कवि नागार्जुन (Nagarjun) का जीवन परिचय
सही अर्थों में कवि नागार्जुन भारतीय मिट्टी से बने आधुनिकतम कवि हैं। ये प्रगतिवादी युग के कवि हैं। जन संघर्ष में अडिग आस्था, जनता से गहरा लगाव और एक न्यायपूर्ण समाज का सपना, ये तीन गुण नागार्जुन के व्यक्तित्व में ही नहीं, उनके साहित्य में भी घुले-मिले हैं। निराला के बाद नागार्जुन अकेले ऐसे कवि हैं, जिन्होंने इतने छंद, इतने ढंग, इतनी शैलियाँ और इतने काव्य रूपों का इस्तेमान किया है। पारंपरिक काव्य रूपों को नए कथ्य के साथ इस्तेमाल करने और नए काव्य कौशलों को संभव करने वाले वे अद्वितीय कवि हैं।
जीवन परिचय-
प्रगतिवाद के गौरवपूर्ण स्तंभ नागार्जुन का जन्म सन् 1911 ई.में दरभंगा जिले के सतलखा ग्राम में हुआ था। नागार्जुन हिंदी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे। उनका असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था परंतु हिंदी साहित्य में उन्होंने नागार्जुन तथा मैथिली में यात्री उपनाम से रचनाएँ की। इनके पिता श्री गोकुल मिश्र तरउनी गाँव के एक किसान थे और खेती के अलावा पुरोहिती आदि के सिलसिले में आस-पास के इलाकों में आया-जाया करते थे। उनके साथ-साथ नागार्जुन भी बचपन से ही ‘यात्री’ हो गए। आरंभिक शिक्षा प्राचीन पद्धति से संस्कृत में हुई किंतु आगे स्वाध्याय पद्धति से ही शिक्षा बढ़ी। राहुल सांकृत्यायान के ‘संयुक्त निकाय’ का अनुवाद पढ़कर वैद्यनाथ की इच्छा हुई कि यह ग्रंथ मूल पालि में पढ़ा जाए। इसके लिए वे लंका चले गए, जहाँ वे स्वयं पालि पढ़ते थे और मठ के ‘भिक्खुओं’ को संस्कृत पढ़ाते थे। यहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली।
बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर महात्मा बुद्ध के प्रसिद्ध शिष्य के नाम पर इन्होंने अपना नाम ‘नागार्जुन’ रख लिया। इनका आरंभिक जीवन अभावों से ग्रस्त रहा। जीवन के अभावों ने ही इन्हें शोषण के प्रति विद्रोह की भावनाओं से भर दिया। 1941 ई. में वे भारत लौट आए। नागार्जुन जी ने कई बार जेल यात्रा भी की। अपने विरोधी स्वभाव के कारण ये स्वतंत्र भारत में भी जेल गए। यह महान विभूति 87 वर्ष की अवस्था में 5 नवंबर 1998 को पंचतत्वों में विलीन हो गई।
काव्यगत विशेषताएँ-
इनके काव्य में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(अ) नागार्जुन जी की भाषा सरल, सरस, व्यावहारिक एवं प्रभावोत्पादक है। उन्होंने तत्सम और तद्भव दोनों शब्दों का प्रयोग किया है।
(ब) इन्होंने अपनी रचनाओं में अनुप्रास, उपमा, रूपक और अतिशयोक्ति अलंकारों का प्रयोग किया है।
(स) इनकी काव्य रचनाओं में अभिव्यक्ति का ढंग तिर्यक बेहद ठेठ और सीधा भी है।
(द) अपनी तिर्यकता की प्रस्तुति में ये जितने बेजोड़ हैं, अपनी वाग्मिता में ये उतने ही विलक्षण भी हैं।
(य) उन्होंने अपनी रचनाओं में मुक्तक तथा प्रबंध शैली को अपनाया है।
(र) इनकी शैली प्रतीकात्मक और व्यंग्य प्रधान है।
रचनाएँ-
नागार्जुन ने छ: से अधिक उपन्यास, एक दर्जन कविता-संग्रह, दो खंडकाव्य, दो मैथिली (हिंदी में भी अनूदित) कविता-संग्रह, एक मैथिली उपन्यास, एक संस्कृत काव्य ‘धर्मलोक शतकम’ तथा संस्कृत को कुछ अनूदित कृतियों की रचना की।
(अ) कविता-संग्रह- अपने खेत में, युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, प्यासी पथराई आँखें, खून और शोले, तालाब की मछलियाँ, खिचड़ी विपल्व देखा हमने, हजार-हजार बाँहों वाली, पुरानी जूतियों का कोरस, तुमने कहा था, इस गुबार की छाया में, ओम मंत्र, भूल जाओ पुराने सपने, रत्नगर्भ, भस्मांकुर (खंडकाव्य)
(ब) उपन्यास- रतिनाथ की चाची, बलचनमा, बाबा बटेसरनाथ, नई पौध, वरुण के बेटे, दुखमोचन, उग्रतारा, कुंभीपाक, पारो, आसमान में चाँद तारे
(स) व्यंग्य- अभिनंदन
(द) निबंध संग्रह- अन्नहीनम क्रियानाम
(य) बाल साहित्य- कथा मंजरी भाग-1, कथा मंजरी भाग-2, मर्यादा पुरुषोत्तम, विद्यापति की कहानियाँ
(र) मैथिली रचनाएँ- पत्रहीन नग्न गाछ (कविता-संग्रह), हीरक जयंती (उपन्यास)
(ल) बांग्ला रचनाएँ- मैं मिलिट्री का पुराना घोड़ा (हिंदी अनुवाद)
(व) नागार्जुन रचना संचयन- ऐसा क्या कह दिया मैंने
साहित्यिक परिचय-
नागार्जुन हिंदी और साहित्य के अप्रतिम लेखक और कवि थे। हिंदी साहित्य में उन्होंने ‘नागार्जुन’ तथा मैथिली में ‘यात्री’ उपनाम से रचनाएँ की। नागार्जुन ने जीवन के कठोर यथार्थ एवं कल्पना पर आधारित अनेक रचनाओं का सृजन किया। अभावों में जीवन व्यतीत करने के कारण इनके हृदय में समाज के पीड़ित वर्ग के प्रति सहानुभूति का भाव विद्यमान था। अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का शोषण करने वाले व्यक्तियों के प्रति इनका मन विद्रोह की भावना से भर उठता था।
सामाजिक विषमताओं शोषण और वर्ग-संघर्ष पर इनको लेखनी निरंतर आग उगलती रही। अपनी कविताओं के माध्यम से इन्होंने दलित, पीड़ित और शोषित वर्ग को अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा दी। अपने स्वतंत्र एवं निर्भीक विचारों के कारण इन्होंने हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान बनाई। इनकी गणना वर्तमान युग के प्रमुख व्यंग्यकारों में की जाती है।
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