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आधुनिककालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ | हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल का परिचय

आधुनिककालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ
आधुनिककालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ

आधुनिक काल का प्रारम्भ

आधुनिककालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ- आधुनिक काल के प्रारम्भ के सम्बन्ध में डॉ. नगेन्द्र का मत है कि “सामान्यतः रीतिकाल के अन्त (1843) से आधुनिक काल का आरम्भ मानने की परम्परा रही है। नवीन सामाजिक और राजनीतिक चेतना के संवहन के फलस्वरूप सन् 1857 को यह गौरव दिया जाता है, किन्तु साहित्यिक क्षेत्र में नयी विचारधारा का प्रवेश वस्तुतः 1868 से हुआ।” आचार्य शुक्ल ने आधुनिक हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ संवत् 1900 से या सन् 1843 से माना है, किन्तु नवीन शोधों के परिप्रेक्ष्य में यह कहा जाता है कि “ऐकांतिक-रूप से इस साहित्य की प्रवृत्तियों का बीजवपन इससे भी 40-50 वर्ष पूर्व प्रारम्भ हो गया था, किन्तु उसका “पल्लव’ लगभग सम्वत् 1925 में हुआ, जबकि भारतेन्दु का आगमन हुआ। डॉ. शिवकुमार वर्मा ने लिखा है कि संवत 1850 से 1925 तक का समय आधुनिक हिन्दी साहित्य का संक्रान्ति या सन्धि काल है। यह 75 वर्ष की अवधि भारतेन्दु युग के आरम्भ से पूर्व की है जिसका एक छोर “फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना से सम्बन्धित है और दूसरा छोर भारतेन्दु के युगारम्भ से।”

इस प्रकार यही मानना उचित प्रतीत होता है कि आधुनिक काल की प्रारम्भिक सीमा रेखा सन् 1868 है। यह ठीक है कि सन् 1857 में नवीन चेतना स्पष्ट होने लग गई थी, किन्तु वह साहित्य में तो तभी अभिव्यक्त हुई, जब भारतेन्दु काव्य में सृजन प्रवृत्त हुए। हमारी धारणा भी यही है कि आधुनिक साहित्य का काल भारतेन्दु के रचना-काल से मानना ही ठीक है।

आधुनिककालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ

आधुनिक काल की हिन्दी साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का विवेचन इस प्रकार है-

1. पद्य के साथ गद्य का विकास-

इस युग में पद्य के साथ गद्य का भी विकास हुआ, परन्तु गद्य के विकास से पद्य के विकास में कोई बाधा नहीं हुई। गद्य का आविर्भाव और बहुमुखी विकास इस युग की प्रमुख विशेषता है। मुद्रण के अभाव में साहित्य का केवल काव्यांग ही विकसित हुआ था औश्र वस्तुतः आधुनिक काल से पूर्व साहित्य शब्द पद्य का पर्यायवाची भी था। आधुनिक काल की इस विशेषता को लक्ष्य करके आलोचकों ने इसका नामकरण गद्यकाल किया है।

2. खड़ी बोली का साहित्य क्षेत्र में एकाधिकार-

आधुनिक काल में दूसरा परिवर्तन भाषा का दृष्टिगोचर होता है। यथार्थ की प्रवृत्ति का प्रभाव पद्य की भाषा-शैली के परिवर्तन में दृष्टिगत होता है। गद्य के लिए खड़ी बोली ही उपयुक्त भाषा थी। धीरे-धीरे नवयुग की चेतना की अभिव्यक्ति के लिए काव्य में भी इसका व्यवहार होने लगा। धीरे-धीरे वर्तमान युग में यह खड़ीबोली हिन्दी राष्ट्रभाषा ही हो गई है, और उसका वैज्ञानिक विकास हो रहा है। भाषा के सम्बन्ध में एक बात और स्मरण रखने योग्य है, वह वह है- अंग्रेजी भाषा का प्रभाव खड़ीबोली का क्षेत्र व्यापक होने के साथ ही इसमें अंग्रेजी और उर्दू के शब्दों का समावेश भी हुआं। वर्तमान युग में सरकार द्वारा इसे संस्कृतगर्भित बनाने का प्रयत्न हो रहा है जिससे देश की अन्य प्रादेशिक भाषाओं के साथ इसका सामंजस्य स्थापित हो सके। साथ ही लोक-साहित्य की परम्परा भी चलती रही।

3. राष्ट्रीय भावना का विकास-

आधुनिक काल की तीसरी प्रमुख विशेषता राष्ट्रीय भावना की है, राजनीतिक चेतना इस युग की प्रमुख भावना रही है। इस चेतना का रूप प्रत्येक उत्थान में बदलता रहा है। प्रथम उत्थान में राजनीतिक चेतना के फलस्वरूप राज-भक्ति, देश-भक्ति, भारत के अतीत गौरव का गान और उसकी अर्वाचीन शोचनीय दशा पर विलाप, जागृति का सन्देश और भारत के बचे गौरव की रक्षा करने का प्रयत्न है। द्वितीय उत्थान में कांग्रेस की स्थापना तथा उसका अस्तित्व दृढ़ होने के साथ ही साहित्य में नवीन राष्ट्रीयता का प्रादुर्भाव हुआ। इस उत्थान की देशभक्ति की कविता में अतीत के गौरव के गान के साथ ही सामान्य जनता का महत्त्व बढ़ गया। कवियों ने गरीब किसान और मजदूरों की चर्चा की, विद्यार्थी-समाज के उत्थान का प्रयत्न किया और नवयुवकों में देशभक्ति का संचार किया। इसके साथ ही हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य भी राष्ट्रीय भावना का एक रूप बना। इस प्रकार द्विवेदी युग की देश-भक्ति की कविता में विविधता है। प्रथम प्रथम उत्थान देश की दुर्दशा का ज्ञान कराता है तो द्वितीय उत्थान में संगठन की सच्ची प्रेरणा है, तृतीय उत्थान में इस राष्ट्रीय भावना का और अधिक विकास हुआ। साहित्य में गाँधीजी का अहिंसात्मक राष्ट्र-प्रेम सिद्धान्त प्रतिफलित हुआ, आत्म-बलिदान का महत्त्व बढ़ा, सत्याग्राहियों की गौरव-गाथा का गान हुआ, साथ ही प्राचीन स्वतन्त्रता के पुजारियों का यथ-गान भी। मुख्य रूप से तृतीय उत्थान के राष्ट्रीय प्रेम-भाव में वीर-पूजा, स्वतन्त्रता प्रेम, मानवता-प्रेम, मानवतावादी विचारधारा का पोषण मिलती है। कहीं-कहीं अन्तर्राष्ट्रीयता और विश्व-बन्धुत्व के स्वर भी मुखरित हैं। चतुर्थ उत्थान में हमें राष्ट्रीय भावना में कांग्रेस की प्रशंसा के साथ ही हरिजन, श्रमिक एवं कृषक वर्ग के महत्त्व का प्रतिपादन मिलता है और राष्ट्रीय एकता के सूत्र मिलते हैं। वर्तमान काल में राष्ट्रीय-प्रेम अन्तर्राष्ट्रीय प्रेम से सम्बन्धित होकर विश्व शान्ति का तथा सह-अस्तित्व का प्रतीक बन गया है, पंचशील इसका आदर्श है। राष्ट्रीय भावना का यह विकास पद्य-गद्य (नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध) सभी क्षेत्रों में दृष्टिगोचर होता है। श्रीमती इन्दिरा गाँधी द्वारा अनुशासन के जिस नवयुग का उद्घाटन किया है, इसके क्रांतिकारी एवं दूरगामी प्रभाव होंगे।

4. सामाजिक क्षेत्र में नवयुग की चेतना-मानवतावाद-

आधुनिक काल चौथी विशेषता साहित्य में नवयुग की चेतना से अन्य रूपों का विकास है, जैसे-मानव का स्वरूप, सामाजिक अवस्था इत्यादि। अब साहित्य का साध्य उच्च वर्ग रह गया है और साहित्य जनवादी विचारों से समन्वित होकर यथार्थ की भूमिका पर विकसित हो रहा है। वर्तमान युग में तो यथार्थ की यह अनुभूति और व्यापक हो गयी और निम्न वर्ग तथा शोषितों की चेतना को व्यक्त करने में संलग्न हो गई। यहीं पर आकर मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने नवयुग की चेतना को गति प्रदान की है और साहित्य में यथार्थ के अंकन को महत्त्व दिया है।

विविधमुखी विकास-

आधुनिक काल को हम हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग कह सकते हैं। यह काल बहुत विस्तृत है और विविधमुखी विकास की व्यंजना करता है। इस युग में नवीन साहित्य के साथ ही परम्परा वाला लोकसाहित्य भी नवयुग की भावनाओं से समन्वित हो रहा है।

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