वंचित बालकों की विशेषताएँ एवं प्रकार
वंचित बालकों की विशेषताएँ- अपवंचित बालकों के पारिवारिक परिवेश में उपयुक्त भूमिका मॉडल का अभाव होता है। बच्चों के माता-पिता प्रायः घर से बाहर कार्य करते हैं तथा उनकी अपने माता-पिता के साथ अन्तक्रिया अत्यन्त सीमित होती हैं। इनकी प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-
1: भीड़, कोलाहल, अस्वास्थ्यकर दशाओं में पलने वाले इन बालकों को उपयुक्त पोषाहार भी नहीं मिल पाता है। फलतः इनका शारीरिक स्वास्थ्य भी क्षीण रहता है।
2. आयु में वृद्धि के साथ-साथ जीवन के हर क्षेत्र में असंतुष्ट होने से वंचित बालकों की अभिवृत्ति क्रमशः अधिक ऋणात्मक होती जाती है।
3. वंचित बालकों के अभिभावकों की शिक्षा के प्रति धनात्मक अभिवृत्ति नहीं होती है, क्योंकि बालक की शिक्षा उनके लिए अतिरिक्त भार डालती है।
4. जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में इनकी उपलब्धि एवं समायोजन का स्तर निम्न होता है।
5. वंचित बालकों व उनके अभिभावकों दोनों का ही आकांक्षा स्तर निम्न स्तर का पाया जाता है।
6. वंचित बालक ज्यादातर चिन्ताग्रस्त देखने को मिलते हैं।
7. वंचित बालकों के व्यक्तित्व में असुरक्षा तथा मनस्ताप अधिक मात्रा में पाया जाता है।
8. वंचित बालक सामान्यतः अन्तर्मुखी, कम बौद्धिक स्तर का, सांवेगिक रूप में अस्थिर, गम्भीर, शर्मीले, अवसादी, रूढ़िवादी व निराश्यवादी व्यक्तित्वशील गुणों वाले देखने को मिलते हैं।
अपवंचित बालकों के प्रकार (Types of Deprived Children)-
अपवंचित बालकों के निम्नलिखित प्रकार प्रचलित हैं-
सामाजिक रूप से वंचित बालक- सामाजिक रूप से वंचित बालक वे होते हैं, जो गरीबी, अशिक्षा, परिवार की खराब स्थिति के कारण वंचित रह जाते हैं-
1. सामाजिक रूप से निम्न (जाति, वर्ग या धर्म के आधार)।
2. सांस्कृतिक स्तर से निम्न।
3. घर का बिगड़ा माहौल व सुविधाओं का अभाव।
4. पड़ोस व सभी साथियों का दुष्प्रभाव।
5. संवेगात्मक रूप से अस्थिर।
आर्थिक रूप से वंचित बालक-
1. गरीबी व आर्थिक असमानता के कारण।
2. आर्थिक रूप में निम्न।
3. परिवार में खाने व रहने का अभाव।
4. विद्यालय जाने में असमर्थ व विद्यालय की फीस न दे पाना।
5. धन के अभाव में उच्च आकांक्षा रखने वाले।
शैक्षिक रूप से वंचित बालक-
1. निम्न शैक्षिक उपलब्धि होती है।
2. अन्तर्मुखी व संवेगात्मक रूप से अस्थिर होते हैं।
3. आत्म-प्रेम व प्रदर्शन की भावना प्रबल होती है।
4. समस्या का समाधान नहीं नहीं पाते।
5. असुरक्षा की भावना से पीड़ित तथा विद्यालय में समायोजित नहीं होते हैं।
6. विद्यालय सामग्री व पुस्तकों के अभावों में नहीं पढ़ पाते।
7. सुविधाओं के बाद खराब आदतों के कारण से पढ़ने से वंचित।
8. स्मृति व रुचि के प्रभाव के कारण न पढ़ पाना।
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