पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषा, प्रकार तथा विशेषता meaning and definition of environment its kinds and characteristic
पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषा,प्रकार तथा विशेषता environment in hindi – पर्यावरण शब्द परि + आवरण से मिलकर बना है जिसका तात्पर्य है सब ओर से घेरे हुए। यह मनुष्य को सभी ओर से आवृत्त किये हुए है और उसके जीवन एवं क्रियाकलापों को प्रभावित करता है। दूसरे शब्दों में वातावरण या पर्यावरण में वे समस्त तत्व, वस्तुयें, स्थितियाँ तथा दशायें सम्मिलित की जाती हैं जिनका प्रभाव मानव के संपूर्ण जीवन पर सतत् पड़ता है।
पर्यावरण की परिभाषा
जर्मन विद्वान एच. फिटिंग (H. Fitting) के अनुसार, “जीव के परिस्थितिक-कारकों का योग (the totality of milien factors of an organism) ही पर्यावरण है। अर्थात् जीवन की परिस्थितियों के समस्त तथ्य मिलकर वातावरण का निर्माण करते हैं।”
अमेरिकन वैज्ञानिक निकोलस (Nicholas) के शब्दों में “वातावरण या पर्यावरण समस्त बाहरी दशाओं (External Conditions) तथा प्रभावों (influences) का योग है जो प्रत्येक प्राणी के जीवन विकास पर प्रभाव डालते हैं।”
ए. जी. टांसले (A.G. Tanslay) के शब्दों में, “प्रभावकारी दशाओं (Effective Conditions) का वह संपूर्ण योग, जिसमें जीव निवास करते हैं, पर्यावरण कहलाता है।”
अमेरिकन विद्वान हर्सकोविट्स (Herskovits) के अनुसार, “पर्यावरण उन समस्त बाह्य दशाओं (External Conditions) और प्रभावों (Influencess) का योग है जो प्राणियों के जीवन और विकास पर प्रभाव डालते हैं। दूसरे शब्दों में, “पर्यावरण सम्पूर्ण बाह्य परिस्थितियों और उसका जीवधारियों पर पड़ने वाला प्रभाव है जो जैव जगत के जीवन चक्र का नियामक है।”
प्रसिद्ध भारतीय भूगोलवेत्ता डॉ. सविन्द्र सिंह ने पर्यावरण की निम्नानुसार व्याख्या की है “पर्यावरण एवं अविभाज्य समष्टि है तथा भौतिक, जैविक एवं सांस्कृतिक तत्वों वाले पारस्परिक क्रियाशील (Interacting) तत्वों से इसकी रचना होती है। ये तन्त्र अलग-अलग तथा सामूहिक रूप से विभिन्न रूपों में परस्पर सम्बद्ध (Interlinked) होते हैं। भौतिक तत्व (स्थान, स्थलरूप जलीय भाग, जलवायु मृदा, शैलें तथा खनिज), मानव निवास क्षेत्र की परिवर्तनशील विशेषताओं, उसके सुअवसरों तथा प्रतिबन्धक अवस्थितियों (limitations) को निश्चित करते हैं। जैविक तत्व (पौधे, जीव जन्तु, सूक्ष्म जीव तथा मानव) जीवमण्डल (Biosphere) की रचना करते हैं। सांस्कृतिक तत्व आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक तत्व मुख्य रूप से मानव निर्मित होते हैं तथा सांस्कृतिक पर्यावरण की रचना करते हैं।
स्पष्ट है कि पर्यावरण भौतिक तत्वों, दशाओं व प्रभावों (शक्तियों) का दृश्य और अदृश्य समुच्चय या समवेत् रूप (Combination ofelements) है जो जीवधारियों को परिवृत्त कर उनकी अनुक्रियाओं को प्रभावित करता है और स्वयं भी उनसे प्रभावित होता रहता है। पर्यावरण के तत्व दो प्रकार के होते हैं-(i) जैव तत्व, (ii) अजैव तत्व। अजैव तत्वों में जलवायु, स्थल, जल, मिट्टी, खनिज, चट्टान व भौगोलिक स्थिति आते हैं। जैव तत्वों में पौधे व जीव जन्तु प्रमुख हैं। इन्हीं दोनों प्रकार के तत्वों की विशिष्टता पर्यावरण के रूप को निर्धारित करती है।
पर्यावरण की विशेषताएँ
पर्यावरण की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
(i) पर्यावरण भौतिक तत्वों का समूह या तत्व समुच्चय (Set of elements) होता है।
(ii) भौतिक पर्यावरण अपार शक्ति का भण्डार है।
(iii) पर्यावरण में विशिष्ट भौतिक प्रक्रिया कार्यरत रहती है।
(iv) पर्यावरण का प्रभाव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में पड़ता है।
(v) यह परिवर्तनशील होता है।
(vi) यह स्वपोषण और स्वनियन्त्रण (Self Controlling System) प्रणाली पर आधारित है।
(vii) इसमें क्षेत्रीय विविधता होती है।
(viii) इसमें पार्थिव एकता पाई जाती है।
(ix) यह जैव जगत का निवास्य या परिस्थान (Habitat) है।
(x) यह संसाधनों का भण्डार है।
पर्यावरण के प्रकार
पर्यावरण के निम्नलिखित दो प्रकार होते हैं-
(1) भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण (Physical or Natural Environment)
(2) सांस्कृतिक या मानव निर्मित, पर्यावरण (Cultural or Man-made Environment)
(1) भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण (Physical or Natural Environment)-
भौतिक पर्यावरण से तात्पर्य उन भौतिक शक्तियों (Physical Forces), प्रक्रियाओं (Processess) और तत्वों (Elements) से लिया जाता है जिनका मानव पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। भौतिक शक्तियों में सौर्यिक शक्ति (तापमान), पृथ्वी की दैनिक व वार्षिक गति, गुरुत्वाकर्षण शक्ति, भूपटल को प्रभावित करने वाले बल, ज्वालामुखी, भूकम्प आदि शामिल किये जाते हैं। इन शक्तियों द्वारा पृथ्वी पर अनेक प्रकार की क्रियायें होती हैं। इनसे पर्यावरण के तत्व उत्पन्न होते हैं। इन सबका प्रभाव मानव की क्रियाओं पर पड़ता है। भौतिक प्रक्रियाओं में भूमि का अपक्षय, ताप विकिरण, संचालन, ताप संवहन, अवसादीकरण, वायु व जल की गतियाँ, जीवधारियों की गतियाँ जन्म, मरण व विकास आदि आती हैं। इन प्रक्रियाओं द्वारा भौतिक पर्यावरण में अनेक क्रियायें उत्पन्न होती हैं। वे मानव के क्रिया-कलापों पर अपना प्रभाव छोड़ती हैं। भौतिक तत्वों में उन तथ्यों को सम्मिलित किया जाता है जो भौतिक शक्तियों तथा प्रक्रियाओं के फलस्वरूप धरातल पर उत्पन्न होते हैं।
(2) सांस्कृतिक या मानव निर्मित पर्यावरण (Cultural or Man-made Environment)-
मानव द्वारा निर्मित सभी वस्तुयें सांस्कृतिक पर्यावरण का अंग है। मनुष्य अपनी तकनीकी के बल पर प्राकृतिक पर्यावरण के तत्वों को अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप बना लेता है। वह भूमि को जोतकर कृषि करता है, जंगलों को साफ करता है, सड़कें, रेलमार्ग व नहरे आदि बनाता है, पर्वतों को काटकर सुरंगे बनाता है, नई बस्तियाँ बसाता है, भूगर्भ से खनिज निकालता है, अनेक यन्त्र व उपकरण बनाता है तथा प्राकृतिक शक्तियों का विभिन्न प्रकार से
शोषण कर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। मानव द्वारा बनाई गयी समस्त वस्तुयें जिस संस्कृति को जन्म देती हैं, उसे मानव निर्मित संस्कृति (Man-made Culture) या प्राविधिक पर्यावरण (Technological Environment) कहते हैं। इसे मानव की पार्थिव संस्कृति (Material Culture) भी कहा जा सकता है। मानव के सांस्कृतिक पर्यावरण में औजार, गहने, अधिवास, परिवहन व संचार के साधन (वायुयान, रेल, मोटर, तार,जलयान) प्रेस आदि सम्मिलित किये जाते हैं। मानव की शारीरिक व बौद्धिक क्षमतायें भी मानव संस्कृति के ही अंग हैं। ये मानव की सांस्कृतिक विरासत (cultural Heritage) हैं। संस्कृति के इस भाग को अपार्थिव संस्कृति (Non-matenal Culture) हैं।
प्राकृतिक पर्यावरण की भाँति सांस्कृतिक पर्यावरण में भी शक्तियाँ, प्रक्रियायें और तत्व सामाजिक पर्यावरण मानव का नियामक माना जाता है तथा सामाजिक प्रक्रियाओं का निर्देशक।
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