वाणिज्य / Commerce

सामान्य अधिनियम व्यवस्था (जी०एस०पी०) | सामान्य अधिनियम व्यवस्था के उद्देश्य | सामान्य अधिनियम व्यवस्था की सीमायें

सामान्य अधिनियम व्यवस्था (जी०एस०पी०) से क्या आशय है?

सामान्य अधिनियम व्यवस्था (Generalized system of Preference ) – इस व्यवस्था की शुरुआत अंकटाड के द्वितीय सम्मेलन से हुई। इस व्यवस्था के अन्तर्गत औद्योगिक देशों ने विकासशील देशों के निर्यात पर आयात शुल्क नहीं लगाना स्वीकार किया जबकि अन्य औद्योगिक देशों के इन्हीं निर्यातों पर आयात शुल्क बना रहेगा।

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सामान्य अधिनियम व्यवस्था (जी०एस०पी०) के उद्देश्य

जी० एस० पी० के प्रमुख निर्धारित उद्देश्य निम्न थे-

(1) अर्द्धविकसित देशों के निर्यात से होने वाली आय में वृद्धि करना।

(2) अर्द्धविकसित देशों के औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करना ।

(3) इनके आर्थिक विकास की गति को तीव्र करना।

जी० एस० पी० योजना क्रियान्वित करने वाले यूरोपीय आर्थिक समुदाय के जापान एवं नार्वे  प्रथम देश थे। यह व्यवस्था इन्होंने 1971 में अपनायी। इसे 1972 में लागू करने वाले देश थे-स्वीडन, डेनमार्क, फिनलैण्ड, न्यूजीलैण्ड, स्विट्जरलैण्ड और आस्ट्रिया । इस व्यवस्था को 1974 में कनाडा तथा आस्ट्रेलिया ने अपनाया तथा 1976 में अमेरिका ने अपनाया। जब 1980 में इस योजना की समीक्षा करने पर पता चला कि यह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रही है तो 1981 में इसे अगले 10 वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया।

बहुत से विकसित देश G.S.P. योजना के अन्तर्गत कई वस्तुओं को शुल्क रहित विकासशील देशों से स्वीकार करते हैं। जापान एवं स्विट्जरलैण्ड अर्द्ध-विकसित देशों से विभिन्न वस्तुओं के लिए परम मित्र राष्ट्र की धारा के अन्तर्गत 5% से कम विभिन्न दर वाले शुल्क रहित व्यवहार की अनुमति देते हैं। अमेरिका, नार्वे, स्वीडन, फिनलैण्ड G.S.P. योजनाओं के अन्तर्गत पूर्णत: शुल्क रहित वस्तुओं को स्वीकारते हैं।

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सामान्य अधिनियम व्यवस्था की सीमायें

G.S.P. की प्रमुख सीमायें निम्न हैं-

(1) जी० एस० पी० छूटों के लिए कोई दीर्घकालीन गारण्टी नहीं है जिसे थोड़ी सी सूचना पर हटाया या परिवर्तित किया जा सकता है।

(2) अनेक वस्तुयें G.S.P. में सम्मिलित होने के बाद भी कुछ वस्तुयें जैसे- कपड़ा, चमड़ा, चमड़े की वस्तुयें, स्टील आदि विकसित देशों द्वारा वर्जित हैं। ये सभी वे वस्तुयें हैं जिनमें विकासशील देशों ने विशिष्टीकरण प्राप्त किया है।

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(3) इस योजना के विस्तार का क्षेत्र सीमित है क्योंकि अर्द्धविकसित देशों के उत्पादनों का सामना करने के लिए विश्व बाजार में कठोर प्रतिस्पर्धा मौजूद है।

(4) अर्द्ध-विकसित देशों में भी G.S.P. के लाभ अधिक उन्नत विकासशील कुछ देशों तक ही सीमित रहे हैं।

(5) अनेक विकसित राष्ट्रों ने अपनी-अपनी योजनाएं तैयार की हैं जो अधिमानों पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध लगाते हैं। कुछ ऐसे अर्द्ध-विकसित देशों को अधिमानी तटकर व्यवहार देते हैं जो ऐच्छिक निर्यात प्रतिबन्ध का पालन करते हैं।

(6) G.S.P. के अन्तर्गत कृषि तथा मत्स्य क्षेत्र के उत्पादों को सम्मिलित नहीं किया गया है। कपड़े को अमेरिका तथा जापान ने G.S.P. से बाहर कर रखा है।

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