महाभारत में राजा दुष्यंत का जीवन परिचय- अनेक धार्मिक ग्रंथों यथा महाभारत, भागवत व पुराणों में राजा दुष्यंत के नाम का विवरण आया है। ये राजा भरत के पिता कहे जाते हैं, जिनके नाम पर ही हमारा राष्ट्र भारतवर्ष कहा जाता है। इन्हें पुरुवंश की स्थापना फिर से करने का यश भी मिला है। इन्होंने मान्धाता के काल में हैहयों द्वारा लिया हुआ राज्य फिर से जीता था। इनका राज्य गंगा व सरस्वती नदियों के मध्य के पूरे भूभाग पर था और हस्तिनापुर इनकी राजधानी थी। इनके माता-पिता के नाम के बारे में अवश्य मतभेद है। भागवत में इन्हें रैम्य का, हरिवंश पुराण और विष्णु पुराण में तंसुका का व महाभारत में ईलिन का पुत्र प्रदर्शित किया गया है। वायु पुराण इन्हें मलिन का पुत्र कहता है। माता का नाम भी रथंतरी, उपादनवी व समंता कहा जाता है।
एक बार राजा दुष्यंत आखेट पर गए तो कण्व ऋषि के आश्रम भी गए। वहां इनकी दृष्टि ऋषि आश्रम में पली शकुंतला पर गई। ये उन पर मुग्ध हो गए। कण्व ऋषि तब आश्रम से अनुपस्थित थे। दुष्यंत व शकुंतला ने आपसी सहमति से गांधर्व-विवाह कर लिया। इसके पश्चात् जब गर्भवती शकुंतला इनकी राजनगरी में गई तो छिपकर किए विवाह के कारण ये उसे अस्वीकार करने लगे। इस दौरान आकाशवाणी हुई और सच्चाई प्रकट हो गई। तब राजा ने उसे स्वीकार कर लिया। शकुंतला ने जिस पुत्र को जन्म दिया, वही आगे चलकर भरत नाम का चक्रवती सम्राट बना। महाकवि कालिदास ने इसी घटना को आधार बनाकर अपना प्रसिद्ध नाटक ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ रचा था। मान्यता है कि निर्दोष शकुंतला को दोषी मानने के कारण ही इसका नाम ‘दुष्यंत’ रखा गया।
राजा दुष्यंत कौन थे?
अनेक धार्मिक ग्रंथों यथा महाभारत, भागवत व पुराणों में दुश्यंत एक महाराजा का किरदार खेलते हैं, जिनका जीवन कई प्रमुख कथाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। “
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