मिलित होते हैं। अनेक समाजों में संस्कृति के कुछ अंग सामान्य हो सकते हैं। उदाहरणार्थ अमेरिका और इंग्लैण्ड अथवा भारत और नेपाल में अनेक सांस्कृतिक तत्व एक समान है, परन्तु वे भिन्न समाज है। संस्कृति का अर्थ वे मूल्य, ज्ञान, विश्वास व व्यवहार हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होते रहते हैं तथा जिनसे उस समाज को पहचाना जाता है। संस्कृति में सम्पूर्ण मानव निर्मित पर्यावरण आ जाता है जिसे सामाजिक जीवन की धरोहर के रूप में युगों तक सुरक्षित रखा जाता है और निरन्तर उसे अधिक सम्पन्न बनाने का प्रयत्न किया जाता है।
स्मेलसर ने संस्कृति को सामाजिक जीवन को जोड़ने वाला सीमेंट बताया है इससे ही किसी समूह या समाज के सदस्यों में परस्पर जुड़े होने की भावना विकसित होती है। इन दोनों में घनिष्ठ संबंधों के कारण ही कुछ विद्वान इन्हें एक-दूसरे की पूरक अवधारणायें मानते हैं क्योंकि बिना समाज के संस्कृति का निर्माण नहीं हो सकता और बिना सांस्कृतिक मूल्यों, आदर्शों, प्रथाओं परम्पराओं आदि के समाज में रहने वाले व्यक्ति समाजीकृत नहीं हो सकते हैं। हर्षकोविट्स जैसे विद्वान संस्कृति को मानव निर्मित पर्यावरण मानते हैं तथा इस बात पर बल देते हैं कि एक समाज का निर्माण व्यक्तियों से होता है और व्यक्ति जिस प्रकार का व्यवहार करते है। वह उनकी संस्कृति है। वस्तुतः समाज का अध्ययन हम उसकी संस्कृति से और संस्कृति का अध्ययन समाज में रहने वाले व्यक्तियों के रहन-सहन व जीवन पद्धति से कर सकते है।
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