मूल्यों के स्त्रोत अथवा साधन क्या हैं? संक्षेप में विवेचन कीजिए।
मूल्यों के विकास के स्त्रोत- आज हमारे देश में जीवन मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है। बढ़ती हुई अनुशासनहीनता, भ्रष्टाचार एवं अनैतिकता जीवन मूल्यों के हास की साक्षी है। सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों के कमजोर पड़ने से सामाजिक तथा नैतिक संघर्ष उत्पन्न हो रहे हैं। वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए आज आवश्यकता है शिक्षा प्रणाली मूल्य की शिक्षा दिया जाना। हमें यह में ध्यान देना है कि विद्यार्थियों को उचित ढंग से प्रेरित करके उनके भावी मार्ग को प्रशस्त किया जाए।
मूल्यों के संदर्भ में शिक्षा आयोग (1964-66) के प्रतिवेदन में उद्धृत बातें– “विद्यालयों पाठ्यचर्या में एक गम्भीर त्रुटि यह है कि इसमें सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा की व्यवस्था नहीं की गई है। हमारी सिफारिश है कि जहाँ कहीं सम्भव हो, बड़े-बड़े धर्मों एवं नीति सम्बन्धी उपदेशों की सहायता से सामाजिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा देने का जागरूक एवं संगठित प्रयत्न किया जाए।”
शिक्षा आयोग का यह कथन भी सत्य है कि- “भारत के भाग्य का निर्माण उसके विद्यालयों में हो रहा है।” आज के बालक ही कल के नागरिक हैं। अतः हमें जिस प्रकार का भारत निर्मित करना है, उसकी शुरुआत विद्यालयों से होनी है। विद्यालय एक लघु समाज है एवं बड़े समाज में भली प्रकार समायोजित हो सकने का यह प्रशिक्षण स्थल है। पाठशालाओं के पाठ्यक्रम में प्राथमिक स्तर से ही मानवीय मूल्यों के विकास हेतु प्रयास किए जाने चाहिए। बाल्यकाल ऐसी अवस्था है जब बालक व्यवहार ही निरन्तरता से अपने आपको ढालता है, उसका मन, मस्तिष्क इतना स्वच्छ होता है कि हर सुझाव को क्रियान्वित करने के लिए तैयार हो जाता है। फ्रायड तथा उसके अनुयायियों ने बाल्यावस्था को बालक का निर्माणकारी काल मानकर इस अवस्था को अत्यधिक महत्व दिया है। ब्लेयर जोन्स तथा सिम्पस ने भी कहा है कि बाल्यावस्था वह समय है जब व्यक्ति के आधारभूत दृष्टिकोण, मूल्यों एवं आदर्शों का बहुत सीमा तक निर्माण होता है।
जीवन मूल्य एक तरह के स्थाई विश्वास होते हैं। अतः प्रारम्भ में एक बार जिन मूल्यों का बीज बालक में बो दिया जाता है, उनमें परिवर्तन करना असम्भव नहीं तो कठिन जरूर हो जाता है। इस दृष्टि से प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने वाले बालकों का निर्माण करने का महान उत्तरदायित्व है, उनका यह प्रमुख कार्य होना चाहिए कि विद्यालय का समस्त वातावरण इस प्रकार का बनाएँ कि बच्चों में उचित मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा हो। मानवीय गुणों का बच्चों के मस्तिष्क में प्रारम्भ से विकास किया जाना चाहिए जैसे-
(1) ईश्वर के प्रति प्रेम (2) आत्मनिर्भरता (3) स्वच्छता (4) सुव्यवस्था (5) प्रेम की भावना (6) बड़ों के प्रति सम्मान की भावना (7) दया (8) सत्य (9) दानशीलता (10) सामाजिक चेतना (11) अपरिग्रह (12) दूसरों को हानि न पहुँचाना (13) सहनशक्ति (14) आत्मविश्वास (15) अहिंसा
उपर्युक्त सभी मूल्यों को विकसित करने के लिए प्रत्यक्ष शिक्षण की ही आवश्यकता नहीं है, इन्हें अनौपचारिक वातावरण के माध्यम से भी सिखाया जा सकता है। विद्यालय वातावरण शिक्षकों का प्रभाव बालकों पर अवश्य पड़ता है।
मूल्यों की शिक्षा के लिए प्राथमिक स्तर पर दो प्रकार की विधियों प्रचलित हैं-
- प्रत्यक्ष विधि
- परोक्ष विधि
(1) प्रत्यक्ष विधि- प्रत्यक्ष विधि द्वारा मूल्यों के विकास हेतु निम्न बातें आवश्यक हैं
- भाषाओं के पाठ्यक्रम में मूल्य शिक्षा का समावेश किया जाना।
- सामाजिक विषय के पाठ्यक्रम में मूल्य शिक्षा को सम्मिलत करना।
- विज्ञान के पाठ्यक्रम में मूल्य शिक्षा का समावेश सम्मिलित की जानी
- शिल्प कला एवं रचनात्मक क्रियाओं के पाठ्यक्रम में मूल्य शिक्षा को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
- श्रव्य-दृश्य साधनों द्वारा मूल्यों की शिक्षा का विकास किया जाना।
- नैतिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में मूल्य शिक्षा को प्रेरित करने वाले तथ्यों को समावेशित करना।
(2) परोक्ष विधि- परोक्ष विधियों के माध्यम से मूल्य शिक्षा निम्नवत् प्रकार से दी जानी चाहिए
- दैनिक प्रार्थना के द्वारा।
- धार्मिक पुस्तकों के कुछ अंशों के प्रवचन के माध्यम से।
- समाज सेवा के कुछ कार्यक्रमों द्वारा।
- विद्यालयों में सामुदायिक जीवन पर आधारित कार्यक्रमों द्वारा।
- सामुदायिक सेवा कार्यक्रम के माध्यम से।
- श्रमदान के माध्यम से जैसे- विद्यालय की स्वच्छता, वृक्षारोपण आदि।
- पाठ्य सहगामी क्रियाओं द्वारा मूल्य का विकास।
- शारीरिक क्रियाएँ एवं खेलकूद के माध्यम से मूल्य का विकास।
- साहित्यिक क्रियाओं के माध्यम से।
- चित्र, चार्ट, पोस्टर एवं प्रदर्शनी के माध्यम से प्रेरित किया जाना।
- कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से मूल्यों के विकास का संदेश बालकों को दिया जाना उनके हृदय में अमिट छाप इससे पड़ जाती है।
Important Links
- मूल्य शिक्षा की विधियाँ और मूल्यांकन | Methods and Evaluation of value Education
- मूल्य शिक्षा की परिभाषा एवं इसके महत्त्व | Definition and Importance of value Education
- मूल्य का अर्थ, आवश्यकता, एंव इसका महत्त्व | Meaning, Needs and Importance of Values
- विद्यालय मध्याह्न भोजन से आप क्या समझते है ?
- विद्यालयी शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य
- स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एंव इसके लक्ष्य और उद्देश्य | Meaning and Objectives of Health Education
- स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य | Objectives of health education in schools
- स्वास्थ्य का अर्थ एंव इसके महत्व | Meaning and Importance of Health in Hindi
- स्वास्थ्य का अर्थ एंव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक
- स्वास्थ्य विज्ञान का अर्थ एंव इसके सामान्य नियम | Meaning and Health Science and its general rules in Hindi
- व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ एंव नियम | Meaning and Rules of Personal health in Hindi
- शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting Physical Health in Hindi
- एक उत्तम स्वास्थ्य का अर्थ एंव परिभाषा और इसके लक्षण
- बजट का अर्थ एंव इसकी प्रक्रिया | Meaning of Budget and its Process in Hindi
- शैक्षिक व्यय का अर्थ प्रशासनिक दृष्टि से विद्यालय व्यवस्था में होने वाले व्यय के प्रकार
- शैक्षिक आय का अर्थ और सार्वजनिक एवं निजी आय के स्त्रोत
- शैक्षिक वित्त का अर्थ एंव इसका महत्त्व | Meaning and Importance of Educational finance
- भारत में शैक्षिक प्रशासन की समस्याएं और उनकी समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव
- प्राथमिक शिक्षा के प्रशासन | Administration of Primary Education in Hindi
Disclaimer