सम्प्रेषण का अर्थ (Communication)
सम्प्रेषण शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘कम्यूनीस’ शब्द से हुई है। सम्प्रेषण शब्द अंग्रेजी भाषा के कम्यूनीकेशन (Communication) का हिन्दी रूपान्तरित शब्द है। ‘कम्यूनीस’ शब्द’ का तात्पर्य है ‘कॉमन’ या ‘सामान्य’ । सम्प्रेषण शब्द के अन्तर्गत ‘प्रेषण’ क्रिया प्रभावी होती है। जिसका अर्थ होता है किसी विचार, संदेश अथवा वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजना सम्प्रेषण व्यापक सम्प्रत्यय है जिसके अन्तर्गत सूचना, विचार या संदेश भेजने का कार्य द्विपक्षीय या बहुपक्षीय होता है। सम्प्रेषण की प्रक्रिया भेजने वाला या प्रेषक (Sender) एवं प्राप्तकर्ता (Receiver) के मध्य समान रूप से संचालित होती है तथा दोनों ही समान रूप से इस प्रक्रिया की सफलता के लिए उत्तरदायी होते हैं। सम्प्रेषण की प्रक्रिया में भावों तथा विचारों का एकपक्षीय स्थानान्तरण न होकर पारस्परिक रूप से आदान-प्रदान होता है। सम्प्रेषण के अन्तर्गत दो या दो से अधिक व्यक्ति अपने भावों, विचारों एवं संदेशों का आदान-प्रदान करते हैं।
अतः हम कह सकते हैं कि सम्प्रेषण प्रेषण करने की अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने की, दूसरों की बातें सुनने की, विचार विनिमय करने की, अभिवृत्तियों, संवेदनाओं, विचारों तथा सूचनाओं एवं ज्ञान के विनिमय करने की प्रक्रिया है। सम्प्रेषण में हम शाब्दिक (Verbal) एवं अशाब्दिक (Non verbal) दोनों प्रकार के संकेतों का प्रयोग करते हैं।
संप्रेषण की परिभाषा
एडगर डेल (Edgar Dale) के अनुसार, “सम्प्रेषण विचार-विनिमय की मनोदशा में विचारों तथा भावनाओं को परस्पर जानने तथा समझने की प्रक्रिया है।”
According to Edgar Dale, “Communication is the sharing of ideas and feelings in a mood of mutuality.”
एन्डरसन के अनुसार, सम्प्रेषण एक गत्यात्मक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति चेष्टा अथवा अचेतन रूप से दूसरों के संज्ञानात्मक ढाँचे को उपकरणों या साधनों द्वारा प्रभावित करता है। “
According to Anderson, “Communication is a dynamic process in cognitive structure of the other through symbolic tools or means.”
न्यूमर तथा समर के अनुसार, “सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा विचारों तथ्यों, मतों अथवा भावनाओं का आदान-प्रदान की कला है।”
According to Newmer and Summar, “Communication is an exchange of ideas, facts, opinions or emotions by two or more persons.”
एमरी तथा अन्य के अनुसार, साधारण शब्दों में सम्प्रेषण एक या एक से अधिक व्यक्तियों के मध्य विचारों, सूचनाओं, अनुभूतियों के आदान-प्रदान की कला है।”
According to Amry et.al., “Simply defined communication is the art of transmitting ideas, information and attitude from one person to another.”
कीथ डेविस के अनुसार, “सम्प्रेषण सूचनाओं एवं समझ को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने की प्रक्रिया है। “
According to Keith Davis, “Communication is the process of passing information and understanding from one person to another.”
सम्प्रेषण की प्रकृति एवं विशेषताएँ (Nature and Characteristics of Communication)
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर सम्प्रेषण प्रक्रिया की प्रकृति एवं विशेषताओं को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है-
(1) सम्प्रेषण एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया होती है।
(2) सम्प्रेषण पारस्परिक समन्वय स्थापित करने की प्रक्रिया है ।
(3 ) सम्प्रेषण में विचार-विमर्श एवं विचार विनिमय पर विशेष बल दिया जाता है।
(4) प्रभावशाली सम्प्रेषण, उत्तम शिक्षण का आवश्यक पक्ष है।
(5) सम्प्रेषण प्रक्रिया के द्वारा सामाजिक एवं मानवीय वातावरण का भली-भाँति संचालन होता है।
(6) सम्प्रेषण में सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक पक्ष (जैसे- भावनाएँ, विचार, संवेग, सूचनाएँ एवं संवेदनाएँ) सम्मिलित होते हैं।
(7) सम्प्रेषण गत्यात्मक (Dynamic) प्रक्रिया होती है।
(8) सम्प्रेषण की प्रक्रिया में परस्पर अन्तःक्रिया होती है अतः पृष्ठपोषण होना भी आवश्यक होता है।
(9) सम्प्रेषण प्रक्रिया के अन्तर्गत प्रत्यक्षीकरण (Realisation) समावेशित होता है अर्थात यदि सन्देश प्राप्त करने वाला व्यक्ति, सन्देश का सन्दर्भ सही ढंग से प्रत्यक्षीकरण नहीं कर पाता है तो सम्प्रेषण सम्भव नहीं हो सकता है।
(10) सूचनाएँ वस्तुनिष्ठ (Objective) होती हैं जबकि सम्प्रेषण में व्यक्तियों के व्यक्तिगत प्रत्यक्षीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका है। अतः सम्प्रेषण एवं सूचनाओं में अन्तर होता है।
सम्प्रेषण के मुख्य कार्य- सूचना प्रदान करना, संदेश प्रेषित करना, समन्वय स्थापित करना एवं परस्पर विश्वास जाग्रत करना है।
सम्प्रेषण प्रक्रिया के तत्व (Elements of Communication)
सम्प्रेषण प्रक्रिया में निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक होता है-
(1) सम्प्रेषण सन्दर्भ (Communication Context)- सम्प्रेषण सन्दर्भ के अन्तर्गत निम्न बिन्दुओं का समावेश होता है-
(i) समय सन्दर्भ में (जैसे दिन का समय तथा समयावधि
(ii) सामाजिक सन्दर्भ में (विद्यालय या कक्षा का वातावरण)
(iii) भौतिक सन्दर्भ में (स्कूल, शिक्षण कक्ष आदि)
iv) मनोवैज्ञानिक सन्दर्भ में ( औपचारिकता / अनौपचारिकता)
(2) सन्देश का स्रोत (Source of Message)- व्यक्ति, शिक्षक आदि के माध्यम से शाब्दिक या अशाब्दिक रूप से जो संकेत दिए जाते है वह सन्देश स्रोत कहलाते हैं। सम्प्रेषण स्रोत से ही सम्प्रेषण प्रक्रिया प्रारम्भ होती है जिसका निर्धारण विषयवस्तु के आधार पर होता है। सन्देश के उचित प्रभाव के लिए सन्देश भेजने वाला सन्देशों का उचित माध्यम से सम्प्रेषण करता है।
(3) सन्देश (Message) – सम्प्रेषण प्रक्रिया में सन्देश एक उद्दीपक (Stimulus) होता है जिसका प्रेषण सन्देश भेजने वाले के माध्यम से किया जाता है। सन्देश, मौखिक, लिखित, सांकेतिक आदि रूपों में भी हो सकता है इसके अतिरिक्त यह पोस्टर या चार्ट अथवा पैम्पलेट आदि के रूप में प्रेषित किया जा सकता है।
(4) सम्प्रेषण का माध्यम (Medium of Communication) – जिन साधनों की सहायता से सन्देश, सन्देश स्रोत आदि को सन्देश प्राप्त करने वाले तक पहुँचाया जाता है, सम्प्रेषण के माध्यम कहलाता है। सम्प्रेषण के माध्यम द्वारा सन्देशों को भौतिक रूप से प्रेषित किया जाता है। सम्प्रेषण के कुछ प्रमुख उदाहरण- रेडियों, तार, स्टूडियो, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तके पत्र आदि हैं।
(5) संकेत या प्रतीक ( Sign or Symbol)- इन प्रतीकों के माध्यम से किसी अन्य चीज का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा ये शाब्दिक एवं अशाब्दिक भी हो सकते हैं। शब्द, स्वयं में एक संकेत या प्रतीक के रूप में होते हैं।
(6) एनकोडिंग (Encoding) – एनकोडिंग की प्रक्रिया में किसी विचार या भावना की अभिव्यक्ति हेतु विशेष संकेतों या प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है।
(7) डीकोडिंग (Decoding) – इस प्रक्रिया में सन्देश स्रोत से प्राप्त संकेतों या प्रतीकों का मूल अनुवाद में परिवर्तन कर सन्देश प्राप्त करने वाला व्यक्ति सन्देश ग्रहण करता है।
8) पृष्ठपोषण (Feedback) – सम्प्रेषण प्रक्रिया में पृष्ठपोषण वह प्रत्युत्तर होता है जो सन्देश प्राप्त करने वाले व्यक्ति द्वारा प्रदान किया जाता है। जैसे- सन्देश के विषय में अपने मत प्रस्तुत करना आदि हैं।
(9) सन्देश ग्रहणकर्ता (Message Receiver)- सन्देश ग्रहणकर्ता वे व्यक्ति होते हैं जो सम्प्रेषण प्रक्रिया का मुख्य भाग होते हैं जैसे- छात्र, श्रोता, दर्शक, पाठक आदि। अतः ये सभी तत्व सम्प्रेषण प्रक्रिया के लिए आवश्यक हैं।
सम्प्रेषण की प्रक्रिया (Process of Communication)
सम्प्रेषण एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से दो मनुष्यों में मानवीय सम्बन्ध स्थापित एवं दृढ़ होते हैं। सम्प्रेषण के बिना मनुष्य अपने सामाजिक जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है। सम्प्रेषण की प्रक्रिया को हम निम्न चित्र द्वारा भली-भाँति समझ सकते हैं-
इस चित्र के अनुसार स्रोत से संदेश लिखित या मौखिक रूप से किसी न किसी माध्यम द्वारा प्रेषित किया जाता है। सम्प्रेषित सन्देश जहाँ पहुँचता है वहाँ उसे पढ़कर जिसका सन्देश है उसे पहुँचा दिया जाता है। सम्प्रेषण की प्रक्रिया के घटकों को समझने के बाद ही उसकी प्रक्रिया को समझा जा सकता है सम्प्रेषण प्रक्रिया के घटक निम्न हैं-
(1) सम्प्रेषण स्रोत (Communication Source)- यह सम्प्रेषण प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण घटक है इसके बिना सम्प्रेषण की प्रक्रिया प्रारम्भ करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यह सम्प्रेषण प्रक्रिया का वह प्रारम्भिक बिन्दु है जिसके विचारों तथा भावों को दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाया जाता है।
(2) सम्प्रेषण सामग्री (Content of Communication)- स्रोत अपने भावों-विचारों को जिस रूप में माध्यम तक पहुँचाता है उसे सम्प्रेषण सामग्री कहते हैं। सम्प्रेषण की प्रक्रिया पर सामग्री की गुणवत्ता का बहुत असर होता है क्योंकि सामग्री जितनी प्रभावशाली होगी सम्प्रेषण उतना ही दृढ़ होगा।
(3) सम्प्रेषण माध्यम (Communication Media) – सम्प्रेषण माध्यम वे होते हैं जिनका प्रयोग अपने भावों को दूसरों तक पहुँचाने में किया जाता है। माध्यमों द्वारा प्राप्त भावों को समझकर प्राप्तकर्ता अपनी अनुक्रिया प्रकट करता है। ये माध्यम लिखित, मौखिक, शाब्दिक व अशाब्दिक किसी भी रूप में हो सकते है।
(4) प्राप्तकर्ता (Receiver)- सम्प्रेषण की प्रक्रिया तब तक पूरी नही हो सकती जब तक उसमें प्राप्तकर्ता न हो । स्रोत द्वारा प्रेषित भावों को जिस व्यक्ति द्वारा ग्रहण किया जाता है उसे प्राप्तकर्ता कहते हैं। प्राप्तकर्ता की रुचि, योग्यता एवं दक्षता आदि का प्रभाव सम्प्रेषण प्रक्रिया पर भी पड़ता है। अतः सम्प्रेषण करने हेतु प्राप्तकर्ता का पूर्ण सक्षम, क्रियाशील एवं अभिप्रेरित रहना आवश्यक है।
(5) अनुक्रियात्मक व्यवहार या पृष्ठपोषण (Respondent Behaviour or Feedback) – सम्प्रेषण माध्यम के द्वारा सम्प्रेषित सामग्री को प्राप्तकर्ता किस रूप में ग्रहण करता है या समझता है तथा उसके सम्बन्ध में वह क्या अनुक्रिया अभिव्यक्ति करता है को अनुक्रिया व्यवहार या पृष्ठपोषण कहते हैं। इस अनुक्रिया व्यवहार या सामग्री को समुचित सम्प्रेषण के माध्यम के द्वारा स्रोत तक पहुँचाने की प्रभावशीलता पर सम्प्रेषणकर्ता और प्राप्तकर्ता के बीच सम्प्रेषण की निरन्तरता निर्भर करती है। अनुक्रियात्मक व्यवहार या पृष्ठपोषण ग्रहीता तथा प्रदान करने वाले के मध्य सम्प्रेषण का परिणाम होता है। विषयवस्तु के आधार पर ग्रहीता अनुक्रिया करता है तथा उसके अनुक्रिया के स्तर के अनुसार सम्प्रेषण प्रदाता पृष्ठपोषण प्रदान करता है।
(6) सम्प्रेषण को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors Affecting Communication)- सम्प्रेषण की प्रक्रिया में इसके दोनों तत्व जो इसमें सहायक होते हैं तथा जो बाधक होते हैं दोनों ही प्रभावित करते हैं। सम्प्रेषण की सफलता एवं असफलता इन्हीं दोनों तत्वों पर निर्भर करती है। सम्प्रेषित सूचना या विचार सम्प्रेषणकर्ता से प्राप्तकर्ता तथा प्राप्तकर्ता से सन्प्रेषणकर्ता तक पहुँचाने में जिन माध्यमों या तत्वों से होकर गुजरना पड़ता है वे सभी तत्व सम्प्रेषण को प्रभावित करते हैं।
सम्प्रेषण में आने वाली प्रमुख बाधाएँ (Major Barriers in Communication)
जब किसी सम्प्रेषण प्रक्रिया में कोई बाधा आ जाती है तो प्राप्त सूचना या सन्देश या तो अपूर्ण रूप से ग्रहण होता है या गलत हो जाता है। अतः हमारे समझने में बाधा उत्पन्न हो जाती है। इससे कभी-कभी सम्प्रेषण सम्बन्ध टूट जाते हैं। अतः हमें सम्प्रेषण के मार्ग में आने वाली बाधाओं का ज्ञान होना आवश्यक है। डॉ. कुमार के द्वारा सम्प्रेषण की बाधाओं को सारणीकृत किया गया है जो इस प्रकार है-
सम्प्रेषण में बाधाएँ
(1) भौतिक बाधाएँ (Physical Barriers) | शोर, अदृश्यता, वातावरण तथा भौतिक असुविधाएँ, खराब स्वास्थ्य, तथा ध्यान का केन्द्रित न हो पाना। |
(2) भाषा की बाधाएँ (Language Barriers) | अस्पष्ट शब्द, अनावश्यक शब्द, शब्दों को चबा कर बोलना, गलत उच्चारण, अस्पष्ट ग्राफिक्स तथा संकेत। |
(3) मनोवैज्ञानिक बाधाएँ (Phychological Barriers) | पूर्वाग्रह, अरुचि, ध्यान न दे सकना, गलत प्रत्यक्षीकरण अलाभकर अनुभव, जरूरत से अधिक चिन्ताएँ, अपूर्ण तथा अपूर्ण जिज्ञासाएँ |
(4) पृष्ठभूमि की बाधाएँ (Background Barriers) | पूर्व-अधिगम, सांस्कृतिक भेदभाव तथा पूर्व-कार्य-स्थिति तथा पूर्व-कार्य का वातावरण |
प्रो. एस. एस. श्रीवास्तव के अनुसार, सम्प्रेषण की बाधाओं को निम्न तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(1) सम्प्रेषण प्रेषणकर्ता से सम्बन्धित बाधाएँ।
(2) सन्देश प्रसारण से सम्बन्धित बाधाएँ।
(3) सम्प्रेषण प्राप्तकर्ता से सम्बन्धित बाधाएँ।
कुछ अन्य बाधाएँ (Some Other Barriers)
सामान्यतः देखा जाता है कि स्रोत एवं प्राप्तकर्ता के बीच चलने वाली सम्प्रेषण की प्रक्रिया प्रेषक में कुछ प्रतिकूल परिस्थितियाँ, अनुपयुक्त वातावरण एवं बाधा डालने वाली परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जिसके कारण सम्प्रेषण की प्रभावशीलता लुप्त हो जाती है एवं शनैः शनैः उसकी सम्पूर्ण लड़ी टूट जाती है। अतः इन प्रतिकूल परिस्थितियों के विषय में जानना अति आवश्यक है जो कि निम्नलिखित हैं-
(1) संवेग तथा भावनाएँ (Impulse and Emotions) – जब व्यक्ति किसी शब्द को अथवा बात को सुनते हैं तो प्रत्येक व्यक्ति अपनी अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ प्रस्तुत करता है या प्रत्येक व्यक्ति के मन में अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ आती हैं। ये सभी प्रतिक्रियाएँ व्यक्ति के संवेगों तथा भावनाओं आदि पर निर्भर करती हैं। अनुकूल शब्द से अच्छी प्रतिक्रिया प्राप्त होती है इसके विपरीत प्रतिकूल शब्द से गलत प्रतिक्रिया प्राप्त होती है। गलत प्रतिक्रियाओं के मध्य सही सन्देश भी गलत अर्थ प्रदान करते हैं।
(2) पारिस्थितिजन्य सन्दर्भ (Circumstantial) – जब किसी शब्द एवं वाक्य को अर्थ परिस्थितियों के सन्दर्भ से हटाकर देखा जाता है तब उसका अर्थ बदल जाता है और सही अर्थ का भी अनर्थ हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में सन्देश गलत अर्थ देता है। अतः प्रत्येक सन्देश को सही सन्दर्भ में पढ़ना, देखना तथा समझना आवश्यक है।
(3) भाषा (Language) – भाषा में एक शब्द के भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं। अतः किस शब्द का प्रयोग कहाँ और किसलिए हुआ है। इसका ज्ञान होना आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं होता है तो सन्देश ग्रहण में कई भ्रान्तियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
(4) शोर (Noise)- शोर भी सम्प्रेषण के आने वाली एक बड़ी बाधा है शोर में भी कई बार सन्देश ठीक से सुनाई नहीं देता है और गलत सन्देश ग्रहण कर लिया जाता है।
(5) रुचि का अभाव (Lack of Interest) – सम्प्रेषण का मुख्य आधार सम्प्रेषण स्रोत एवं प्राप्तकर्ता होता है। इन दोनों में यदि किसी कारणवश किसी एक में भी रुचि का अभाव हो जाता है तो सम्प्रेषण की प्रक्रिया प्रभावहीन हो जाती है और अन्ततः बिखर जाती है।
(6) सम्प्रेषण माध्यम की कमी ( Shortage of Communication Media)- सम्प्रेषण माध्यम, स्रोत एवं प्राप्तकर्ता के मध्य सम्प्रेषण जारी रखने में एक सेतु का काम करता है। यदि यह सेतु कमजोर, निष्क्रिय एवं अक्षम होता है तो विनिमय (आदान-प्रदान) रूपी कार्य नहीं हो पाता है। अतः सम्प्रेषण माध्यम की कमियाँ सम्प्रेषण में बहुत अधिक बाधक सिद्ध होती है क्योंकि जिस भाषा एवं संकेतों का प्रयोग वह सम्प्रेषण के मध्य कर रहा है, यदि उसे प्राप्तकर्ता समझ नहीं पा रहा है तो सम्प्रेषण प्रक्रिया प्रभावित होती है।
(7) सम्प्रेषण सामग्री की कमियाँ (Limitations of Communication Material)- यदि सम्प्रेषण सामग्री, प्राप्तकर्ता की रुचि एवं आवश्यकताओं के अनुकूल नहीं है अथवा वह उसकी योग्यताओं तथा क्षमताओं के अनुकूल नहीं है तो सम्प्रेषण का प्रवाह बाधित हो जाता है। इसके अतिरिक्त सम्प्रेषण सामग्री से सम्बन्धित ऐसी बातें हैं जो सम्प्रेषण में बहुत बाधक सिद्ध होती है, जैसे- जब सम्प्रेषण सामग्री व्यवस्थित नहीं होती है एवं विचारों में तारतम्य नहीं होता है तो कई बार विरोधी विचार (बातें) प्रेषित कर दी जाती है, जिससे प्राप्तकर्ता को उचित अनुक्रिया कर सम्प्रेषण को बनाए रखने में कठिनाई होती है।
(8) वातावरण जनित कमियाँ (Limitations Occuring Due to Environment)- वातावरण जनित परिस्थितियाँ जिसमें सम्प्रेषण की प्रक्रिया क्रियान्वित होती है। यदि वह अनुकूल नहीं है तो सम्प्रेषण की प्रक्रिया में मन्दता एवं प्रभावहीनता आ जाती है। वातावरण जनित परिस्थितियाँ जो सम्प्रेषण प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं, वे इस प्रकार हैं- मौसम की प्रतिकूलता अर्थात् जाड़ा, गर्मी, बरसात, आँधी एवं तूफान आदि।
(i) सुविधाओं की कमी अथवा अभाव जैसे प्रकाश, बिजली, पानी, वायु आदि की समस्या।
(ii) उत्साह, अभिप्रेरण एवं प्रोत्साहन का अभाव।
(iii) सम्प्रेषण में प्रतिभागी व्यक्तियों का आपसी असहयोग या प्रतिस्पर्द्धापूर्ण व्यवहार आदि।
(9) प्राप्तकर्ता सम्बन्धी कमियाँ (Limitations on the Part of the Receiver) – प्राप्तकर्ता में पर्याप्त रुचि का अभाव, उचित योग्यता एवं क्षमता का अभाव, सम्प्रेषण माध्यम सम्बन्धी कमियाँ आदि भी बहुत बार सम्प्रेषण प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करती हैं। इसके अतिरिक्त सम्प्रेषण के समय वह (प्राप्तकर्ता) जिस शारीरिक एवं मानसिक स्थिति से गुजर रहा होता है उसका भी प्रभाव सम्प्रेषण की प्रक्रिया में पड़ता है क्योंकि इस प्रकार की प्रतिकूल परिस्थितियाँ उसे सम्प्रेषण से दूर ले जाती हैं।
सम्प्रेषण में आने वाली बाधाओं को दूर करना (Eliminating Barriers in Communication)
एक प्रभावशाली सम्प्रेषण तभी सम्भव होता है जबकि सम्प्रेषण में आने वाली बाधाओं को दूर कर दिया जाए। इसके लिए निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-
(1) सम्प्रेषण में सरल, सुगम, सुबोध तथा स्पष्ट भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
(2) सम्प्रेषण में सन्देश इस प्रकार लिखना चाहिए जिसे सन्देश प्राप्त करने वाला व्यक्ति उसे सरलता से समझ सके।
(3) सम्प्रेषण प्रक्रिया में बाधित तत्वों पर पूर्ण दृष्टि रखनी चाहिए।
(4) प्रतिपुष्टि की ठीक तथा उचित व्यवस्था करनी चाहिए।
(5) सन्देश देने में यदि किसी विशेष बिन्दु पर बल देना हो तो उस शब्द की पुनरावृत्ति की जानी चाहिए।
(6) विलम्बित तलों पर नियन्त्रण।
(7) श्रेष्ठ श्रवणकर्ता का गुण।
(8) ध्यानपूर्वक श्रवण।
(9) सक्रिय श्रवणकर्ता की आदत का विकास।
(10) उत्तम श्रवणकर्ता ही उत्तम सम्प्रेषणकर्ता होता है।
(11) तथ्यों का पूर्ण श्रवण।
(12) लिखित संदेश को गम्भीरता से पठन।
(13) शीघ्रता एवं संवेगों से बचिए।
- श्रव्य-दृश्य सामग्री का अर्थ, परिभाषाएँ, विशेषताएँ, कार्य, उद्देश्य, प्रयोग के सिद्धान्त, आवश्यकता एवं महत्व
- दृश्य सहायक सामग्री | Visual Aids in Hindi
- बोध-स्तर शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषाएँ, विशेषताएँ, गुण, दोष, बोध स्तर शिक्षण के लिए सुझाव
- स्मृति का अर्थ एवं परिभाषाएँ, विशेषताएँ, गुण, दोष, सुझाव
Important Links
- लिंग की अवधारणा | लिंग असमानता | लिंग असमानता को दूर करने के उपाय
- बालिका विद्यालयीकरण से क्या तात्पर्य हैं? उद्देश्य, महत्त्व तथा आवश्यकता
- सामाजीकरण से क्या तात्पर्य है? सामाजीकरण की परिभाषा
- समाजीकरण की विशेषताएँ | समाजीकरण की प्रक्रिया
- किशोरों के विकास में अध्यापक की भूमिका
- एरिक्सन का सिद्धांत
- कोहलबर्ग की नैतिक विकास सिद्धान्त
- भाषा की उपयोगिता
- भाषा में सामाजिक सांस्कृतिक विविधता
- बालक के सामाजिक विकास में विद्यालय की भूमिका