संवैधानिक विधि/constitutional law

बौद्धिक सम्पदा अधिकार पर टिप्पणी । Intellectual Property Rights

बौद्धिक सम्पदा अधिकार पर टिप्पणी
बौद्धिक सम्पदा अधिकार पर टिप्पणी

बौद्धिक सम्पदा अधिकार पर टिप्पणी । Intellectual Property Rights

बौद्धिक सम्पदा अधिकार- बौद्धिक सम्पदा अधिकार आते हैं। बौद्धिक सम्पदा विचारों की सम्पदा है और इसलिए इस सीमा तक अदृश्य है। विश्व के लिए इसका अस्तित्व किसी अदृश्य वस्तु के ऊपर अधिकार के रूप में होता है। अस्तु ‘बौद्धिक सम्पदा’ और बौद्धिक सम्पदा अधिकार को एक ही अर्थ में लिया जाता है, और इन्हें एक दूसरे की जगह अर्थ या भाव की किसी हानि के बिना आसानी से प्रयोग किया जा सकता है। जब किसी बौद्धिक सम्पदा का अनुप्रयोग किसी पदद्यर्थिक वस्तु के ऊपर हो जाता है तो यह सम्पदा दृश्य हो जाती है। अतएव कोई बौद्धिक सम्पदा किसी भौतिक सम्पदा की सहायता से ही अभिव्यक्त हो सकती है।

बौद्धिक सम्पदा अधिकार (Intellectual Property Rights ) – बौद्धिक सम्पदा बुद्धि की सम्पदा है। बुद्धि के लिए आंग्ल भाषा में इस्तेमाल किये जाने वाले शब्द (intellect) की उत्पत्ति जिस शब्द से हुई है वह है इन्टेलेक्टस (intellectus), जिसका अर्थ बोध से है। इस तरह बौद्धिक सम्पदा का काफी कुछ लेना देना इससे है कि हमें वस्तुओं का बोध कैसे होता है। जब आप इच्छा का प्रयोग किसी वस्तु को ग्रहण करने और उसे अपने लिए अपने पास रखने हेतु करते हैं, तो यह कहा जाता है कि आप उस वस्तु पर कब्जा रखते हैं।

जब आपको किसी वस्तु को कब्जे में रखने का अधिकार हो और उस वस्तु के साथ इच्छानुसार व्यवहार करने का अधिकार भी हो तो उक्त वस्तु के सन्दर्भ में ऐसे अधिकार को स्वगित्व का अधिकार कहा जाता है। यदि सिर्फ कुछ ही बात करे तो यह स्वामित्व का अधिकार विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के सन्दर्भ में हो सकता है, यथा दृश्य या अदृश्य गण्य या अगण्य, जंगम या स्थावर भौतिक अभौतिक, और गतिशील या अगतिशील।

यह समझना बहुत कठिन नहीं है कि इच्छा और इसलिए, बुद्धि के अनुप्रयोग के विना कोई सम्पत्ति सम्भव नहीं है, जिसका तात्पर्य यह है कि कम से कम सैद्धान्तिक दृष्टि से प्रत्येक सम्पत्ति बौद्धिक सम्पत्ति है। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। दृश्य वस्तुओं वाली सम्पत्ति को भौतिक या पार्थिक सम्पत्ति का नाम दिया जाता है।

उदाहरण के लिए स्थावर वस्तुओं की सम्पत्ति जैस भूमि और भूमि से प्राकृतिक या स्थायी रूप से जुड़ी वस्तुएं। इसी तरह जंगम वस्तुओं की सम्पदा को भी भौतिक या पदार्थिक सम्पदा कहते हैं। इसको छोड़कर जो कुछ बचता है वह अदृश्य वस्तुओं से सम्बन्धित सम्पदा है।

चाहे जैसा भी हो, किसी अदृश्य वस्तु से सम्बन्धित हर सम्पदा को बौद्धिक सम्पदा का नाम नहीं दिया जा सकता बौद्धिक सम्पदा पद का प्रयोग अपवर्जी रूप से मनुष्यों या मनुष्यों समूह के बौद्धिक श्रम एवं कौशल के उत्पादों के लिए होता है जो अत्यन्त नवनोमधी (innovation), मौलिक, उपयोगी और औद्योगिक अनुप्रयोग के लिए सक्षम होते हैं।

इस प्रकार, बौद्धिक सम्पदा के अन्तर्गत अब तक कहा जाने वाली औद्योगिक सम्पदाएं यथा, पेटेण्ट, व्यापार चिन्ह और अभिकल्प, साहित्यक, कलात्मक और संगीतीक अधिकार, प्रस्तोता के अधिकार एवं कतिपय अन्य अधिकार जिन्हें पहले प्रतिवेशी अधिकार कहा जाता था. पारस्परिक सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों से सम्बन्धित अधिकार, और अदृश्य वस्तुओं से सम्बन्धित

स्वामित्व की संकल्पना में बौद्धिक सम्पदा अधिकारों द्वारा प्रेरित द्वैधता पर टिप्पणी  | Comment on The Intellectual Property Rights Iduality in The Notion of Ownership

स्वामित्व की संकल्पना में बौद्धिक सम्पदा अधिकारों द्वारा प्रेरित द्वैधता ( The IPR-induced Duality in the Notion of Ownership )- जब किसी बौद्धिक सम्पदा को किसी भौतिक सम्पदा पर अनुप्रयुक्त किया जाता है तो इसे उस रूप में अभिव्यक्ति मिल जाती है; और परिणामी सम्पदा को भी बौद्धिक सम्पदा कहा जाता है। उदाहरण के लिए, जब एक चित्रकार अपने विचारों को; जो अदृश्य वस्तुएं है, पेन्टिंग के रूप में, जो कि एक दृश्य वस्तु होती है, अभिव्यक्त करता है; तो इस प्रक्रिया में उसे अनेक भौतिक वस्तुओं, जैसे पेन्ट ब्रुश, कागज आदि की सहायता लेनी पड़ती है।

परिणामी वस्तु, यानी उक्त पेन्टिंग, को उस चित्रकार की बौद्धिक सम्पदा कहते हैं। यहाँ हम अधिकारों के तन्त्र में एक रोचक स्थिति में अपने को पाते हैं। कल्पना कीजिए कि उपरोक्त चित्रकार उक्त पेन्टिंग की हजारों प्रतिलिपियों इसलिए तैयार करवाता है ताकि उन्हें बेचकर धन कमा सके। पेन्टिंग की ऐसी किसी प्रति या प्रतियों का खरीदार इस बौद्धिक सम्पदा अर्थात् पेन्टिंग के भौतिक रूप का स्वामी बन जाता है। चित्रकार अब भी उस बौद्धिक सम्पदा का स्वामी बना रहता है, जिसे पेन्टिंग के रूप में अभिव्यक्त किया गया है।

दूसरे शब्दों में, यह अवस्था किसी बौद्धिक सम्पदा के स्वामी द्वारा अपनी उक्त सम्पदा के वाणिज्यिक प्रयोग का नमूना है। एक विशेष स्थिति के रूप में, यह सोच सकते हैं कि चित्रकार ने श्रीमान के कहने पर उनसे एक निश्चित धनराशि का भुगतान पाने के लिए पेन्टिंग का निर्माण किया है, या उन्होंने एक समझौते के माध्यम से अपनी मूल पेन्टिंग के सन्दर्भ में अपने स्वामित्वाधिकार को श्रीमान को अन्तरित कर दिया है।

दोनों स्थितियों में श्रीमान के पेन्टिंग के इकलौते स्वामी हो गये और यह उनके अधिकारों के अपवर्जी क्षेत्र के अन्दर की बात होती कि वे तय करें कि उक्त पेन्टिंग को अपने व्यक्तिगत इस्तेमाल में रखना है या इसका वाणिज्यिक लाभ हेतु उपयोग करना है।

परन्तु उपरिसन्दर्भित दोनों में से किसी अवस्था में चित्रकार उस विचार का स्वामी बना रहता है जिसने पेन्टिंग के रूप में पदार्थिक शक्ल ग्रहण की है। सभी परिस्थितियों में बौद्धिक स्पदा का स्वामी एक ही रहता है; जबकि उस बौद्धिक सम्पदा के भौतिक रूप दूसरे कई व्यक्तियों के स्वामित्व के अधीन हो सकते हैं।

तब भी जब मूल पेन्टिंग को किसी ने खरीद लिया है, उस कृति, यानी, पेन्टिंग के सन्दर्भ में बौद्धिक सम्पदा अधिकार चित्रकार के पास ही रहता है, चाहे क्रेता उसे व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए रखे या उसका वाणिज्यिक उपयोग करे। वह कभी भी उस बौद्धिक सम्पदा का स्वामी होने का दावा नहीं कर सकता है जो उक्त पेन्टिंग के अस्तित्व के मूल में है, सिवा उस स्थिति के जब चित्रकार ने अपनी कृति, यानी, पेन्टिंग से सम्बन्धित सारे विधिक एवं नैतिक अधिकारों को एक संविदा के अन्तर्गत, जिस संविदा को उसने उक्त पेन्टिंग का निर्माण करते समय या, जैसी कि स्थिति हो, पेन्टिंग की मूल प्रति (न कि इसकी प्रतिलिपि) को बेचने के समय क्रेता, अर्थात् श्रीमान क को समर्पित करने की सहमति दी हो।

इस प्रकार हम देखते हैं कि जब हम किसी बौद्धिक सम्पद्य (कोई अदृश्य वस्तु, यथा विचार) को किसी भौतिक वस्तु या भौतिक वस्तुओं के किसी समुच्चय (जैसे, कागज, पेन्ट आदि के ऊपर अनुप्रयुक्त करते हैं तो परिणामी वस्तु (प्रस्तुत मामले में, पेन्टिंग) के दो होते हैं, बद बौद्धिक एवं भौतिक वस्तु के इन दोनों सापेक्ष दो स्वामी होते हैं: वस्तु के भौतिक रूप एवं उसकी अन्तर्वस्तु का स्वामी, अर्थात् पौतिक स्वामी, और वस्तु की बौद्धिक अन्तर्वस्तु का स्वामी अर्थात् बौद्धिक स्वामी बौद्धिक वर्ग में एक या एक से अधिक स्वामी हो सकते हैं जो इस बार पर निर्भर करता है कि प्रश्नगत कृति एकल स्वामित्व की कृति है या सह-स्वामित्व की।

इस प्रकार भौतिक वर्ग में भी एक या अनेक स्वामी हो सकते हैं (जो या तो एकल या सह-स्वाम होंगे) जो इस बात पर निर्भर करता है कि क्या मूल वस्तु को कृतिकार के द्वारा अपवर्जी रूप किसी एक व्यक्ति को बेचा गया था, या इसकी औद्योगिक माध्यम से उत्पादित प्रतियों को लाग में सार्वजनिक रूप से बेचा गया था। यह देखना या समझना बहुत कठिन नहीं है कि स्वामित्वाधिकार की यह द्वैधता मुख्य रूप से बौद्धिक सम्पदा अधिकार की संकल्पना से प्रेरित है।

साइबर व्योम में बौद्धिक सम्पदा अधिकार पर टिप्पणी । A Comment on Intellectual Property Right in Cyber Space

साइबर व्याम में बौद्धिक सम्पदा अधिकार ( Intellectual Property Rights in Cyber Space) – बौद्धिक सम्पदा अधिकार अनेक रूपों में मौजूद हो सकता है। इस सन्दर्भ में हम प्रतिलिपियधिकारों, पेटेन्टो, अभिकल्पों, व्यापार नामों, कार्यक्षेत्र नामों आदि का नाम ले सकते है; उस सीमा तक जहाँ तक साइबर व्योम का प्रयोग इन बौद्धिक सम्पदाओं के विधिसम्मत या जैसी कि स्थिति हो, अप्राधिकृत उपयोग के लिए होता है। जैसा बी हो, सूचना प्रौद्योगिकी के प्रसंग में, नेटवासियों के लिए जो खासतौर से रुचि वाले हैं, वे हैं, प्रतिल्प्यिविकार, व्यापार चिन्ह, अभिकल्प, कार्यक्षेत्र नाम, आदि।

अन्तरजाल (internet) में मानवीय रुचि के लगभग प्रत्येक विषय पर प्रचुर साहित्य उपलब्ध है। इससे किसी लेख के प्रतिलिप्यिधिकार या अभिकल्प या किसी व्यापार चिन्ह में प्रयुक्त शब्दों के बारे में दावों एवं विरोधी दावों की सम्भावना पैदा होती है, और प्रतिलिप्यधिकार, आदि के अतिलंघन की आशंका भी।

जहाँ एक तरफ अन्तरजाल (internet) पर उपलब्ध विभिन्न कृतियों के लेखन सजीव रूप में उपलब्ध करायी गयी अपनी कृति के लिए प्रतिलिप्यधिकार का दावा करते हैं और इसलिए उनके द्वारा अतिलंघनकारियों के विरुद्ध उचित मंचों पर कार्यवाहियाँ भी संस्थित की जा सकती हैं। दूसरी तरफ, साहित्य की एक श्रेणी ऐसी भी है जिसकी नकल कोई भी कानून से जरा भी डरे हुए कर सकता है और इसलिए, इस वर्ग के साहित्य को प्रतिलिप्यधिकार मुक्त (Copyleft) कहा जाता है।

इससे यह संकेत मिलता है कि प्रश्नगत सामग्री के ऊपर अपना अपवर्जी प्रतिलिप्यधिकार का दावा करने में लेखक की कोई रुचि नहीं है, और उसने इसे बड़े पैमाने पर लोगों द्वारा इस्तेमाल किये जाने हेतु, अपने अधिकारों के चंगुल से मुक्त कर दिया है; और इसलिए, यह एक ऐसी स्थिति का द्योतक है जो प्रतिलिप्यधिकार वाली स्थिति के बिल्कुल विपरीत है।

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