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अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), उद्देश्य एवं उपयोग कार्य, महत्व

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ)
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ)

अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ)

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) – अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना ब्रेटन वुड्स समझौते (1944) के आधार पर 27 अप्रैल 1945 को की गयी और 1 मार्च, 1947 से इसने कार्य करना आरम्भ किया। इसका मुख्यालय वाशिंगटन (।) में है। भारत प्ड के संस्थापक सदस्यों में से एक है। मार्च 1947 को इसकी संख्या 40 थी जो बढ़कर 183 हो गयी।

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के उद्देश्य एवं उपयोग (Objectives) —

IMF के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(i) अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक समस्याओं का समाधान तथा अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग को प्रोत्साहित करना।

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का विस्तार एवं संतुलित विकास करना।

(iii) सदस्य राष्ट्रों की मुद्राओं की विनिमय दरों में स्थिरता बनाये रखना।

(iv) चालू खाते के असन्तुलन की समस्या के समाधान के लिए बहुपक्षीय भुगतानों की व्यवस्था करना जिससे सदस्य राष्ट्रों द्वारा लगाये जाने वाले विनिमय प्रतिबन्धों को कम किया जा सके।

(v) सदस्य राष्ट्र को प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन की स्थिति में आर्थिक सहायता उपलब्ध कराना।

(vi) उपयुक्त उपायों के माध्यम से सदस्य राष्ट्रों से भुगतान सन्तुलन सम्बन्धी असन्तुलन की मात्रा व अवधि को कम करना।

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अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्य

(1) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष सदस्य राष्ट्र के भुगतान सन्तुलन की प्रतिकूलता को दूर करने तथा कम करने के लिए उन्हें विदेशी मुद्रा बेचकर या उधार देकर सहायता प्रदान करता है।

(2) मुद्रा कोष सदस्य राष्ट्रों को तकनीकी सहायता भी प्रदान करता है। इसके लिए मुद्रा कोष अपने विशेषज्ञों को सदस्य राष्ट्रों में भेजता है। मुद्रा कोष बाहरी विशेषज्ञों की सेवाएं उपलब्ध करा सकता है, जो आर्थिक परामर्शदाताओं के रूप में कार्य करता है।

(3) मुद्रा कोष द्वारा सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की जाती है। ऐसा प्रशिक्षण विदेशी भुगतान, आर्थिक विकास, वित्त प्रबन्ध तथा समंकों के संकलन एवं विश्लेषण आदि के सम्बन्ध में होता है।

(4) मुद्रा कोष के अधिकारी विकासशील सदस्य राष्ट्रों को आर्थिक तथा मौद्रिक विषयों पर आवश्यक परामर्श भी देते हैं।

(5) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष कुछ पत्र-पत्रिकाओं तथा आर्थिक रिपोर्ट का प्रकाशन भी करता है जिनमें विद्यार्थी, शिक्षक, शोधकर्ता, वित्त विशेषज्ञ आदि के लिए उपयोगी सूचना व नवीनतम जानकारी का समावेश होता है। 

(6) मुद्रा कोष उन सदस्य राष्ट्रों को जो निर्यात पर अधिक निर्भर रहते हैं, उन्हें निर्यात से यदि हानि होती है तो उनकी क्षतिपूर्ति करता है।

(7) सदस्य राष्ट्रों को संकटकालीन स्थिति में मुद्रा कोष अल्पकालीन सहायता प्रदान करता है, जैसे भारत को 1983 में 5-6 अरब एस० डी० आर० की सहायता दी गयी।

(8) मुद्रा कोष एस० डी० आर० एवं अन्य राष्ट्रों की मुद्राओं में ऋण देता है। जिन राष्ट्र का भुगतान सन्तुलन एवं रिजर्व की स्थिति अनुकूल होती है ऐसे राष्ट्रों को कार्यालय बजट में सम्मिलित किया जाता है।

(9) अल्प आय वाले सदस्य देशों को रियायती दर पर अतिरिक्त भुगतान सन्तुलन सुविधा प्रदान करने की दृष्टि से मुद्रा कोष ने संरचनात्मक सुविधा स्थापित की है।

(10) यह विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय संस्थाओं के विकास में सहायता प्रदान करता है।

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अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का महत्व

अपनी स्थापना काल से लेकर मुद्रा कोष ने विभिन्न क्षेत्रों में अपने कार्यों में उल्लेखनीय प्रगति की है जिसे हम उसकी सफलताएँ अथवा उपलब्धियाँ कह सकते हैं। इसका महत्व निम्नलिखित है-

1. सदस्य संख्या में वृद्धि- मुद्रा कोष की सदस्य संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। मार्च, 1947 के मुद्रा कोष के केवल 40 सदस्य थे। यह संख्या वर्तमान में बढ़कर 187 हो गयी है।

2. अन्तर्राष्ट्रीय तरलता में वृद्धि- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में होने वाली वृद्धि के अनुरूप मुद्रा कोष अन्तर्राष्ट्रीय तरलता में वृद्धि करने में सफल हुआ है। फण्ड ने विशेष आहरण अधिकार के रूप में नई तरल मुद्रा का निर्माण किया है। इसके फलस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय तरलता में काफी वृद्धि हुई है। फण्ड, विभिन्न सदस्य देशों को विदेशी मुद्रा में ऋण भी देता है। जून, 2007 में विभिन्न देशों पर I.M.F. द्वारा दिये गये ऋणों की बकाया राशि 28 बिलियन SDRs थी।

3. अल्पकालीन अन्तर्राष्ट्रीय साख की व्यवस्था- अन्तर्राष्ट्रीय तरलता में वृद्धि के लिए मुद्रा कोष सदस्य राष्ट्रों के लिए अल्पकालीन साख की व्यवस्था करता है। सदस्य को अल्पकालीन सााख की निम्नलिखित सुविधाएँ उपलब्ध हैं-

(i) आकस्मिक एवं विस्तृत व्यवस्थाएँ- इस प्रकार की सहायता अल्पविकसित एवं विकासशील राष्ट्रों के प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन के उपचार हेतु प्रदान की जाती है। यह व्यवस्था सन् 1991-92 से प्रभाव में आयी जिसके तहत 21 राष्ट्रों को साख सुविधा उपलब्ध करायी गयी जिसमें 5.6 बिलियन SDR की राशि सम्मिलित थी।

(ii) विशेष सुविधाएँ- विशेष सुविधाओं में क्षतिपूरक एवं आकस्मिक वित्तीय सुविधा और प्रतिरोधक स्टॉक वित्तीय सुविधा शामिल है जो सन् 1963 से आरम्भ की गयी। इसमें विकासशील राष्ट्रों को आयातों की बढ़ती कीमतों की क्षतिपूर्ति, अतिरिक्त वित्तीय सुविधा, भुगतान सन्तुलन के समायोजन हेतु प्रदान की जाती है।

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(iii) संरचनात्मक समायोजन सुविधा एवं व्यापक संरचनात्मक सुविधा- भुगतान सन्तुलन में संरचनात्मक सुधारों के लिए अति निम्न आय वाले राष्ट्रों को यह सुविधा विशेष रियायती दरों पर प्रदान की जाती है।

4. विदेशी भुगतान की बहुमुखी व्यवस्था – मुद्रा कोष की स्थापना के समय लगभग सभी देशों में विदेशी विनिमय सम्बन्धी नियन्त्रण लगे हुए थे। विदेशी व्यपार पर भी अनेक प्रतिबन्ध थे। मुद्रा कोष इन्हें कम करने तथा विदेशी भुगतान की बहुमुखी व्यवस्था स्थापित करने में सफल हुआ।

5. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि- मुद्रा कोष को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का विस्तार करने तथा इसे बाधाहीन बनाने में काफी सफलता मिली है। मुद्रा कोष ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सम्बन्धी भुगतान को सरल बनाया है। असन्तुलित व्यापार वाले देशों की मदद कर उनके व्यापार को बढ़ाने में सहायता दी है। इसका परिणाम यह हुआ है कि संसार के निर्यातों का मूल्य जो 1948 में 53 अरब डॉलर था, अब बढ़कर 2,000 अरब डॉलर से भी अधिक हो गया है।

6. अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग- मुद्रा कोष का एक प्रमुख उद्देश्य एक ऐसा मंच प्रस्तुत करना था जहाँ संसार के अधिकतर देश परस्पर सहयोग द्वारा मौद्रिक समस्याओं का समाधान कर सकें। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष इस उद्देश्य की प्राप्ति में सफल हुआ है।

7. कोष तथा तकनीकी सहायता- वित्तीय सहायता के अतिरिक्त कोष अपने सदस्यों को तकनीकी सहायता भी प्रदान करता है। कोष सदस्य देशों की विशिष्ट समस्याओं के समाधान एवं कार्यक्रमों को सुचारू रूप से कार्यान्वित करने हेतु अपने अधिकारों को सम्बन्धित देशों में भेजता है। उपर्युक्त कार्यों के संचालन हेतु कोष ने दो विभागों- केन्द्रीय बैंक विभाग तथा राजकोषीय विभाग की भी स्थापना की है।

8. प्रशिक्षण प्रणाली- कोष 1951 से सदस्य राष्ट्रों के उच्चाधिकारियों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय भुगतान, आर्थिक विकास, वित्त व्यवस्था आदि से सम्बन्धित क्षेत्रों के लिए प्रशिक्षण की सुविधाएँ उपलब्ध कराता है। प्रशिक्षण सम्बन्धी क्रियाओं का विस्तार करने के लिए कोष ने 1964 में एक तकनीकी प्रशिक्षण संस्थान स्थापित किया है।

प्रशिक्षण संस्थान द्वारा विदेशी प्रशिक्षण गतिविधियों के लिए दिये जाने वाले प्रशिक्षण कार्य को विदेशी प्रशिक्षण विभाग को हस्तान्तरित कर दिया गया है।

9. अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों से सहयोग- कोष विश्व के समान उद्देश्य तथा रुचि के लिए स्थापित अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों से सम्पर्क रखता है तथा कोष के अधिकारी उनकी सभाओं में भाग लेते हैं। जो ऐसे विशिष्ट अन्तर्राष्ट्रीय संगठन हैं, उनके नाम हैं- विश्व व्यापार संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय निपटारा बैंक, विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ, अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम, संयुक्त राष्ट्र संघ, अंकटाड आदि ।

10. विदेशी विनिमय नियन्त्रण सम्बन्धी परामर्श – कोष सदस्य राष्ट्रों को जिनकी स्थिति बहुत खराब होती है, विदेशी विनिमय नियन्त्रण सम्बन्धी परामर्श देता है और इस प्रकार वे राष्ट्र अपनी वित्तीय नीतियों में आवश्यक सुधार कर लेते हैं।

11. प्रतिस्पर्द्धात्मक मुद्रा अवमूल्यन पर रोक- मुद्रा कोष की स्थपना के कारण प्रतिस्पर्द्धातमक मुद्रा अवमूल्यन पर रोक लग गयी क्योंकि कोई भी सदस्य देश कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर मुद्रा कोष की अनुमति लिये बिना अब अपनी मुद्रा का अवमूल्यन नहीं कर सकता।

12. अन्य संस्थानों से सम्पर्क- यह कोष संयुक्त राष्ट संघ द्वारा स्थापित अन्य वित्तीय संस्थाओं विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम, विकास संघ, सकटकालीन कोष, यूनीसेफ, इकाफे, अंकटाड आदि से सम्पर्क रखता है जिससे विभिन्न संस्थाओं द्वारा देशों में चालू किये गये कार्यक्रमों को पूरा करने में सहायता मिलती है और इस प्रकार सदस्य देश लाभान्वित होते हैं।

13. विकासशील देशों को विशेष सहायता- मुद्रा कोष ने विकासशील देशों को उदारतापूर्वक आर्थिक सहायता दी है, ताकि उनके भुगतान सन्तुलन में सुधार हो सके एवं वे अपने देश में मौद्रिक स्थिरता रख सकें।

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