भारत में विविधता या विभिन्नता के लाभ एवं चुनौतियाँ क्या हैं ?
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विविधता या विभिन्नता किसे कहते है? तथा इसके प्रकार बताइये|
भारत में विविधता के लाभ
वैयक्तिक अध्ययन और विश्लेषण यह दर्शाते हैं कि बहुसांस्कृतिक राज्य व्यवस्थाओं में स्थायी सहनशील लोकतन्त्रों की स्थापना की जा सकती है। विविध समूहों के सांस्कृतिक अपवर्जन, बहिष्कारवाद में खत्म करने और बहुविधि तथा पूरक पहचानों का निर्माण करने के लिए स्पष्ट प्रयत्नों की आवश्यकता होती है। ऐसी प्रतिसंवेदी नीतियाँ विविधता में एकता का निर्माण करने के लिए ‘हम’ का भाव जागृत करने के लिए प्रोत्साहन देती हैं। नागरिक अपने देश तथा अपनी सांस्कृतिक पहचानों के साथ तादात्म्य स्थापित करने, सांक्षी संस्थाओं में अपना विश्वास बनाने और लोकतान्त्रिक राजनीति में भाग लेने तथा उसे समर्थन देने के लिए संस्थाओं तथा राजनीति के अवसर प्राप्त कर सकते हैं। ये सभी लोकतन्त्र को मजबूत करने और गहरा बनाने तथा सहनशील राष्ट्रों का निर्माण करने के प्रमुख कारक हैं। भारत के संविधान में इस अवधारणा को स्थान दिया गया है।
भारत में 80% से अधिक हिन्दू आबादी है लगभग 13.5% मुसलमान आबादी है, 2.5% ईसाई आबादी निवास करती है। इसके अतिरिक्त सिख, जैन, पारसी इत्यादि आबादी भारत के सम्पूर्ण जनसंख्या का हिस्सा है। सामुदायिक पहचानों के साथ राष्ट्र के सम्बन्धों की दृष्टि से भारत की स्थिति न तो आत्मसातकरणवादी है और ना ही एकीकरणवादी है। यद्यपि राष्ट्रीय एकीकरण को राज्य की नीति में लगातार महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है।
भारतीय समाज यह दर्शाता है कि अपनी विविधताओं के बावजूद यह एक अत्यन्त सशक्त लोकतन्त्र है, लेकिन आधुनिक भारत सम्पूर्ण देश पर एक अकेली हिन्दू पहचान को थोपने के लिए उत्सुक समूहों के उत्थान के साथ बहुविधि एवं पूरक पहचानों को दिए गए संवैधानिक वचनों के प्रति गम्भीर चुनौती का सामना कर रहा है।
संविधान के अनुच्छेद 29 के अनुसार
1. भारत में राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को जिसकी अपनी विशेष भाषा लिपि या संस्कृति है। उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
2. राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 30 के अनुसार
1. धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
2. शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबन्ध में है
भारतीय संस्कृति विश्व भर में प्रसिद्ध है। हमारी संस्कृति में भौगोलिक विशेषताओं की तरह बहुत सी विविधताएँ हैं। यहाँ विभिन्न प्रकार के त्यौहार, परम्पराएँ, खान-पान, पहनावा, रीति-रिवाज मनाए जाते हैं। सभी इनका सम्मान करते हैं। सभी सम्मिलित होकर इन्हें मनाते हैं, अपनाते हैं, यही विभिन्नता ही हमारी पहचान है। भारत की यह विभिन्नता उसे लाभान्वित करती है। यहाँ प्रत्येक प्रदेश की अपनी सांस्कृतिक परम्परा और लोकाचार हैं। यह विभिन्नता और विविधता भारत को एक सुन्दर पारम्परिक और सुसांस्कृतिक देश बनाती हैं। भारत में कोई भी किसी की परम्परा का उल्लंघन नहीं करते हैं। यहाँ सभी अपनी जीवन शैली और संस्कृति धरोहर के साथ मिल-जुल कर रहते हैं। हम भारतीय अपनी संस्कृति पर नाज करते हैं तथा दूसरों की परम्पराओं का भी सम्मान करते हैं। भारत की विविधता की यही विशेषता है।
भारतीय विविधता के समक्ष चुनौतियाँ –
‘विविधता’ शब्द असमानताओं के बजाय अन्तरों पर बल देता है। जब हम यह कहते हैं कि भारत एक महान सांस्कृतिक विविधता वाला राष्ट्र है तो हमारा तात्पर्य यह होता है कि यहाँ अनेक प्रकार के सामाजिक समूह एवं समुदाय निवास करते हैं। यह समुदाय, सांस्कृतिक चिन्हों जैसे – भाषा, धर्म, पंथ, प्रजाति या जाति द्वारा परिभाषित किए जाते हैं। जब यह विविध समुदाय भी किसी बड़े सत्व जैसे एक राष्ट्र का भाग होते हैं तब उनके बीच प्रतिस्पर्धा या संघर्ष के कारण कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसी कारण से विविधता कठोर चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकती हैं। कठिनाइयाँ इस तथ्य से भी उत्पन्न होती हैं कि सांस्कृतिक, भौगोलिक पहचानने में बहुत प्रबल होती हैं। वे तीव्र भावावेशों को भड़का सकती हैं और अक्सर बड़ी संख्या में लोगों को एकजुटकर देती हैं। कभी-कभी इन विविधता के अन्तर के कारण आर्थिक और सामाजिक असमानताएँ भी जुड़ जाती हैं और तब स्थिति और भी जटिल हो जाती है। एक समुदाय द्वारा महसूस की जा रही असमानताओं को दूर करने के लिए किए गये उपाय दूसरे समुदाय में उनके प्रति विरोध को भड़का सकते हैं। स्थिति उस समय और भी बिगड़ जाती है जब नदी जल रोजगार के अवसर या सरकारी धनराशियों जैसे दुर्लभ संसाधनों के बँटवारे का सवाल खड़ा होता है।
आप दैनिक जीवन में समाचार पत्रों, दूरदर्शन में आपको अनेक विघटनकारी ताकतें सक्रिय रूप से अपना काम करती हुई दिखाई देती हैं जो हमारे देश की एकता एवं अखण्डता को तार-तार करने पर तुली हैं। जैसे – साम्प्रदायिक दंगे, क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांगें, जातिगत विवाद, भाषायी भेदभाव इत्यादि आप यह सोचकर भी उद्विग्न हो उठते होंगे कि हमारी जनसंख्या के बड़े हिस्से में देशभक्ति की भावना का अभाव है और वे अपने देश भारत के भलाई के लिए उतनी गहराई से नहीं सोचते जितने कि आप या आपके अन्य सहपाठी, सहयोगी या सहकर्मी।
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