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बेरोजगारी की समस्या पर निबंध | Essay on Unemployment Problem in Hindi

बेरोजगारी की समस्या पर निबंध
बेरोजगारी की समस्या पर निबंध

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बेरोजगारी की समस्या पर निबंध

प्रस्तावना- समस्या प्रधान देश भारतवर्ष की आज की सबसे विकट समस्या ‘बेरोजगारी’ की समस्या है। भारत में यह समस्या द्वितीय विश्वयुद्ध से पूर्व भी विद्यमान थी, परन्तु महायुद्ध के पश्चात् सभी को अपनी योग्यतानुसार रोजगार मिल गया। जनसंख्या वृद्धि के कारण आज हमारा देश फिर से बेकारी की चरम सीमा पर है तथा धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करता जा रहा है।

बेकारी का अर्थ- जब किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार कार्य न मिले, तो वह बेरोजगार कहलाता है। बेरोजगारी की इस परिधि में बालक, वृद्ध, रोगी, अक्षम, अपंग, अन्धा अथवा पराश्रित व्यक्तियों को सम्मिलित नहीं किया जाता। जब काम की कमी तथा काम करने वालों की अधिकता हो, तब भी बेकारी की समस्या उत्पन्न होती है। वर्ष 1951 में भारत में 33 लाख लोग बेरोजगार थे। वर्ष 1961 में बढ़कर यह संख्या 90 लाख हो गयी। आज हमारे देश में 30 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार घूम रहे हैं।

बेरोजगारी के प्रकार- हमारे देश में बेरोजगारी को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है-पूर्ण बेरोजगारी, अर्द्ध बेरोजगारी एवं मौसमी बेरोजगारी। शिक्षित बेरोजगारी में प्रायः वे पढ़े लिखे युवा आते हैं जो उच्च शिक्षित होकर । भी खाली बैठे हैं या फिर अपनी योग्यता से नीचे के कार्य कर रहे हैं। ये लोग श्रम के गौरव को भूल जाते हैं शारीरिक परिश्रम को हेय समझते हैं तथा अफसरशाही में विश्वास करते हैं। शहरों में दूसरे प्रकार की बेरोजगारी अल्प-शिक्षित या अशिक्षित श्रमिक हैं, जिन्हें कारखानों में काम न मिल पाने के कारण बेकारी की मार झेलनी पड़ रही है। गाँव के जीवन से उठकर शहरों की चकाचौंध में रमने की इच्छा से भागकर शहर आए ग्रामीण युवक शहरों की औद्योगिक बेरोजगारी को कई गुना बढ़ा देते हैं।देहातों में किसानों को अर्द्ध-बेरोजगारी तथा मौसमी बेराजगारी झेलनी पड़ती है क्योंकि वहाँ कृषि का उद्यम मौसमी उद्यम है। खेतिहर मजदूर भी अर्द्ध-बेरोजगार हैं, क्योंकि उन्हें पूरे साल काम धन्धा नहीं मिल पाता है।

भारत में बेरोजगारी के कारण- भारत में आज केवल सामान्य शिक्षित ही नहीं अपितु तकनीकी शिक्षा प्राप्त डॉक्टर, इंजीनियर, टैक्नीशियन तक बेरोजगार हैं। रोजगार केन्द्रों में बढ़ रही सूचियाँ इस भयावह स्थिति की साक्षी हैं। बढ़ती बेरोजगारी के मुख्य कारण इस प्रकार हैं-

(1) अंग्रेजी शासकों का स्वार्थ- प्राचीनकालीन भारत में एक सुदृढ़ ग्राम केन्द्रित अर्थतन्त्र था, जो ग्रामोद्योग पर केन्द्रित था। विदेशी-शासकों ने अपने स्वार्थ के लिए इस अर्थतन्त्र को तोड़कर, भारतीयों को नौकरियों का प्रलोभन देते हुए अपने रंग में रंग लिया। लालच में आकर भारतीय अपने पैतृक व्यवसाय को छोड़कर शहरों की ओर भागने लगे। इससे शहरों की स्वावलम्बी अर्थव्यवस्था जरजर हो गई।

(2) कुटीर उद्योगों की समाप्ति- महात्मा गाँधी कहते थे कि मशीन लोगों से उनके रोजगार छीन लेती है। जैसे-जैसे मध्यम तथा भारी उद्योगों का विस्तार होने लगा, कुटीर उद्योग-धन्धे लुप्त होते गए, जबकि कुटीर उद्योगों में पूँजी भी कम लगती है, साथ ही काफी लोगों को रोजगार मिल जाता है।

(3) जनसंख्या में वृद्धि- भारत में जनसंख्या में अत्यन्त वृद्धि भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण है। अधिक जनसंख्या से बचत प्रभावित होती है, बचत की कमी से विनियोग में कमी आती है। कम विनियोग से रोजगार के कारण प्रतिदिन नए विकसित होने वाले शहरों ने धरती को कम कर दिया के अवसर भी कम होते हैं। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ बढ़ती आवास समस्या है। इस प्रकार हर क्षेत्र में आजीविका के साधन कम होते जाने के कारण बेकारी बढ़ रही है।

(4) शहरी जीवन की चकाचौंध- शहरों की चमक-दमक आज एक ओर तो शहरियों को रोजगार मिलने पर भी गाँव जाने से रोकती है, दूसरी ओर ग्रामीणों को शहर की ओर आकर्षित करती है। पक्के घर, बिजली, रेडियो, फ्रिज, सिनेमा, काशन आदि के लिए लालयित नई पीढ़ी का गाँव में मन नहीं लगता। इससे एक ओर तो ग्रामोद्योगों की समाप्ति होती है तो दूसरी ओर शहरों में भीड़ बढ़ने से नए रोजगार न मिलने की समस्या विकट होती जा रही है।

(5) दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली- हमारी शिक्षा प्रणाली ऐसा पुस्तकीय ज्ञान देती है, जिसका व्यवहारिक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह शिक्षा प्रणाली अंग्रेजों की देन है जिसे आज भी सही माना जा रहा है। अंग्रेज तो हम भारतीयों से केवल ‘बाबूगीरी’ कराना चाहते थे, इसलिए उन्होंने भारत में ऐसी शिक्षा प्रणाली का विस्तार किया। आज का युवा कोई शारीरिक श्रम नहीं कर सकता तथा अफसरशाही के इतने मौके मिलते नहीं हैं, इसलिए वह बेरोजगार घूमता रहता है।

(6) दोषपूर्ण सामाजिक व्यवस्था- हमारे देश में कुछ कार्यों को सामाजिक दृष्टि से हेय माना जाता है अतः उन कार्यों में रोजगार के अवसर प्राप्त होते हुए भी उन्हें करने में हिचक के कारण युवा वर्ग उनसे बचता है। शारीरिक श्रम के प्रति भी लोगों में गौरव की भावना नहीं है, जिससे बेरोजगारी बढ़ती है।

(7) दोषपूर्ण नियोजन- स्वतन्त्रता के पश्चात् स्थापित योजना आयोग ने पंचवर्षीय योजनाएँ तो चलाई पर उनमें बेरोजगारी के समाधान के विभिन्न क्षेत्रों की ओर समुचित ध्यान नहीं दिया। माँग एवं पूर्ति के इस असन्तुलन में तकनीकी शिक्षा प्राप्त युवकों में बढ़ती बेरोजगारी के लिए दोषपूर्ण नियोजन भी दोषी है।

(8) महिलाओं का सहभागी होना- उद्योग धन्धों, वाणिज्य व्यापार तथा सभी नौकरियों के क्षेत्र में महिलाओं का सहभागी होना भी बेकारी बढ़ा रहा है। पहले जीविकापार्जन का कार्य केवल पुरुषों का था परन्तु आज शिक्षा के विस्तार तथा टेलीविजन के विस्तार के कारण महिलाओं में भी चेतना आई है और वे हर क्षेत्र में आगे आ रही है। शिक्षा तथा चिकित्सा के क्षेत्र में तो महिलाओं का योगदान अभूतपूर्व है। परन्तु समस्या बेकारी की है क्योंकि जब महिलाएँ भी नौकरी करेंगी तो पुरुषों के लिए तो रोजगार का अभाव होना निश्चित ही है।

(9) कम्प्यूटर का विकास- आज कम्प्यूटर के विकास ने अनगिनत लोगों को बेकार कर दिया है। आज प्रत्येक व्यापारिक संस्था, बैंक, कॉलेज, अस्पताल सभी जगह कम्प्यूटर द्वारा 10 लोगों का काम एक व्यक्ति कम्प्यूटर द्वारा पूरा कर रहा है।

(10) आर्थिक मन्दी- आज दुनिया के अधिकांश देश मन्दी की मार झेल रहे हैं, साथ ही कर्ज में डूबे हुए हैं। आज हर क्षेत्र में छंटनी का दौर चल रहा है और बेकारी की समस्या बढ़ रही है। पिछले कुछ दिनों में सरकारी प्रतिष्ठानों में न केवल भर्तियाँ बन्द हैं, वरन् छंटनी कार्यक्रम चल रहे हैं। आज बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ जैसे एयर इंडिया, रिलाइन्स आदि भी कितने ही कर्मचारी निकाल चुके हैं। निजी क्षेत्रों में मशीनों के नवीनीकरण तथा आटोमेशन के चलते भी रोजगार बहुत कम पैदा हो रहे हैं।

बेकारी का दुष्प्रभाव- वर्तमान अर्थव्यवस्था की मार सबसे अधिक विकासशील देशों पर पड़ रही है। विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ विश्व बैंक तथा मुद्रा का लाभ उठा रही है। बेकारी के कारण फैले आक्रोश ने समाज में अव्यवस्था व अराजकता की स्थिति पैदा कर दी है। बेकारी के कारण ही समाज में लूट-पाट, हत्या, बलात्कार, चोरी-डकैटी आदि का वातावरण है। आत्मग्लानि व आत्महीनता के भावों से भरा आज का बेकार युवा समाज के नियमों का उल्लंघन कर अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ रहा है। बेकारी निठल्लेपन को जन्म देती है, जो आलस्य का जनक है, आवारागर्दी की सहोदर है तथा शैतानी की जननी है। इससे चारित्रिक पतन होता है तथा सामाजिक अपराध बढ़ते हैं। इससे शारीरिक शिथिलता बढ़ती है तथा मानसिक क्षीणता तीव्र होती है।

बेकारी की समस्या का समाधान- इस समस्या के समाधान के लिए हमें अनेक साहसी कदम उठाने होंगे। सर्वप्रथम तो बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगानी होगी। हमें अपनी शिखा पद्धति में परिवर्तन लाना होगा। सैद्धान्तिक शिक्षा के स्थान पर व्यवहारिक व तकनीकी शिक्षा पर जोर देना होगा। सरकार को बड़े उद्योगों के साथ-साथ कुटीर उद्योगों तथा ग्रामोद्योगों के विकास की ओर ध्यान देना चाहिए। पशुपालन, मुर्गीपालन जैसे कृषि के सहायक धन्धों का विकास बनाई जानी चाहिए, जिससे कृषक परिवारों को पूरे वर्ष रोजगार मिल सके। भी अपेक्षित है। वर्ष में एक ही खेत में कई फसलें तैयार करने की योजना महिलाओं को नौकरी देते समय ध्यान रखा जाए कि यदि उनके परिवार में पहले से ही अन्य व्यक्ति रोजगारयुक्त है तो महिलाओं के स्थान पर युवक ही रखे जाएँ। कम्प्यूटर स्थापित करने से पूर्व उसके कारण होने वाली छंटनी से प्रभावित व्यक्तियों के लिए वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध किए जाने चाहिए। रोजगार कार्यालयों में व्याप्त शिथिलता व भ्रष्टाचार को दूर किया जाए, जिससे वहाँ पंजीकृत बेरोजगारों को शीघ्र काम मिल सके। इसके अतिरिक्त हमें लोगों की धार्मिक मान्यताओं में परिवर्तन लाना होगा।

उपसंहार- बेरोजगारी की समस्या एक राष्ट्रीय समस्या है तथा इसको हल करने हेतु संकल्प एवं प्रयत्न दोनों की आवश्यकता है। हमारी सरकार की ओर से इस समस्या के समाधान हेतु कई ठोस कदम उठाए गए हैं, जैसे-स्नातक बेरोजगारों को सस्ते दर पर ऋण की व्यवस्था करना, 20 सूत्रीय कार्यक्रम की स्थापना करना, जवाहर रोजगार योजना के तहत ग्रामीणों को काम दिलाना तथा बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना करना इत्यादि । यदि उपर्युक्त सुझावों को व्यवहारिक रूप दे दिया जाए तो भारत की बेकारी की समस्या से काफी हद तक मुक्ति मिल सकती है।

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