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प्राथमिक सहायक के गुण, आवश्यकता व महत्त्व एंव इसके कर्त्तव्य 

प्राथमिक सहायक के गुण, आवश्यकता व महत्त्व एंव इसके कर्त्तव्य 
प्राथमिक सहायक के गुण, आवश्यकता व महत्त्व एंव इसके कर्त्तव्य 

प्राथमिक सहायक के गुण, आवश्यकता व महत्त्व एंव इसके कर्त्तव्य 

बच्चों के शरीर में शक्ति का भण्डार है तथा विद्यालय में खेलते-कूदते चोटें भी प्रायः लगती रहती हैं। इसी प्रकार आधुनिक जीवन शैली भी खतरों से खाली नहीं है, हरदम दुर्घटनाओं का अंदेशा बना रहता है। ऐसे में प्राथमिक सहायक का योग्य व समझदार होना आवश्यक है, अतः एक प्रशिक्षित प्राथमिक सहायक में क्या गुण होने चाहिए और उसके क्या सहायक बनते हैं, इनका वर्णन निम्न प्रकार से है-

 प्राथमिक सहायक के गुण

( 1 ) कुशल – एक प्राथमिक सहायक का अपने क्षेत्र में कुशल व प्रवीण होना आवश्यक है। उसको इस बात का भली-भांति पता होना चाहिए कि पहले किन बातों को प्राथमिकता देनी है।

(2) सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार- प्राथमिक चिकित्सक (सहायक) को चाहिए कि रोगी के कष्ट व डर कम करने के लिए मधुर एवं उत्साहपूर्वक शब्दों का प्रयोग करें क्योंकि जब किसी व्यक्ति के साथ कोई दुर्घटना हो जाती है तो प्रायः उसके मन में डर बैठ जाता है। ऐसे समय उसे सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार की आवश्यकता होती है।

(3) शांत व धैर्यवान- प्राथमिक सहायक का शांत, संयत व धैर्यवान होना आवश्यक क्योंकि प्राथमिक सहायता घबराहट व जल्दबाजी का कार्य नहीं है, परन्तु तत्काल कार्यवाही करनी भी उतनी ही आवश्यक है। अतः प्राथमिक सहायक में यह गुण हो कि वह हर परिस्थिति में शांत रहे और धैर्य के साथ उस हालात पर नियंत्रण कर उसे अन्जाम तक पहुंचाए।

(4) आत्मविश्वास- प्राथमिक सहायक को अपने कौशल, ज्ञान व कार्यशैली पर पूर्ण भरोसा होना चाहिए ताकि उसका आत्मविश्वास सुदृढ़ रहे, क्योंकि आत्मविश्वास की कमी व्यक्ति में कुठा व अकुशलता लाती है और कार्य पूर्णता की ओर अग्रसर नहीं होता, अतः आत्मविश्वास एक आवश्यक गुण है।

(5) तुरन्त व उचित निर्णय लेने वाला- प्राथमिक चिकित्सा का क्षेत्र ऐसा है, जहां तत्काल व उचित निर्णय लेने होते हैं। ऐसा न करने से एक दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को जान का खतरा हो सकता है, अतः सही व तुरन्त लिया फैसला रोगी को समय पर उचित सहायता देकर उसे जीवन दान कर सकता है।

(6) तत्परता और शीघ्रता- जैसे ही कोई दुर्घटना घटे या चोट लगे, प्राथमिक सहायक को चाहिए कि रोगी की सहायता हेतु तत्परता व शीघ्रता की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए प्राथमिक सहायता का सभी समान एक बार ही अपने साथ लेकर घटनाक्रम पर तुरन्त पहुंचे, देरी रोगी के लिए मृत्यु का कारण बन सकती है।

(7) समझदार व बुद्धिमान- प्राथमिक सहायक को इतना समझदार व बुद्धिमान तो होना चाहिए कि पूर्ण निदान या सहायता देने से पहले निर्णय ले सके कि तत्काल किस प्रकार के उपचार की आवश्यकता है। ऐसा फैसला बिना समय गंवाए अति शीघ्र करना होता विशेषतः गंभीर चोट या रक्तस्राव के मामले में।

(8) तत्काल निदान करने वाला- प्राथमिक सहायक को तुरन्त घायल व्यक्ति का निदान करने योग्य होना चाहिए। घटना के कारण व चोट के चिह्नों की जानकारी होने पर तुरन्त दर्द कम करने के लिए रक्तस्राव को रोकने का उपचार कर चोट के प्रभाव को कम करना चाहिए। उसे चोट का निदान करने में अधिक समय नहीं गंवाना चाहिए।

(9) साधन-सम्पन्न होना- कोई भी दुर्घटना आवश्यक नहीं है कि असपताल के पास या आपके घर के पास ही घटे, इसलिए एक प्राथमिक सहायक का साधन-सम्पन्न होना अति आवश्यक है। वह अपनी प्राथमिक सहायता सामग्री फौरन परिस्थितिवश उपलब्ध करा सके व रोगी को तुरन्त राहत पहुंचाने के लिए अपेक्षित वस्तुओं की स्थल पर व्यवस्था करे, उस सामग्री के न होने की दुहाई ने देकर उसका कोई दूसरा तरीका निकाले, जैसे- स्लिंग बनाने के लिए रूमाल या चुन्नी का प्रयोग, हड्डी को सहारा देने के लिए लकड़ियों का प्रयोग, पट्टी आदि की जगह धोती या चुन्नी का प्रयोग।

(10) दक्ष व व्यवहार कुशल- प्राथमिक सहायक के अपने कार्य में दक्षता व कुशलता होनी चाहिए ताकि बिना समय नष्ट किए लक्षणों और दशा को जान लें, उसमें घायल का विश्वास जीतने की क्षमता होनी चाहिए तथा आवश्यकता होने पर उस घटना के हित में, वहां खड़े एक या अधिक व्यक्तियों की सहायता भी ले सके।

(11) निष्ठा व निरन्तर प्रयत्न- प्राथमिक चिकित्सक को अपने तथा अपने प्रयासों की सफलता पर भरोसा होना चाहिए। आरम्भ में कोई सुधार दिखाई न देने पर भी उसे अपने प्रयास अन्त तक जारी रखने चाहिए। अपनी लगन व प्रयत्न की गति कम नहीं होने देनी चाहिए।

( 12 ) चतुर व होशियार – प्राथमिक सहायक को इतना चतुर तो होना चाहिए कि वह दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को बिना अनावश्यक दर्द के संभाल सके तथा प्राथमिक सहायता में उपयोग होने वाले उपकरणों का कुशलतापूर्वक प्रयोग अपनी सीमा में रहकर कर सके। प्राथमिक सहायक को अपने क्षेत्र से बाहर जाकर कार्य नहीं करना चाहिए, वही कार्य करे जो प्राथमिक सहायता के लिए करना आवश्यक है।

प्राथमिक सहायता की आवश्यक एवं महत्त्व

आवश्यकता- प्राथमिक सहायता का कार्य डॉक्टर के कार्य से भी कठिन होता है। किसी भी तरह की दुर्घटना घटित होने पर दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की सहायता करना अत्यन्त आवश्यक तथा स्थिति व समय की माँग होती है। यह कार्य किसी को जीवन दान दे सकता है। इसी स्थिति का नाम संकट काल है। ऐसी स्थिति में शीघ्र ही चिकित्सा की आवश्यकता होती है, लेकिन यह भी आवश्यक नहीं है कि दुर्घटना अस्पताल या डॉक्टर की क्लीनिक के पास ही होगी, अतः डॉक्टर के बुलाने व उसके आने में कुछ समय तो व्यतीत हो ही जाता अमूल्य समय है जिसके लिए हमें प्राथमिक सहायता की आवश्यकता पड़ती है। पीड़ित अथवा रोगी को डॉक्टर के आने से पहले उपचार देना आवश्यक होता है, जिससे उसकी स्थिति नियंत्रण में बनी रहे, उसे दर्द कम हो, उसका रक्तस्राव न हो ताकि उसका जीवन बचाया जा सके। यही वह

महत्त्व

(1) समय पर सहायता मिलने से रोगी की जान बच सकती है।

(2) प्राथमिक सहायता का प्रशिक्षण व्यक्ति की बचाव की इच्छा को सशक्त बना देता है, जिससे वह अपना ध्यान दुर्घटनाओं से बचने व बचाने वाले तरीकों पर केन्द्रित रखते हुए स्वयं तथा दूसरों की भी सहायता कर सकता है।

(3) प्रशिक्षित व्यक्ति अपने परिवार व आस-पड़ोस की सहायता करने में हर समय उपलब्ध होता है।

(4) प्राथमिक सहायता का गुण व प्रशिक्षण प्राप्त करना हर एक नागरिक की जिम्मेदारी है।

(5) सारा विश्व इस विषय पर सहमत है कि घायल, बीमार या विभिन्न प्रकार की चोटों से ग्रस्त व्यक्तियों को प्राथमिक सहायता प्रदान की जानी चाहिए। ऐसे अवसर- युद्ध, प्राकृतिक विपत्ति, भूचाल, तूफान आदि महामारी व अन्य दुर्घटनाएँ हैं, जो बड़े स्तर पर मानवता का विनाश करती है। ऐसे समय इस सहायता का महत्त्व और भी बढ़ जाता है।

(6) प्राथमिक सहायता प्रशिक्षण व्यक्ति में नैतिक मूल्यों, मानता की सेवा, चारित्रिक बल, समर्पण व प्रतिभा जैसे गुणों का विकास करता है।

प्राथमिक सहायक के कर्त्तव्य

प्राथमिक चिकित्सा के क्षेत्र में एक प्राथमिक सहायक के महत्त्वपूर्ण कर्तव्यों में निदान उपचार तथा निपटान शामिल हैं, जिनका वर्णन निम्न है

(1) स्थिति को समझना- एक प्राथमिक चिकित्सक का सर्वप्रथम यह कर्तव्य होता है। कि तुरन्त घायल की स्थिति को समझे तथा उसी के अनुसार सुचारु रूप से कार्य करे। उसे तुरन्त यह निर्णय लेना चाहिए कि घायल को डॉक्टर की सहायता की तुरन्त आवश्यकता है या नहीं, समयानुसार जैसा उचित हो उसे वही कार्य करना चाहिए।

(2) निदान- निदान के लिए प्राथमिक सहायक को सबसे पहले पता लगाना चाहिए कि दुर्घटना कैसे हुई। यह रोगी से पूछा जा सकता है यदि न बता पाए तो प्रत्यक्षदर्शियों से पता लगाया जा सकता है।

निदान का अगला चरण लक्षणों को देखना है जैसे- मूर्च्छा, प्यास, दर्द या कंपकंपी आदि। फिर प्राथमिक सहायक का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह उन लक्षणों की ओर ध्यान दे जो सामान्य दशा से भिन्न हों इनमें सूजन, रक्त का जमाव, पीलापन या विकृति आते हैं जिन्हें प्राथमिक चिकित्सक आसानी से देख सकता है।

(3) उपचार- उपचार के लिए स्थिति के कारण का तत्काल निवारण प्राथमिक सहायक द्वारा किया जाए ताकि स्थिति और न बिगड़े। उसका यह भी कर्तव्य बनता है कि गंभीर रक्तस्राव, आघात, मूर्च्छा और सांस रुकने के मामलों पर विशेष ध्यान दे और उनका तुरन्त उपचार करे।

(4) तुरन्त निबटान- तुरन्त निबटान के लिए प्रबन्ध करना भी प्राथमिक सहायक (चिकित्सक) का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। उसे यह भी तय करना है कि रोगी को दुर्घटना स्थल पर ही डॉक्टर की आवश्यकता है या किसी अन्य उपयुक्त स्थान पर, ऐसा सम्भव न हो तो परिस्थितियों के अनुसार उसे तत्काल अस्पताल में पहुँचा दिया जाये। इसी के साथ प्राथमिक चिकित्सक का यह भी कर्त्तव्य बनता है कि रोगी के परिवार के सदस्यों या उसके सम्बन्धियों को भी फौरन सूचित करे।

(5) इच्छा से पूर्णतया सहायता में लीन करना- प्राथमिक चिकित्सक का मुख्य ‘कर्तव्य है कि यदि वह किसी दुर्घटना में सहायक की भूमिका निभा रहा है तो अपने आपको उपस्थिति में अपनी इच्छा से लीन करे अर्थात् अपने पूर्ण सामर्थ्य व शक्ति के साथ उस दुर्घटनाग्रस्त रोगी के साथ निःस्वार्थ भावना से निबटान न होने तक रहे तथा पूर्ण स्थिति का विवरण डॉक्टर को दे, इससे रोगी का प्राथमिक सहायता देने वाले पर विश्वास व भरोसा बना रहता है और जल्दी स्वस्थ होता है।

(6) वातावरण को शांत बनाए रखना- प्राथमिक चिकित्सक का एक यह भी कर्तव्य बनता है कि वह वातावरण को शांत बनाए रखने के लिए भीड़ से भी समर्थन की अपील करे और उन्हें शांति बनाए रखने के लिए कहे क्योंकि ज्यादा भीड़ इकट्ठे होने से रोगी को हवा की कठिनाई होती है, वहीं प्राथमिक सहायता का कार्य भी सुचारु रूप से नहीं चलाया जा सकता तथा रोगी भी भीड़ देखकर घबरा जाता है।

(7) मधुर व्यवहार – प्राथमिक चिकित्सक का कर्त्तव्य बनता है कि वह अपने व्यवहार को मधुर व दोस्ताना रखे ताकि रोगी का विश्वास जीत सके। घायल व्यक्ति को ढांढस बंधाना चाहिए तथा रोगी को विश्वास दिलाए कि कोई विशेष बात नहीं, सब कुछ जल्दी ही ठीक हो जाएगा।

(8) जिम्मेदारी की भावना- प्राथमिक सहायक का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह जिस दुर्घटना में प्राथमिक सहायता का कार्य हाथ में लेता है तो उसे अपनी जिम्मेदारी समझ कर उस कार्य को पूर्ण रूप से संपन्न करे अर्थात् मरीज को अस्पताल पहुंचाने तक उसके साथ रहे। डॉक्टर को पूर्ण स्थिति के बारे अवगत कराए, उसके परिवार के सदस्यों को सूचना देकर निश्चित स्थान पर बुलाए तथा उनका उत्साह बढ़ाए, सांत्वना दे कि सब ठीक हो जाएगा, चिन्ता की कोई बात नहीं। इस प्रकार प्राथमिक सहायक का कर्त्तव्य स्वयं में भी एक उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य माना गया है।

(9) सीमा में रहना- प्राथमिक सहायक को आवश्यकता से अधिक कार्य नहीं करना चाहिए तथा अपने क्षेत्र से बाहर अतिक्रमण करने की प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि जीवन को सुरक्षित रखने के लिए दक्षता व शारीरिक विज्ञान का ज्ञान बहुत आवश्यक है। रोगी से उत्साहजनक बातें कर उसका साहस बढ़ाना चाहिए ताकि उसे यकीन हो जाए कि आप उसे सही इलाज दे रहे हैं और वह ठीक हो जाएगा।

(10) सबसे पहले रक्तस्त्राव को रोकना- घायल व्यक्ति को चोट के कारण यदि रक्तस्राव अधिक हो रहा है तो सहायक का यह महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य बनता है कि वह सबसे पहले उसे तुरन्त रोकने का प्रबंध करें अन्यथा घायल का जीवन खतरे में पड़ जायेगा।

उपरोक्त के अतिरिक्त निम्न बातों पर भी ध्यान देना चाहिए।

  1. पीड़ित व्यक्ति का उपचार धैर्यपूर्वक तथा शांतिपूर्वक करें, हड़बड़ी या जल्दी में न करें।
  2. रोगी की सुरक्षा व दुर्घटना के कारण को तत्काल हटाना चाहिए।
  3. सामान्य बुद्धि का उचित प्रयोग करें ताकि वह उपलब्ध साधन को काम में लाने में सक्षम हो।
  4. रोगी में विश्वास व धैर्य पैदा करना भी उसका कर्तव्य है।
  5. रोगी के प्रति विनम्रता दिखाना, प्यार व सहानुभूति देना ।

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