नाभिकीय प्रदूषण का अर्थ
परमाणु ऊर्जा से उत्पन्न कचरे के प्रदूषण को परमाणु अथवा नाभिकीय प्रदूषण कहते है। नाभिकीय ऊर्जा के केन्द्रकों से ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए दो नाभिकीय विधियाँ अपनायी जाती हैं- (1) विखण्डन (Fission) एवं (2) सम्मिलन (Fusion) किया जाता है। एक परमाणु केन्द्रक का अतिसूक्ष्म टुकड़ों में टूटना ‘नाभिकीय विखण्डन’ है। परमाणु केन्द्रकों का ‘सम्मिलन ‘(Combination) द्वारा भारी केन्द्रकों का निर्माण नाभिकीय सम्मिलन है। इन दोनों क्रियाओं का सहउत्पाद (Byproduct) ऊर्जा का विसर्जन है। नाभिकीय ऊर्जा परीक्षण में दोनों नाभिकीय विखण्डन एवं नाभिकीय सम्मिलन विधियां क्रियान्वित होती है। इस विधि से रासायनिक क्रिया, (जैसे -दहन) की अपेक्षा प्रति परमाणु एक लाख (1,00,000) गुना अधिक ऊर्जा निकलती है। नाभिकीय बमों (Nuelear Bombs) द्वारा यह समस्त ऊर्जा एक साथ उत्पन्न होती है जो एक विशाल मात्रा में ऊष्मा एवं शक्ति विसर्जित करती है और आसपास के सभी चीजों को क्षतिग्रस्त अथवा नष्ट कर देती है।
नाभिकीय प्रदूषण के कारण (Causes of Neclear Pollution)-
नाभिकीय प्रदूषण दो प्रकार के प्राकृतिक एवं मानवजन्य स्रोतों से होते हैं। सौर किरणें, भू-पर्पटी में विद्यमान रेडियोन्यूक्लियोटाइडों और आन्तरिक विकिरण इसके प्राकृतिक स्रोत है। प्रकृति में यूरेनियम एवं थोरियम अधिकता में पाए जाने वाले रेडियोधर्मी तत्व हैं और ये विभिन्न चट्टाचों, अयस्कों, मिट्टी, नदी और समुद्री जल में विद्यमान रहते हैं। नाभिकीय परीक्षण, नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र, रेडियोधर्मी अयस्कों का शोधन सयंत्र, रेडियोधर्मी पदार्थो का औद्योगिक, चिकित्सा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में उपयोग, रेडियोधर्मी जमाव इत्यादि विकिरण के मानवकृत स्रोत हैं। विकिरण उपचार में रोगियों को दिया जाने वाला रेडियोआइसोटोप (Radioisotopes) प्रबन्धन अब नाभिकीय प्रदूषण के खतरनाक स्रोत के रूप में उभर कर सामने आया है।
रेडियोधर्मी रियेक्टर में विखण्डन नियंत्रित करने के लिए यूरेनियम (Uranium का एक आइसोटोप234U है जिसका अर्द्ध जीवनकाल 2,50,000 वर्ष आंका गया है) का उत्खनन से लेकर शोधन तक पूरे नाभिकीय चक्र में व्यय नाभिकीय ईंधन का पुनर्शोधन, शक्ति ऊर्जा संयंत्रों की विस्थापना (Decommissioning) और रेडियोधर्मी अपशिष्टों के विसर्जन से विकिरण की विभिन्न मात्राएं पर्यावरण में प्रवेश करती जाती हैं जो जीवों के लिए हानिकारक होती हैं।
परमाणु बम विस्फोट के समय 15 प्रतिशत ऊर्जा रेडियोधर्मिता के रूप में उत्सर्जित होती है जिसका रेडियोधर्मी अवपातन (Fallout) होता है और वह पृथ्वी पर गिरकर मिट्टी, जल एवं वनस्पतियों के साथ मिल जाती है। नाभिकीय अवपातन के लगभग 200 समस्थानिक आईसोटोप्स) उपलब्ध हैं, जिनमें से स्ट्रांशियम (89Sr व 90Sr), सिस्मीयम 137Cs तथा कार्वन 14C अत्यधिक खतरनाक हैं। नाभिकीय रियेक्टरों से नाभिकीय ईधन संचालन के दौरान भारी मात्रा में लम्बी आयु के रेडियोन्यूक्लीयोटाइडयुक्त रेडियोधर्मी अपशिष्ट विसर्जित होते हैं जिसका जनस्वास्थ्य पर अत्यन्त गम्भीर प्रभाव पड़ता है। ताप ऊर्जा संयत्र एवं उर्वरक उद्योगों में बड़े पैमाने पर कोयला दहन की आवश्यकता पड़ती है, इस प्रकार के संयंत्र भी नाभिकीय प्रदूषण के स्रोत होते हैं।
नाभिकीय प्रदूषण का दुष्प्रभाव (Effects of Neclear Hazards)
खाद्य श्रृंखला के विभिन्न स्तरों पर एकत्रित अनेक रेडियोधर्मी तत्वों का जैवआवर्धन होता रहता है। रेडियोधर्मी विकिरण डी.एन.ए, अणुओं में परिवर्तन (Alteration) कर देता है जिससे कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि (Spawning) होने लगती है और इसके परिणामस्वरूप एक्यूट ट्यूमर पैदा हो जाता है। यह विकिरण जीन उत्परिवर्तन एवं गुणसूत्रीय अनियमितताओं को भी जन्म देता है। तीक्ष्ण विकिरण से बालों का झड़ना, आन्त्र घाव का फैलना, मुख एवं मसूड़ों से रक्त स्राव एवं आकस्मिक मृत्यु हो सकती है। चिरकालिक विकिरण से ल्यूकेमिया, रक्ताल्पता, त्वचा एवं अंगों का कैंसर एवं आयु में कमी जैसे रोग सकते हैं। आनुवंशिक अनियमितता के कारण गर्भस्थ भ्रूण की मृत्यु, नवताज शिशु (Neonatal) की मृत्यु या आगामी पीढ़ियों में जन्मजात विकृतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
सर्वप्रथम परमाणु बम विस्फोट का प्रभाव जापान के हिरोशिमा नगर पर 6 अगस्त 1945 एवं दूसरा नागासाकी नगर पर देखने को मिला। इस विस्फोट से हिरोशिमा में कम-से-कम एक लाख लोगों के मरने, गम्भीर रूप से घायल होने एवं गायब होने की घटना मात्र 15 वर्ग किमी. क्षेत्र में देखी गयी एवं नागाशाकी के 7 वर्ग किमी. क्षेत्र में लगभग 49000 लोगों का भी यही हाल हुआ था। सोवियत संघ के चेरनोबिल नाभिकीय ऊर्जा केन्द्र, यूकेन में 25 अप्रैल 1986 को नाभिकीय दुर्घटना हुई जिसमें लगभग 2000 लोगों की मृत्यु हो गयी।
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