पर्यावरण का विकास development of environment in hindi
पर्यावरण का विकास-पर्यावरण का प्रकृति से अटूट सम्बन्ध है। इसके दो क्षेत्र हैं। एक को जैव मण्डल (Biosphere) तथा दूसरे को पारिस्थैतिकी मण्डल (Ecosphere) कहते हैं। जैव मण्डल पृथ्वी का वह भाग है जिसमें शाश्वत रूप से जीवन सम्भव है और जिसमें सभी जीवधारी प्राणी या पौधे (Living Organism) पाये जाते हैं। इसके अन्तर्गत पृथ्वी सम्बन्धी समुद्र और महाद्वीपों की ऊपरी सतह तथा सन्नद्ध वायुमण्डल उदाहरणार्थ क्षोभमण्डल (Troposphere) सम्मिलित हैं। परन्तु ध्रुवीय बर्फीली चोटी और हिमरेखा के ऊपरी उच्च पहाड़ी ढलान इसमें सम्मिलित नहीं है। ऐसे भाग जिन्हें उच्च जैवमण्डलीय (parabiosheric) कहा जाता है जैव मण्डल के साथ एक वृहद व्यवस्था में सम्मिलित हैं जिन्हें परिस्थिति मण्डल कहते हैं। परिस्थिति मण्डल (Ecophere) के अन्तर्गत स्थलमण्डल (Lithophere) की ऊपरी सतह और क्षोभमण्डल (Trophosphere) के ऊपर का पूरा वायुमण्डल समाहित है।
पर्यावरण गतिमान होता है। यह समय और स्थान के साथ-साथ परिवर्तित होता रहता है। इसी के कारण जीवों की जीवन-क्रियायें संचालित होती हैं और जीवन-चक्र पूरा होता है।
पर्यावरण के तत्व-
इन्हें दो प्रमुख समूहों में विभक्त किया जा सकता है-
1. अजैव या भौतिक तत्व समूह (Abiotic or Physical Components)-
(i) जलवायविक तत्व (Climate factors)-सूर्य, प्रकाश एवं ऊर्जा, तापमान, हवा, वर्षा आर्द्रता, वायुमण्डलीय गैस आदि।
(ii) स्थलजात तत्व (Topographic Factors)-उच्चावच, ढाल, पर्वत, दिशा
(ii) जलस्रोत (Water Bodies)-सागर, झील, नदी, भूमिगत जल आदि।
(iv) मृदा (Soil)-मृदा रूप, मृदा जल, मृदा वायु आदि।
(v) खनिज एवं चट्टानें (Mineral & Rocks)-धात्विक एवं अधात्विक खनिज, ऊर्जा खनिज एवं चट्टानें।
(vi) भौगोलिक स्थिति (Geographical Location)-तटीय, मध्य प्रदेशीय,पर्वतीय आदि।
2. जैव तत्व समूह (Biotic Component)-
वनस्पति, जीव-जन्तु, मानव एवं सूक्ष्म जीव आते हैं। प्रो. बर्नाड ने भौगोलिक पर्यावरण को दो भागो में बाँटा है-
(i) भौगोलिक पर्यावरण (Physical Environment)-इसके अन्तर्गत अजैविक तत्व आते हैं, जैसे-
(अ) सृष्टि सम्बन्धी (Cosmic)-जैसे-सूर्य का ताप, विद्युत सम्बन्धी अवस्थायें, उल्कापात, चन्द्रमा के आकर्षण का ज्वार-भाटा पर प्रभाव।
(ब) भौतिक भौगोलिक (Physio-Geographic)-जैसे–पर्वत, समुद्र, नदियाँ, घाटियाँ, दरे आदि।
(स) मिट्टी।
(द) जलवायु-इसमें मुख्यतया तापमान का सम्बन्ध, आर्द्रता तथा ऋतुओं का चक्र आता है।
(य) अकार्बनिक पदार्थ (Inorganic)- इसमें खनिज पदार्थ, धातुएँ तथा पृथ्वी के रासायनिक गुण आते हैं।
(र) प्राकृतिक साधन (Natural Agencies)-जैसे-जलप्रपात, हवायें, ज्वार-भाटा, सूर्य की किरणें आदि।
(व) प्राकृतिक यांत्रिक प्रक्रियायें (Natural Mechanical Process)- जैसे-पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण।
(ii) जैविकीय या कार्बनिक पर्यावरण (Biological or Organic Environment)
(क) सूक्ष्म अवयव (Micro-Organism)-इसके अन्तर्गत कीटाणु तथा बैक्टीरिया आदि आते हैं।
(ख) परोपजीवी कीटाणु (Parasites Insects)-ये फसलों पर प्रभाव डालने वाले कीट होते हैं।
(ग) पेड़-पौधे।
(घ) भ्रमणशील पशु।
(च) हानिप्रद पशु और वृक्ष।
(छ) वृक्षों एवं पशुओं की परिस्थिति-यह प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य को प्रभावित करती है।
(ज) पशुओं के जन्म के पूर्व का वातावरण।
(झ) प्राकृतिक जैविकीय प्रक्रियायें (Natural Biological Process) इनमें प्रजनन, विकास, रक्त संरचना तथा मल निर्गमन आदि की क्रियायें आती हैं।
(iii) पर्यावरण के प्रमुख घटक (Factors of Environment)-
पर्यावरण मृदा, ऊर्जा, वायु, जल एवं जीव नामक पाँच प्रमुख घटकों की अन्तक्रियाओं द्वारा निर्मित होता है। इन घटकों को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(क) जैविक पर्यावरण (Biological Environment)-इसमें सभी जीवधारी सम्मिलित हैं, जैसे- हरे पौधे, पर्णरहित पौधे, सूक्ष्म जीव, कीटाणु, प्राणी, मनुष्य आदि सम्मिलित
(ख) भौतिक (निर्जीव) पर्यावरण (Physical Environment)-जल, वायु, खनिज, शैल, मृदा, सौर ऊर्जा और ताप, पृथ्वी के धरातल की संरचना, अग्नि गुरुत्वाकर्षण, भौगोलिक स्थिति।
(ग) सांस्कृतिक पर्यावरण (Cultural Environment)-बस्तियाँ, आर्थिक गतिविधियाँ, धर्म, रहन-सहन की दशा, राजनैतिक दशा, स्थानान्तरण, पुनरुत्पादन एवं समायोजन।
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