भारत में अंग्रेजों की सफलता तथा फ्रांसीसियों की असफलता के कारण
अंग्रेजों की सफलता और फ्रांसीसियों की असफलता के निम्नलिखित कारण थे-
(1) फ्रांसीसी कम्पनी सरकार का एक विभाग –
अंग्रेजों की सफलता और फ्रांसीसियों की असफलता का पहला कारण यह था कि फ्रांसीसी कम्पनी सरकार का एक विभाग मात्र थी । वह पूर्ण रूप से अपनी सरकार पर निर्भर करती थी तथा उसमें आत्मविश्वास की कमी थी । फ्रांसीसी कम्पनी के कर्मचारी भ्रष्टाचारी थे । इसके साथ ही फ्रांसीसी सरकार की ओर से हिस्सेदारों को लाभ का कुछ ही अंश दिया जाता था। इस कारण फ्रांसीसी अधिकारी व्यापार में कम रुचि लेते थे लेकिन अंग्रेजी कम्पनी गैर-सरकारी थी। सरकार भारत की कम्पनी में व्यर्थ का हस्तक्षेप नहीं करती थी । अतः अंग्रेज अधिकारी कम्पनी के कार्यों में पूरी रुचि लेते थे ।
2) अंग्रेजों की सामुद्रिक शक्ति का प्रभुत्व –
अंग्रेजों की सफलता का एक कारण उनकी सामुद्रिक शक्ति थी । अंग्रेज जब कभी चाहते थे भारत को सहायता भेज सकते थे। उनके मार्ग में बाधा डालने वाला कोई नहीं था । भारत स्थित फ्रांसीसी बस्तियों और फ्रांसीसी बस्तियों में पारस्परिक मेल-जोल की कमी थी । फ्रांसीसी लोग जब कभी भारत आते तो वे इस बात का प्रयास करते कि वे मार्ग में अंग्रेजों के सम्पर्क में नहीं आएँ । इसका परिणाम यह होता कि कई बार मार्ग में महीनों लग जाते थे । काउण्ट लैली भारत में काफी देर से पहुंचा था ।
3) समुद्री शक्ति का मुख्य स्थान –
अंग्रेजों ने अपनी समुद्री शक्ति का मुख्य स्थान मुम्बई को बना रखा था । इसलिए वे अपने जलयान मुम्बई में सुरक्षापूर्वक रख सकते थे । जैसे ही उन्हें अवसर प्राप्त होता था वे अपना कार्य शुरू कर देते थे । वे अपने जहाजों की मरम्मत भी स्वयं करते थे। फ्रांसीसियों को समुद्री शक्ति का अड्डा फ्रांस के द्वीप में था जो बहुत दूर था । अतः उनकी सभी कार्यवाइयाँ देर से हो पाती थीं।
4) अंग्रेजों के भारतीय अड्डे –
अंग्रेजों के पास भारत में कोलकाता, चेन्नई और मुम्बई तीन प्रमुख स्थान थे । यदि शत्रु इनमें से किसी भी स्थान को जीत लेता तो भी दो स्थान शेष थे । तीनों स्थानों को एक साथ जीता नहीं जा सकता था । फ्रांसीसियों के पास भारत में केवल पाण्डिचेरी या । माही और चन्द्रनगर जैसे शेष स्थान अंग्रेजों की दया पर रहते । इसका फल यह हुआ कि पाण्डिचेरी के पतन के बाद फ्रांसीसी सब कुछ हार गए ।
5) फ्रांसीसियों द्वारा गलत मार्ग का चुनाव –
फ्रांसीसी भारत में गलत मार्ग से प्रविष्ट हुए । दक्षिण का प्रदेश उपजाऊ नहीं था । अतः फ्रांसीसियों की दक्षिण की सेना को सफलता मिलते मिलते रह जाती थी। दूसरी ओर अंग्रेज भारत में ठीक मार्ग से आए थे । वे बंगाल की उपजाऊ भूमि में आए । लोगों के पास धन-सम्पत्ति की कमी नहीं थी। अतः अंग्रेजों को विजय के बाद काफी धन मिला ।
6) व्यापारिक स्थिति –
फ्रांसीसियों ने व्यापारिक राज्य की तुलना में व्यापार को गौण समझा । अतः फ्रांसीसी कम्पनी की आर्थिक स्थिति खराब हो गई । कम्पनी का सारा धन युद्धों में बेकार चला गया । फ्रांसीसी सरकार यूरोप और अमेरिका में व्यस्त रहने के कारण डूप्ले की योजनाओं का समर्थन नहीं कर सकी । दूसरी ओर अंग्रेज समुद्री शक्ति की ओर सदैव ध्यान देते थे और अपने व्यापार की उपेक्षा नहीं करते थे। अंग्रेजी कम्पनी के कर्मचारी बढ़ते व्यापार को सदैव महत्व देते थे। इसी कारण अंग्रेजी कम्पनी हमेशा सम्पन्न रही।
7) योग्य अधिकारियों का सहयोग –
अंग्रेजों के पास योग्य, सक्षम और कूटनीतिक अधिकारी थे जो एक-दूसरे को सहयोग देने के लिए तैयार रहते थे। डूप्ले की अपेक्षा क्लाइव का व्यक्तित्व ऊँचा था । लोरेन्स भी योग्य व्यक्ति था लेकिन फ्रांसीसी काउण्ट लैली तथा बुस्से आयरकूट की तुलना में बराबरी के अधिकारी नहीं थे । इसके साथ ही फ्रांसीसी अधिकारी सदैव लड़ते रहते थे। वे सहयोग से कार्य नहीं करते थे । इससे उनका पतन हुआ । दूसरी ओर अंग्रेज सदैव एक-दूसरे की सहायता करते थे । उनकी उन्नति का रहस्य यही था ।
8) फ्रांसीसी अधिकारियों के प्रति अविश्वास –
फ्रांस की सरकार की उन दिनों आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। वह भारत स्थित फ्रांसीसी अधिकारियों के कार्यों की प्रशंसा नहीं करती थी । उसे अपने अधिकारियों पर विश्वास भी नहीं था । लैली को फ्रांस में फाँसी पर लटकाया गया । डूप्ले पर मुकदमा चलाया गया । दूसरी ओर अंग्रेज अधिकारियों को ब्रिटिश सरकार प्रशंसा करती थी । लार्ड क्लाइव के विरुद्ध आलोचना होते हुए भी उसे भारत में अंग्रेजी साम्राज्य का संस्थापक माना गया । इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि फ्रांसीसी स्वयं के कार्यों से असफल होते गए और अंग्रेज अपनी कूटनीति से सफलता प्राप्त करते गए।
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