तथ्यों के विश्लेषण एवं व्याख्या की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
तथ्यों के विश्लेषण और व्याख्या की प्रक्रिया निम्नानुसार सम्पन्न होनी चाहिए-
1. तथ्यों का सम्पादन एवं मूल्यांकन-
इस प्रक्रिया में सर्वप्रथम एकत्रित तथ्यों की कर्मविषयकता और वैज्ञानिकता की पूर्णतः परीक्षा की जाती है, फिर उनके महत्व का मूल्यांकन होता है। तथ्यों का मूल्यांकन प्रतिनिधित्व की विशेषतानुसार ही किया जाना चाहिए। इसी स्तर पर तथ्यों के स्रोतों की प्रामाणिकता, विश्वसनीयता और व्यक्तिवादिता की भी जाँच करना करना आवश्यक है। किसी भी तथ्य के सन्दर्भ में कोई भी शंका-संदेह उत्पन्न होते ही उसको स्थायी या अस्थायी रूप में अलग कर देना चाहिए।
2. तथ्यों का वर्गीकरण-
तथ्यों का एक ढेर मात्र एकत्रित कर लेने से ही वैज्ञानिक परिणाम तक नहीं पहुंचा जा सकता। अतः जरूरी है कि एकत्रित तथ्यों को कुछ क्रमों में वर्गीकृत कर लिया जाए, ताकि वे अर्थपूर्ण बन सकें। एकत्रित तथ्यों का वर्गीकरण उनमें विद्यमान समानता और असमानता के आधार पर कुछ वर्गों तथा उपवर्गों में अथवा एक क्रम से किया जाना चाहिए। इस प्रकार के वर्गीकरण से जटिल और अस्पष्ट तथ्यों के ढेर सरल और स्पष्ट हो जाते हैं। अनुसंधान कार्य द्वारा किए जाने वाले वर्गीकरण की प्रकृति उसकी स्वयं की अन्तर्दृष्टि, अनुभव, योग्यता, अध्ययन का उद्देश्य, तथ्यों की पूर्णता एवं यथार्थता पर ही निर्भर होती है। अतः वर्गीकरण का कार्य जितनी योग्यता से होगा, वैज्ञानिक परिणाम तक पहुंचना शोधकर्ता के लिए उतना ही सरल हो जायेगा।
3. तथ्यों का संकेतन अथवा सूत्रीकरण –
सूचीकरण से तात्पर्य, वर्गीकृत तथ्यों के प्रत्येक वर्ग हेतु कतिपय निश्चित प्रतीकों को निर्धारित करना है। जहोदा एवं अन्य के अनुसार, “संकेतन वह प्राविधिक पद्धति है, जिसके माध्यम से तथ्य को क्रमबद्ध किया जाता है। इसे एक प्रक्रम कहा जा सकता है, जो कि तथ्यों को प्रतीकों में बदल देता है। प्रायः संख्याओं में जिसका सारणीयन एवं परिशजन किया जा सके।” ध्यान रहे कि सूत्रीकरण की आवश्यकता उन प्रश्नों हेतु नहीं होती, जिनके विकल्प सीमित होते हैं। स्पष्ट है कि सूत्रीकरण मात्र उन्हीं प्रश्नों हेतु अधिक उपयोगी होता है, जिनके अधिकतम सम्भाव्य विकल्प हैं।
4. तथ्यों का सारणीयन –
तथ्यों का सारणीयन (Tabulation) करने से उनमें सरलता एवं स्पष्टता आती है तथा गणनात्मक तथ्य अधिक व्यवस्थित होकर प्रदर्शन योग्य बन जाते हैं। डॉ. चतुर्वेदी के शब्दों में, “दो दिशाओं में पढ़ा जा सके, इस रूप में कुछ पंक्तियों एवं स्तम्भों में तथ्यों को एक क्रमबद्ध तौर पर व्यवस्थित करने की प्रक्रिया को सारणीयन कहा जाता है।” सामाजिक-शोध कार्य में सारणीयन को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, क्योंकि सारणीयन ही एकत्रित तथ्यों को सरल, स्पष्ट, आकर्षक एवं बोधगम्य बनाने का एकमात्र साधन है।
5. तथ्यों की व्याख्या –
एकत्रित तथ्यों के वानिक वर्गीकरण एवं अवधारणाओं के निर्माण करने से तथ्यों के सामान्य प्रतिमान भलीभाँति स्पष्ट हो जाते हैं, जिससे विभिन्न वर्गों में सम्मिलित सामग्री (तथ्य) का तुलनात्मक अध्ययन करना सम्भव हो जाता है। तुलना करने से विभिन्न तथ्यों और परिस्थितियों का स्पष्टीकरण होने के साथ-साथ उनका तुलनात्मक महत्व भी स्पष्ट हो जाता है। शोधकर्ताओं को तथ्यों का संकलन और तुलनात्मक विश्लेषण करने के अलावा उनके आधार पर निष्कर्ष भी निकालने पड़ते है और तार्किक दृष्टि से उनकी सार्थकता भी सिद्ध करनी होती है। इस प्रकार एकत्रित/संकलित तथ्यों का विश्लेषण करके सावधानी से निष्कर्ष निकालने तथा उनकी सार्थकता बताने की क्रिया को ही हम व्याख्या अथवा निर्वचन कहते हैं।
6. सामान्यीकरण –
वर्गीकरण की सामग्री से प्राप्त किए गये निष्कर्षों का सामान्यीकरण (Generalization) भी करना आवश्यक है, जिसका आशय है-वर्गीकृत सामग्री (तथ्यों) को इस प्रकार से छोटे-छोटे रूप में प्रस्तुत करना, जो कि अध्ययनकालीन दशाओं से समानता रखने वाली सभी घटनाओं पर समान रूप से लागू हो सके अर्थात् इस बात का निर्धारण करना कि जिस समस्या के बारे में उन निष्कर्षों को निकाला या प्राप्त किया गया है, वही निष्कर्ष उसी तरह की अन्य समस्याओं के अध्ययन के द्वारा भी प्राप्त होंगे। वैज्ञानिक सामान्यीकरण के लिए दो बातों की आवश्यकता होती है-पहला, अवधारणाओं का निर्माण और दूसरा सामाजिक नियमों का निर्माण।
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