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भारतीय अर्थव्यवस्था में विश्व बैंक का महत्व | विश्व बैंक का आलोचनात्मक महत्व

भारतीय अर्थव्यवस्था में विश्व बैंक का महत्व
भारतीय अर्थव्यवस्था में विश्व बैंक का महत्व

भारतीय अर्थव्यवस्था में विश्व बैंक का महत्व | विश्व बैंक का आलोचनात्मक महत्व

भारतीय अर्थव्यवस्था में विश्व बैंक का महत्व- भारतीय अर्थव्यवस्था में विश्व बैंक शीर्षकों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है, जो इस प्रकार हैं के महत्व को निम्नलिखित शीर्षकों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है, जो इस प्रकार हैं-

(1) वित्तीय सहायता- भारत को अपनी विकासात्मक योजना के लिए विश्व बैंक से काफी ऋण प्राप्त हुए हैं। सबसे पहले 1949 में 340 लाख डॉलर का ऋण भारतीय रेलवे को प्राप्त हुआ था। मार्च 2006 तक भारत ने इस बैंक से 65.8 बिलियन डॉलर के ऋण लिये हैं। भारत विश्व बैंक का सबसे बड़ा ऋणी है। विश्व बैंक के कुल ऋणों का भारत का भाग 15% रहा है।

(2) भारत सहायता क्लब- विश्व बैंक ने भारत को दूसरी एवं तीसरी योजना में आर्थिक सहायता देने के उद्देश्य से 1958 से भारत सहायता क्लब की स्थापना की जिसमें विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ के अतिरिक्त दस राष्ट्र हैं ये राष्ट्र हैं- संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, कनाडा, जापान, आस्ट्रिया, बेल्जियम, इटली और नीदरलैण्ड। समय-समय पर क्लब की बैठक होती है जिसमें भारत को सहायता देने पर विचार किया जाता है। अब भारत सहायता क्लब का नाम बदलकर भारत विकास मंच हो गया है।

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(3) तकनीकी सहायता- वित्तीय सहायता के अतिरिक्त विश्व बैंक ने भारत को (अ) तकनीकी परामर्श, (ब) निरीक्षण व दल विशेषज्ञों की सेवाएँ तथा (स) प्रशिक्षण की व्यवस्था से लाभांवित किया है।

(4) विदेशी विनिमय के संकट में सहायता- भारत के सामने अभी तक जब कभी विदेशी विनिमय का संकट आया, विश्व बैंक ने आशातीत सहायता की। उदाहरणार्थ, सन् 1958 में जब विदेशी विनिमय का संकट उत्पन्न हुआ था तो विश्व बैंक ने 100 मिलियन डॉलर का भारत को दिया था।

(5) मानवीय विकास परियोजाएँ- विश्व बैंक भारत को शिक्षा व स्वास्थ्य परियोजनाओं में सहायता दे रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में सर्व शिक्षा अभियान’ व पेशेवर शिक्षा में विश्व बैंक भारत को सहायता दे रहा है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुछ बीमारियाँ जैसे- टी०बी०, एड्स आदि के उन्मूलन में विश्व बैंक भारत को सहायता दे रहा है।

(6) बहुराष्ट्रीय निवेश गारण्टी एजेन्सी- इसकी स्थापना 1988 में की गई। इसका उद्देश्य विकासशील देशों में निजी क्षेत्र के विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए जोखिम के विरुद्ध गारण्टी देना है। भारत 1992 में इसका सदस्य बना है।

(7) सामान्य ऋणों की सुविधा- भारत ने विश्व बैंक से सामान्य ऋण देने की प्रार्थना की थी जिसका प्रयोग भारत अपनी इच्छानुसार कर सके। हर्ष की बात यह है कि यह प्रार्थना विश्व बैंक द्वारा स्वीकृत हो गयी है।

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(8) जनसंख्या नियन्त्रण सहायता- विश्व बैंक ने भारत के जनसंख्या नियन्त्रण प्रोग्राम को प्रभावपूर्ण ढंग से लागू करने तथा शहरी विकास के लिए लगभग 495 करोड़ डॉलर के ऋण दिये हैं।

(9) गैर-सरकारी संगठनों की सहायता- विश्व बैंक द्वारा जनकल्याण के कार्यों से सम्बन्धित कई गैर-सरकारी संगठनों को भी वित्तीय सहायता दी गयी है। इनमें से मुख्य कुछ . योजनाएँ हैं- (1) राष्ट्रीय कोढ़ निवारण, (2) आधारभूत शिक्षा परियोजना, (3) बाल विकास सेवा परियोजना आदि ।

(10) विश्व बैंक की सहायक संस्थाओं की सदस्यता से लाभ- विश्व बैंक का सदस्य होने के कारण भारत को उसकी निम्नलिखित सहायक संस्थाओं का सदस्य बनाने का भी लाभ प्राप्त हुआ है- (1) अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम, (2) अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ, (3) बहुराष्ट्रीय विनियोग गारण्टी एजेन्सी ।

(11) पाकिस्तान के साथ विवाद मध्यस्थता- बैंक ने भारत और पाकिस्तान के बीच नहरी पानी विवाद सुलझाने में महत्वपूर्ण कार्य किया है जिसके फलस्वरूप 1960 में बहुत में पुराना नहर पानी विवाद सुलझ गया।

आलोचनाएँ

भारत को जो भी ऋण विश्व बैंक से मिले हैं, उनके सम्बन्ध में निम्न आलोचनाएँ की जाती हैं-

(1) निश्चित उद्देश्य- बैंक के ऋण एक निश्चित उद्देश्य को पूरा करने के लिए ही दिये जाते हैं, जिससे उनका लाभ नहीं उठाया जा सकता है, लेकिन अब आशा है कि भारत को भी सामान्य ऋण मिलने लगेंगे।

(2) ब्याज की दर अधिक हैं- बैंक ने भारतवर्ष के विभिन्न ऋणों पर 2.5 प्रतिशत से 11.6% तक ब्याज की दर वसूल की है भारत जैसे अविकसित देश के लिए बहुत अधिक है।

(3) कम ऋण- यद्यपि अन्य देशों की तुलना में भारत को सबसे अधिक ऋण मिला तथापि उसकी औद्योगिक एवं विकास योजनाओं की आवश्यकता को देखते हुए यह बहुत कम है, लेकिन कुछ लोगों का मत है कि हमें इन बैंकों पर निर्भर न रहकर अपने देश से व्यक्तिगत पूँजी निकालने के साधनों की तलाश करनी चाहिए।

(4) अन्य आलोचनाएँ- (1) विश्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्र के स्थान पर निजी क्षेत्र के विकास को अधिक महत्व दिया है। (2) विश्व बैंक की सलाह पर ही 1966 तथा 1991 भारती रुपये का अवमूल्यन किया गया है। (3) भारत की विश्व बैंक पर निर्भरता बढ़ती गयी है। इसके फलस्वरूप भारत को अपनी आर्थिक नीतियाँ विश्व बैंक के अनुसार ही बनानी पड़ती है। इसका देश की आर्थिक स्वतन्त्रता पर बुरा प्रभाव पड़ा है। (4) सन् 1991 में घोषित सुधारों लिए विश्व बैंक काफी सीमा तक जिम्मेदार है, परन्तु आलोचकों के अनुसार इन सुधारों का लाभ केवल बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को ही होगा। देश की निर्धन जनता को इनसे कोई लाभ नहीं होगा।

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