पर्यावरण विधि (Environmental Law)

ध्वनि प्रदूषण क्या है , परिभाषा , कारण , प्रभाव , रोकथाम के उपाय

ध्वनि प्रदूषण क्या है
ध्वनि प्रदूषण क्या है

ध्वनि प्रदूषण क्या है? इसके उत्पन्न होने के कारण एवं रोकथाम के उपाय लिखिए। What is Noise pollution? Write its originating factors and state measure for its control.

ध्वनि प्रदूषण का अर्थ (Meaning of Noise or Sound Pollution)

अवांछित आवाज जिससे मानव के कानों को कष्ट हो, उसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। आज वर्तमान युग में टेलीविजन, टेपरिकार्ड, स्टीरियो, ट्रेनों के हॉर्न, गाड़ियों के हॉर्न, गाड़ियों का शोर इत्यादि मशीनों से ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा है। शोर ध्वनि ऊर्जा का वह प्रकार है जिसे जीवधारी सहन नही कर पाते हैं। जब ये आवश्यकता से अधिक होता है तब इसे शोर कहते हैं। शोर की तीव्रता बेल से नापी जाती है। मनुष्य शून्य डेसीबल की तीव्रता ही सुन सकता है। लगभग 25 डेसीबल तक शांति का वातावरण बना रहता है। 80 डेसीबल पर मनुष्य में बेचैनी देखने को मिलती है। 130 से 140 डेसीबल की ध्वनि मनुष्य के लिए पीड़ादायक होती है। ध्वनि प्रदूषण मुख्य रूप से औद्योगिक संस्थानों, मशीनों, टेजीविजन, रेडियो, हवाई जहाज, घरेलू उपकरण, घास काटने की मशीन या किसी भी प्रकार के ऐसे उपकरण जिनसे ध्वनि उत्पन्न होती है, ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं।

साइमंस के अनुसार, “बिना मूल्य की अथवा अनुपयोगी ध्वनि, ध्वनि प्रदूषण है।”

ध्वनि प्रदूषण के स्रोत/कारण

शोर या ध्वनि प्रदूषण के स्रोतों को मोटे तौर पर निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

(1) स्थिर स्त्रोत (Stationary Sources)-

इसके अन्तर्गत उद्योगों में मशीनों की खड़खड़ाहट बमों का विस्फोट, डायनामाइट की ध्वनि, रेडियो तथा ध्वनि विस्तारक यंत्र (loud speaker तथा amplifier) को सम्मिलित किया जाता है।

(2) गतिशील स्रोत (Corridor or Mobile Source)-

इसके अन्तर्गत मोटर वाहन, वायुयान, राकेट इंजन तथा रेलगाड़ियों से होने वाली ध्वनि को शामिल किया जाता है। भारत में ध्वनि प्रदूषण के स्रोतों को निम्न वर्गों में रखा गया है-

(i) परिवहन के साधनों से उत्पन्न शोर-परिवहन के साधनों में रेलगाड़ियों, हवाई जहाज, दुपाहिया वाहन, मोटर, टैम्पो, टैक्सी आदि से जो शोर होता है उसे इस वर्ग में रखा जाता है। स्वचालित मोटर वाहन सामान्यत: 90db का शोर करते हैं। हवाई जहाज उतरते समय 150db तथा राकेट इंजन 180db-195db शोर करता है। कार का हार्न 85db तथा साइलेंसर रहित मोटरसाइकिल 120db शोर उत्पन्न करती है। रेलवे प्लेटफार्म पर 100db शोर सुनाई देता है।

(ii) कल कारखानों की मशीनों की गड़गड़ाहट से उत्पन्न शोर-कल कारखानों की मशीनों से होने वाली आवाज को इस कोटि में रखा जाता है। रायफल, तोप, गोलाबारी, स्टोन
क्रेशर, क्रेन, जैक हैमर, गोलाबारी पटाखों, बुल्डोजरों, ट्रकों, डायनामाइट द्वारा चट्टानों के विस्फोट से होने वाले शोर को इसमें सम्मिलित किया जाता है। सुपर सोनिक विमानों की गूंज से भी असहनीय शोर पैदा होता है।

(iii) घरेलू मनोरंजन के साधनों द्वारा उत्पन्न शोर-मनुष्य अपने मनोरंजन के लिये रेडियो, दूरदर्शन, टेपरिकार्ड, सिनेमा तथा वीडियो आदि को सुनता व देखता है। आर्केस्टा, सिनेमा, नाचघर, स्टीरियो म्यूजिकल प्लेयर, पाप संगीत, नगाड़ों, ढोल, ड्रम, ट्रम्पेट तथा सायरनों से होने वाली आवाज से कानों के पर्दे फटने लगते हैं।

(iv) विज्ञापन, शादी-ब्याह, भजन-कीर्तन आदि से उत्पन्न शोर-अनेक सामाजिक धार्मिक अनुष्ठानों के समय गुरुद्वारों, मन्दिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों में भजन-कीर्तन पूजा जमराता तथा विज्ञापनों के प्रचार में असहनीय ध्वनि उत्पन्न होती है।

(v) राजनैतिक क्रियाकलाप-राजनैतिक क्रियाकलाप भी ध्वनि प्रदूषण को जन्म देते हैं। चुनाव प्रचार के लिये भाषणों में विभिन्न राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि लाउडस्पीकरों का प्रयोग करके ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि करते हैं। विजय जूलूस व खुशियाँ मनाते समय बैंड, ढोल तथा नगाड़े पीटने से शोर पैदा होता है।

(vi) प्राकृतिक स्रोत-मानवीय क्रिया-कलापों से उत्पन्न शोर के अलावा कुछ प्राकृतिक शक्तियों द्वारा भी ध्वनि प्रदूषण पैदा किया जाता है। इनमें बादलों की गर्जना तथा तेज गति से चलने वाली हवायें, जीव जन्तुओं, शेर, हाथी, कुत्ता जैसे पशुओं द्वारा की जाने वाली आवाजों को शामिल किया जाता है।

ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के लिये उपाय

शोर या ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिये निम्न उपाय किये जा सकते हैं-

(i) वाहनों में तेज एवं कर्कश आवाज वाले प्रेशर हार्न के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिये।

(ii) घनी नगरीय आबादी हवाई अड्डों तथा कल-कारखानों से दूर होनी चाहिये।

(iii) कारखानों में शोर से बचने के लिये अटेन्येटर्स’ (Attenuators) लगाये जाने चाहिये।कोलाहल पूर्ण कारखानों में कामगारों को इयर प्लग (Ear Plug) अवश्य पहनना चाहिये।

(iv) मशीनों में ग्रीज (Greasc) लगाकर उन्हें चिकना रखना चाहिये ताकि उनसे खड़ खड़ाहट की आवाज कम हो।

(v) शोर करने वालों खिलाफ आवाज उठाई जानी चाहिये तथा जनता को शोर से होने वाले दुष्परिणामों के विषय में जानकारी देना चाहिये।

(vi)सड़क यातायात के निश्चित नियमों पर अमल करके आवासीय क्षेत्रों में कोलाहल के स्तर को काफी कम किया जा सकता है।

(vii) बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन, वायु अड्डा आदि स्थलों का चयन भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों से दूर किया जाना चाहिये।

(viii) ध्वनि पैदा करने वाले वाहनों को सड़कों से हटा लेना चाहिये तथा नियमित समय पर वाहनों की जाँच करते रहना चाहिये। मशीनों के पुराने पुों को बदलकर नये पुर्जे लगाये जाने चाहिये।

(ix) ध्वनि पैदा करने वाले धार्मिक अनुष्ठानों (शादी-ब्याह, रतजगा, भजन-कीर्तन, नमाज, पूजा, चुनाव प्रचार, विज्ञापन, घंटियों, सायरनों की आवाजों पर अंकुश लगाया जाना चाहिये।

(x) भारी वाहनों को आवासीय क्षेत्रों से दूर रखना चाहिये।

(xi) अधिक शोर करने वाले क्षेत्रों में आम, इमली, ताड़, नारियल नीम आदि के वृक्ष लगाने से 10 से 15db तक शोर कम हो जाता है।

(xii) अस्पतालों, शिक्षा संस्थाओं, पुस्तकालयों तथा अनुसन्धान केन्द्रों को ध्वनि प्रदूषण रहित क्षेत्रों में स्थापित करना चाहिये।

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव-

ध्वनि प्रदूषण के निम्नलिखित प्रभाव होते हैं-

(1) लगातार शोर सुनने के कारण सुनने की क्षमता कम हो जाती है और सिर में दर्द रहता है।

(2) शोर की सीमा 90 डेसीबल के ऊपर होने पर त्वचा में अचानक उत्तेजना आती है जिससे मनुष्य का स्वभाव उग्र हो जाता है।

(3) लगातार शोर से अल्सर, हृदय रोग हो जाते हैं।

(4) अधिक शोर के कारण हार्मोनो के स्रावण पर फर्क पड़ता है।

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