सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का अर्थ एवं परिभाषाएँ Definitions of Information and [Meaning and Communication Technology (I.C.T.)]
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का अर्थ- मनुष्य प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से ज्ञान प्राप्त कर सकता है। जब कभी किसी कारणवश कोई विद्यार्थी प्रत्यक्ष रूप से ज्ञान प्राप्त नही कर सकता तब ऐसी स्थिति में वह अप्रत्यक्ष रूप से ज्ञान प्राप्त करता है। अप्रत्यक्ष ढंग से ज्ञान प्राप्त करने के कई माध्यम हो सकते हैं, जैसे – किसी व्यक्ति से पूछकर किताबों से, पत्र-पत्रिका के माध्यम से, चित्र, फोटोग्राफ, फिल्म देखकर, वीडियो, रेडियो, टेप, कम्प्यूटर इत्यादि से ।
उपर्युक्त माध्यमों से सूचना के आधार पर विद्यार्थी किसी व्यक्ति, स्थान या वस्तु विशेष के बारे में जानने का प्रयास करता है। यह सभी जितने भी सूचना के माध्यम हो उन सभी से ठीक प्रकार से सूचना प्राप्त करना और सूचना का ठीक समय पर प्रयोग करना अर्थात् व्यक्ति को सूचनाएँ प्राप्त करने, संग्रह करने और आवश्यकता होने पर इसके प्रयोग का ज्ञान आवश्यक है। इस प्रकार की गतिविधियाँ ही सूचना तकनीकी (Information Technology – IT) कहलाती हैं परन्तु सूचना की प्राप्ति और उसका उपयोग तभी सम्भव है जब इसमें सम्प्रेषण कला का समावेश हो ।
अतः सम्प्रेषण एक द्विमार्गी प्रक्रिया (Two-way process) है। सम्प्रेषण की ही सहायता से हम अपने विचारों को, सूचना को मान्यताओं को और जानकारी को दूसरों के साथ बाँटते हैं। सम्प्रेषण में सूचना के स्रोत एवं सूचना प्राप्त करने वाले के मध्य आदान-प्रदान होता है जिससे ज्ञान की वृद्धि होती है।
इस प्रकार सूचना एवं सम्प्रेषण दोनों को ही ज्ञान प्राप्त करने और ज्ञान प्राप्ति के ढंग को जानने एवं समझने की आवश्यकता होती है। सूचना एवं सम्प्रेषण सम्बन्धी कार्य को अधिक कुशल बनाने के लिए नवीन तकनीकी अथवा विज्ञान की सहायता ली जाती है। इसे ही सूचना सम्प्रेषण तकनीकी (I.C.T.) कहा जाता है।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की परिभाषा
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी को स्पष्ट करने के लिए निम्नलिखित विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किए हैं-
प्रो. एस. के. दुबे के अनुसार, “सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का आशय संचार साधनों की व्यवस्था के कुशलतम संचालन से है जो सूचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रेषित करने में सहायता करती है।”
आर. के. शर्मा के अनुसार, “सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का आशय उन समस्त संचार साधनों के व्यावहारिक प्रयोग की ओर संकेत करता है, जो मानव के कल्याण तथा आवश्यकता पूर्ति हेतु सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी एक दूसरे से सम्बन्धित हैं क्योंकि सूचना के अभाव में सम्प्रेषण का कोई महत्व नहीं रह जाता और सम्प्रेषण के बिना सूचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक शीघ्र गति से नहीं पहुँचाया जा सकता है। अतः यह स्पष्ट है कि सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी को इस प्रकार भी समझाया जा सकता है “औजारों, उपकरणों तथा अनुप्रयोग आधार से युक्त एक ऐसी तकनीक है जो सूचना के संग्रहण, भण्डारण, पुनः प्रस्तुतीकरण, उपयोग, स्थानान्तरण, संश्लेषण एवं विश्लेषण, आत्मसातीकरण आदि के विश्वसनीय एवं यथार्थ सम्पादन में सहायक सिद्ध होते हुए उपयोगकर्ता को अपना ज्ञानवर्द्धन करने तथा उसके सम्प्रेषण और उसके द्वारा अपनी निर्णय और समस्या समाधान योग्यता में वृद्धि करने में यथेष्ट सहायता सिद्ध होती है।”
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की प्रकृति (Nature of Information and Communication Technology)
आई.सी.टी. शिक्षा में हार्डवेयर एवं साफ्टवेयर तकनीकी के प्रयोग पर बल देता है। शैक्षिक सूचना एवं प्रसारण में यह वर्तमान समय की माँग है।
आई.सी.टी. मुख्यतः कम्प्यूटर तकनीकी है जिसमें उसके हार्डवेयर, जैसे- पसर्नल कम्प्यूटर यन्त्र के साथ इन्टरनेट की क्रियाविधि पर आधारित होता है। इसके माध्यम से शिक्षा सम्बन्धी समस्त सूचनाओं चाहे वे स्थानीय हों अथवा वैश्विक, उन्हें अध्ययन किया जा सकता है, अर्जित भण्डारण, प्रबन्धन एवं स्थानान्तरण किया जा सकता है। आई.सी.टी. शिक्षा सम्बन्धी सूचनाओं को प्राप्त करने तथा प्रदान करने का माध्यम है।
इसमें टेलीकॉन्फ्रेन्सिंग, पॉवर प्वाइण्ट प्रस्तुतीकरण एवं सी.डी. रोम (CD-ROM) आदि तकनीकों का प्रयोग करके शिक्षण-अधिगम को प्रभावशाली बनाया जाता है। यह सम्पूर्ण शैक्षिक प्रक्रिया के क्रियान्वयन में प्रयुक्त होता है। यह एक प्रकार का सहायक सामग्री होता है। जो छात्रों की समस्याओं को शीघ्र निदान कर उनकी अवधारणाओं को स्पष्ट करता है।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Information and Communication Technology)
सूचना सम्प्रेषण तकनीकी छात्र, शिक्षक एवं अन्य जन समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसकी आवश्यकता एवं महत्व को हम निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट कर सकते हैं-
(1) इसके द्वारा शिक्षक तथा छात्रों को तथ्यों एवं सूचनाओं की प्राप्ति होती है।
(2) सम्प्रेषण तकनीकी छात्रों को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में अधिक सक्रिय बनाती है।
(3) इसके प्रयोग से छात्रों में सामाजिक गुणों का विकास होता है।
(4) इस तकनीकी के द्वारा शिक्षक कक्षा या पुस्तकालय में रहते हुए ही छात्र को सम्पूर्ण विश्व के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने में सक्षम होता है।
(5) सम्प्रेषण के माध्यम से ही शिक्षण प्रक्रिया को पूर्ण किया जाना सम्भव है।
(6) सम्प्रेषण कक्षा शिक्षण की अन्तःप्रक्रिया का साधन है।
(7) सम्प्रेषण विकास की क्रिया का महत्वपूर्ण साधन है।
(8) सम्प्रेषण विचारों, भावनाओं, मतों, आदि के आदान-प्रदान का साधन है।
(9) सम्प्रेषण तकनीकी के माध्यम से व्यक्ति अपनी सूचना या संदेश को एक साथ असंख्य लोगों तक पहुँचा सकता है।
(10) इस तकनीकी के द्वारा प्रौढ़, सतत् एवं दूरस्थ शिक्षा में आवश्यकतानुसार सुधार लाया जा सकता है।
(11) इस तकनीकी की सहायता से एक ही समय में अधिक छात्रों या व्यक्तियों के पास सूचना प्रेषित की जा सकती हैं।
(12) एक ही स्थान पर बैठे-बैठे सम्पूर्ण संसार के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
(13) आई. सी. टी. ज्ञान के हस्तांतरण प्रदान करने तथा प्राप्त करने में महत्वपूर्ण होती है।
(14) आई. सी. टी. अद्यतन ज्ञान के वृद्धि में सहायता करती है।
(15) आई.सी.टी त्वरित गति से सूचनाओं का आदान-प्रदान करती है तथा यह सम्पूर्ण शैक्षिक प्रक्रिया को संतुलित करती है।
(16) आई. सी. टी. सम्पूर्ण विश्व की जानकारी एक पटल पर प्रदान करने में सक्षम है। यह छात्र के अध्ययन को प्रभावी बनाता है।
शिक्षा में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का क्षेत्र (Scope of I.C.T. in Education)
वर्तमान आधुनिक जीवन का प्रत्येक क्षेत्र सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी से प्रभावित है। शिक्षा का क्षेत्र भी पूर्णतया इसके प्रभाव में है। आज कम्प्यूटर, इंटरनेट का बढ़ता हुआ उपयोग शिक्षा को सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के पास लाता है। शिक्षा का प्रत्येक अंग, विधियाँ, प्रविधियाँ, शिक्षण उद्देश्य, शिक्षण प्रक्रिया, शोध इत्यादि सभी सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के बिना अधूरा है। अतः सूचना एवं सम्प्रेषण का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है इसके अन्तर्गत शिक्षण प्रक्रिया में सम्मिलित की जाने वाली सामग्री का निर्धारण और इसके कार्य क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना भी शामिल है। शिक्षा के क्षेत्र में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के कार्यक्षेत्र निम्नलिखित हैं-
(1) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का विश्लेषण (Analysis of Teaching Learning Process) – डॉ. एम. एस. कुलकर्णी के अनुसार सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के कार्य क्षेत्र निम्नलिखित हैं-
(i) शिक्षण-अधिगम का विश्लेषण करना। इस प्रक्रिया में अदा (Input) से लेकर प्रदा (Output) तक सभी कार्य करने वाले तत्वों का विश्लेषण किया जा सकता है।
(ii) इन तत्वों से सम्भव कार्यों की जाँच की जा सकती है।
(iii) इन तत्वों की इस ढंग से व्यवस्था करना जिससे प्रभावशाली परिणाम प्राप्त हों।
(2) शैक्षिक लक्ष्यों या उद्देश्यों का निर्धारण (Determination of Educational Goals or Objectives) – सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की सहायता से शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है। इन उद्देश्यों को व्यावहारिक (Behavioural) शब्दावली में लिखा जा सकता है। इन उद्देश्यों को निर्धारित कर विद्यार्थियों के अपेक्षित व्यवहार में परिवर्तन कर उनकी शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है।
(3) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिए व्यूह रचनाओं और युक्तियों का चयन (Selection of Strategies and Tactics for Teaching Learning Process) – सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी द्वारा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिए प्रयोग की जाने वाली नवीन व्यूह रचनाओं और युक्तियों का चुनाव एवं विकास बड़ी आसानी से किया जा सकता है। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी शिक्षण प्रतिमानों का ज्ञान, विभिन्न विधियों एवं प्रविधियों का ज्ञान और उनके चुनाव करने में सहायता कर सकते हैं।
(4) दृश्य-श्रव्य सामग्री का चुनाव, उत्पादन और उपयोग (Selection, Production and Utilisation of Audio Visual Aids) – सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी द्वारा शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के लिए विभिन्न प्रकार की दृश्य-श्रव्य सामग्रियों का चयन, उत्पादन और उपयोग किया जा सकता है। दृश्य-श्रव्य सामग्री के माध्यम से विद्यार्थियों को विशेष लाभ होता है। विद्यार्थी मोबाइल व कम्प्यूटर में श्रव्य सामग्री को सुरक्षित रखते हैं फिर आवश्यकता के अनुसार उसे समय पर सुन सकते हैं।
(5) पृष्ठपोषण में सहायक (Helpful in Feedback)- पृष्ठ-पोषण का मुख्य उद्देश्य मूल्यांकन होता है। सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली तभी सफल मानी जाती है जब उसका सही समय पर मूल्यांकन हो। पृष्ठपोषण द्वारा विद्यार्थियों और शिक्षकों को उनकी अधिगम और शिक्षण विधियों की सफलता के बारे में जाँच की जाती है और कुछ कमियाँ होने पर उसे दूर करने का प्रयास किया जाता है। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी द्वारा मूल्यांकन या पृष्ठपोषण विधियों का चयन, विकास तथा उनकी उपयोगिता सम्भव हो सकती है।
(6) शिक्षक – प्रशिक्षण (Teacher Training) – सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके लिए शिक्षण अभ्यास प्रतिमानों की रचना, सूक्ष्म-शिक्षण (Micro teaching) अनुकरणीय शिक्षण (Simulation teaching) एवं प्रणाली उपागम (System approach) का उपयोग किया जाता है।
(7) प्रणाली उपागम का उपयोग (Utilisation of System Approach)- शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न उप-प्रणालियों के मूल्यांकन के लिए प्रणाली उपागम के प्रयोग में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी महत्वपूर्ण है। शिक्षा के क्षेत्र में ये उप-प्रणालियाँ कक्षा में, कक्षा के बाहर लेकिन विद्यालय के वातावरण में ही प्रयुक्त होती हैं। इन प्रणालियों के तत्वों तथा उनकी कार्य-पद्धति के अध्ययन में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की प्रमुख भूमिका होती है।
(8) मशीनों और जन-सम्पर्क माध्यमों का उपयोग (Use of Machines and Mass-Media)- सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का कार्य क्षेत्र मशीनों एवं अन्य जन-सम्पर्क माध्यमों तक फैला है। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी इन मशीनों (हार्डवेयर) उपकरणों का उपयोग के लिए कार्य करती है। इन मशीनों में रेडियो, टेलीविजन, टेपरिकॉर्डर, फिल्म प्रोजेक्टर, ओवरहेड प्रोजेक्टर, सेटेलाइट, कम्प्यूटर, इन्टरनेट आदि सम्मिलित हैं। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी इन सभी के लिए आधार तैयार करती है।
(9) सामान्य व्यवस्था, परीक्षण और अनुदेशन में उपयोग (Use in General System, Testing and Instruction)- सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का प्रयोग हम सामान्य व्यवस्था, परीक्षण और अनुदेशन के कार्य क्षेत्रों में भी करते हैं।
इस प्रकार सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का क्षेत्र काफी विस्तृत है। शैक्षिक तकनीकी ने शिक्षा के क्षेत्र में पुरानी अवधारणाओं में आधुनिक सन्दर्भ के साथ अभूतपूर्व क्रान्तिकारी परिवर्तन कर उन्हें एक नवीन स्वरूप प्रदान किया है।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के लाभ एवं उपयोगिता (Advantages and Uses of I.C.T.)
शिक्षा के क्षेत्र में I.C.T. के उपयोग ने तीव्रता से सीखने एवं सिखाने की प्रक्रियाओं में सुधार किया गया है। यह सीखने और पारम्परिक रूप से चुनौती देकर नए अवसरों का विस्तार किया है। अतः ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहाँ I. C. T. का उपयोग न किया जाता । अतः सूचना एवं सम्प्रेषण के निम्नलिखित लाभ हैं-
(1) सीखने के संसाधनों की विविधता का उपयोग (Utilisation of the Variety of Learning Resources) – यह शिक्षण कौशल और सीखने की क्षमता को बढ़ाने के लिए संसाधनों की बहुत मदद करता है। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की सहायता से अब श्रव्य-दृश्य माध्यम से शिक्षा प्रदान करना आसान हो गया है और विद्यार्थियों को कम्प्यूटर प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। व्यक्तिगत भिन्नताओं के आधार पर छात्रों को सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के माध्यम से अनुदेशन प्रदान किया जा सकता हैं।
(2) जानकारी के लिए तात्कालिकता (Instant Availability of Knowledge/ Information)- सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी ने नवीनतम विधियों के द्वारा ज्ञान प्रदान करने की गति को बहुत तेज किया है, अब कम्प्यूटर एवं नेटवर्क के माध्यम से कहीं पर किसी भी समय शिक्षण किया जा सकता है। तात्कालिक जानकारी के आधार पर आधुनिक युग में शिक्षण प्रदान करके नवयुवकों को परम्परागत तकनीकों की सहायता से आने वाले परिवर्तनों के लिए तैयार नहीं किया जा सकता जबकि सूचना और सम्प्रेषण तकनीकी का समुचित प्रयोग इस दिशा में सहायक सिद्ध हो रहा है।
(3) छात्रों के व्यक्तिगत विकास के लिए उपयोगी (Useful for Personal Development of the Students)- सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के माध्यम से विद्यार्थी नवीन सूचनाओं को इकट्टठा कर उनका प्रयोग करके अपना व्यक्तिगत विकास कर सकते हैं और अपनी आवश्यकता, अपनी गति एवं रुचि के अनुसार स्व अनुदेशन प्राप्त कर सकते हैं। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी से केवल ज्ञान ही प्राप्त नहीं होता अपितु विद्यार्थी में समस्या समाधान योग्यता, निर्णय क्षमता का भी विकास होता है और विद्यार्थियों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन भी लाया जा सकता है।
(4) शिक्षकों के लिए उपयोगी (Useful for Teachers)- सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी शिक्षकों को शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में सहायता प्रदान करता है। उपयुक्त शिक्षण के लिए विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ, ज्ञान और आकड़ों की आवश्यकता होती है। इन्हें उचित प्रकार से प्राप्त करने में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी शिक्षक की सहायता करती हैं। शिक्षक अपने विद्यार्थियों को ज्ञान और सूचना के स्रोतों की जानकारी देकर अपने कार्यभार को कम कर लेते हैं। किसी भी प्रकरण का अभ्यास कराने के लिए भी इसका उपयोग किया जा सकता है। आजकल विद्यालयों में भी विद्यार्थियों को स्वयं दत्तकार्य (Assignment) करने के लिए दिए जाते हैं जिसमें शिक्षक केवल मार्गदर्शन करता है और विद्यार्थी को पूरी सूचनाएँ एकत्रित करनी होती हैं। अभिक्रमित पाठ्य-पुस्तक, कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन से शिक्षक अपने शिक्षण को अधिक प्रभावशाली बना सकते हैं।
(5) विद्यार्थियों के लिए उपयोगी (Useful for Students) – सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी से विद्यार्थी अपने सीमित ज्ञान का विस्तार कर सकते हैं। सूचनाओं को इकट्टठा करके सही समय पर उसका उपयोग कर सकते हैं। इसके द्वारा केवल सूचना ही प्राप्त नहीं होती अपितु विद्यार्थियों में समस्या समाधान व निर्णय क्षमता का भी विकास होता है। सूचना सम्प्रेषण तकनीकी विद्यार्थियों को उनकी क्षमता के अनुसार सीखने के सिद्धान्त का ज्ञान कराती है और साथ-साथ यह भी पता चलता है कि विद्यार्थी अपने सीखे हुए ज्ञान को किस प्रकार स्थाई करे। इससे विद्यार्थियों के रचनात्मक एवं सृजनात्मक चिन्तन का विकास होता है।
(6) शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण एवं प्रयोग का ज्ञान (Knowledge of the Use and Construction of Teaching Learning Material) – शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण एवं प्रयोग की प्रक्रिया शिक्षकों की व्यावसायिक उन्नति को सूचित करती है। वर्तमान समय में प्रत्येक शिक्षक अपनी शिक्षण-प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग करता है और सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के माध्यम से शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण की उचित विधियों एवं प्रयोग की जाने वाली सावधानियों का ज्ञान प्राप्त करता है, जिससे कि शिक्षक का शिक्षण कुशल, प्रभावशाली व उपयोगी बन सके।
(7) शिक्षक-प्रशिक्षण में सहायक (Helfpul in Teacher’s Training)– सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका है। शिक्षकों के विकास के लिए एवं शिक्षण को कुशलपूर्ण एवं प्रभावपूर्ण बनाने में सूचना सम्प्रेषण बहुत सहायक है। इसके लिए शिक्षण अभ्यास प्रतिमानों की रचना, सूक्ष्म-शिक्षण (Micro Teaching), अनुकरणीय शिक्षण (Simulation Teaching) एवं प्रणाली उपागम (System Approach) का उपयोग किया जाता है। शिक्षण कौशलों (Teaching Skills) के विकास में भी इसका उपयोग किया जाता है।
(8) शैक्षिक अनुसन्धानकर्ताओं के लिए उपयोगी (Useful for the Educational Researchers) – सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के द्वारा अनुसन्धानकर्ता को विभिन्न प्रकार की आवश्यक व उपयोगी सूचना एवं आँकड़े प्राप्त होते हैं जिससे शोधकार्य आसानी से हो सकता है। शोधार्थी को अपने प्रकरण (Topic ) से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के शोध (Research) कम्प्यूटर व नेटवर्क के माध्यम से देखने को मिल सकती है जिससे उसे अपने कार्य को व्यवस्थित व क्रमबद्ध करने में सरलता हो जाती है। शोधार्थी को एक प्रकार का मार्गदर्शन मिल जाता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि किसी शोधार्थी का Topic है- बी.एड. छात्रों की घटती उपस्थिति। इसके लिए वह गूगल पर जाकर सर्च कर सकता है तब उसे इसी Topic पर शैक्षिक अनुसन्धान सामग्री उपलब्ध हो जाएगी जो कि उसके शोध कार्य में उसका मार्गदर्शन करेंगी।
(9) परामर्श व मार्गदर्शन प्रदान करने वालों के लिए उपयोगी (Helpful for the Counselling and Counsellors) – परामर्श व मार्गदर्शन देने के कार्य में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी सहायता प्रदान करती है। रिकार्ड की हुई सामग्री के माध्यम से विद्यार्थियों की रुचि व उनके मानसिक स्तर के बारे में जानकर उन्हें उचित मार्गदर्शन दिया जा सकता है। निर्देशन व परामर्श चाहे विद्यालय में हो या विभिन्न संस्थाओं में, विभिन्न प्रकार की रोजगार सम्बन्धी सूचना प्रदान करने में सभी में सूचना एवं सम्प्रेषण का विशेष योगदान है, विद्यार्थियों को निर्देशन व परामर्श देते समय उससे सम्बन्धित सूचनाओं को इकट्टठा किया जाता है उसी के आधार पर विद्यार्थियों को परामर्श दिया जाता है। विद्यार्थियों की सूचनाओं को तकनीकी द्वारा आसानी से इकट्टठा करके रखा जा सकता है।
(10) शैक्षिक प्रशासन में सहायक (Useful in Educational Administration)- प्रशासन उचित प्रकार से चलाना है तो विद्यालय सम्बन्धी सभी गतिविधियों को और भौतिक संसाधनों के कार्यकलापों की जानकारी तथा उनसे सम्बन्धित आँकड़े उचित प्रकार से उपलब्ध होने चाहिए। इस प्रकार की सारी सूचनाएँ हम एक स्थान पर कम्प्यूटर में संग्रह (Store) करके रख सकते हैं। इसी प्रकार विद्यालय से सम्बन्धित सभी कार्यों जैसे किसी भी पाठ्यक्रम में प्रवेश परीक्षा निर्माण अर्थात् परीक्षाएँ करवानी हों। इन सभी के लिए सूचना सम्प्रेषण तकनीकी की सहायता ली जाती है। इसी के साथ शैक्षिक प्रशासकों के लिए पाठ्यक्रम निर्माण, विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण, मूल्यांकन विधि, रिपोर्ट, विद्यालय को दिए जाने वाले संसाधनों आदि के सम्बन्ध में निर्णय लेने में सहायक होते हैं।
(11) शिक्षण तकनीकी में विकास (Development in Teaching Techniques) – शिक्षक द्वारा सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के माध्यम से शिक्षण की प्रक्रिया को प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है। शिक्षक द्वारा विभिन्न संचार माध्यमों से शिक्षण प्रक्रिया में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न उपकरणों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है जैसे कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन (C.A.I.) ओवरहेड प्रोजेक्टर (O.H.P.) तथा इन्टरनेट आदि । इनके ज्ञान से शिक्षक ट्रान्सपेरेन्सी बनाकर अथवा (P.P.T.) पावर प्वाइंट प्रजेन्टेशन से अपने शिक्षण को प्रभावशाली बना सकता है।
(12) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के स्वरूप में परिवर्तन (Change in the Form of Teaching Learning Process) – सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी ने शिक्षक एवं विद्यार्थी दोनों को अधिक सक्रिय वातावरण प्रदान किया गया है वर्तमान समय में शिक्षक केवल ज्ञान ही प्रदान नही करता अपितु एक पथ प्रर्दशक व मार्ग-दर्शन की भूमिका भी अदा करता है और शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में भी सहायता करता है। सूचना सम्प्रेषण के माध्यम से आज शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के स्वरूप में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है जिससे विद्यार्थियों के वांछित व्यवहार में परिवर्तन किया जा सकता है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी ने एक नया आयाम प्रदान किया है। शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में इसका अपूर्व योगदान है। आज सूचना सम्प्रेषण तकनीकी द्वारा ही सम्पूर्ण कार्य शैली एवं संगठन में अभूतपूर्व विकास हुआ है।
इसी सन्दर्भ में श्रीमती आर. के. शर्मा ने लिखा है कि विद्यालय व्यवस्था में शैक्षिक संगठन का छात्र के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण सम्बन्ध होता है जो कि सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के माध्यम से सरलतापूर्वक विकसित किया जा सकता है जिसके माध्यम से शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति सरलता से हो जाती है। छात्र के सर्वागीण विकास में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नही होती जिसका श्रेय सम्प्रेषण के साधनों को जाता है यदि सम्प्रेषण का अभाव है तो शिक्षा के सामान्य उद्देश्य भी प्राप्त नहीं हो सकेंगे।”
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के उपयोग में बाधाएँ (Barriars in the Use of I.C.T.)
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का उपयोग करने में कुछ हद तक मुश्किलों का सामना भी करना पड़ सकता है। अतः इसके प्रयोग सम्बन्धी दोष या सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) शिक्षकों को हमेशा चिन्ता बनी रहती है कि तकनीकी के प्रयोग से विद्यार्थी स्वयं ज्ञान प्राप्त कर लेंगे और उनका (शिक्षक) महत्व नहीं रहेगा। इसीलिए शिक्षक स्वयं इस तकनीकी का प्रयोग करना नहीं चाहते जिससे कि उनका स्वामित्व बना रहे।
(2) सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के उपयोग सम्बन्धी सुविधाएँ हमारे गाँव के विद्यालयों में उपलब्ध नहीं हैं। गाँव में लोग न तो इनका उपयोग करना चाहते है और न ही उनके पास तकनीकी उपकरण खरीदने के साधन हैं।
(3) अधिकतर विद्यालयी प्रशासन सूचना सम्प्रेषण तकनीकी को प्रभावशाली ढंग से प्रयोग करना नहीं जानते। उनकी अनभिज्ञता सूचना सम्प्रेषण तकनीकी में बाधा बनी हुई हैं।
(4) विद्यार्थी भी इस तकनीकी के प्रयोग के लिए तैयार नहीं हैं। वह परम्परागत अधिगम प्रक्रिया का त्याग करना नहीं चाहते और विद्यालय द्वारा भी सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के उपयोग सम्बन्धी किसी प्रकार का कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। ऐसी स्थिति में विद्यार्थियों द्वारा इस तकनीकी का अपने अधिगम में प्रयोग नहीं लाया जाता।
(5) शिक्षक-प्रशिक्षण संस्थाओं द्वारा सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकों के प्रयोग से सम्बन्धित ज्ञान, कौशल, अभिवृत्ति, रुचि आदि के विकास का प्रयास नहीं किया जाता है।
(6) विद्यालयी अधिकारीगण, विद्यालय प्रशासन, राज्य सरकारें कोई भी सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के विद्यालयों में उपयोग को लेकर न तो आवश्यक उत्साही नजर आते हैं और न ही इस कार्य के लिए उचित वातावरण तैयार किया जाता है जिससे तकनीकी के प्रयोग का कार्य आगे नहीं बढ़ा पाता।
(7) विद्यालयों में समुचित सुविधाओं का अभाव और विद्यालय प्रशासन एवं राज्य सरकारों का सूचना सम्प्रेषण के उपयोग को लेकर उत्साही न होना।
(8) विद्यालय का पाठ्यक्रम, परीक्षा पद्धति, मूल्यांकन पद्धति आदि सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के प्रयोग के अनुकूल नहीं है।
(9) आज हमारे सेवापूर्ण व सेवाकालीन किसी भी प्रकार के शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी को विद्यालय शिक्षा में प्रयोग करने के लिए शिक्षकों को तैयार नहीं किया जाता परन्तु कम्प्यूटर साक्षरता के नाम से कुछ गतिविधियों का नाम पाठ्यक्रम में जोड़ने की कोशिश की जा रही है वह केवल नाम मात्र व एकांगी है। यह किसी भी तरह I. C. T. को विद्यालय पाठ्यक्रम के संचालन के लिए अध्यापकों को समुचित रूप से तैयार करने की भूमिका नहीं निभाती।
इस प्रकार सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी को शिक्षा व क्षेत्र में प्रयोग करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है परन्तु इनमें से बहुत सी मुश्किलें हमारे नकारात्मक दृष्टिकोण के कारण हैं जिन्हें आज हमें दूर करना होगा।
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