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वैश्वीकरण क्या है- विशेषताएँ, आवश्यकता तथा महत्व, प्रभाव, लाभ, दुष्प्रभाव

वैश्वीकरण क्या है
वैश्वीकरण क्या है

वैश्वीकरण (Globalisation)

वैश्वीकरण एक जटिल आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक प्रक्रिया है। सामाजिक वैज्ञानिकों की दृष्टि में वैश्वीकरण की प्रक्रिया समय और दूरी का राष्ट्र-राज्य से आगे संकुचन उत्पन्न करती है। यह पूँजी, श्रम, उत्पाद, प्रौद्योगिकी और सूचना के माध्यम से आधुनिकीकरण, राष्ट्र-निर्माण एवं राष्ट्रों के बीच गठबंधन के साथ ही उत्पन्न हो रही है। इसमें वैश्विक अन्तर्सम्बद्धता का त्वरित विचार, सम्बन्ध और सम्पर्क, चिरस्थाई सांस्कृतिक अन्तःक्रियाओं और विनिमय पर बल दिया जाता है। प्रतियोगिता, दक्षता, बेहतर उत्पादकता एवं प्रौद्योगिकी के विकास के माध्यम से प्रगति की सम्भावना होती है।

वैश्वीकरण के बारे में विभिन्न विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि वैश्वीकरण कोई नई प्रक्रिया नहीं है। उपनिवेशवाद के आरम्भ होने के साथ ही वैश्वीकरण की प्रक्रिया भी प्रारम्भ हो गई थी। इंग्लैण्ड और फ्रांस जैसे देशों ने एशिया एवं दुनिया के अन्य देशों से कच्चा माल उपनिवेशवादी देशों को भेजकर औद्योगिक वस्तुओं का निर्माण किया तथा पुनः उन वस्तुओं को उन्हीं देशों के बाजारों में विक्रय हेतु भेजा। परन्तु इस प्रकार का वैश्वीकरण व्यवसाय अथवा व्यापारिक लाभ से ओतप्रोत था और आज के परिप्रेक्ष्य में वैश्वीकरण का अर्थ सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक एकरुपता तथा आदान-प्रदान से लगाया जाता है।

वैश्वीकरण की विशेषताएँ (Characteristics of Globalisation)

वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जहाँ वैश्विक मुद्दों को संसार की दृष्टि से देखा जाता है एवं उन मुद्दों को समझने व समझाने के लिए विश्वव्यापी सहयोग व सम्बन्धों को बनाये रखने का प्रयास किया जाता है। वैश्वीकरण राज्यों के मध्य वस्तुओं, मानवीय संसाधनों, सूचनाओं, तकनीकों, पूँजी आदि का खुला आदान-प्रदान है।

वैश्वीकरण विचार में निहित प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका स्वरूप बहुमुखी है, जैसे- सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक एवं तकनीकी आदि।

(2) वैश्वीकरण राज्यों की अर्थव्यवस्थाओं को निकट लाने की एक प्रक्रिया है। यह विकासशील देशों को अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने का अवसर प्रदान करता है।

(3) वैश्वीकरण दूरियों को कम करने की एक प्रक्रिया है। यह संस्कृतियों के आदान-प्रदान, जीवन शैली को एक दूसरे से जोड़ने और विश्व सभ्यता के निर्माण का कार्य करती है।

(4) वैश्वीकरण विश्व की समस्याओं को विश्व के सहयोग से सुलझानें का प्रयास है। यह वीभत्स बीमारी, सुनामी एवं आतंकवाद जैसी घटनाओं को विश्व स्तर पर राज्य के सहयोग से समाधान करती है।

(5) वैश्वीकरण, एक विश्व एक राज्य की ओर बढ़ता एक प्रयास है।

(6) वैश्वीकरण सहयोग, पारस्परिक निर्भरता तथा पारस्परिक सम्बन्धों को व्यवहार में बदलने की प्रक्रिया है।

वैश्वीकरण की आवश्यकता तथा महत्व (Need and Importance of Globalisation)

वर्तमान समय में वैश्वीकरण सभी देशों की प्राथमिक आवश्यकता बन गई है। कोई भी देश पूर्णरूप से विकसित नहीं है। प्रत्येक देश प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं। इस परस्पर निर्भरता को वैश्वीकरण का नाम दिया जाता है। इसीलिए इस प्रक्रिया की आवश्यकता निम्नलिखित रूप में कही जा सकती है-

(1) विश्व स्तर पर व्यापार करना (To Establish Trade at World Level)- प्रत्येक देश विकसित तथा विकासशील होते हुए भी अपने आप में पूर्ण नहीं है। सभी देश अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक दूसरे देश पर निर्भर होते हैं। इस निर्भरता को सकारात्मक रूप प्रदान करते हुए वैश्वीकरण का अनुसरण किया गया है। वैश्वीकरण प्रक्रिया के द्वारा व्यापार को राष्ट्रीयता से निकालकर अन्तर्राष्ट्रीयता के स्तर तक पहुँचाया जाता है जिसमें प्रतिस्पर्धा व संसाधनों का पूर्ण प्रयोग सम्भव है। इस वैश्वीकरण को खुली अर्थव्यवस्था का नाम भी दिया जा सकता है।

(2) विश्व की अनेक समस्याओं के समाधान के लिए (For Solving the Problems of Whole World) – वर्तमान समय में विश्व का कोई भी देश आत्मनिर्भर नहीं हैं। सभी देशों को संसाधनों के लिए दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। इसी प्रकार प्रत्येक देश की अपनी अनेक समस्याएँ भी होती हैं जिनकी समाप्ति वैश्वीकरण के द्वारा की जा सकती है। समाज व्यक्तियों का समूह है। इन समस्याओं का स्वरूप वहाँ के वातावरण पर निर्भर करता है। बेरोजगारी, अशिक्षा व स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ व शिक्षा सम्बन्धी के समाधान के लिए धन की आवश्यकता होती है। अर्द्ध विकसित देश विकसित देशों का अनुसरण करके अपने देश से भ्रष्टाचार को खत्म करके लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था को अपनाकर विकास कर सकते हैं। विश्व के कई देश इस बात के सूचक हैं कि वे राजनीतिक उथल-पुथल के शिकार रहें हैं। इसलिए विश्व की प्रत्येक समस्या को सुलझाने के लिए एक देश दूसरे देश पर निर्भर रहता है। विश्व की इस आवश्यकता को देखते हुए वैश्वीकरण की नीति को अपनाया गया है।

(3) राष्ट्रीय विकास की आवश्यकता (Need of National Development) – विश्व के सभी देश अपनी सुरक्षा तथा अर्थव्यवस्था के प्रति चिन्तित है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आर्थिक विकास समस्त समस्याओं का हल है। आर्थिक रूप से मजबूत राष्ट्र अपना विकास अच्छी तरह से कर सकता है। अतः इस आधार पर आर्थिक विकास की मजबूती के लिए वैश्वीकरण प्रक्रिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सभी राष्ट्र एक दूसरे की सहायता करें, यह राष्ट्र विकास का सूचक है तथा यही राष्ट्रीय एकता एवं विकास भी है।

(4) विश्व नागरिकता के लिए (For World Citizenship)- वर्तमान समय में व्यक्ति 21वीं शताब्दी में अपना जीवन व्यतीत कर रहा है। यह युग आधुनिकता का युग है। इस समय मनुष्य अपने संकीर्ण विचारों के साथ नहीं है बल्कि व्यापक दृष्टिकोण के साथ जीवन व्यतीत कर रहा है। वर्तमान समय की आवश्यकता है कि लोगों के मन में ऐसा विचार डाला जाए जिससे वे अपने व्यापक दृष्टिकोण को सदुपयोगी कार्यों में लगा सकें तथा स्वार्थी बनकर केवल अपने राष्ट्र के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के विकास के विषय में सोच सकें। अतः भारतीय सभ्यता के अनुसार वसुधैव कुटुम्बकम् का सपना साकार हो सकेगा। इस धारणा को प्रत्येक राष्ट्र एवं व्यक्ति के मन में जगाने के लिए वैश्वीकरण की आवश्यकता हैं क्योंकि आज विज्ञान व तकनीकी ने पूरे विश्व को एक छत के नीचे खड़ा कर दिया है। इसलिए सभी नागरिकों को अपने देश की तरफ ध्यान न देकर विश्व की नागरिकता के बारे में ध्यान देना चाहिए।

(5) जनसंचार के साधनों के द्वारा राष्ट्र की गतिविधियों का ज्ञान होना (To Gain Knowledge of National Activities through Mass Media) – विश्व का प्रत्येक राष्ट्र वर्तमान समय में अपने आधार को मजबूत करना चाहता है। सभी राष्ट्र आर्थिक रूप से उन्नति करना चाहते हैं। इसलिए भूमण्डलीकरण के प्रसार को बढ़ाने के लिए जनसंचार के माध्यमों की आवश्यकता होती है। इन संचार माध्यमों के द्वारा ही प्रत्येक राष्ट्र अपने संसाधनों की कमी का अनुमान लगाता है। इसी आधार पर वह दूसरे राष्ट्रों से सहायता प्राप्त करता है। वैश्वीकरण में जन संचार के माध्यमों को अच्छी प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है। जन संचार माध्यमों के द्वारा एक देश अपने उत्पादन का विश्व में कहीं भी प्रचार व प्रसार कर सकता है। संचार माध्यम ही किसी राष्ट्र की आपातकालीन एवं समृद्धि की गतिविधियों को दूसरे देशों के सामने प्रस्तुत करते हैं। प्रत्येक राष्ट्र विकासशील से विकसित बनना चाहता है लेकिन यह तभी सम्भव है जब वह अन्य विकसित देशों का अनुसरण करेगा तथा वैश्वीकरण की प्रक्रिया में अपना योगदान देगा।

अन्त में हम कह सकते है कि वैश्वीकरण एक सकारात्मक प्रक्रिया है जो मानव कल्याण के लिए अपनाई गई है। वैश्वीकरण का प्रचार-प्रसार केवल उपयुक्त आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया गया है। वैश्वीकरण को अपनाकर प्रत्येक राष्ट्र अपना आर्थिक विकास कर सकता है।

वैश्वीकरण के प्रभाव (Effects of Globalisation)

वैश्वीकरण प्रत्येक देश को भिन्न-भिन्न ढंग से प्रभावित करता है। भूमंडलीकरण का विकसित देशों पर प्रभाव विकासशील देशों से अलग होगा। विकसित देशों में भूमंडलीकरण से नौकरियाँ कम हुई हैं क्योंकि कई कम्पनियाँ उत्पादन खर्च को कम करने के लिए उत्पादन इकाइयों को विकासशील देशों में ले जाती हैं। विकासशील देशों में भूमंडलीकरण खाद्यानों एवं अन्य कई निर्मित वस्तुओं के उत्पादकों को प्रभावित करता है। भूमंडलीकरण ने कई विकासशील देशों के लिए दूसरे देशों से कुछ मात्रा में वस्तुएँ खरीदना अनिवार्य बना दिया है, भले ही उन वस्तुओं का उनके अपने देश में ही उत्पादन क्यों न हो रहा हो। बाहर के देशों की निर्मित वस्तुओं के प्रवेश से स्थानीय उद्योगों को खतरा बढ़ जाता है।

विकासशील देशों की दृष्टि से भूमंडलीकरण के कुछ अन्य प्रभाव निम्नलिखित हैं-

(1) आर्थिक प्रभाव (Economic Effect) – भूमंडलीकरण से अन्य देशों से पूँजी, नवीनतम प्रौद्योगिकी और मशीनों का आगमन होता है। उदाहरण के लिए भारत का सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग विकसित देशों में प्रयोग किए जाने वाले कम्प्यूटरों और दूर संचार यन्त्रों का प्रयोग करता है। लगभग 15 वर्ष पहले यह अकल्पनीय था। भारत के कुछ संस्थानों के इंजीनियर स्नातकों की अमेरिका और यूरोप के कई देशों में बहुत माँग है। कई देशों में सरकारों के पास प्राकृतिक संसाधनों का स्वामित्व होता है और वे पूरी दक्षता से जन हित में उनका उपयोग करती हैं और लोगों को विभिन्न सेवाएँ उपलब्ध कराती हैं। भूमंडलीकरण सरकारों को संसाधनों का निजीकरण करने के लिए प्रोत्साहित करता है जिससे लाभ कमाने की दृष्टि से संसाधनों का शोषण होता है और कुछ लोगों के हाथों में पैसा इकट्ठा हो जाता है।

(2) राजनीतिक प्रभाव (Political Effect)- भूमंडलीकरण सभी प्रकार की गतिविधियों को नियमित करने की शक्ति सरकार के स्थान पर अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों को देता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा नियन्त्रित होते हैं। उदाहरण के लिए- एक देश किसी अन्य देश की व्यापारिक गतिविधियों के साथ जुड़ा होता है तो उस देश की सरकार उन देशों के साथ अलग-अलग समझौते करती है। अब अन्तर्राष्ट्रीय संगठन जैसे विश्व व्यापार संगठन सभी देशों के लिए नियमावली बनाता है और सभी सरकारों को ये नियम अपने-अपने देश में लागू करने होते हैं। इसके साथ ही भूमंडलीकरण कई सरकारों को निजी क्षेत्र की सुविधा प्रदान करने हेतु कई विधायी कानूनों और संविधान बदलने के लिए विवश करता है। प्रायः सरकारें श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा करने वाले और पर्यावरण सम्बन्धी कुछ नियमों को हटाने पर विवश हो जाती हैं।

(3) सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव (Socio-Cultural Effect) – भूमंडलीकरण पारिवारिक संरचना को भी बदलता है। अतीत में संयुक्त परिवार का चलन था । अब इसका स्थान एकाकी परिवार ने ले लिया है। हमारे खान-पान की आदतें, त्यौहार, समारोह भी काफी बदल गए हैं। जन्मदिन, महिला दिवस, मई दिवस समारोह, फास्ट-फूड रेस्तरांओं की बढ़ती संख्या और कई अन्तर्राष्ट्रीय त्यौहार भूमंडलीकरण के प्रतीक हैं। भूमंडलीकरण का प्रत्यक्ष प्रभाव हमारे पहनावे में देखा जा सकता है। समुदायों के अपने संस्कार, परम्पराएँ और मूल्य भी परिवर्तित हो रहे हैं।

संस्कृति के भूमंडलीकरण के सम्बन्ध में संस्कृति शास्त्रियों ने चार दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं। प्रथम गुट का मानना व कहना है कि भूमंडलीकरण के कारण समस्त संस्कृ तियाँ धीरे धीरे एक हो जाएंगी और विश्व में एक ही संस्कृति रहेगी जबकि दूसरे गुट का कहना है कि भूमंडलीकरण, विश्व में मौजूद परिस्थिति के स्थिर तथा छोटी संस्कृ तियों के मजबूत व सुदृढ़ होने का कारण बनेगा। इस सम्बन्ध में तीसरे गुट का कहना है कि संस्कृति के सम्बन्ध में भूमंडलीकरण के क्षेत्र में ध्यान योग्य प्रगति नहीं होगी और एक संस्कृति के साथ बहुसंस्कृति भी होगी जबकि चौथे गुट का कहना है कि भूमंडलीकरण, संस्कृतियों के बिखर जाने का कारण बनेगा और उनकी सीमाएँ एक दूसरे से मिल जाएंगी।

वैश्वीकरण के लाभ (Demerits of Globalisation)

वैश्वीकरण के निम्नलिखित लाभ हैं-

(1) वैश्वीकरण के द्वारा विभिन्न राष्ट्रों की व्यापारिक गतिविधियों का संचालन किया जाता है। विभिन्न कम्पनियाँ अपनी शाखाएँ विभिन्न राष्ट्रों में स्थापित करती हैं। इससे उस राष्ट्र के नागरिकों को रोजगार के अवसर सुलभता से प्राप्त होते हैं।

(2) वैश्वीकरण के कारण विभिन्न राष्ट्र एक दूसरे के निकट आते हैं। इससे व्यापार तथा कार्यों को सांझा किया जाता है तथा आपसी प्रतिस्पर्धा की भावना को बल प्रदान किया जाता है।

(3) वैश्वीकरण एक केन्द्र बिन्दु है जहाँ विभिन्न राष्ट्र एक दूसरे की निर्भरता पर व्यापार आगे बढ़ाते हैं। इससे सभी राष्ट्रों के बीच की दूरियाँ समाप्त होती है जिससे एक राष्ट्र नागरिक दूसरे देशों में पर्यटक बनकर आते हैं।

(4) वैश्वीकरण प्रक्रिया द्वारा व्यापार ही नहीं बल्कि अनेक प्रकार के विषय सांझे किए जाते हैं। इसमें विज्ञान एवं तकनीकी का आदान-प्रदान तथा संस्कृतियों का आदान-प्रदान भी शामिल है।

(5) भूमण्डलीकरण एक ऐसी स्थिति है जहाँ लगभग सभी राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करते हैं। जैसे- आतंकवाद की समस्या तथा पर्यावरण प्रदूषण की समस्या। इस प्रकार इन समस्याओं का समाधान आपसी मतभेदों को भुलाकर ही किया जा सकता है।

(6) यह प्रक्रिया केवल व्यापार, तकनीकी या सांस्कृतिक आदान-प्रदान तक ही नहीं बल्कि शिक्षा प्रक्रिया के आदान-प्रदान का भी हिस्सा है। शिक्षा प्रक्रिया के विभिन्न पक्ष जैसे पाठ्यक्रम में शिक्षक वैश्वीकरण के माध्यम से विभिन्न राष्ट्रों की शिक्षा प्रक्रिया के बारे में समझ पाते हैं तथा छात्रों को इनसे अवगत कराते हैं। इससे छात्रों के दृष्टिकोण को व्यापकता मिलती है।

(7) वैश्वीकरण में सभी राष्ट्र एक दूसरे की समस्याओं को साँझा करते हैं। इससे विश्व एक परिवार की तरह बन जाता है जहाँ आपसी तालमेल के द्वारा मानवीय मूल्यों का विकास होता है।

वैश्वीकरण के दुष्प्रभाव (Effects of Globalisation)

वैश्वीकरण के दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं-

(1) सभी राष्ट्र जो आपसी सहयोग की प्रक्रिया द्वारा विकास कर रहे थें इससे उनकी सहयोगात्मक प्रक्रिया को धक्का लगता है क्योंकि प्रत्येक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के विकास से पहले वैश्वीकरण में अपना स्थान सुरक्षित करता है।

(2) इस प्रक्रिया से नैतिक मूल्यों में गिरावट आती है। इस प्रक्रिया द्वारा वस्तुओं का उत्पादन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होता है। इसके फलस्वरूप नागरिक राष्ट्रीय वस्तुओं का उपभोग करने के बजाय दूसरे देशों की वस्तुओं पर निर्भर करते हैं। इस प्रकार इससे नैतिक मूल्यों का ह्रास होता है।

(3) वैश्वीकरण प्रक्रिया से सभी राष्ट्र एक दूसरे के साथ विभिन्न क्षेत्रों में आदान-प्रदान की स्थिति उत्पन्न करता है। विकासशील राष्ट्र विकसित राष्ट्रों का अनुसरण करते हैं जिसके परिणामस्वरूप विकसित राष्ट्र मजबूत शिक्षण प्रक्रिया को अपनाते हैं लेकिन विकासशील राष्ट्रों के लिए इस शिक्षा प्रक्रिया को अपनाना महँगा तथा चुनौतीपूर्ण है।

(4) वैश्वीकरण प्रक्रिया में सभी देश भाग लेते हैं। सभी राष्ट्र अपनी गति के अनुसार विकास करते हैं। इससे इन राष्ट्रों की आय भी प्रभावित होती है। विकसित राष्ट्र अपनी आय में वृद्धि करते हैं लेकिन विकासशील राष्ट्रों की आय में वृद्धि नाम मात्र की होती है।

(5) वैश्वीकरण प्रक्रिया द्वारा विकासशील राष्ट्रों के नागरिक विकसित राष्ट्रों के बारे में जान पाते हैं। इस प्रकार यह परिलक्षित होता है कि इन देशों में व्यापार तथा रोजगार के अवसर अधिक मात्रा में हैं। वे अपने राष्ट्र को छोड़कर प्रतिभा पलायन करने की कोशिश करते हैं। इसके अतिरिक्त वे विकसित देशों में शिक्षा प्राप्त करके विकसित देशों में ही नौकरी करना पसन्द करते हैं। इससे विकासशील देशों की गति धीमी हो जाती हैं।

वैश्वीकरण प्रक्रिया के द्वारा तकनीकी का आदान-प्रदान भी किया जाता है। सभी राष्ट्र अपने आप को विकसित करने के लिए शिक्षा प्रक्रिया को अपनाते हैं जिससे युवाओं को शिक्षित करके आर्थिक सशक्तीकरण किया जा सके लेकिन आधुनिकता के आने से शिक्षा प्रक्रिया छात्र और तकनीक तक सीमित हो जाती है अतः ये अध्यापक की भूमिका को नकारती है। इससे छात्रों में वे गुण नहीं आ पातें जो वे प्रत्यक्ष रूप से शिक्षक के अनुसरण से प्राप्त कर सकते हैं।

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