सैंधव कला के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए।
सैन्धव कला के अन्तर्गत प्रस्तुर, धातु एवं मृण्मूर्तियों का उल्लेख किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त मुहरें, मनके और मृद्भाण्ड एवं लघु कलाएं इनके सौन्दर्य बोध को इंगित करती है।
प्रस्तर मूर्तियाँ – मोहनजोदड़ों से एक दर्जन तथा हड़प्पा से तीन प्रस्तर मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। अधिकांश पाषाण मूर्तियाँ खंडित हैं। मोहनजोदड़ों से प्राप्त 12 प्रस्तर मूर्तियों में से 5 गढ़ी वाले टीले के एच.आर. क्षेत्र से मिली ह। डी.के. क्षेत्र से सेलखड़ी की बनी हुई। 19 सेमी. लम्बी खण्डित पुरूष मूर्ति जो तिपतिया अलंकरण से युक्त शाल ओढ़े हैं, प्राप्त हुई है। मोहनजोदड़ों के एच.आर. क्षेत्र के लगभग 12 सेमी. ऊँची चूना पत्थर पर बनी भेड़ा की मूर्ति प्राप्त हुई हैं। इसी तरह डी. के. क्षेत्र से 25 सेमी. ऊँची चूना-पत्थर की बनी हुई भेंडा और हाथी की संयुक्त मूर्ति मिली है। इसका शरीर और सींग भेड़ा का और सूंड हाथी का है।
हड़प्पा से जो तीन प्रस्तर मूर्तियाँ मिली हैं, उनमें से एक मूर्ति नृत्यरत किसी नवयुवक की मानी जाती है। इसका दाहिना पैर भूमि पर स्थित है तथा बायाँ पैर ऊपर उठा हुआ है। दोनों हाथ भी नृत्य की मुद्रा में फैले हैं।
धातु मूर्तियाँ- धातु मूर्तियां मधूच्छिष्ठ विधि या लुप्त मोम की प्रक्रिया से बनायी जाती थी। मोहनजोदड़ों के एच.आर. क्षेत्र से 11.5 सेमी. लम्बी नर्तकी की काँस्य मूर्ति अत्यन्त प्रसिद्ध है। आभूषणों को छोड़कर यह मूर्ति बिल्कुल नग्न है। मोहनजोदड़ों से कांसे की भैंसा और भेंडा की मूर्तियाँ मिली है। चन्हूदड़ों से बैलगाड़ी एवं इक्का गाड़ी की मूर्तियाँ उल्लेखनीय है। ये सभी काँसे की है। कालीबंगा से प्राप्त ताँबे की वृषभ मूर्ति अद्वितीय है। लोथल से प्राप्त ताँबे की कुत्ते की मूर्ति अत्यन्त सुन्दर है। इसी प्रकार दैमाबाद से एक काँसे का रथ प्राप्त हुआ है, जिसमें दो बैलों की जोड़ी जुती हुई है और इसे एक नग्न मानव आकृति चला रही है।
मृग्मूर्तियाँ – मृणमूर्तियों का निर्माण ज्यादातर चिकोटी विधि से किया जाता था। मृण्मूर्तियाँ पुरूषों, नारियों और पशु-पक्षियों की प्राप्त हुई है।
मानव मृणमूर्तियां ठोस है जबकि पशु-पक्षियों की मूर्तियाँ प्रायः खोखली हैं। सबसे ज्यादा मृणमूर्तियाँ पशु-पक्षियों की ही प्राप्त हुई है। नारी मृग्मूर्तियाँ पुरूषों की अपेक्षा अधिक प्राप्त हुई हैं। नारी मृणमूर्तियाँ अधिकांशतः भारत के बाहर के स्थलों जैसे हड़प्पा, मोहनजोदड़ों, चन्हूदड़ों आदि से प्राप्त हुई है। भारत के राजस्थान, गुजरात आदि के किसी क्षेत्र से भी नारी मृणमूर्तियाँ नहीं मिली है। केवल हरियाणा के बनवाली से दो नारी मृण्मूर्तियां प्राप्त हुई है।
परन्तु यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि भारत के राजस्थान और गुजरात से अभी तक नारी मृण्मूर्तियाँ नहीं मिली है। नारी मृणमूर्तियों में भी कुआँरी नारी मृण्मूर्तियाँ सर्वाधिक प्राप्त है। मोहनजोदड़ों के डी.के. क्षेत्र ओर अन्नागार क्षेत्र से पुरूष मृणमूर्तियाँ प्राप्त हुई है।
पशु-पक्षियों की मृणमूतियाँ में पशुओं में बैल, भैंसा, भेंडा, बकरा, कुत्ता, हाथी, बाघ, गैंडा, भालू, सुअर, खरगोश, बन्दर आदि की मूर्तियाँ मिली है। मोहनजोदड़ों से प्राप्त वृषभ मूर्ति दर्शनीय है। कूबड़ वाले बैल की तुलना में बिना कूबड़ वाले बैल की मृण्मूर्तियाँ अधिक संख्या में मिली है। यह आश्चर्य की बात है कि गाय की मृण्मूर्तियाँ नहीं प्राप्त हुई है। गिलहरी, सर्प, कछुआ, घड़ियाल तथा मछली की भी मूर्तियाँ मिली है। पक्षियों में मोर म इ. तोता, कबूतर, बत्तख, गौरेया, मुर्गा, चील और उल्लू की मूर्तियाँ प्राप्त हुई है। ठोस पायो वाले खिलौना गाड़ियाँ, इक्के तथा सीटियाँ भी प्राप्त हुई है। पाकिस्तान के चोलिस्तान तथा हरियाणा के बनवाली से मिट्टी के हल का प्रतिरूप प्राप्त हुआ है।
मुहरें – सैंधव मुहरें अधिकांशतः सेलखड़ी की बनी होती थी। काँचली मिट्टी, गोमेद चर्ट तथा मिट्टी की बनी हुई मुहरें भी मिली हैं। लोथल और देशलपुर से ताँबे की बनी हुई मुहरें मिली है। इन मुहरों का आकार चौकोर, आयताकार या वर्गाकार होता था। इसके अतिरिक्त गोलाकार, अण्डाकार, घनाकार आदि मुहरें भी मिली है। वर्गाकार मुद्रायें प्रायः सभी सेलखड़ी की है और सिन्धु सभ्यता के नगरों में ये बहुत लोकप्रिय थीं। मुद्राओं का सबसे प्रचलित आकार 2.8 सेमी. x 2.8 सेमी. था। इन मुहरों का उपयोग व्यापारिक वस्तुओं की गाँठों पर छाप लगाने के लिए होता था। मोहनजोदड़ों, कालीबंगा तथा लोथल के प्राप्त मुद्रांकों पर एक ओर सैन्धव लिपि से युक्त मुहर की छाप है तथा दूसरी ओर भेजे जाने वाले माल का निशान अंकित है। मुहरों पर एक श्रृंगी पशु, कूबड़ वाला भैंस, हाथी, भैंसा आदि अंकित है। मुद्राओं में सबसे अधिक संख्या ऐसी मुद्राओं की है जिन पर एक श्रृंगी पशु चित्रित है, लेकिन कला की दृष्टि से सबसे उत्कृष्ट मूर्ति कूबड वाले सांडों की है।
मोहनजोदड़ों से मैके की प्राप्त पशुपति शिव की मुहर विशेष प्रसिद्ध है। इस मुहर में एक त्रिमुखी पुरूष को एक चौकी पर पद्मासन मुद्रा में बैठे हुए दिखाया गया है। उसके दाहिनी ओर एक हाथी तथा एक बाघ और बायीं और एक गैंडा तथा एक भैंसा खड़े हुए है। चौकी के नीचे दो हिरण खड़े हैं। मार्शल ने इसे शिव का आदिरूप कहा है। लोथल और मोहनजोदड़ों की एक एक मुहर पर नाव का चित्र अंकित है।
ताम्र पट्टिकाएं – मोहनजोदड़ों तथा हड़प्पा में कई ताम्र पट्टिकाएं मिली है। जिन पर एक तरफ मुदेशलेख है तो दूसरी तरफ सैन्धव मुहरों पर मिलने वाले प्रतीक बने हुए कुछ बाद की पट्टिकाओं पर मछली, मगर, बकरी एवं मृग के चित्र बने हैं।
मनके – मनके (Beads) सेलखड़ी, गोमेद, शंख, सीप, हाथी दाँत मिट्टी सोने, चाँदी और ताँबे पर निर्मित ढोलाकार, अण्डाकार, अर्धवृत्ताकार आदि आकृति मिले हैं। चन्हूदड़ों तथा लोथल से मनके बनाने के कारखाने प्राप्त हुए है। सर्वाधिक संख्या में सेलखड़ पत्थर के मनके प्राप्त हुए है। बेलनाकार मनके सैन्धव सभ्यता में सर्वाधिक लोकप्रिय थे।
मृद्भाण्ड- मृद्भाण्ड अधिकांशतः लाल अथवा गुलाबी रंग के है। इन पर अलंकरण प्रायः काले रंग से हुआ है। अलंकरणों में त्रिभुज, वृत्त, वर्ग आदि ज्यामितीय आकृतियों, पीपल की पत्ती, खजूर, ताड़, केला आदि वनस्पतियों, वृषभ, हिरण, बारहसिंघा आदि पशुओं, मोर, सारस, बत्तख आदि पक्षियों तथा मछलियों का चित्रण विशेष लोकप्रिय है। मृद्भाण्डों पर भी हड्प्पन लिपि मिलती है। सैन्धव मृद्भाण्डों में खानेदार बर्तन, साधारण तश्तरियाँ, थालियाँ और घड़े के ढक्कन प्रमुख है।
लोथल से प्राप्त एक मृद्भाण्ड में एक वृक्ष के मुँह में मछली पकड़े हुए एक चिड़िया को दर्शाया गया है तथा नीचे एक लोमड़ी का चित्र है। यह पंचतन्त्र की प्रसिद्ध कथा चालाक लोमड़ी को दर्शाता है।
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