साक्षात्कार का अर्थ एवं परिभाषा (Interview)
साक्षात्कार का अर्थ एवं परिभाषा- साक्षात्कार एक अध्ययन की प्रविधि है जिसके माध्यम से महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ/ आँकड़ें एकत्रित किए जाते हैं। ‘साक्षात्कार’ शब्द अंग्रेजी के ‘Interview’ का हिन्दी रूपान्तरण है। ‘Interview’ दो शब्दों ‘Inter’ और ‘view’ के योग से बना है। Inter का अर्थ है ‘अन्दर’ और view का अर्थ है देखना अर्थात् अन्दर देखना ही साक्षात्कार है।
Inter + view = Interview
↓ ↓ ↓
अन्दर + देखना= अन्दर देखना
यहाँ अन्दर देखने का तात्पर्य व्यक्ति के अन्तर्मन को समझते हुए उसके भीतर निहित सूचनाओं को प्राप्त करना या जानना है।
साक्षात्कार एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है जिसका उपयोग, शिक्षा, अनुसन्धान, चिकित्सा, सेना आदि सभी में किया जाता है। व्यक्तिगत, शैक्षिक, व्यावसायिक निर्देशन एवं परामर्श प्रदान करने के लिए साक्षात्कार एक महत्वपूर्ण, लोकप्रिय एवं प्रचलित प्रविधि है। साक्षात्कार निर्देशन प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। यह एक आत्मनिष्ठ प्रविधि है।
मूलरूप से साक्षात्कार निश्चित उद्देश्य के साथ वार्तालाप है जिसमें साक्षात्कारकर्ता (Interviewer) और सूचना प्रदाता (Interviewer) एक-दूसरे के आमने-सामने बैठकर सम्बन्ध स्थापित कर वार्तालाप करते हैं जिससे वांछित सूचनाएँ प्राप्त की जाती हैं साक्षात्कार परामर्श प्रक्रिया का केन्द्र माना जाता है।
साक्षात्कार की परिभाषा
गुड और हॉट (1952) के अनुसार, “साक्षात्कार मूलरूप से सामाजिक अन्तःक्रिया की एक प्रक्रिया है।”
According to Goode and Hatt (1952), “Interviewing is fundamentally a process of social interaction.”
पोलिन यंग (1966) के अनुसार, साक्षात्कार को एक ऐसी क्रमबद्ध विधि के रूप में माना जा सकता है जिसके द्वारा एक व्यक्ति अपेक्षाकृत अपरिचित व्यक्ति के जीवन में थोड़ा-बहुत कल्पनात्मक रूप से प्रवेश करता है।”
According to Pauline Young (1966), “Interview may be regarded as a systematic method by which a person enters more or less imaginatively into the life of a comparative stranger.”
बिंघम और मूर ने साक्षात्कार को निम्न शब्दों में परिभाषित किया- “एक गम्भीर वार्तालाप जो वार्तालाप में सन्तुष्टि के अतिरिक्त निश्चित उद्देश्य की ओर निर्देशित करता है, एक साक्षात्कार है।”
According to Bingham and Moore, “A serious conversation directed to definite purpose other than satisfaction in the conversation itself is an interview.”
करलिंगर के अनुसार, साक्षात्कार अन्तः वैयक्तिक भूमिका कि एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति, साक्षात्कारकर्ता, एक-दूसरे व्यक्ति जिसका साक्षात्कार किया जा रहा है या उत्तरदाता से उन प्रश्नों के उत्तर पाना चाहता है जो सम्बन्धित शोध समस्या के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु निर्मित किए गए हैं।”
According to Kerlinger, “The interview is a face-to-face interpersonal role situation in which one person, the interviewer, asks a person being interviewed, the respondent, the questions designed to obtain answers pertinent to the purposes of the research problem.”
साक्षात्कार की विशेषताएँ (Characteristics of Interview)
साक्षात्कार की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) क्रमबद्ध प्रविधि (Systematic Technique)- यह एक क्रमबद्ध प्रविधि है जिसके माध्यम से साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कारदाता से अपनी अध्ययन समस्या से सम्बन्धित प्रत्यक्ष, परोक्ष और आन्तरिक सूचनाएँ प्राप्त करता है।
(2) आमने-सामने अन्तःक्रिया (Face to Face Interaction)- इस प्रविधि से साक्षात्कारकर्ता एवं साक्षात्कारदाता दोनों आमने-सामने बैठकर वार्तालाप करते हैं। बातचीत या वार्तालाप के द्वारा साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कारदाता से सौहार्द्र स्थापित करता है, फिर बातचीत के द्वारा ही वह कल्पनात्मक रूप से साक्षात्कारदाता मन में प्रविष्ट कर अपनी समस्या से सम्बन्धित सूचनाएँ प्राप्त करता है।
(3) दो या अधिक व्यक्ति (Two or More Persons)- साक्षात्कार में कम से कम दो व्यक्ति अवश्य होते हैं, एक साक्षात्कार लेने वाला- साक्षात्कारकर्ता और दूसरा साक्षात्कार देने वाला- साक्षात्कारदाता। कभी-कभी साक्षात्कार लेने वाले एक से अधिक हो सकते हैं। यह समस्या की प्रकृति पर निर्भर करता है। इसी प्रकार कभी-कभी साक्षात्कारदाता भी एक से अधिक हो सकते हैं।
(4) विशिष्ट निर्धारित उद्देश्य (Specific Determined Objective)- प्रत्येक अनुसन्धान के कुछ न कुछ निर्धारित विशिष्ट उद्देश्य होते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य समस्या से सम्बन्धित सूचनाएँ एकत्र करना है।
(5) अन्तः वैयक्तिक स्थिति (Inter- Personal Situation)- इस प्रविधि में अन्तः वैयक्तिक स्थिति की विशेषता पाई जाती है। इसमें साक्षात्कारकर्ता एवं साक्षात्कारदाता अपनी-अपनी भूमिकाओं में अलग-अलग चुपचाप नहीं रहते बल्कि अपनी-अपनी भूमिकाएँ एक-दूसरे से परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया करते हुए करते हैं। इस प्रविधि में केवल प्रश्नोत्तर ही नहीं होता बल्कि यह एक ऐसी क्रमबद्ध प्रविधि है जिसमें बातचीत के माध्यम से साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कारदाता से उसकी आन्तरिक बातें जानकर अध्ययन समस्या के सम्बन्ध में तथ्यों / सूचनाओं / आँकड़ों का संकलन करता है।
(6) सूचना/ आँकड़ों / तथ्य संकलन ( Information / Data Collection) – साक्षात्कार प्रविधि में सूचनाओं / आँकड़ों का संकलन किया जाता है। सूचनाओं या आँकड़ों का यह संकलन साक्षात्कारकर्ता द्वारा स्वयं किया जा सकता है या यंत्रों की सहायता से भी किया जा सकता है।
साक्षात्कार की प्रक्रिया (Process of Interview)
साक्षात्कार प्रविधि का सफलतापूर्वक संचालन करना स्वयं में एक कला है। साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कार प्रक्रिया को सफल एवं प्रभावी बनाने हेतु कुछ निर्धारित पदों / चरणों / सोपानों (Steps) का अनुकरण करता है एवं अपने प्रमुख उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए तथ्यों का कुशलतापूर्वक संकलन कर विश्वसनीय परिणाम निकालने में सक्षम होता है। यही पद साक्षात्कार प्रक्रिया के आवश्यक भाग या अंग कहे जाते हैं। इनके अभाव में किसी भी साक्षात्कार का कोई स्वरूप निर्धारित नहीं हो पाता और न ही वांछित परिणाम प्राप्त हो पाते हैं। अतः साक्षात्कार प्रविधि की सफलता हेतु इन निर्धारित पदों का अनुसरण करना अति आवश्यक होता है। विभिन्न विद्वानों ने साक्षात्कार प्रक्रिया के भिन्न-भिन्न सोपानों का उल्लेख किया है। सामान्यतः साक्षात्कार प्रक्रिया के निम्नलिखित पद / सोपान / चरण होते हैं-
(1) साक्षात्कार की तैयारी (Preparation of Interview) – एक सफल साक्षात्कार के लिए आवश्यक है साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कार प्रक्रिया प्रारम्भ करने से पूर्व ही इसकी योजना स्पष्ट रूप से तैयार कर ले। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित तैयारी की जानी आवश्यक है-
(i) साक्षात्कार का पूरा परिचय- साक्षात्कार आरम्भ होने के पूर्व यह आवश्यक है कि साक्षात्कारकर्ता को समस्या एवं समस्या से सम्बन्धित सभी पदों का परिचय / ज्ञान होना अति आवश्यक है। जिससे समस्या से सम्बन्धित प्रश्नों के निर्माण, साक्षात्कार-दाताओं को समझाने एवं उनकी शंका का समाधान करने आदि में सुविधा रहे।
(ii) साक्षात्कार हेतु निर्देशिका – साक्षात्कार की समस्या के सभी पक्षों से सम्बन्धित निर्देशों को संकलित कर साक्षात्कार निर्देशिका ( Interview Guide) तैयार कर लेनी चाहिए जिससे सभी के लिए साक्षात्कार संचालन में एकरूपता बनी रहे एवं साक्षात्कारकर्ता को व्यर्थ में निर्देशों हेतु अपनी स्मरण शक्ति पर जोर न डालना पड़े।
(iii) साक्षात्कार हेतु प्रतिभागियों का चयन- साक्षात्कार में भाग लेने वाले प्रतिभागियों का उपयुक्त तरीके से पूर्व निर्धारित संख्या के अनुसार चयनित कर उनकी एक सूची निश्चित क्रमानुसार बना लेनी चाहिए और उसी के अनुसार साक्षात्कार सम्पादित करना चाहिए जिससे किसी भी प्रतिभागी की अनावश्यक प्रतीक्षा न करनी पड़े और साक्षात्कार प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की शिथिलता न आए।
(iv) साक्षात्कार अनुसूची तैयार करना – साक्षात्कार में पूछे जाने वाले प्रश्नों की सूची, जिसे साक्षात्कार अनुसूची कहते हैं, साक्षात्कार के पूर्व तैयार कर लेनी चाहिए। समस्या के स्वरूप के आधार पर ही अनुसूची के प्रश्नों को तैयार करना चाहिए एवं प्रश्नों के शब्द तटस्थ, एकार्थक, स्पष्ट एवं वस्तुनिष्ठ होने चाहिए।
(v) समय, अवधि एवं स्थान का निर्धारण – साक्षात्कार से पूर्व साक्षात्कार का समय, अवधि एवं स्थान निर्धारित कर लेना चाहिए।
(2) साक्षात्कार का संचालन (Execution of Interview) – साक्षात्कार प्रक्रिया का यह सोपान महत्त्वपूर्ण होता है। साक्षात्कार की सफलता इसकी संचालन प्रक्रिया पर निर्भर करती है। सफल साक्षात्कार संचालन हेतु निम्नलिखित बातों / दशाओं का ज्ञान आवश्यक है-
(i) सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध स्थापन (Establishing Cordial Relationships)- साक्षात्कार हेतु निश्चित स्थान पर मिलने के पश्चात् साक्षात्कार तुरन्त प्रारम्भ न कर साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कार हेतु आए प्रतिभागी से आत्मीय एवं मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए। साक्षात्कार हेतु उचित वातावरण का निर्माण करें जिससे साक्षात्कारदाता विश्वसनीय सूचनाएँ प्राप्त की जा सकें। साक्षात्कारदाता के मन में किसी प्रकार का भय, शंकाय, संकोच आदि नहीं होना चाहिए।
(ii) उद्देश्य का स्पष्टीकरण (Clarification of Purpose) – साक्षात्कारकर्ता को चाहिए कि प्रथम सम्पर्क के समय ही अपने परिचय के साथ-साथ साक्षात्कार के उददेश्य स्पष्ट एवं सरल शब्दों में स्पष्ट कर दें। यदि साक्षात्कारकर्ता के मन में कोई शंका है तो उसका समाधान कर उसे सन्तुष्ट करना चाहिए। उसे साक्षात्कार हेतु क्यों चयनित गया है? स्पष्ट कर देना चाहिए। इसके पश्चात् साक्षात्कारकर्ता को साक्षात्कारदाता से उनका हार्दिक एवं स्वाभाविक सहयोग देने का अनुरोध करना चाहिए साथ ही उसे यह विश्वास दिलाना चाहिए कि उसके द्वारा प्रदत्त समस्त सूचनाओं को गुप्त रखा जाएगा, वह बेझिझक बिना किसी भय के सूचनाएँ साझा कर सकता है।
(iii) साक्षात्कार ( समस्या से सम्बन्धित वार्तालाप) प्रारम्भ करना [To Start Interview (Conversation Related to the Problem)]- साक्षात्कार प्रारम्भ करने का आशय समस्या के सम्बन्ध में साक्षात्कारदाता से प्रश्न पूछना है। साक्षात्कारकर्ता को उत्तरदाता से सरल भाषा एवं स्पष्ट आवाज में मध्यम गति से प्रश्न पूछने चाहिए जिससे कि उत्तरदाता पूछे गए प्रश्न को भली-भाँति सुन सके एवं समझकर उत्तर दे सकें। प्रारम्भ में साक्षात्कारकर्ता को परिचयात्मक प्रश्न, जैसे- शिक्षा, परिवार के सदस्यों की संख्या, व्यवसाय आदि के सम्बन्ध में सामान्य प्रश्न पूछने चाहिए फिर धीरे-धीरे विषय / समस्या से सम्बन्धित सामान्य व सरल प्रकृति के प्रश्न पूछने चाहिए तत्पश्चात् जटिल एवं गम्भीर प्रकृति के प्रश्नों की ओर बढ़ना चाहिए। उसके रुचि एवं उत्साह को देखते हुए ही उसके वैयक्तिक जीवन के भावनात्मक अथवा संवेगात्मक पक्ष से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाने चाहिए। सामान्यतः ऐसे प्रश्नों को साक्षात्कार के अन्तिम भाग में पूछा जाना चाहिए। साक्षात्कार प्रक्रिया में यह ध्यान दिया जाना चाहिए। साक्षात्कारकर्ता तनाव रहित होकर धैर्यपूर्वक साक्षात्कारदाता द्वारा प्राप्त विवरण को बिना किसी टीका-टिप्पणी के कम से कम हस्तक्षेप करते हुए सुने एवं यह प्रदर्शित करें कि उसके द्वारा प्रदत्त सूचना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है चाहे वह व्यर्थ ही क्यों न हो।
साक्षात्कारकर्ता को पूछे जाने वाले प्रश्नों के क्रम पर भी ध्यान देना चाहिए। एक से सम्बन्धित प्रश्न पूछने के बाद दूसरे पक्ष के प्रश्न पूछना चाहिए ।
(iv) प्रतिक्रिया देने हेतु प्रोत्साहन (Encouragement for Giving Response)- एक साक्षात्कार की सफलता साक्षात्कारकर्ता द्वारा की गयी प्रतिक्रियाओं / दिए गए उत्तरों पर निर्भर करती है। इसलिए साक्षात्कारकर्ता को साक्षात्कार के दौरान समय-समय पर प्रतिक्रिया हेतु साक्षात्कारदाता को प्रोत्साहित करते रहना चाहिए जिससे कि वह थकान, ऊबन एवं अरुचि का अनुभव न करें एवं प्रतिक्रिया करने एवं अधिकाधिक सही सूचनाएँ देने हेतु प्रेरित हो।
(v) प्रत्यास्मरण या पुनः स्मरण (Recalling)– कभी-कभी ऐसा होता है कि साक्षात्कार के दौरान साक्षात्कारदाता विचारों को प्रकट करते-करते मुख्य विषय को छोड़कर भावनाओं में बह जाता है एवं ऐसी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त करने लगता है जो साक्षात्कारकर्ता के लिए अनुपयुक्त होती है या कभी-कभी वह प्रतिक्रिया व्यक्त करते-करते मौन हो जाता है। ऐसी स्थिति में साक्षात्कारदाता को मूल विषय की ओर लाने की प्रक्रिया को पुनः स्मरण कहा जाता है। इसके अन्तर्गत साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कारदाता की भावनाओं का सम्मान करते हुए मूल विषय का स्मरण दिलाकर उसे उस विषय पर विचार व्यक्त करने हेतु प्रेरित करता है।
जैसे- “अभी आप बता रहे थे कि… ।” “इस सम्बन्ध में कुछ और चर्चा हो जाए।” “हाँ तो इस बारे में आप और क्या कहना चाहेंगे।” आदि।
(vi) सहानुभूतिपूर्ण सम्बन्ध एवं चिड़चिड़ापन बचाव (Sympathetic Relations and Avoidance of Irritating Behaviour) – साक्षात्कारकर्ता का व्यवहार साक्षात्कारदाता के साथ सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए। साथ ही कभी भी ऐसी स्थिति नहीं उत्पन्न होनी चाहिए कि साक्षात्कारदाता के मन में चिड़चिड़ापन उत्पन्न हो या उसे क्रोध आए। ऐसी स्थिति में वह वांछित प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पाएगा। साक्षात्कारकर्ता का व्यवहार जितना अच्छा होगा, साक्षात्कारदाता से उतनी ही विश्वसनीय सूचनाएँ प्राप्त होगी।
(vii) समयानुसार प्रश्न (Timely Questions) – साक्षात्कारकर्ता को सदैव साक्षात्कारदाता की मनोदशा एवं तत्कालिक परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए प्रश्न करने चाहिए। साक्षात्कार में चल रही निरन्तरता को ध्यान में रखते हुए संगत प्रश्न किए जाने चाहिए। साक्षात्कारकर्ता को सदैव उत्साहित, ऊर्जावान होकर प्रश्न करने चाहिए। प्रश्न करने में बहुत शीघ्रता नहीं दिखानी चाहिए। उत्तरदाता को प्रतिक्रिया व्यक्त करने हेतु पर्याप्त समय देना चाहिए एवं बीच में उसकी बात में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। कभी भी जटिल, अस्पष्ट एवं अति संक्षिप्त प्रश्न नहीं पूछने चाहिए
(3) साक्षात्कार की अनुक्रियाओं का अभिलेख (Recording the Responses of Interview)– साक्षात्कार में प्राप्त अनुक्रियाओं का शुद्धता के साथ अभिलेखन (Recording) अति आवश्यक होता है। साक्षात्कार लेते समय प्राप्त अनुक्रियाओं को लिखना साक्षात्कारकर्ता के लिए बड़ा कठिन कार्य है। साक्षात्कारदाता यदि उसे लिखने में व्यस्त देखेगा तो उसका भी उत्साह कम होगा। इसलिए अनुक्रियाओं के अभिलेखन हेतु संकेत लिपि (Short Hand) या तकनीकी साधनों, जैसे- टेपरिकार्डर, वीडियोग्राफी आदि का उपयोग करना बेहतर रहता है। साक्षात्कारकर्ता अपनी सुविधानुसार किसी सहयोगी को बुलाकर उससे अनुक्रियाओं का अभिलेखन करा सकता है।
(4) साक्षात्कार का समापन (Closing of the Interview) – साक्षात्कार समापन से पूर्व साक्षात्कारकर्ता को चाहिए कि वह एक बार साक्षात्कार निर्देशिका एव साक्षात्कार अनुसूची (यदि है तो) चेक कर लें कि कहीं कोई आवश्यक सूचना छूट तो नहीं रही। आश्वस्त हो जाने के बाद प्रसन्नतापूर्वक साक्षात्कारदाता को धन्यवाद देते हुए साक्षात्कारकर्ता को साक्षात्कार समाप्त करना चाहिए और अन्त में साक्षात्कारदाता से भविष्य में सहयोग देने के लिए कहते हुए उसे विदा करना चाहिए।
(5) साक्षात्कार प्रतिवेदन की रचना एवं प्रस्तुतीकरण (Construction of Interview Report and its Presentation) – साक्षात्कार समाप्त हो जाने के बाद जो सबसे आवश्यक कार्य होता है वह है प्राप्त तथ्यों / आँकड़ों / सूचनाओं के आधार पर साक्षात्कार प्रतिवेदन की रचना प्राप्त तथ्यों / आँकड़ों / सूचनाओं का विश्लेषण कर साक्षात्कार का प्रतिवेदन तैयार कर लेना चाहिए। इस कार्य में विलम्ब नहीं करना चाहिए। विलम्ब होने से तथ्यों के छूट जाने की सम्भावना बढ़ जाती है। प्रतिवेदन निष्पक्ष भाव से तैयार किया जाना चाहिए एवं इसका स्वरूप वस्तुनिष्ठ होना चाहिए। साक्षात्कारकर्ता को प्रतिवेदन तैयार करते समय निष्पक्ष भाव, ईमानदारीपूर्वक एक वैज्ञानिक की तरह कार्य करना चाहिए। प्रतिवेदन जितना स्पष्ट होगा उससे प्राप्त परिणाम भी उतने ही निष्पक्ष एवं विश्वसनीय होंगे इसलिए प्रतिवेदन में स्पष्टता होना अति आवश्यक है।
साक्षात्कार प्रविधि के गुण (Merits of Interview Techniques)
किसी व्यक्ति की भावना, विचार, संवेग, अन्तर्द्वन्द्व, मनोवृत्ति एवं कुण्ठा से सम्भावित अनेक गुणात्मक आँकड़ों को साक्षात्कार प्रविधि द्वारा जितनी भली प्रकार किया जा सकता है उतना किसी अन्य प्रविधि से नहीं। साक्षात्कार प्रविधि के गुण या इसकी उपयोगिता / महत्त्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा प्रकट किया जा सकता है-
(1) गहन अध्ययन सम्भव (Intense Study is Possible) – इस प्रविधि के द्वारा बातचीत करते-करते साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कारदाता के मन में काल्पनिक स्तर पर प्रवेश कर उसके अन्तर्मन में बैठी अनेक बातों को निकालने सफल होता है और इस प्रकार समस्या का भली-भाँति गहनतापूर्वक अध्ययन किया जा सकता है।
(2) अमूर्त घटनाओं का अध्ययन (Study of Abstract Phenomenons) – साक्षात्कार द्वारा न दिखाई देने वाली घटनाओं का विश्वसनीय, वैध एवं वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन किया जा सकता है। किसी व्यक्ति के विचारों, मतों, आकांक्षाओं, अभिवृत्तियों आदि का अध्ययन भी इस विधि द्वारा सम्भव है।
(3) गोपनीय तथ्यों / घटनाओं अध्ययन (Study of Secret Facts/Phenomenons) – ऐसी बहुत सी समस्याओं जिनका सम्बन्ध व्यक्ति के अन्तरंग, गुप्त एवं व्यक्तिगत अनुभवों से सम्बन्धित होता है, का अध्ययन साक्षात्कार प्रविधि द्वारा सफलतापूर्वक किया जाता है।
(4) अतीत की घटनाओं का अध्ययन (Study of Past Events) – इस विधि के द्वारा भूतकालीन घटनाओं, उसके प्रभावों एवं उससे सम्बन्धित अनेक पक्षों का अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
(5) वस्तुनिष्ठ अध्ययन (Objective Study)- जब हम संरचित साक्षात्कार प्रविधि का उपयोग करते हैं तो उसमें साक्षात्कार अनुसूची, निर्धारण मापनी आदि से प्राप्त आँकड़ें वस्तुनिष्ठ होते हैं।
(6) बहुपक्षीय अध्ययन (Multidimentional Study)- इस प्रविधि द्वारा समस्या विशेष से सम्बन्धित कुछ पक्षों का ही अध्ययन नहीं होता बल्कि समस्या विशेष के अधिकांश / सभी पक्षों का अध्ययन होता है। इसलिए साक्षात्कार प्रविधि एक बहुआयाम अध्ययन प्रविधि है।
(7) मैत्रीपूर्ण एवं सहानुभूतिपूर्ण सम्बन्धों का लाभ (Advantage of Cordial and Sympathetic Relations) – साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता को साक्षात्कारदाता से सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध बनाने की सुविधा होती है। इसका लाभ यह होता है कि साक्षात्कारदाता बिना किसी संकोच के साक्षात्कारकर्ता को अधिक से अधिक जानकारी देता है।
(8) नैदानिक अध्ययनों में सहायक (Helpful in Remedial Studies) – साक्षात्कार प्रविधि विभिन्न सामाजिक समस्याओं, जैसे- बेकारी, भ्रष्टाचार, घूसखोरी, कालाबाजारी आदि एवं उनके कारणों को दूर करने में उपयोगी है।
(9) निरक्षरों एवं बच्चों के अध्ययन में उपयोगी (Useful in Study of Iliterate Persons and Children) – यह प्रविधि बच्चों एवं निरक्षर व्यक्तियों से सम्बन्धित समस्याओं में विशेष उपयोगी है। इस प्रविधि की सहायता से बच्चों एवं निरक्षर व्यक्तियों से महत्त्वपूर्ण सूचनाओं / तथ्यों का संकलन सरलतापूर्वक किया जा सकता है।
(10) निरीक्षण या अवलोकन का समावेश (Inclusion of Observation) – इस प्रविधि द्वारा साक्षात्कारकर्ता को साक्षात्कार के समय साक्षात्कारदाता के संकोच, उत्साह, विरोध, निराशा, भाव-भंगिमा आदि का अवलोकन करने का अवसर प्राप्त होता है साथ ही साक्षात्कारकर्ता की मनोदशा व भाव भंगिमा देख कर अनुमान लगाया जा सकता है कि कौन सा प्रश्न कब करना उचित है? या कौन सा प्रश्न नहीं पूछना है। इस प्रकार साक्षात्कार प्रविधि में निरीक्षण प्रविधि के गुणों का भी समावेश पाया जाता है।
(11) विभिन्न प्रकार की समस्याओं के अध्ययन में उपयोगी (Useful in the Study of Different Types of Problems) – साक्षात्कार के अन्तर्गत समस्याओं के लिए अलग-अलग प्रकार की साक्षात्कार विधियाँ उपलब्ध है। उदाहरणार्थ- समस्याओं के गहन अध्ययन हेतु गहन साक्षात्कार, नैदानिक समस्याओं हेतु नैदानिक साक्षात्कार, उपचारात्मक समस्याओं हेतु उपचारात्मक साक्षात्कार आदि।
(12) अध्ययन में लचीलापन (Flexibility in Study)- साक्षात्कार प्रविधि काफी लचीली प्रविधि है। विशेष रूप से अनिर्देशित व अनियन्त्रित साक्षात्कार के स्वरूप में काफी लचीलापन पाया जाता है जिससे साक्षात्कार प्रक्रिया में आवश्यकतानुसार परिवर्तन करके वांछित सूचनाओं / तथ्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
(13) विश्वसनीय एवं वैध परिणाम (Reliable and Valid Results) – अन्य विधियों की तुलना में साक्षात्कार प्रविधि द्वारा एकत्रित सूचनाएँ अधिक विश्वसनीय एवं वैध होती हैं क्योंकि प्रत्यक्ष आमने-सामने की स्थिति में वार्तालाप द्वारा तथ्यों / सूचनाओं का संकलन किया जाता है। किसी प्रश्न या उत्तर के प्रति सन्देह होने पर उसका तुरन्त स्पष्टीकरण कराया जाना सम्भव होता है इसलिए प्राप्त सूचनाएँ या तथ्य विश्वसनीय एवं वैध होते हैं।
(14) सत्यापन सम्भव (Verification is Possible) – इस प्रविधि में सूचना या तथ्यों का संकलन प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित कर आमने-सामने प्रश्नोत्तर एवं वार्तालाप द्वारा होता है। यदि साक्षात्कारकर्ता को साक्षात्कार द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया पर सन्देह होता है तो तत्काल सुगमतापूर्वक सत्यापन किया जा सकता है। इसीलिए इस प्रविधि द्वारा संकलित तथ्यों की पुनर्परीक्षा की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि साक्षात्कार प्रविधि एक महत्वपूर्ण एवं अत्यन्त उपयोगी प्रविधि है।
साक्षात्कार प्रविधि के दोष / सीमाएँ / कमियाँ (Demerits / Limitations of Interview Technique)
साक्षात्कार एक महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी प्रविधि है फिर भी इस प्रविधि की कुछ कमियाँ / सीमाएँ हैं जिनको जानना आवश्यक है। वे कमियाँ / सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) कुशल व प्रशिक्षित साक्षात्कारकर्ताओं का अभाव (Lack of Skilled and Trained Interviewers) – साक्षात्कार की सफलता साक्षात्कारकर्ता पर निर्भर करती है। सफल साक्षात्कार के लिए एक कुशल प्रशिक्षित एवं अनुभवी साक्षात्कारकर्ता की आवश्यकता होती है। साधारणतः एक कुशल प्रशिक्षित एवं अनुभवी साक्षात्कारकर्ता कम मिलते हैं।
(2) पक्षपात की सम्भावना (Possibility of Biasness) – कभी-कभी साक्षात्कारकर्ता समस्या के प्रति पक्षपात पूर्ण रवैया अपना लेता है। साथ ही साक्षात्कारदाता से सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो जाने के बाद कुछ प्रश्नों के उत्तरों पर साक्षात्कारकर्ता का झुकाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस कारण साक्षात्कार में संकलित तथ्य / सूचनाएँ दूषित हो जाती हैं जिसका प्रभाव निष्कर्ष पर पड़ता है।
(3) परिशुद्ध अभिलेखन में कठिनाई (Difficulty in Precise Recording) – इस प्रविधि में सदैव तकनीकी उपकरण, जैसे- मूवी कैमरा, टेपरिकार्डर आदि उपलब्ध नहीं हो पाता और तथ्यों सूचनाओं के अभिलेखन का कार्य बहुत कुछ साक्षात्कारकर्ताओं की स्मृति पर निर्भर करता है इसलिए अभिलेखन में परिशुद्धता का अभाव रहता है।
(4) खर्चीली प्रविधि (Expensive Technique) – अन्य प्रविधियों की तुलना में साक्षात्कार प्रविधि एक महंगी प्रविधि है। इसमें समय अधिक लगता है। तकनीकी उपकरण भी महंगे होते हैं। उस समय यह प्रविधि और भी महंगी हो जाती है जब साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ताओं का पैनल होता है और साक्षात्कार दीर्घकालिक होता है।
(5) सौहार्द्रपूर्ण एवं मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापन से कठिनाई (Difficulty in Establishing Cordial and Sympathetic Relations)- प्रत्येक साक्षात्कारदाता से साक्षात्कारकर्ता के सौहार्द्रपूर्ण व मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो जाए। ऐसा कर पाना बड़ा कठिन होता है। प्रत्येक साक्षात्कारदाता अलग-अलग पृष्ठभूमि, शैक्षिक पृष्ठभूमि, रुचि, स्वभाव के होते हैं इसलिए प्रत्येक साक्षात्कारदाता से एक जैसा सम्बन्ध बनना कठिन रहता है।
(6) बड़े अध्ययन क्षेत्र हेतु अनुपयुक्त (Inappropriate for Wide Field of Study) – एक बड़े अध्ययन क्षेत्र अर्थात् जहाँ साक्षात्कारदाताओं की संख्या बहुत अधिक हो और वे बहुत दूर-दूर स्थित हो जिनसे सम्पर्क करना कठिन हो, के लिए यह प्रविधि तथ्य / सूचना संकलन हेतु सदैव अनुपयुक्त रहती है।
(7) स्वाभाविक उत्तर का अभाव (Lack of Natural Answer) – साक्षात्कार प्रविधि में कभी-कभी साक्षात्कारदाता स्वाभाविक उत्तर न देकर कृत्रिम उत्तर देता है। कभी-कभी साक्षात्कारदाता साक्षात्कारकर्ता की इच्छा को भापकर उसकी इच्छा के अनुरूप ही उत्तर देता है। ऐसी स्थिति में सही तथ्य / सूचना प्राप्त होना कठिन हो जाता है।
(8) विश्वसनीय सूचना / तथ्यों का अभाव (Lack of Reliable Information/Facts) – जब साक्षात्कार अनिर्देशित होता है, जब साक्षात्कार में मानक स्थितियों का अभाव होता है, परिशुद्ध अभिलेखन का अभाव होता है, वस्तुपरक संकेतन नहीं होता तथा साक्षात्कारकर्ता कुशल व अनुभवी नहीं होता तब इन सभी परिस्थितियों में विश्वसनीय सूचनाएँ / तथ्यों को प्राप्त करना बहुत कठिन होता है।
(9) स्मरण शक्ति पर निर्भरता (Dependency on Memory) – मुख्यतः साक्षात्कार की सफलता साक्षात्कारदाता की स्मृति पर ही निर्भर करती है। साक्षात्कारकर्ता यदि ऐसे साक्षात्कारदाताओं से सूचनाएँ / तथ्यों का संकलन करता है जिनकी स्मरण शक्ति कमजोर है या पुरानी स्मृतियाँ जो घटना या समस्या से सम्बन्धित हैं, क्षीण हो चुकी हैं, उस स्थिति में समस्या से सम्बन्धित आँकड़ें / सूचनाएँ दोषपूर्ण हो जाते हैं और निष्कर्ष भी अशुद्ध प्राप्त होता है।
पी.वी. यंग ने इस विषय पर सत्य ही कहा है, “मुख्य रूप से साक्षात्कार एक कला है न कि एक विज्ञान।”
According to P.V. Young, “Therefore interview remains largely an art, rather than a science.”
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