पर्यावरण विधि (Environmental Law in Hindi)
पर्यावरण विधि (Environmental Law in Hindi)-पर्यावरण विधि अन्य विधियों में प्रतिपादित सिद्धान्तों, संकल्पनाओं एवं मानकों का संश्लेषण है। इस प्रकार पर्यावरण विधि का तात्पर्य ऐसी विधियों से है जो पर्यावरण से सरोकार रखती है अथवा सम्बन्धित है। पर्यावरण विधि में पर्यावरण संरक्षण हेतु विभिन्न नियमों एवं उनके उल्लंघन पर दाण्डिक प्रावधानों का उपबन्ध होता है। पर्यावरण विधि का सम्बन्ध कई अन्य विधाओं जैसे-जैविकी, पारिस्थतिकी, मनोविज्ञान, राजनीतिशास्त्र एवं लोक प्रशासन से होता है परन्तु पर्यावरण विधि का सबसे घनिष्ट सम्बन्ध प्रशासनिक विधि से होता है, क्योंकि प्रशासन पर ही इस विधि के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी होती है।
विभाजन-
पर्यावरण सुरक्षा से सम्बन्धित सभी विधियाँ पर्यावरण विधि कहलाती हैं।
इस दृष्टि से पर्यावरण विधि को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
(1) जल (प्रदूषण निवारण तथा नियन्त्रण) अधिनियम 1974,
(2) वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियन्त्रण) अधिनियम 1981,
(3) ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियन्त्रण) नियमावली 2000,
(4) पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986,
(5) वन (संरक्षण) अधिनियम 1980,
(6) वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 |
पर्यावरण विधि के कार्य-
पर्यावरण विधि का कार्य अत्यन्त व्यापक है। इसके अन्तर्गत वे सभी कार्य आते हैं जिससे पर्यावरण का संरक्षण हो सकता है और पर्यावरण की अनुकूलतम् वृद्धि की जा सकती है। संक्षेप में पर्यावरण विधि का प्रमुख कार्य निम्न है-
(1) पर्यावरण सुरक्षा हेतु लोगों को जागरूक करना,
(2) पर्यावरण को क्षति पहुँचाने वालों के लिए दण्ड का प्रावधान करना,
(3) पर्यावरण सुरक्षा से सम्बन्धित विभिन्न शब्दावलियों को परिभाषित करना।
(4) पर्यावरण को बढ़ावा देने के लिये नियमों का निर्माण करना,
(5) वन्य जीवों की संरक्षा का प्रबंध करना,
(6) अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर पर्यावरण सुरक्षा के प्रति भारतीय दृष्टिकोण को पेश करना,
(7) पर्यावरण की सुरक्षा कर भावी पीढ़ियों के लिये खुशहाल जीवन का मार्ग प्रशस्त करना,
(8) वनों की कटाई पर प्रतिबन्ध लगाना एवं विस्थापन को रोकना,
(9) लोगों को पर्यावरण के प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से सावधान करना,
(10) पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम हेतु प्रावधान करना,
(11) लोगों के लिये स्वच्छ जल एवं वायु का प्रबन्ध करने हेतु नियमों का निर्माण करना,
(12) प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा करना,
(13) मानव जाति को नष्ट होने से बचाना आदि।
पर्यावरण विधि को अधिक प्रभावी बनाने हेतु सुझाव-
पर्यावरण विधि को अधिक प्रभावी बनाने हेतु दस सुझाव निम्न हैं-
1. पर्यावरण के प्रति प्रत्येक बालक में प्राथमिक शिक्षा से ही स्वचेतना की जागृति उत्पन्न हो जाये।
2. पर्यावरण शिक्षा को एक विषय के रूप में शुरू से ही शिक्षा का एक अंग बनाया जाये।
3. वन लगाने की या पेड़ लगाने की प्रवृत्ति उत्पन्न कर साथ ही वनों के महत्व को प्रचारित किया जाये। इसमें टीवी, आकाशवाणी तथा सभी तरह के प्रचार माध्यमों का सहयोग लेना जरूरी है
4. सीमित परिवार का नारा सन्तुलित पर्यावरण के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
5. मनुष्य अपनी आवश्यकताओं व महत्वाकांक्षाओं को सीमित करे या कम से कम प्रकृति का दोहन करे व प्राकृतिक संसाधनों का उपयेग भी कम से कम करे।
6. ऊर्जा के अपव्यय को रोके व गैर पारम्परिक ऊर्जा स्रोत जो कि ऊर्जा के अक्षय भण्डार हैं, जैसे सौर ऊर्जा का उपयोग करे। इससे पारस्परिक ऊर्जा की बचत होगी, साथ ही प्रदूषण भी कम होगा।
7. परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाई जाए, क्योंकि इसमें बड़े पैमाने पर पर्यावरण प्रदूषण होता है।
8. उद्योगों द्वारा निकलने वाले बहिस्रावी पदार्थों की व्यवस्था के लिए कानून को दृढ़ता से लागू करें।
9. विश्व में शान्ति के प्रयास किये जाएँ क्योंकि युद्ध और हिंसा से पर्यावरण को भारी खतरा पैदा हो रहा है। जैसे कुवैत इराक व बहुराष्ट्रीय सेना युद्ध में वायुप्रदूषण व अन्य प्रदूषणों से जन-धन व पर्यावरण को भारी हानि हुई।
10. वाहनों की संख्या को सीमित किया जाये व इनसे निकलने वाले धुएँ से होने वाले प्रदूषण से बचा जाना चाहिए।
11. अधिक से अधिक पेड़ व वन लगाये जायें तो पर्यावरण में सुधार किया जा सकता है तथा पर्यावरणीय असन्तुलन को रोका जा सकता है। इससे जहाँ प्रकृति का सौन्दर्वीकरण होगा वहीं प्रदूषण व मृदा अपरदन की समस्या से भी मुक्ति मिलेगी। क्योंकि नंगी धरती पर बारिश का पानी जब सीधा गिरता है तो मृदा की उर्वर परत को अपने साथ बहाकर नदियों में ले जाता है।
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