मुद्रा का अधिमूल्यन-Overvaluation of Money in Hindi
मुद्रा के अधिमूल्यन का अर्थ है कि अपने देश की मुद्रा के मूल्य को उसके वास्तविक मूल्य से अधिक मूल्य पर निर्धारित करना है। दूसरे शब्दों में, जब कोई देश अपने देश की मुद्रा का मूल्य, मुद्रा बाजार के सामान्य मूल्य से अधिक मूल्यांकित करता है तो उसे मुद्रा का अधिमूल्यन कहा जाता है। प्रत्येक देश की मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा की मात्रा में मुद्रा बाजार में निश्चित कर दिया जाता है और इसी दर से विदेशी विनिमय का कार्य किया जाता है। अर्थात् यदि किसी देश को विदेशों में भुगतान करना है तो मुद्रा बाजार में उस देश की मुद्रा की जो दर निश्चित होती है उसी के आधार पर भुगतान करना होता है परन्तु कभी-कभी कुछ विशेष परिस्थितियों में एक देश अपने देश की मुद्रा का मूल्य उस निश्चित दर से अधिक कर देता है और इसी को मुद्रा का अधिमूल्यन कहते हैं।
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परिस्थितियाँ, जब अधिमूल्यन उचित है-
(1) जब देश में व्यापारिक लेन-देनों में भयावह असन्तुलन पैदा हो गया हो तो मुद्रा के अधिमूल्यन की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में मुद्रा की माँग की अपेक्षा मुद्रा की पूर्ति अधिक रहती है और मुद्रा का मूल्य बाजार में कम हो जाता है ऐसी स्थिति में मुद्रा के मूल्य को सामान्य से अधिक कर इस स्थिति पर नियन्त्रण किया जा सकता है।
(2) बुद्ध काल अथवा युद्धकाल की समाप्ति के पश्चात् जब देश को अधिक मात्रा में विदेशी वस्तुओं की आवश्यकता होती है तब भी मुद्रा के अधिमूल्यन को उचित ठहराया जा सकता है। इन परिस्थितियों में यदि मुद्रा का मूल्य कम रहता है तो आयातित सामग्री का मूल्य बहुत अधिक चुकाना होगा। परिणामस्वरूप आयात महंगे होंगे परन्तु यदि इन परिस्थिति में मुद्रा के मूल्य में अधिमूल्यन कर दिया जाये तो विदेशी आयात सस्तें होंगे और कम भुगतान में अधिक आयात होगा। अतः जब कोई देश युद्ध के उपरान्त अधिक विदेशी आयात करने की स्थिति से सामना करता है तो उसे अपने देश की मुद्रा का अधिमूल्यन करने की आवश्यकता होती है।
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(3) मुद्रा का अधिमूल्यन उस स्थिति में भी जायज ठहराया जा सकता है जब देश में मुद्रा प्रसार की स्थिति उत्पन्न हो गयी हो। जब देश में मुद्रा प्रसार की स्थिति होती है तो देश की मुद्रा का मूल्य कम हो जाता है। चूँकि विदेशी व्यापार देश की आर्थिक स्थिति के लिए अति आवश्यक भूमिका निभाता है अतः मुद्रा के मूल्य में गिरावट के कारण विदेशी आयात के लिए हमें अधिक मूल्य चुकाना होता है। इस स्थिति से निपटने के लिए मुद्रा का अधिमूल्यन आवश्यक हो जाता है। यदि इन परिस्थितियों में मुद्रा का अधिमूल्यन न किया जाये तो आयात महंगे और निर्यात सस्ते हो जाने की सम्भावना बनी रहती है ।
(4) जब किसी देश को विदेशी ऋणों का भुगतान बड़ी मात्रा में करना हो तो भी देश की मुद्रा का अधिमूल्यन उचित होता है। जब देश की मुद्रा का मूल्य कम होता है तो हमें विदेशी ऋणों के भुगतान के रूप में अधिक मूल्य देना होता है। अतः मुद्रा का अधिमूल्यन कर इस हानि से बचा जा सकता है।
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