प्रश्नावली की रचना में किन बातों पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए?
प्रश्नावली की रचना में निम्नलिखित तीन बातों पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए-
(1) अध्ययन की समस्या, (2) प्रश्नों की उपयुक्तता, प्रकृति एवं शब्दावली, (3) प्रश्नावली की बाह्य आकृति अथवा भौतिक पक्ष।
(1) अध्ययन की समस्या-
प्रश्नावली विधि द्वारा अध्ययन करने और प्रश्नों की रचना करने से पूर्व यह अत्यन्त आवश्यक है कि-
(क) यह स्पष्ट करने के लिए कि समस्या के किन पक्षों से सम्बन्धित सूचनाएँ प्राप्त करनी हैं और प्रश्न बनाने हैं समस्या के विभिन्न पक्षों का विश्लेषण किया जाये। ऐसा करने से इस बात की सम्भावना कम ही रहती है कि समस्या का कोई आवश्यक पक्ष छूट जाए। इसके साथ ही कम व अधिक महत्वपूर्ण पहलुओं के सम्बन्ध में कम और अधिक प्रश्नों का बंटवारा भी कर लिया जाता है;
(ख) प्रश्नों के निर्माण के विषय से सम्बन्धित उपलब्ध साहित्य का भी निर्माण किया जाना चाहिए।
(ग) प्रश्नों के निर्माण में विषय के सम्बन्ध में अनुसन्धानकर्ता के पूर्व अनुभव का उपयोग किया जाना चाहिए।
(घ) प्रश्नों के निर्माण में स्थानीय परिस्थितियों का ज्ञान रखने वाले लोगों का भी सहयोग लिया जाना चाहिए।
(ङ) प्रश्नों के निर्माण में विषय के विद्वान एवं मित्रों का भी सहयोग लिया जाना चाहिए।
(च) प्रश्नावली के निर्माण के समय अध्ययन की इकाई को भी निश्चित एवं परिभाषित कर लेना चाहिए।
(2) प्रश्नों की उपयुक्तता, प्रकृति एवं शब्दावली-
प्रश्नावली के निर्माण में प्रश्नों की आवश्यकता, प्रकृति, भाषा की सरलता, स्पष्टता एवं क्रम को ध्यान में रखना चाहिए। प्रश्नावली में अनावश्यक प्रश्नों को शामिल करने से समय, श्रम एवं धन का दुरुपयोग होता है अत: किसी भी प्रश्न को प्रश्नावली में शामिल करने से पूर्व उसकी उपयुक्तता को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। प्रश्नों के निर्माण के समय निम्न बातों को भी ध्यान में रखना चाहिए-
(क) प्रश्न स्पष्ट एवं सरल होने चाहिए जिससे कि उत्तरदाता उन्हें उसी अर्थ में समझे जिस अर्थ में प्रश्न पूछे गये हों।
(ख) इकाइयों की स्पष्ट परिभाषा देनी चाहिए जिससे कि सही उत्तर प्राप्त किया जा सके।
(ग) प्रश्नावली में सरल प्रश्नों को शामिल किया जाना चाहिए जिससे कि सामान्य बुद्धिवाला व्यक्ति भी उन्हें समझ सके क्योंकि अनुसन्धानकर्ता प्रश्नों के उत्तर देने में सूचनादाता की सहायता के लिए उपस्थित नहीं होता है।
(घ) प्रश्नावली में शामिल किये गये प्रश्न ऐसे होने चाहिए जो कि व्यक्ति की सही स्थिति को प्रकट कर सकें।
(ङ) प्रश्नावली में प्रश्नों की संख्या अधिक नहीं होनी चाहिए, क्योंकि अधिक प्रश्नों वाली प्रश्नावलियों के लौटकर आने की सम्भावना कम होती है।
(च) प्रश्नावली में प्रश्न इस प्रकार के होने चाहिए जिनका उत्तर संक्षिप्त एवं श्रेणीबद्ध रूप में प्राप्त किया जा सके।
(3) प्रश्नावली का बाह्य अथवा भौतिक पक्ष-
प्रश्नावली की सफलता न केवल प्रश्नों की भाषा एवं शब्दों पर निर्भर करती है बल्कि उसकी सफलता भौतिक बनावट पर भी निर्भर करती है। सूचनादाता का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रश्नावली की भौतिक बनावट पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि प्रश्नावली भरते समय अनुसन्धानकर्ता उपस्थित नहीं होता है। प्रश्नावली के भौतिक पक्ष हेतु निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए-
(क) सामान्यतः प्रश्नावली बनाने के लिए कागज का आकार 8 गुणे 12 इन्च अथवा 9 गुणे 11 इन्च का होना चाहिए, जिसे आसानी से मोड़कर लिफाफे में रखा जा सके।
(ख) प्रश्नावली के लिए प्रयोग किया जाने वाला कागज चिकना, मजबूत व टिकाऊ होना चाहिए।
(ग) प्रश्नावली बहुत अधिक लम्बी नहीं होनी चाहिए जिसे भरने में उत्तरदाता नीरसता महसूस करें।
(घ) प्रश्नावली को छपवाया जा सकता है या फिर साइक्लोस्टाइल बनाया जा सकता है।
(ङ) प्रश्नावली का निर्माण करते समय बायीं ओर 3/8″ एवं दायीं ओर 1/5″ अथवा 1/6″ का हाशिया छोड़ना आवश्यक है।
(च) एक विषय से सम्बन्धित सभी प्रश्नों को एक साथ तथा एक ही क्रम में लिखा जाना चाहिए और संख्या अधिक होने पर उन्हें व्यवस्थित करके विभिन्न समूहों में बाँट दिया जाना चाहिए। “संक्षेप में पूर्ण जाँच की प्रणाली कार्य-विधि पर त्रुटियों को, इसके पहले कि वे न्यून मात्रा में विश्वसनीय एवं प्रामाणिक जवाबों एवं उत्तरों के क्रय अनुपात में आने के रूप में भारी दण्ड थोपें, निकालने का साधन उपलब्ध कराती है। पूर्व जाँच आवश्यक रूप से एक परीक्षण एवं त्रुटि की प्रणाली है, जिसमें सफल परीक्षणों की पुनरावृत्ति की जाती है तथा जब अन्तिम रूप से प्रश्नावली अन्तिम समूह को भेजी जाती है तो त्रुटियाँ निकल जाती हैं।”
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