धन्वंतरि कौन थे?
पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार देवताओं के वैद्य व आयुर्वेदशास्त्र के प्रथम ज्ञाता धन्वंतरि को समुद्र मंथन में प्राप्त हुए 14 रत्नों में से एक कहा जाता है। ये अमृत- कलश हाथ में लिए हुए ही प्रकट हुए थे। इन्होंने आयुर्वेदशास्त्र इंद्र से व चिकित्सा विज्ञान भास्कर से ग्रहण किया था।
मान्यता रही है कि समुद्र से निकलने पर जब धन्वंतरि ने विष्णु से यज्ञ में अपना हिस्सा मांगा तो विष्णु ने आगामी जन्म में इनकी इच्छा पूर्ण होने का भरोसा दिया। इसी के अनुसार भावी जन्म में ये काशीराज धन्व के घर जन्मे थे। इन्हें गर्भ में ही कई सिद्धियां प्राप्त थीं। इन्होंने आयुर्वेद शास्त्र को निम्न आठ भागों में बांटा था :
1. शरीर शास्त्र, 2. बाल रोग, 3. भूत-प्रेत बाधा, 4. ऊर्धांग विकार, 5. शस्त्रघात व्याधि, 6. विष-चिकित्सा, 7. रसायन चिकित्सा, 8. वशीकरण चिकित्सा। सुविख्यात काशीपति दिवोदास धन्वंतरि इनका पौत्र अथवा प्रपौत्र माना जाता है। दिवोदास धन्वंतरि से सुश्रुत ने आयुर्वेद की शिक्षा प्राप्त की थी।
चरक ने धन्वंतरि शब्द का प्रयोग बहुवचन में किया है। धन्वंतरि शल्य-शास्त्र में प्रवीण इंसान को भी कहते हैं, अतः ऐसा लगता है कि बाद में यह व्यक्ति विशेष नाम न रहकर शल्य चिकित्सा के प्रवीण किसी भी मानव के लिए उपयोग लिया जाने लगा था, किंतु प्राथमिक रूप से धन्वंतरि एक व्यक्ति ही थे।
धन्वंतरि मंदिर, वालाजपत, तमिलनाडु
तमिलनाडु के वालाजपत में श्री धन्वंतरि आरोग्यपीदम मंदिर स्थापित है। इस आरोग्य मंदिर का निर्माण श्रीमुरलीधर स्वामिगल ने करवाया था। बीमारी के कारण अपने माता-पिता को खो चुके स्वामिगल ने जनसेवा के लिए इस मंदिर की स्थापना की। यहां स्थापित भगवान धन्वंतरि की मूर्ति ग्रेनाइट कला की एक अनुपम कृति है।
तक्षकेश्वर मंदिर, मंदसौर, मध्य प्रदेश
यहां नागराज तक्षक और आरोग्य देव धन्वंतरि की मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर के निर्माण के पीछे महाराज परीक्षित की सर्प काटने से मृत्यु और फिर उनके पुत्र जन्मेजय द्वारा नागों से प्रतिशोध की पौराणिक कथा जुड़ी है। माना जाता है कि यहां के स्थानीय वैद्य यहां स्थापित धन्वंतरि देव की प्रतिमा के दर्शन के बाद ही जड़ी-बूटी इकट्ठा करते हैं और इलाज शुरू करते हैं।
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