भारत में शक्ति एवं ऊर्जा के प्रमुख स्रोतों पर प्रकाश डालिये।
भारत में शक्ति और ऊर्जा के स्रोत (Source of power and energy in India)
भारत एक विशाल देश है। यहां अनेक प्रकार के ऊर्जा के साधन पाये जाते हैं। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इन साधनों को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है जो निम्नलिखित हैं-
- परम्परागत ऊर्जा संसाधन (Traditional Energy Resources)
- गैर परम्परागत ऊर्जा संसाधन (Non-Traditional Energy Resources)
(1) परम्परागत ऊर्जा संसाधन (Traditional Energy Resources)
ऊर्जा के परम्परागत साधन निम्नलिखित हैं-
1. कोयला, 2. खनिज तेल या पेट्रोलियम, 3. विद्युत, 4. परमाणु शक्ति |
(1) कोयला- कोयला ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत रहा है। देश में ऊर्जा की अधिकांश आवश्यकता कोयले से बिजली तैयार करके पूरी की जाती है। ऊर्जा नीति पर सुझाव देने के लिए बनाये गये कार्यकारी दल के रिपोर्ट 1980 के अनुसार देश में उपलब्ध कोयले के भण्डार को सन् 2000 के बाद लगभग 90 वर्ष तक चलने की संभावना है तथा कोयले का वार्षिक उत्पादन 40 करोड़ टन होने का अनुमान लगाया गया है। इसे देखते हुए कोयले के भण्डारों के अधिकतम उपयोग के लिए खनन के कार्य को वैज्ञानिक ढंग तथा इसके संरक्षण के लिए समुचित विकास की आवश्यकता है। उपभोक्ता क्षेत्र में बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए कोयले के उत्पादन को बढ़ाया जा रहा है। वर्तमान में कोयला का उत्पादन पूर्णतया सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत होता है। कोयले का रिजर्व 8570 करोड़ टन है। इसमें कोकिंग कोयला केवल 20% है और प्राथमिक कोकिंग कोयला जिसका प्रयोग धातु शोधन कार्यों के लिए किया जा सकता है वह कुल रिजर्व का 6% और कोकिंग कोयला का 27% है। मध्यम श्रेणी का कोयला 73% है।
(2) खनिज तेल या पेट्रोलियम- ऊर्जा एवं शक्ति के साधन के रूप में पेट्रोलियम का प्रयोग आर्थिक नियोजन के वर्षों में बढ़ा है। सन् 1950-51 में कुल तेल का उत्पादन 2.5 लाख टन था और उपयोग 31 लाख टन था। वर्तमान में घरेलू उपयोग को पूरा करने के लिए तेल का आयात किया जाता रहा है। वर्तमान स्तर पर तेल के उत्पादन में 75% तक आत्मनिर्भरता प्राप्त की जा सकी है। खनिज तेलों की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए घरेलू उत्पादन में वृद्धि तथा उपयोग में कमी किया जाना आवश्यक है। तेल के आयात पर एक बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा व्यय करनी होती है। देश में विदेशी विनिमय का संकट भी है। पेट्रोलियम का आयात व्यय कम करने के लिए उत्पादन में वृद्धि किये जाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
(3) विद्युत ऊर्जा का सबसे सुविधाजनक और उपयोगी स्रोत विद्युत है। उद्योग और कृषि दोनों क्षेत्र में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। बिजली के उपयोग की मात्रा देश में उपलब्धता और विकास के दर की सूचक है। सन् 1989-90 के अन्त में कुल उत्पादन का 55.6% भाग उद्योग, 18.7% कृषि, 13.3% घरेलू उपयोग, 6.1% वाणिज्यिक, 2.5% रेलवे और 3.2% अन्य उपयोगों में प्रयोग किया गया था। विद्युत उत्पादन के स्रोतों में जल विद्युत, कोयला, डीजल और परमाणु शक्ति मुख्य है जल विद्युत के उत्पादन का महत्व बढ़ रहा है।
(4) परमाणु शक्ति- शक्ति और ऊर्जा के साधनों में परमाणु ऊर्जा अन्य साधनों की तुलना में अधिक उपयोगी है। परमाणु ऊर्जा की लागत अन्य साधनों की तुलना में कम होती है और परमाणु ऊर्जा गृहों की स्थापना कहीं भी की जा सकती है। भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास का श्रेय भाभा को है। 1984 में परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की गयी। 1957 में भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र बाम्बे में प्रारम्भ किया गया जो देश का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रतिष्ठान है। वर्तमान में पाँच परमाणु ऊर्जा विद्युत केन्द्र हैं। तारापुर परमाणु ऊर्जा केन्द्र राजस्थान, मद्रास, नरौरा तथा काकापुर गुजरात परमाणु शक्ति केन्द्रों द्वारा इसका उत्पादन किया जा रहा हैं। भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास के सभी तत्व विद्यमान हैं। यहां पर पर्याप्त मात्रा में यूरेनियम मोनोजाइट, बेरीलियम और अन्य आवश्यक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हैं।
ऊर्जा के गैर परम्परागत स्रोत (Non traditional energy resources)
हमारे देश में बढ़ती ऊर्जा मांग और परम्परागत ऊर्जा संसाधनों की सीमितता को देखते हुए गैर-परम्परागत ऊर्जा के स्रोतों का विकास किया जा रहा है। इन नये ऊर्जा स्रोतों को ऊर्जा के नवकरणीय साधन (Renewable Sources of Energy) भी कहा जाता है क्योंकि इनका नवीनीकरण करना संभव होता है और वे कभी समाप्त नहीं हो सकते हैं।
देश में शक्ति और ऊर्जा के संकट को समाप्त करने के लिए इसके गैर परम्परागत स्रोतों का विकास किया जा रहा है। ऊर्जा मंत्रालय में 6 सितम्बर, 1982 में गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोतों के विभाग की स्थापना की गयी। वर्तमान में देश में 100 पुनः उपयोग योग्य स्रोतों के प्रणाली के निर्माणकर्ता कार्य कर रहे हैं। ऊर्जा के गैर परम्परागत स्रोतों का उपयोग संस्थाओं और व्यक्तियों द्वारा पानी गरम करने, बायोगैस प्लान्ट्स, ऊर्जा, पवन ऊर्जा तथा बायोमास तथा रासायनिक स्रोतों से उत्पन्न ऊर्जा का प्रयोग किया जा रहा है। गैर परम्परागत ऊर्जा के स्रोतों में निम्नलिखित मुख्य हैं।
- बायोगैस
- सौर ऊर्जा
- पवन ऊर्जा
- शहरी कूड़ा-करकट से ऊर्जा
- भूतापीय ऊर्जा
1. बायोगैस ऊर्जा- के पुनः उपयोग योग्य स्रोतों में बायोगैस एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इसके विकास द्वारा पेड़ों को काटना, स्वास्थ्य की सुविधाओं का विकास, ग्रामीण महिलाओं के नेत्र संबंधी रोगों में कमी तथा भोजन पकाने के साथ एक सरल व कुशल प्रणाली का विकास हो सकेगा। विभाग द्वारा 1.80 लाख बायोगैस प्लान्टों का निर्माण किया गया है।
2. सौर ऊर्जा सौर- ऊर्जा ऐसी पुनः उपयोग योग्य ऊर्जा है जिसमें पर्यावरण प्रदूषण की समस्या नहीं उत्पन्न होती है। सौर ऊर्जा उपयोग भी अपेक्षाकृत सरल एवं सामान्य विधि सौर ताप परिवर्तन है। सौर ताप का प्रयोग खाना पकाना, पानी गरम करने, पानी का अपकोरीकरण कक्ष तापन, फसल शोषण, प्रशीतन आदि के लिए किया जा सकता है। सौर ऊर्जा का विकास खनिज ईंधन की मांग को कम करने के लिए किया जा रहा है।
3. पवन ऊर्जा- पवन ऊर्जा का प्रयोग पानी निकालने तथा शक्ति के उत्पादन के लिए किया जा सकता है। पवन ऊर्जा से विद्युत उत्पादन, पम्प द्वारा पानी निकालने की पवन चक्कियों को सुधारने तथा मध्यम आधार के पवन चलित जेनरेटरों का विकास किया जा रहा है।
4. शहरी कूड़ा करकटों से ऊर्जा- शहरी क्षेत्रों में निकलने वाले कूड़ों का विद्युत उत्पादन के लिए तथा शहरी वातावरण में सुधार के लिए उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार का एक समझौता दिल्ली शहर के लिए 1994 में डेनमार्क के एक कम्पनी से हुआ है। इसी प्रकार के प्लान्ट बम्बई, तमिनाडु तथा पंजाब में स्थापित किये जा रहे हैं। गंगा प्रदूषण को रोकने के लिए भी इसी प्रकार के प्लान्टों की व्यवस्था की गयी है।
5. भूतापीय ऊर्जा- वैज्ञानिक भूमि के गर्भ में विद्यमान अत्यन्त ऊंचे ताप को ऊर्जा के स्रोत के रूप में प्रयोग करने का निरन्तर प्रयास कर रहे हैं। भारत में भी इस दिशा में निरन्तर प्रयास किया जा रहा है। एक अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि देश में 340 स्थान ऐसे हैं जहाँ से भूतापीय ऊर्जा को प्राप्त करके प्रयोग किया जा सकता है। अभी यह बहुत खर्चीली प्रणाली है और केवल प्रयोग के स्तर पर है।
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