सांस्कृतिक क्षेत्रों के भौतिक लक्षणों में सहभागिता
मोहनजोदड़ो की सभ्यता सांस्कृतिक क्षेत्र के निम्नलिखित उदाहरण प्रस्तुत करती है-
1. कला (भवन निर्माण कला, मूर्ति कला एवं स्थापत्य कला)
कला की उत्पत्ति का स्रोत सौन्दर्य की मौलिक प्रेरणा है। प्रत्येक सांस्कृतिक क्षेत्र की कला में अन्य क्षेत्रों की तुलना में विभिन्नता पायी जाती है लेकिन दो सांस्कृतिक क्षेत्रों की कला में पारस्परिकता एवं आदान-प्रदान भी देखने को मिलता है।
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा से प्राप्त अवशेषों से निम्न सांस्कृतिक लक्षणों के वहाँ पाये जाने की जानकारी मिलती है –
(i) वहाँ की स्थापत्य कला काफी विकसित थी।
(ii) उन्हें मूर्ति कला परंपरागत हासिल थी।
(iii) वहाँ के लोग बर्तन व औजार निर्माण की कला में भी दक्ष थे।
(iv) वे लोग आभूषण बनाने की कला में भी निपुण थे।
2. भोजन सम्बन्धी नियम-निषेध
प्रत्येक सांस्कृतिक क्षेत्रों के भोजन सम्बन्धी नियमों में भी विभिन्नता पायी जाती है। भारतीय समाज में दो प्रकार का भोजन प्रचलित है शाकाहारी एवं माँसाहारी। यहाँ ब्राह्मण व जैन मांसाहारी भोजन नहीं करते हैं जबकि दक्षिण भारत में उक्त दोनों प्रकार का भोजन प्रचलित है।
3. सांस्कृतिक क्षेत्र एवं पोशाक
विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्रों की पोशाकों में भी अन्तर पाया जाता है, किन्तु यह अन्तर धीरे-धीरे कम होता जा रहा है फिर भी उत्तरी भारत और दक्षिणी भारत की पोशाकों में काफी अन्तर है। कहीं विशेष उत्सवों या धार्मिक अनुष्ठानों के अवसरपरक बिना सिले हुए तो कहीं पर सिले हुए वस्त्र पहने जाते हैं।
4. स्वास्थ्य तथा बीमारी सम्बन्धी धारणाएँ
विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्रों में स्वास्थ्य एवं बीमारी सम्बन्धी विभिन्नताएँ पायी जाती हैं। कुछ क्षेत्रों में तली वस्तुओं, नमक एवं वस्त्र का प्रयोग बीमारी के डर से कम किया जाता है जबकि अन्य क्षेत्रों में इसका प्रयोग सामान्य बात है।
पर्यावरण प्रदूषण व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करता है जो लोग गन्दी बस्तियों में रहते हैं या प्रदूषित स्थानों पर कार्य करते हैं तो उनका स्वास्थ्य अधिकांश खराब होता है जबकि अच्छे स्थानों पर रहने एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों का स्वास्थ्य उत्तम रहता है।
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