मृदा प्रदूषण क्या है? इसके स्त्रोत एवं प्रभाव का वर्णन कीजिए। What is Soil pollution? Explain its source and effect.
मृदा प्रदूषण (Soil Pollution)-प्राकृतिक स्रोतों या मानव -जनित स्रोतों अथवा दोनों स्रोतों से मृदा की गुणवत्ता में ह्रास को मृदा-प्रदूषण कहते हैं।
मृदा प्रदूषण के कारण-
मृदा की गुणवत्ता में ह्रास या अवनयन अधोलिखित कारणों से होता है। मृदा -प्रदूषण के स्रोतों को 5 वर्गों में विभक्त किया जा सकता है।
1. भौतिक स्रोत के अन्तर्गत-
जल वर्षा की तीव्रता एवं परिमाण, तापान्तर की विविधता, हवा की दिशा की अनिश्चितता , शैल-संरचना, वानस्पतिक आवरण की विषमता, मिट्टी का गुण आदि को सम्मिलित किया जाता है। ये कारक प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मिट्टी को प्रभावित करते हैं। फलस्वरूप मिट्टी के मौलिक गुणों में ह्रास होता है।
2. मृदा-प्रदूषण के जैव स्रोत या कारकों के अन्तर्गत-
उन सूक्ष्म जीवों तथा अवांछित पौधों को सम्मिलित किया जाता है जो मृदा की गुणवत्ता तथा उर्वरता को कम करते हैं। मृदा-प्रदूषण के जैव प्रदूषकों को चार प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जाता है-
-मनुष्यों द्वारा परित्यक्त रोगजनक सूक्ष्म जीव।
– पालतू मवेशियों द्वारा गोबर आदि के माध्यम से परित्यक्त रोगजनक सूक्ष्म जीव ।
-मिट्टियों में पहले से मौजूद रोगजनक सूक्ष्म जीव।
-आंतों में रहने वाले बैक्टीरिया तथा प्रोटोजोवा।
उक्त स्रोतों से सूक्ष्म जीव मिट्टियों में प्रवेश करके उन्हें प्रदूषित करते हैं। ये सूक्ष्म जीव आहार-श्रृंखला में भी प्रविष्ट हो कर मानव-शरीर में पहुंच जाते हैं।
3. वायु-जात स्त्रोत के अन्तर्गत-
मिट्टयों के प्रदूषक वास्तव में वायु के प्रदूषक ही होते हैं जिनका मृदा पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। ज्वालामुखियों, कारखानों की चिमनियों, स्वचालित वाहनों, ताप शक्ति संयंत्रों का उत्सर्जन होता है। इन प्रदूषकों का बाद में धरातलीय सतह पर अवपात होता है तथा ये विषाक्त प्रदूषक मिट्टियों में पहुंच कर उन्हें प्रदूषित कर देते हैं। अम्ल वर्षा के कारण मिट्टियों में अम्लता की अधिकता होती है तथा pH कम हो जाता है। मिट्टियों में अम्लता की अधिक मात्रा का सान्द्रण फसलों के लिए हानिकारक होता है। नार्वे, स्वीडन, फिनलैण्ड आदि देशों में अम्ल वर्षा के कारण मिट्टियों की अम्लता में वृद्धि के कारण वनों को अत्यधिक क्षति हुई है। कारखानों से उत्सर्जित क्लोरीन तथा नाइट्रोजन गैस जल से संयुक्त होकर मृदा को प्रदूषित करती हैं तथा उनके रासायनिक संगठन में परिवर्तन कर देती है। कणिकीय ठोस पदार्थ (Particulates Matters) मिट्टियों में पहुंच कर उन्हें प्रदूषित करते रहते हैं। इन कणिकाओं पदार्थों के सान्द्रण में वृद्धि होने से मिट्टियों के रासायनिक एवं भौतिक गुणों में परिवर्तन हो जाता है।
धात्विक कणिकीय पदार्थों (Metallic Particulates Matters) के कारण भी मिट्टियों के भौतिक तथा रासायनिक गुणों में परिवर्तन हो जाता है। उदाहरण के लिए तांबा गलाने वाले कारखानों के पास मिट्टियां इतनी अधिक प्रदूषित हो जाती है कि उनमें किसी तरह की वनस्पति नहीं उग पाती है।
4. रासायनिक उर्वरक तथा जैवनाशी रसायन-
रासायनिक उर्वरक फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं परन्तु इनके अत्यधिक प्रयोग के कारण मिट्टियों के भौतिक एवं रासायनिक गुणों में भारी परिवर्तन हो जाते हैं। सर्वाधिक खतरनाक प्रदूषक विभिनन प्रकार के जैवनाशी रसायन (कीटनाशी, रोगनाशी तथा शाकनाशी कृत्रिम रसायन) हैं जिनके कारण बैक्टीरिया सहित सूक्ष्म जीव विनष्ट हो जाते हैं। परिणामवरूप मिट्टियों की गुणवत्ता में भारी गिरावट आ जाती है।
जैवनाशी रसायन विषैले अवशिष्ट के रूप में आहार-श्रृंखला (Food Chains) में. प्रविष्ट होते हैं तथा अन्ततः मनुष्यों एवं जन्तुओं में आहार के माध्यम से प्रविष्ट हो जाते हैं। ज्ञातव्य है कि जैवनाशी रसायन पहले मिट्टियों में स्थित कीटाणुओं तथा अवांछित पौधों को विनष्ट करते हैं, तत्पश्चात् मिट्टियों की गुणवत्ता को कम करते हैं। जैवनाशी रसायनों को रेंगती मृत्यु (Creeping-Deaths) कहा जाता है।
5. औद्योगिक एवं नगरीय क्षेत्रों से निस्सृत अपशिष्ट पदार्थों के खेतों में डम्पिंग तथा नगरीय गन्दे नालों के प्रदूषित सीवेज जल से फसलों की सिंचाई के कारण मिट्टियों के भौतिक एवं रासायनिक गुणों में परिवर्तन हो जाने से मिट्टियों का अवनन (Degradation) प्रारम्भ हो जाता है।
मृदा प्रदूषण के प्रभाव (Effect of Soil Pollution)-
मृदा प्रदूषण प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मानव, जीव-जन्तु तथा वनस्पतियों को प्रभावित करता है। मृदा अपरदन का प्रभात स्थलाकृतियों पर पड़ता है। मृदा प्रदूषण से मिट्टी के मौलिक गुणों में ह्रास होता है। इसके उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। फसलों एवं वनस्पतियों का विकास कम हो जाता है।
मृदा प्रदूषण के अधोलिखित प्रभाव अंकित किये जाते हैं। यथा–
रोगनाशी, कीटनाशी, तथा शाकनाशी रसायनों का प्रयोग मृदा के भौतिक, रासायनिक तथा जैविकीय गुणों में ह्रास उत्पन्न करते हैं। फलस्वरूप मृदा की उर्वरता तथा उत्पादकता कम हो जाती है।
-मृदा प्रदूषण के कारण सूक्ष्म जीव, बैक्टीरिया आदि की मृत्यु हो जाती है। इससे खाद्य श्रृंखला पर प्रभाव पड़ता है क्योंकि सूक्ष्म जीव खाद्य शृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
-रासायनिक प्रदूषक तत्वों को पौधे अपनी जड़ों के माध्यम से ग्रहण करते हैं ऐसे प्रदूषण युक्त पौधों को जन्तुओं द्वारा खाये जाने पर प्रदूषक उनके शरीर में चले जाते हैं। जब मानव ऐसे प्रदूषित पौधों या जन्तुओं को ग्रहण करता है तब ये प्रदूषण मनुष्य की शरीर में पहुंच जाते हैं। फलस्वरूप अनेक रोग उत्पन्न होते हैं।
-मृदा प्रदूषण से मृदा अपरदन, मृदा अम्लीकरण, मृदा क्षारीयकरण आदि घटित होता है जिससे मृदा की उर्वरता एवं जल धारण क्षमता में कमी आती है। फलस्वरूप उत्पादन कम होता है। विश्व की लगभग 30% भूमि लवणीकरण से प्रभावित है। भारत में पंजाब व हरियाणा में अत्यधिक सिंचाई व उर्वरक के प्रयोग के कारण मृदा अम्लीकरण बढ़ रहा है तथा उत्पादकता घटती जा रही है।
-अवनलिका (Gully) अपरदन द्वारा मृदा का बहाव होता है जिससे इसके पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। भूमि ऊबड़-खाबड़ हो जाती है।
-मृदा प्रदूषण से वनस्पति व वनों में कमी होती है फलतः वैश्विक तापमान में वृद्धि तथा बाढ़ व सूखा जैसे प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं।
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